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Saturday, October 27, 2012
‘दफा’ हो जाओ …
पिछली कड़ियाँ-1.‘बुनना’ है जीवन.2.उम्र की इमारत.3.‘समय’ की पहचान.
स मयवाची शब्दों की कड़ी में इस बार अरबी के ‘दफा’ शब्द की बात । रोजमर्रा की बोली भाषा में ‘बार-बार’ इस्तेमाल होने वाले शब्दों में ‘बार-बार’ का ‘बार’ भी शामिल है जैसे - ‘इस बार’, ‘उस बार’, ‘कई बार’, ‘हर बार’, ‘मेरी बारी’, ‘तेरी बारी’, ‘उसकी बारी’, ‘बारी-बारी’ आदि । इसी कड़ी में ‘बार’ का एक और पर्याय है ‘दफा / दफ़ा’ जिसका इस्तेमाल भी बार की तर्ज़ पर ही होता है मसलन ‘इस दफ़ा’, ‘उस दफ़ा’, ‘हर दफ़ा’, मगर ‘दफ़ा’ का इस्तेमाल और अलग अर्थों में भी होता है । किसी को चलता करने के लिए कहा जाता है “दफ़ा हो जाओ” । अगर कोई ‘दफ़ा’ होने को राज़ी न हो तो मुमकिन है कानून की ‘दफ़ा’ लगाने की नौबत आ जाए । ये सभी दफ़ा एक ही सिलसिले की कड़ियाँ हैं । दफ़ा का प्रयोग दफे की तरह भी होता है जैसे “पहली दफ़े…”।
हिन्दी में ‘दफ़ा’ शब्द का प्रयोग फ़ारसी के ज़रिए शुरू हुआ । फ़ारसी में इसकी आमद अरबी से हुई जिसमें इसका सही रूप ‘दफ्अ’ है । दफ़्अ की व्युत्पत्ति अरबी की d-f-a ( दा-फ़ा-ऐन ) त्रिअक्षरी धातु से हुई है । भाषाविज्ञानियों का मानना है कि मूलतः यह अक्कादी भाषा का शब्द है । अक्कादी में ‘प’ ध्वनि है और अरबी में ‘फ’ है , ‘प’ नहीं । अक्कादी में इसका रूप d-p-a ( दा-पे-ऐन ) है जिसमें धकेलने ( बाहर की ओर ) की बात उभरती है । अरबी में दफ़्अ में भी धकेलने ( बाहर निकालने ) का भाव है । गौरतलब है कि संस्कृत की समयवाची क्रियाओं में भी गति, शक्ति, प्रवाह के आशय निकलते हैं । संस्कृत की वा-या क्रियाओं में गतिवाची भाव है मगर इनसे समयवाची शब्द भी बने हैं । अरबी के दफ़ा शब्द की अर्थवत्ता के नज़रिए से काफी पेचीदा है । कहीं यह प्रवाहवाची नज़र आता है और प्रकारान्तर से कही इसी वजह से इसमें समूहवाची अर्थवत्ता उभर आती है ।
दफ़्अ का हिन्दी, फ़ारसी में दफ़ा रूप प्रचलित है । हिन्दी में नुक़ता नहीं होता तो भी दफा में नुक़ता लगाया जाना चाहिए । अलसईद एम बदावी की कुरानिक डिक्शनरी के मुताबिक दा-फ़ा-ऐन में प्रवाह, झोंका, बौछार, धारा, धावा जैसे भाव हैं । इससे बने दफ्अ में धावा, हमला या चढ़ दौड़ने, टूट पड़ने के साथ-साथ बचाव करने, रोकने का आशय भी है । मराठी में भी दफा शब्द है । करीब साढ़े तीन सौ साल पहले शिवाजी ने पंडित रघुनाथ हणमंते से शासन-व्यवहार में प्रचलित अरबी-फ़ारसी शब्दों की सूची बनवाई थी ( राजव्यवहार कोश ), उसमें भी दफा शब्द का उल्लेख है । कृ.पा. कुलकर्णी के कोश के मुताबिक इसमें समय और पाली का आशय है साथ ही दफ़ा शब्द का अर्थ सेना की पंक्ति, टुकड़ी भी है । खासतौर पर घुड़सवार टुकड़ी का इसमें आशय है ।
हिन्दी-मराठी-गुजराती में दफ़ेदार एक उपनाम भी होता है जिसका रिश्ता मुग़लदौर की सैन्य शब्दावली से हैं । दफ़ा शब्द का अर्थ प्रभावी या ताक़तवर व्यक्ति भी है । फ़ैलन के कोश में इसका एक फ़ारसी रूप दफ़े है जिसमें फौजी टुकडी, सेना का घुड़सवार दस्ता अथवा पैदल टुकड़ी का आशय है । इससे ही दफ़ेदार शब्द बना है अर्थात किसी सैन्य दल का सरदार । रियासती दौर में दफ़ेदार होना सम्मान की बात थी । जनरल से जरनैलसिंह और कर्नल से करनैलसिंह की तरह ही सैन्य जातियों में ‘दफ़ेदार’ नाम रखने की परम्परा भी रही है । गौर करें ये सभी आशय मूलतः अरबी के ‘दफ्अ’ में निहित प्रवाहवाची ( धकेलना ) अर्थ से ही विकसित हुए हैं । सेना की टुकड़ी धावा ही करती है । गति, वेग और प्रवाह को फौजी धावे के सन्दर्भ में समझा जा सकता है ।
दफ़ा में निहित समय, बारी, समूह, धक्का, वेग, टुकड़ी, पिण्ड, हटाना, हमला जैसे तमाम अर्थों को देखने पर मूल दफ्अ में निहित धकेलने का आशय ही उभर कर आता है । ध्यान रहे धकेलने की क्रिया से दबाव बनता है । दबाव से जमाव पैदा होता है । यही बात दफ़ा में समूह, टुकड़ी, खण्ड, पिण्ड आदि की अर्थवत्ता पैदा करती है । अरबी में दफ़्अ का एक अर्थ हाथी की लीद ( पिण्ड )भी होता है । इसमें जमाव और धकेल कर बाहर निकाले जाने के भाव को समझा जाना चाहिए । फ़ौजी टुकड़ी के मुखिया को दफ़ेदार इसलिए कहा जाता है क्योंकि दफ़ा में समूह का भाव है । यह टुकड़ी दुश्मन की फोज को पीछे धकेलती है । तेजी से आगे बढ़ती है । छत्तीसगढ़ के कोयलांचल में मज़दूर बस्ती को दफाई कहा जाता है । यह दफाई मनुष्यों का समूह या दल ही है । स्टैंगास की अरेबिक डिक्शनरी के मुताबिक दफ़ाफ का अर्थ परिवार, बस्ती या समूह है । अरबी में जमाअत का अर्थ भी दल या समूह है । दलपति या दलनायक को जमाअतदार कहा जाता था । बाद में इसका रूपान्तर जमादार हो गया । कहने का तात्पर्य यही कि दफ़ेदार में जमादार का ही भाव है ।
दफ़ा का हिन्दी-उर्दू में कालवाची अर्थ में ही ज्यादातर प्रयोग होता है । दफ़ा के समूहवाची अर्थ में ढलने की प्रक्रिया को समझने के बाद दफ़ा यानी बार-बार, बारी अर्थात turn, मौका अवसर, समय आदि भावों को समझना आसान है । समय की गति सीधी सपाट नहीं बल्कि घुमावदार है । दिन-रात 12-12 घंटों में विभाजित है और 24 घंटों बाद यही क्रम फिर शुरू होता है । सप्ताह सात दिन का और महिना तीस दिन का । एक अन्तराल के बाद फिर वही क्रम शुरू होता है । यह वृत्ताकार है । यह जो मुड़ कर लौटने की क्रिया है, यही बारी या टर्न है । पहला क्रम खत्म होने के बाद फिर वही क्रम शुरू होने को बारी कहते हैं । इस तरह ‘बारी’ समय का वह अंश, हिस्सा या खण्ड है जिसकी पुनरावृत्ति हो रही है । ध्यान दें, पुनरावृत्ति में ‘वृत्त’ ही है जिसके मूल में वर् है । वर् में घुमाव है जिससे एक दिन के अर्थ वाला वार बन रहा है । वार का फ़ारसी रूप ही ‘बार बार’ वाला बार है । पुनरावृत्ति का वृत्त या मोड़ वही है जिसे ‘बारी’ कहते हैं, इसका आशय कालांश, कालखंड से भी लगाया जा सकता है । बारम्बारता के लिए दफ्अतन का प्रयोग भी होता है, जिसमें दफ्अ या दफ़ा साफ़ पहचाना जा सकता है। दफ़ा का बहुवचन दफ़ात होता है। उसमें ‘अन’ प्रत्यय जुड़ने से कर्मकारक दफ्अतन बनता है जिसका अर्थ है समय समय पर, अक्सर, हमेशा, बार-बार, बहुधा आदि।
कई समूह किसी न किसी बड़ी रचना के हिस्से होते हैं । सो दफ़ा एक टुकड़ी भी है, समूह भी है, जमाव भी है, दल भी है । कई इकाइयों से समूह बनता है और कई समूहों की स्थिति में हर समूह एक इकाई होता है । समूह के रूप में इकाई एक पिण्ड, खण्ड, अनुच्छेद, प्रभाग आदि है । दफ़ा का अर्थ अनुच्छेद, धारा, अनुभाग, भाग आदि भी होता है । न्याय व्यवस्था में दफ़ा शब्द का प्रयोग होता है । हिन्दी में जिसे धारा हैं, रियासती दौर में उसे दफ़ा कहा जाता था । आज भी यह प्रचलित है । दफ़ा 302 का आशय भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 से है । हिन्दी-उर्दू में दफ़ा ( दफ्अ ) शब्द का एक अर्थ दूर करना, चले जाने का आदेश देना । मूलतः इसमें धकेलने वाले भाव का विस्तार ही है । धकेलने की क्रिया में दूर करने का भाव है । व्यावहारिक रूप में यह तिरस्कार है । ‘दफ़ान हो जाओ,’ ‘दफ़ा हो जाओ’ वाक्यों में तिरस्कार की नाटकीय अभिव्यक्ति देखने को मिलती है । इसका प्रयोग खुद चले जाने जाने के लिए भी होता है जैसे “मैं तो दफ़ा होता हूँ” । अगली कड़ी में- ‘रफ़ा-दफ़ा’ की बात
इन्हें भी देखें-1.फसल के फ़ैसले का फ़ासला.2.सावधानी हटी, दुर्घटना घटी.3.क़िस्मत क़िसिम-क़िसिम की.4.चरैवेति-चरैवेति.5.दुर्र-ऐ-दुर्रानी.6.कमबख़्त को बख़्श दो !.7.चोरी और हमले के शुभ-मुहूर्त.8.मौसम आएंगे जाएंगे.9.बारिश में स्वयंवर और बैल.10.साल-दर-साल, बारम्बार.11.नीमहकीम और नीमपागल.12.कै घर , कै परदेस !.13.सरमायादारों की माया [माया-1] .14.‘मा’, ‘माया’, ‘सरमाया’
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 10:27 PM लेबल: animals birds, government, nature, काल समय, तकनीक, व्यवहार, सेना, स्थिति
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3 कमेंट्स:
रोचक मूलयात्रा..
ज्ञान वर्धक
दफा तो हम ना होने वाले आते ही रहेंगे । ऱोचक सफर दफा दफेदार जमादार और दफ्तअन भी ।
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