Friday, January 18, 2008

छकड़े की अधोगति-दुर्गति गाथा....

शब्दों के रूप वक्त के साथ कितनी तेजी से बदलते हैं , भाषा में इसकी ढेरों मिसालें मिलती हैं। ऐसा ही एक शब्द है छकड़ा। आज आमतौर पर खस्ता , खटारा गाड़ी के लिए ही छकड़ा शब्द का प्रयोग होता है। अगर आप ने किसी से सलाह मशवरा किए बिना कोई चार पहिया वाहन खरीद लिया तो मुमकिन है आपको सुनने को मिल सकता है कि अरे, ये छकड़ा कहां से उठा लाए।

प्यारी सी मिट्टी की गाड़ी भी

कड़ा मूलतः बना है संस्कृत की धातु शक् से जिसका अर्थ है समर्थ होना , बर्दाश्त करना , योग्य होना आदि। ये छकड़ा किसी ज़माने में इतनी हीन अवस्था में नहीं था और शकटः के रूप में संस्कृत में वाहन के अर्थ में सम्मान के साथ प्रयुक्त होता था।इस अर्थ में शकटः के मायने यान से सहज ही जुड़ते हैं। शकट यानी गाड़ी, वाहन अथवा यान जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाए। शकट का एक अन्य अर्थ सचमुच भारवाही यान भी है। कहने की ज़रूरत नहीं कि प्राचीनकाल में सभी तरह के वाहन ज्यादातर पशुओं को जोत कर ही चलाए जाते थे इसलिए शकट ने जब हिन्दी के छकड़े का रूप लिया तो इसके मूल में भी बैलगाड़ी या घोड़ागाड़ी का ही भाव था। छोटी गाड़ी के लिए शकटिका शब्द बना। छकड़ा की ही तरह इसके लिए सगड़ा शब्द भी चलता था। ज्यादा नज़ाकत और आकार के चलते छकड़ी जैसे शब्द भी चल पड़े। गौरतलब है कि शकट का निकटतम रूप सगड है और फिर छकड़ा। प्रसंगवश यह भी जान लें कि शूद्रक के विश्वप्रसिद्ध नाटक मृच्छकटिकम् अर्थात मिट्टी की गाड़ी या खिलौना गाड़ी में भी यही शकट शामिल है। मिट्टी के संस्कृत पर्याय मृद् के साथ शकट की संधि से बना मृच्छकटिकम्। इस पर शशिकपूर ने बेहद खूबसूरत फिल्म भी उत्सव नाम से बनाई थी।

छकड़ा कहलाएगी टाटा नैनो ?

मोटर कारों का दौर आया तब से इस शब्द की बेक़द्री शुरू हो गई। फर्राटे भरती , चमकीली कारों के आगे चूँ-चर्र की आवाज़ के साथ चलती बैलगाड़ी या घोड़ागाड़ी की कल्पना करें जिसकी खुद की चूलें चलते समय हिलती हैं और सवारी की चूलें भी । जाहिर सी बात है कि इन्हीं सब लक्षणों के आधार पर उसके बाद से ही किसी भी जर्जर, शिथिल, ढीले ढाले, मरियल सी अवस्था वाले वाहन के लिए छकड़ा शब्द आम हो गया। कोई ताज्जुब नहीं कि टाटा नैनो को भी उसके आकार के चलते छकड़ा नाम मिल जाए।
प्राचीनकाल में शकटः का मतलब एक विशेष सैनिक व्यूह रचना भी होती थी। एक समूची गाड़ी भर वज़न की माप को भी उस काल में शकटः कहा जाता था।

आपकी चिट्ठी-

सफर के पिछले दो पड़ावों प्रत्यंचा से छूटे तीर सा हो लक्ष्यवेध और लुधियाने की लड़की पर क्रमशः दिनेश राय द्विवेदी, दर्द हिन्दुस्तानी , संजय , प्रत्यक्षा आशीष महर्षी और मीनाक्षी जी की टिप्पणियां मिलीं। सफर में साथ निभाने के लिए आप सबका शुक्रिया।

14 कमेंट्स:

Pankaj Oudhia said...

चलिये ये अच्छा है कि रात साढे तीन बजे आप भी जाग रहे है और पोस्ट भेज रहे है।


अच्छी जानकारी मिली वैसे मध्यप्रदेश मे बहुत से गाँवो के नाम है सगडा। एक तो जबलपुर के पास ही है।


हमारे यहाँ छकडा अर्थात बैला गाडी कम देखने को मिलती है। बैला या भैसा गाडा प्रचलन मे है। मेरे विचार से आप इसे छकडा नही कहेंगे। नीचे चित्र का लिंक है

http://ecoport.org/ep?SearchType=pdb&PdbID=52164

अजित वडनेरकर said...

शुक्रिया पंकज जी। आमतौर पर मैं सुबह पांच बजे तक जागता हूं। आपने जो चित्र भेजा , देखा। शकट के में बैलगाड़ी वाला अर्थ निहित है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

अजित जी। इस छकड़े की सवारी बालक से किशोर होते हुए बहुत की है। होली के लिए इन से खल्ळे भी बहुत चुराए हैं।

Sanjay Karere said...

नैनो को सही नाम दिया अजीत भैय्या. आपकी बातें पढ़ कर उनके क्‍या हाल होंगे जो खरीदने के सपने देख रहे हैं....और छकड़ी के बारे में क्‍यों नहीं बताया?

Neelima said...

श्ब्दों के सफर को बहुत रोचक ढंग से दिखाने के लिए आभार !

Ashish Maharishi said...

अजित जी इन शब्‍दों का सफर जारी रखें, हमारे जैसे युवा लोगों के लिए यह बहुत ही महत्‍वपूर्ण है,

अभय तिवारी said...

बहुत बढ़िया अजित भाई.. भूत और भविष्य का सफ़र करा दिया आपने..

Sanjeet Tripathi said...

छकड़े की सवारी करने का मौका मिला है कई बार!!
याद दिला दिया आपने!!
शुक्रिया!

Pratyaksha said...

लेकिन छकड़े में बैठकर कितनी यायावरी करेंगे ? पुष्पक विमान की बारी कब आयेगी ?

mamta said...

खूब मिलाया छकड़ा और नैनो को। :)

मीनाक्षी said...

नन्ही सी नैनो नैनों में बस गई है,

देखने के बाद सोचते हैं कि छकड़ा कहें या शकट: !

ghughutibasuti said...

आपके लेख बहुत पसन्द हैं । आशा है जल्दी ही ये पुस्तक के रूप में एकसाथ मिलेंगे ।
घुघूती बासूती

Unknown said...

छकडा़...! बचपन में दादाजी के मुख से सुना था,
'देव एका पाया नी लंगडा़ .. असा कसा देवा चा देव भई छकडा़'। शुक्रिया इन पंक्तियों की याद दिलाने के लिये ,लेकिन नैनो तो अपुन को भी भा गई है लेकिन यहाँ आपने अनजाने में हम जैसों का दिल तोड़ दिया... कोई बात नही .

संजय बेंगाणी said...

छकड़े की गर्भनाल भी संस्कृत से जुड़ी है यह नहीं पता था :)

नैनो को छकड़ा न कहें. टाटा ही नहीं हम नैनो वालों को बूरा लग सकता है :)

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