Saturday, November 3, 2007

ये भी पाखण्डी और वो भी पाखण्डी

🙏सामान्य तौर पर अपने बर्ताव में दिखावा या ढोंग करने वाले को पाखंडी कहा जाता है। पाखंड शब्द के सही मायने हैं भक्ति या उपासना का आडम्बर करना या ऐसा व्यक्ति जो दूसरों को धोखा देने के लिए पूजा-पाठ, कर्मकांड करे। यह शब्द ढाई हजार साल पुराना है। अपने असली रूप में यह शब्द है पाषण्ड। आपटे के कोश में इसका अर्थ है नास्तिक, धर्मभ्रष्ट , धर्म के नाम पर झूठा आडंबर रचनेवाला धूर्त व्यक्ति। संस्कृत में पाषण्ड और पाखण्ड दोनों शब्द हैं।

🙏इस शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर अनेक मत हैं। लगभग बात इस तथ्य पर आ टिकती है कि पाषण्ड का रिश्ता सम्प्रदाय, पन्थ से है। इसका अर्थ धर्म भी लगाया गया है। बौद्ध धर्म से भी इसका तात्पर्य रहा। ऐसा माना जाता है कि ईसा से करीब पांच सदी पहले जब भारत में बौद्ध धर्म ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे, परिव्राजकों के एक संप्रदाय का नाम था पाषण्ड और इसी से बना पाखण्ड।

🙏संस्कृत की ‘पा’ धातु से इस शब्द का जन्म हुआ है जिसका मतलब होता है पालना, निर्देशित करना , चिंतन-मनन करना आदि। ये सभी भाव साबित करते हैं कि किसी ज़माने में यह एक पंथ अथवा सम्प्रदाय था। पाषण्ड साधुओं के लिए समाज में बड़ी आदर-श्रद्धा थी। मौर्यकाल तक यह दौर चला। खुद सम्राट अशोक इस संप्रदाय के साधुओं को खुले हाथों दान देता था। मगर बाद में इस संप्रदाय का अस्तित्व समाप्त हो गया।

🙏इसकी दो वजह रहीं। पहली ये कि बौद्ध धर्म की तेज आंधी में पूजा-पाठ करने वाला यह संप्रदाय अपने को बचा नहीं पाया। दूसरी वजह-जैसा कि होता आया है, उचित नेतृत्व के अभाव में इस समुदाय में मठाधीशों का बोलबाला हो गया। लोगों पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए साधु-सन्यासी ढोंग-आडम्बर आदि करने लगे। जाहिर है समाज में इनके प्रति श्रद्धा का भाव घटना ही था। बाद में ये पाषण्ड सन्यासी धर्म के नाम पर आडम्बर करने वालों के तौर पर पहचाने जाने लगे। और जब इन साधुओं की न जमात रही न संप्रदाय तो ठगी, धूर्तता और ढोंग जैसे अर्थों से विभूषित होकर पाखण्डी के रूप में सारे हिन्दी समाज में कुख्यात हो गया।

🙏कुछ संदर्भो के अनुसार शिवोपासना की कुछ विचित्र विधियों के जरिये ये पाखण्डी साधु (महंत ) लोगों को उल्लू बनाया करते थे। डॉ राजबली पाण्डेय के हिन्दू धर्मकोश के मुताबिक पद्मपुराण में पाषण्डोत्पत्ति अध्याय है जिसके मुताबिक इस मत को पाखण्डी मत कहा गया है वहीं तन्त्र शास्त्र में इसी को शिवोक्त आदेश भी कहा गया है।

🙏एक दिलचस्प बात यह है कि बौद्ध ग्रंथों में बौद्ध धर्म के अलावा अन्य सभी पंथो को पाखण्ड कहा गया है वहीं प्राचीन धर्मशास्त्र में जैन व बौद्ध सम्प्रदायों का मतलब पाखण्ड बतलाया गया है। इसका अभिप्राय यही है कि पाषण्ड की अनेक व्याख्याओं में इसका अर्थ विधर्मी या अन्य धर्म को मानने वाला भी है।

10 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

यूँ तो पूरी पोस्ट ही रोचक है हमेशा की तरह मगर अन्तिम दो पंक्तियों की जानकारी बड़ी दिलचस्प रही. आभार.

काकेश said...

जान लिया पाखन्ड का पाखंड. जानकारी अच्छी लगी.

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया जानकारी, आभार!

मुझे लगता है कि हम सब कुछेक फ़ीसदी पाखंडी ही होते हैं।

Unknown said...

बहुत रोचक जानकारी है।
यह जानना और भी दिलचस्‍प है कि एक-दूसरे समुदायों का पाखण्‍डी बताने का सिलसिला सदियों पुराना है।

बालकिशन said...

बुधकर जी से सहमत हूँ. ज्ञान के लिए शुक्रिया.

अजित वडनेरकर said...

शुक्रिया समीरजी, काकेशजी, पल्लवजी, संजीतभाई और बालकिशनजी। सही कहते हैं संजीत। हम में से ज्यादातर थोड़ा-बहुत पाखंड ज़रूर रचते हैं। मगर वो उतना नुकसान नहीं पहुंचाता जितना धर्म के नाम पर रचा पाखंड। आभार आप सबका सहयात्री बने रहने के लिए...

अनामदास said...

खंड खंड पाखंड. सबका अपना अपना पाखंड, अपनी अपनी परिभाषा. बहुत अच्छा लिखा है.

Anita kumar said...

बड़िया जानकारी जी धन्यवाद

Asha Joglekar said...

रोचक जानकारी । वाकई पाखंड खंड खंड कर दिया ।

सुज्ञ said...

"एक दिलचस्प बात यह है कि बौद्ध ग्रंथों में बौद्ध धर्म के अलावा अन्य सभी पंथो को पाखण्ड कहा गया है वहीं प्राचीन धर्मशास्त्र में जैन व बौद्ध सम्प्रदायों का मतलब पाखण्ड बतलाया गया है।"
एक जानकारी और जोड़ दूँ जैन ग्रंथों में भी अन्य सभी पंथो को पर-पाखण्ड कहा है, और कहा गया है की महावीर के समय ३६५ पाखंड विद्यमान थे. यह देखकर आभास होता है की पाखंड ही आज के धर्म, पंथ, सम्प्रदाय अर्थ में है.

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