Monday, February 13, 2012

अलाव की साँझी सत्ता…

bonfire

मारे आस-पास कई ऐसे शब्द बोली-व्यवहार में बने हुए हैं जिनसे ग्रामीण संस्कृति की सौंधी सौंधी गंध रची-बसी है । अलाव भी ऐसा ही एक शब्द है । सर्दियों में गाँवों को अलाव का सहारा होता है । घरों में , चौपाल पर , रास्तों पर कहीं भी अलाव जलते जाते हैं । अलाव जलाने के लिए ज्यादा जतन करने की ज़रूरत नहीं होती । घास-फूस, पत्ते, कूड़ा कुछ भी इकट्ठा कर जला लो, अलाव बन जाता है । अलाव की आँच काफी प्रतीकात्मक भी होती है । हल्की सी चिन्गारी पूरे गाँव को फूँक देती है और यही चिन्गारी जब दिलों में, आँखों में जलती है तब क्रान्ति की ज्वाला भड़कती है । अलाव की आग सबको बराबर तपिश देती है और इसके चारों और बैठे लोगों में साझे की गरमाहट होती है । ये गरमाहट रिश्तों को पक्का करती है । अलाव पर रोटियाँ भी पकती हैं और अदहन भी चढ़ता है । अलाव सांझा चूल्हा है और अलाव साझी सत्ता है ।
ग्नि को कहीं लाल रंग का प्रतीक माना गया है, तो कहीं पीले का और कहीं श्वेत । ये सभी आभाएँ अग्नि की अलग अलग स्थितियाँ हैं । सबसे पहले एक जैसे अर्थों वाली शब्द सम्पदा के ज़रिए देखते हैं अलाव की आँच और उसके रंगों को । संस्कृत में हर का अर्थ पीला भी होता है और अग्नि भी । हरि यानी हरा या पीला, हरि यानी भूरा या लाल, हरि यानी सूर्य । हल्दी को संस्कृत में हरिद्रा कहते हैं । हिरण्य यानी सोना, होली यानी अग्नि, अनल यानी अग्नि । तमिल में भी अनल् , अग्नि ही है । हर् का रूपान्तर अर् होता है और अरुण यानी रक्ताभ प्रभात में यह अर् हमें नजर आता है । बरो और एमेनो के द्रविड़ व्युत्पत्ति कोश के ज़रिये डॉ रामविलास शर्मा द्वारा बनाई सूची के अनुसार अर्क यानी सूर्य, चमक, अग्नि और ताम्बा है । अर्च् में चमक है । अर् का एक और रूपान्तर अल् हो जाता है । सस्कृत में अल का अर्थ है पीत-खनिज । अलात यानी अग्नि । अलाव यानी अग्निपुंज । उल्का यानी मशाल, अंगार । आर्मीनियाई का अले, लिथुआऩी का अलनिस और अंग्रेजी का यलो भी पीला, पीताभ के अर्थ में प्रचलित हैं और इसी मूल से उनकी रिश्तेदारी है ।
लाव शब्द इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है और इसकी व्याप्ति समूचे भारत से लेकर उत्तर पूर्व के तुर्कमेनिस्तान से लेकर एशिया-यूरोप के सन्धिबिन्दु तुर्की तक की भाषाओं में है । यही नहीं, उत्तरी ईरान की कुर्द पहाड़ियों में रहने वाले एक कबीले का नाम ही अलेवी है । समझा जाता है कि इसके मूल में तुर्की का अलेव शब्द है जिसका अर्थ है अग्नि । तुर्की अलेव और हिन्दी के अलाव की तुलना गौरतलब है । हिन्दी में अलाव का अलाओ रूप भी अल्पप्रचलित है । शब्दों का सफर में यह बात अनेक शब्दों के सन्दर्भ में सामने आती रही है कि हमारी प्रारम्मिक शब्दावली पर प्राकृतिक शक्तियों का जबर्दस्त प्रभाव पड़ा । मनुष्य प्रकृति के निकट सम्पर्क में रहता था । आँधी, पानी, बरसात, बिजली जैसी प्रकृति की स्तब्धकारी शक्तियों के आगे वह सिर धुनता रहता था । यह शक्तियाँ मनुष्य के प्रारम्भिक देव-समूह में शामिल हुईं और प्रकारान्तर से आज तक इनका ही वर्चस्व है । इन तमाम शक्तियों में भी मनुष्य ने अग्नि को सर्वोच्च माना । सूर्यपिण्ड और चन्द्रपिण्ड के चक्र-परिभ्रमण को देखते हुए उसने खगोलिकी सम्बन्धी प्रारम्मिक धारणाएँ बनाईं । प्रायः दुनियाभर की विविध भाषाओं में प्रकाश, वर्ण और ऊष्मा से जुड़ी शब्दावली में आश्चचर्यजनक समानता देखने को मिलती है । अलाव में न सिर्फ अग्नि प्रमुख है बल्कि उसमें मण्डल भी है साथ ही पीताभ ज्योति भी है ।
व्युत्पत्ति के नज़रिए से देखें तो संस्कृत के अलात से अलाव का जन्म हुआ है । हिन्दी के विभिन्न कोशों में अलावा की व्युत्पत्ति यही मिलती है । वाशि आप्टे को संस्कृत हिन्दी कोश में भी अलातम् का अर्थ अंगार बताया गया है । हिन्दी में अलात शब्द का स्तंत्र प्रयोग तो नहीं मिलता मगर बौद्ध शब्दावली में अलातचक्र शब्द का प्रयोग मिलता है । आमतौर पर जादूगर और कलाबाज अग्निदण्ड को इस कौशल से चक्राकार घुमाते हुए एक अग्निवलय बनाता है और उसके ज़रिये ऐसा तिलस्म निर्माण करते है कि दर्शक बंधा सा रह जाता है । जब तक वलय की परिधि में आग जलती रहती है, कला का प्रभाव बना रहता है । दीवाली पर बच्चे फुलझड़ी को गोल गोल घुमाते हुए अग्नि के एक आभासी वलय का निर्माण करते हैं । जैसे ही हाथ का घूमना रुकता है, वलय का प्रभाव भी खत्म हो जाता है । यही है अलातचक्र जिसका प्रयोग बौद्ध धर्शन में माया-विनाश के प्रतिपादन के लिए होता है । दरअसल को गोल घुमाने से बना अलातचक्र एक भ्रम ही होता है, न कि सचमुच का अग्निवलय । मगर यहाँ गौर करें कि अलातचक्र चाहे मायावी होता हो, मगर अलात से बने अलाव के चारों घेरा डाल कर बैठे लोग माया नहीं हैं ।
फ़ैलन के कोश के मुताबिक अलात शब्द का ज़ेंद रूप भी अलाव ही है अर्थात आज से चार हज़ार साल पहले ही अलात का अलाव रूप सामने आ चुका था । गौरतलब है कि अग्निपूजक जरथ्रुस्तवादियों का प्राचीन भारतीयों से गहरा रिश्ता था । प्राचीन ईरान और भारतीय आर्यों के अग्निविधान मूलतः एक ही थे । पारसियों का धार्मिक साहित्य जेंदावेस्ता कहलाता है । जेंद में अग्नि के लिए अलाव का प्रयोग हुआ है । जेंद अलाव से ही फ़ारसी में भी अलाव शब्द आया जहाँ से इसने तुर्की भाषा में अपनी हाज़िरी दर्ज़ कराई । तुर्की में इसके कई रूप हुए जैसे अलैव, अलेव, अलीव, अलेफ़ या अलीफ़ । इन सभी शब्दों का अर्थ है मशाल, अग्निज्योत । दिलचस्प यह भी कि तुर्की में अलेव न सिर्फ़ अग्नि है बल्कि इसका अर्थ लाल घर भी होता है । यहाँ अग्निशिखा की लालिमा को याद कर लें । आग की लाल लपट की ही तरह तुर्की में सूर्य के लिए उली, उलू जैसे शब्द भी हैं जिनमें कांति, चमक का भाव है । कुल मिला कर अलाव अत्यंत प्राचीन शब्द है और प्राचीन अग्निपूजक संस्कृति से उद्भूत है । पूर्ववैदिक युग में जलाई गई अलाव की आँच सदियों बाद भी सभ्यताओं को गर्मजोश रखे हुए है ।

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6 कमेंट्स:

प्रवीण पाण्डेय said...

अग्नि का एक ही स्वरूप, सब ओर, पुरातन शब्दों में एक..

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर पोस्ट!

राजेंद्र गुप्ता Rajendra Gupta said...

अलाव को अगर ऐसे जलाया जाए तो कैसा रहेगा:
ज्वाल > जलाव > यलाव > अलाव

अजित वडनेरकर said...

@राजेन्द्र गुप्त्ता
शब्दों के रूप विकास के साथ उस के भीतर की मूल धातु की पहचान विविध धरातलों पर की जानी ज़रूरी होती है । मसलन आप जो रूप-विकास बता रहे हैं , उसकी वह वह ज्वल् धातु पर आधारित है । ज्वल् की मौजूदगी और फिर ज़ेंद में मौजूद अलाव से उसका साम्य देखना ज़रूरी होगा ।

ज्वाल का सहज विकास ज्वल > जाल होगा । इससे जलाना क्रिया बनी है।
दूसरा रूप
ज्वाल > वाल > बाल होगी जिससे बालना क्रिया बनी है । उबालना में इसे देख सकते हैं ।

अजित वडनेरकर said...

@श्रीयुत श्याम गुप्ताजी
आपको भाषा विज्ञान की प्रकृति का अंदाज़ा तक नहीं है ।

आप विभिन्न मंचों पर शब्दों का सफर की आलोचना करते रहे हैं ।
फिर बारम्बार इस गली में क्योंकर आते हैं महाराज ?
कई बार आपसे निवेदन कर चुका हूँ ।
हम आपकी पंक्ति के नहीं हैं...ये सफ़र आपके लायक नहीं ...
कृपया खुद का और दूसरों का समय बर्बाद न करें ।

Mansoor Ali said...

'अलाव' साझा है सभ्यता का,
दिलो में अपने जो जल रहा है,
सहिष्णुता जब बचा रखी है,
तभी तो दुश्मन विफल रहा है.
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अलाव' चिंतन का जल रहा है,
पुलाव ख्यालो का पक रहा है.
है लाल, पीली, सफ़ेद अग्नि,
जो ढूँढा जिसने वो मिल रहा है.
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और 'वेलेंटाइन डे' की मुनासिबत से:-:

'जवान' ले-दे रहे है 'गुल' जब,
इक बूढ़ा 'monkey' उछल रहा है.

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