Tuesday, January 1, 2008

छैलाबाबू और छबीली नार [छवि-1]

भाषा मे विविधता या लालित्य लाने के लिए समाज में अपने आप प्रयोग होते हैं जो प्रचलन बन जाते है। इन शब्दों की पड़ताल करें तो पाएंगे कि जैसे एक ही चेहरे में कई भाव समाए होते है वैसे ही एक ही शब्द से बने शब्दों के भी कई रूप होते हैं। सफर की इस कड़ी में परखते हैं शब्दों की ऐसी ही छवि को। छैला, छैल-छबीला, छैल बिहारी, छैलाबाबू, जैसे शब्दों के मूल में आखिर है क्या....

छवि में समायी राजनीति

संस्कृत का एक शब्द है छवि जिसे बोलचाल की हिन्दी में भी खूब समझा जाता है। यह एक शृंगारिक शब्द है और ज्यादातर काव्य में प्रयुक्त होता आया है। इसका अर्थ होता है रूप, सुंदरता, चमक आदि। मध्यकालीन कवियों जैसे सूर,तुलसी , मीरा आदि ने न जाने शृंगार और वात्सल्य के प्रसंगों में इस शब्द का प्रयोग किया है। मगर दिलचस्प बात यह कि बोलचाल की हिन्दी में किसी के रूप की प्रशंसा में इस शब्द का प्रयोग कम और राजनीतिक रूप की चर्चा में ज्यादा होता है, मसलन राजनीतिक छवि । यह एक मुहावरा सा बन चुका है। छवि बना है संस्कृत की धातु छो से जिसका मतलब होता है अंश या खंड। छो से ही बने हैं छाया अथवा छवि जैसे शब्द । इसका अर्थ होता है रंग-रूप, चेहरे की आभा, कांति, चमक, सौन्दर्य आदि। इसी तरह छाया का अर्थ होता है प्रतबिंब, अक्स, समरूप आदि। इसके अतिरिक्त छवि शब्द में निहित रंगरूप और चमक जैसे भाव भी इसमें शामिल हैं। गौर करें कि प्रतिबिंब या अक्स मूल वस्तु या आकृति का खंड या अंश जैसा ही होता है इसलिए इसकी मूल धातु छो में निहित भाव एकदम साफ है।

छैलाबाबू, छैलबिहारी

बांके-सजीले युवा अथवा युवती के लिए हिन्दी में छैल-छबीलाया छैल-छबीली जैसे शब्द कहावत की तरह इस्तेमाल होते आए हैं। मज़े की बात यह कि छैल और छबीला ये दोनों ही
शब्द छवि से ही बने हैं। संस्कृत से प्राकृत में क्रमशः छवि > छइल्ल > छइल्लो > छैला के रूप में ढल गया। इसी तरह छवि से छबि रूप बना और फिर उससेबीला या छबीली जैसे रूप विकसित हो गए। ये शब्द दशकों पहले तक समाज में खूब लोकप्रिय थे। गौर करें महारानी लक्ष्मीबाई का नाम छबीली ही था। छबीली अर्थात् रूपवती। सुभद्राकुमारी चौहान ने अपनी कविता में लिखा है-

कानपुर के नाना की
मुँहबोली बहन छबीली थी
लक्ष्मीबाई नाम , पिता की
वह संतान अकेली थी


छबीला शब्द ऐसे नौजवानों के लिए इस्तेमाल होता था जो न सिर्फ रूपवान थे बल्कि चुस्त, खुशमिजाज़, रसिक बातूनी और खूब बन-ठनकर रहने के आदि होते थे। तो इन्हीं गुणों के आधार पर हिन्दी के शब्द भंडार को समाज ने एक नया शब्द दे दिया छैल-छबीला । छैलाबाबू जैसे शब्द भी चल पड़े। भगवान श्रीकृष्ण के लिए भी छैलबिहारी शब्द कहा जाता है। ....अगले पड़ाव पर भी जारी

7 कमेंट्स:

Sanjay Karere said...

आकार सामान्‍य से कुछ लंबा तो हो गया लेकिन पढ़ते पढ़ते कब अंत आ गया पता ही नहीं चला. कभी कभी ऐसा होता है और इसमें कोई बुराई भी नहीं. दो भागों में भी देंगे तो भी पढ़ेंगे जी, अपन को तो पढ़ने से मतलब है. पर हां शायद उन लोगों को एतराज होगा जो किसी चिट्ठे पर दो मिनट से ज्‍यादा रुकने के आदी नहीं.
सुभद्रा कुमारी चौहान की पंक्तियों को पढ़ते ही मन बरसों पहले स्‍कूल के दिनों में जा पहुंचा. लक्ष्‍मीबाई के असली नाम का उल्‍लेख देख कर बहुत प्रसन्‍नता हुई. आज भी अनेक लोगों को इसकी जानकारी नहीं है.
अजित भाई नए साल में नई तस्‍वीर.... बहुत सुंदर लग रहे हैं.

दिनेशराय द्विवेदी said...

अजीत जी, यो लेख घणो छोखो लाग्यो।

हरिराम said...

आपने छवियाँ भी अच्छी लगाई हैं, धन्यवाद

काकेश said...

छा गये जी.

Ashish Maharishi said...

अजित जी शानदार जानकारी

रवीन्द्र प्रभात said...

महत्वपूर्ण जानकारी है , बधाईयाँ !

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया!!
शशिकपूर वाला एक गाना याद आ गया
" लंदन से आया है बाबू छैला………"

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