ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
Sunday, February 27, 2011
संस्कृत श्लोकों में फ़ारसी का “राजव्यवहार”
दुनिया के किसी भी क्षेत्र की भाषा समुचित विकास नहीं कर सकती अगर उसमें नए शब्दों को अपनाने की प्रवृत्ति न हो। यही नहीं, भाषा का इस्तेमाल करनेवाले समाज में इतना वाचिक खिलंदड़ापन भी ज़रूरी है कि वह भाषिक किलोल करते हुए उपसर्गों, प्रत्ययों के जरिए नए नए शब्दों का निर्माण भी करता चले। ये प्रक्रियाएँ ही भाषा को उस मुकाम पर पहुँचाती हैं जहाँ उसकी विविधताओं और विशिष्टताओं को समझने के लिए उसे कोश में संजोने की ज़रुरत पड़ती है। दुनिया की विभिन्न विकसित भाषाओं में कोशों की परम्परा रही है।
मराठी संस्कृति के प्रति शिवाजी का अनुराग जबर्दस्त था। समाज संस्कृति के विकास पर उनका विशेष ध्यान रहता था। भारत की आधुनिक भाषाओं में शिवाजी द्वारा रचित राजव्यवहार कोश को सबसे प्राचीन कहा जा सकता है जिसमें मराठी, फारसी और संस्कृत—तीनों भाषाओं की सहायता ली गई थी। करीब सत्रहवी सदी यानी 1670 के आसपास शिवाजी ने अपने मंत्री रघुनाथ नारायण जिनकी उपाधि पंडितराव थी, से इसका निर्माण कराया था। शिवाजी के समय तक मराठी में अरबी-फारसी का प्रचुरता से घालमेल हो चुका था और इसने तत्कालीन नागरी मराठी को प्रभावित किया था। ग्रामीण मराठी पर इसका असर अभी बाकी था। शिवाजी के राजकाज की भाषा हालाँकि मराठी थी, मगर उस पर फारसी का पर्याप्त प्रभाव था। पंडितराव ने क़रीब दोहजार वर्ष पहले संस्कृत के प्रसिद्ध अमरकोश की तर्ज पर अनुष्टुप छंदो में 384 छंदों के माध्यम से मराठी में समाये डेढ़ हजार यवनी संस्कृति अर्थात मुस्लिम परिवेश से जुड़े शब्दों की व्याख्या इसमें की थी। इस कोश का सबसे पहले प्रकाशन 1860 में काशीनाथ गंगाधऱ नामके सज्जन ने कराया था। राजव्यवहार कोश के छंद का एक नमूना इस प्रकार है-
खल्बता इति यत्तत्तु खल्वोपलमिति स्मृतम्।
शिकार्खाना पक्षिशाला, शिकारी मृगयुर्मतः।।
संभारलेखकः कारखानवीसः प्रकीर्तितः।
हवालदारस्त्र मुद्राधिकारी परिभाषितः।।
संस्कृत के साथ फारसी शब्दों का अनूठा घटाटोप आपने पहले नहीं पढ़ा होगा। शिवाजी के चरित्र के महान पहलुओं में एक यह विशिष्ट राजव्यवहार भी है।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 7:55 PM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
11 कमेंट्स:
इस बात से पूर्णतया सहमत हूँ कि भाषाओं में ग्रहण करने की क्षमता होनी चाहिये।
यहाँ तो आधिकारिक शब्दकोष (शब्द परिभाषक) जैसा लगा रहा है|
भाषाओँ में समाविष्ट कर लेने की क्षमता न हो तो वे समृद्ध नहीं हो सकतीं!
आपका ये 'सफ़र' बहुत ज्ञानवर्धक होता है!
वाह.
घुघूती बासूती
बहुत ग्यानवर्द्धक जानकारी। धन्यवाद।
सचमुच आश्चर्यजनक है....फारसी शब्दों का संस्कृत के श्लोकों में इस प्रकार प्रयोग पहली बार देखा जाना....
बहुत बहुत आभार आपका इस सुन्दर जानकारी के लिए...
Thanks for this knowledge.
गुड है जी...
बहुत बढिया !!!
बहुत बढ़िया
सचमुच पहले नहीं पढ़ा, ऐसा संस्कृत श्लोक। बहुत ही मजेदार है और नूतन है मेरे लिए। बधाई...
Post a Comment