| "दराज़ शब्द के वही मायने हैं जो हिन्दी के दीर्घ शब्द के हैं।" |
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प्रस्तुतकर्ता
अजित वडनेरकर
पर
3:26 AM
बहुत शोधपरक, उपयोगी और महत्वपूर्ण जानकारियां। हिंदी में इतनी संलग्नता के साथ ऐसा परिश्रम करने वाले विरले ही होंगे।
'शब्दों का सफर' मुझे व्यक्तिगत रूप से हिन्दी का सबसे समृद्ध और श्रमसाध्य ब्लॉग लगता रहा है।
आप के समर्पण और लगन के लिए मेरे पास ढेर सारी प्रशंसा है और काफ़ी सारी ईर्ष्या भी।
सच कहूँ ,ब्लॉग-जगत का सूर और ससी ही है शब्दों का सफ़र . बधाई.... अंतर्मन से
लिखते रहें. यह मेरे इष्ट चिट्ठों मे से एक है क्योंकि आप काफी उपयोगी जानकारी दे रहे हैं.
थोड़े में कितना कुछ कह जाते हैं आप. आपके ब्लाँग का नियमित पारायण कर रहा हूं और शब्दों की दुनिया से नया राब्ता बन रहा है.
आपकी मेहनत कमाल की है। आपका ये ब्लॉग प्रकाशित होने वाली सामग्री से अटा पड़ा है - आप इसे छपाइये !
बेहतरीन उपलब्धि है आपका ब्लाग! मैं आपकी इस बात की तारीफ़ करता हूं और जबरदस्त जलन भी रखता हूं कि आप अपनी पोस्ट इतने अच्छे से मय समुचित फोटो ,कैसे लिख लेते हैं.
सोमाद्रि
इस सफर में आकर सब कुछ सरल और सहज लगने लगता है। बस, ऐसे ही बनाये रखिये. आपको शायद अंदाजा न हो कि आप कितने कितने साधुवाद के पात्र हैं.
शब्दों का सफर मेरी सर्वोच्च बुकमार्क पसंद है -मैं इसे नियमित पढ़ता हूँ और आनंद विभोर होता हूँ !आपकी ये पहल हिन्दी चिट्ठाजगत मे सदैव याद रखी जायेगी.
भाषिक विकास के साथ-साथ आप शब्दों के सामाजिक योगदान और समाज में उनके स्थान का वर्णन भी बडी सुन्दरता से कर रहे हैं।आपको पढना सुखद लगता है।
आपकी मेहनत को कैसे सराहूं। बस, लोगों के बीच आपके ब्लाग की चर्चा करता रहता हूं। आपका ढिंढोरची बन गया हूं। व्यक्तिगत रूप से तो मैं रोजाना ऋणी होता ही हूं.
आपकी पोस्ट पढ़ने में थोड़ा धैर्य दिखाना पड़ता है. पर पढ़ने पर जो ज्ञानवर्धन होताहै,वह बहुत आनन्ददायक होता है.
किसी हिन्दी चिट्ठे को मैं ब्लागजगत में अगर हमेशा जिन्दा देखना चाहूंगा, तो वो यही होगा-शब्दों का सफर.
निश्चित ही हिन्दी ब्लागिंग में आपका ब्लाग महत्वपूर्ण है. जहां भाषा विज्ञान पर मह्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध रह्ती है. 
good,innovative explanation of well known words look easy but it is an experts job.My heartly best wishes.
चयन करते हैं, जिनके अर्थ को लेकर लोकमानस में जिज्ञासा हो सकती हो। फिर वे उस शब्द की धातु, उस धातु के अर्थ और अर्थ की विविध भंगिमाओं तक पहुँचते हैं। फिर वे समानार्थी शब्दों की तलाश करते हुए विविध कोनों से उनका परीक्षण करते हैं. फिर उनकी तलाश शब्द के तद्भव रूपों तक पहुंचती है और उन तद्बवों की अर्थ-छायाओं में परिभ्रमण करती है। फिर अजित अपने भाषा-परिवार से बाहर निकलकर इतर भाषाओँ और भाषा-परिवारों में जा पहुँचते हैं। वहां उन देशों की सांस्कृतिक पृष्टभूमि में सम्बंधित शब्द का परीक्षणकर, पुनः समष्टिमूलक वैश्विक परिदृश्य का निर्माण कर देते हैं। यह सब रचनाकार की प्रतिभा और उसके अध्यवसाय के मणिकांचन योग से ही संभव हो सका है। व्युत्पत्तिविज्ञान की एक नयी और अनूठी समग्र शैली सामने आई है।
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
शब्दों के प्रति लापरवाही से भरे इस दौर में हर शब्द को अर्थविहीन बनाने का चलन आम हो गया है। इस्तेमाल किए जाने भर के लिए ही शब्दों का वाक्यों के बाच में आना जाना हो रहा है, खासकर पत्रारिता ने सरल शब्दों के चुनाव क क्रम में कई सारे शब्दों को हमेशा के लिए स्मृति से बाहर कर दिया। जो बोला जाता है वही तो लिखा जाएगा। तभी तो सर्वजन से संवाद होगा। लेकिन क्या जो बोला जा रहा है, वही अर्थसहित समझ लिया जा रहा है ? उर्दू का एक शब्द है खुलासा । इसका असली अर्थ और इस्तेमाल के संदर्भ की दूरी को कोई नहीं पाट सका। इसीलिए बीस साल से पत्रकारिता में लगा एक शख्स शब्दों का साथी बन गया है। वो शब्दों के साथ सफर पर निकला है। अजित वडनेरकर। ब्लॉग का पता है http://shabdavali.blogspot.com दो साल से चल रहे इस ब्लॉग पर जाते ही तमाम तरह के शब्द अपने पूरे खानदान और अड़ोसी-पड़ोसी के साथ मौजूद होते हैं। मसलन संस्कृत से आया ऊन अकेला नहीं है। वह ऊर्ण से तो बना है, लेकिन उसके खानदान में उरा (भेड़), उरन (भेड़) ऊर्णायु (भेड़), ऊर्णु (छिपाना)आदि भी हैं । इन तमाम शब्दों का अर्थ है ढांकना या छिपाना। एक भेड़ जिस तरह से अपने बालों से छिपी रहती है, उसी तरह अपने शरीर को छुपाना या ढांकना। और जिन बालों को आप दिन भर संवारते हैं वह तो संस्कृत-हिंदी का नहीं बल्कि हिब्रू से आया है। जिनके बाल नहीं होते, उन्हें समझना चाहिए कि बाल मेसोपोटामिया की सभ्यता के धूलकणों में लौट गया है। गंजे लोगों को गर्व करना चाहिए। इससे पहले कि आप इस जानकारी पर हैरान हों अजित वडनेरकर बताते हैं कि जिस नी धातु से नैन शब्द शब्द का उद्गम हुआ है, उसी से न्याय का भी हुआ है। संस्कृत में अरबी जबां और वहां से हिंदी-उर्दू में आए रकम शब्द का मतलब सिर्फ नगद नहीं बल्कि लोहा भी है। रुक्कम से बना रकम जसका मतलब होता है सोना या लोहा । कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का नाम भी इस रुक्म से बना है जिससे आप रकम का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे तमाम शब्दों का यह संग्रहालय कमाल का लगता है। इस ब्लॉग के पाठकों की प्रतिक्रियाएं भी अजब -गजब हैं। रवि रतलामी लिखते हैं कि किसी हिंदी चिट्ठे को हमेशा के लिए जिंदा देखना चाहेंगे तो वह है शब्दों का सफर । अजित वडनेरकर अपने बारे में बताते हुए लिखते हैं कि शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नज़रिया अलग अलग होता है। मैं भाषाविज्ञानी नहीं हूं, लेकिन जज्बा उत्पति की तलाश में निकलें तो शब्दों का एक दिलचस्प सफर नजर आता है। अजित की विनम्रता जायज़ भी है और ज़रूरी भी है क्योंकि शब्दों को बटोरने का काम आप दंभ के साथ तो नहीं कर सकते। इसीलिए वे इनके साथ घूमते-फिरते हैं। घूमना-फिरना भी तो यही है कि जो आपका नहीं है, आप उसे देखने- जानने की कोशिश करते हैं। वरना कम लोगों को याद होगा कि मुहावरा अरबी शब्द हौर से आया है, जिसका अर्थ होता है परस्पर वार्तालाप, संवाद । शब्दों को लेकर जब बहस होती है तो यह ब्लॉग और दिलचस्प होने लगता है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के नोएडा का एक लोकप्रिय लैंडमार्क है- अट्टा बाजार। इसके बारे में एक ब्लॉगर साथी अजित वडनेरकर को बताता है कि इसका नाम अट्टापीर के कारण अट्टा बाजार है, लेकिन अजित बताते हैं कि अट्ट से ही बना अड्डा । अट्ट में ऊंचाई, जमना, अटना जैसे भाव हैं, लेकिन अट्टा का मतलब तो बाजार होता है। अट्टा बाजार । तो पहले से बाजार है उसके पीछे एक और बाजार । बाजार के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द हाट भी अट्टा से ही आया है। इसलिए हो सकता है कि अट्टापीर का नामकरण भी अट्ट या अड्डे से हुआ हो। बात कहां से कहा पहुंच जाती है। बल्कि शब्दों के पीछे-पीछे अजित पहुंचने लगते हैं। वो शब्दों को भारी-भरकम बताकर उन्हें ओबेसिटी के मरीज की तरह खारिज नहीं करते। उनका वज़न कम कर दिमाग में घुसने लायक बना देते हैं। हिंदी ब्लॉगिंग की विविधता से नेटयुग में कमाल की बौद्धिक संपदा बनती जा रही है। टीवी पत्रकारिता में इन दिनों अनुप्रास और युग्म शब्दों की भरमार है। जो सुनने में ठीक लगे और दिखने में आक्रामक। रही बात अर्थ की तो इस दौर में सभी अर्थ ही तो ढूंढ़ रहे हैं। इस पत्रकारिता का अर्थ क्या है? अजित ने अपनी गाड़ी सबसे पहले स्टार्ट कर दी और अर्थ ढूंढ़ने निकल पड़े हैं। --रवीशकुमार [लेखक का ब्लाग है http://naisadak.blogspot.com/ ]
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
21 कमेंट्स:
फारसी से हमारी दूरदराज़ की रिश्तेदारी है..
शंका के साथ दीर्घ लगना कबसे शुरू हुआ और इस कार्य विशेष के लिये इसका प्रयोग कबसे शुरू हुआ कृपया मेरी यह छोटी सी शंका दूर करें.
जुबानदराजी मतलब ज्यादा बोलना - हम समझ गये । आभार ।
सही है !
जानकारी भरी पोस्ट बहुत पहले गाँव व बुर्जुग जो पूछते थे बेटवा कौने दर्जा में हौ ?
दराज के राज खोलने के लिए धन्यवाद। मेरा एक बॉस ऐसा था कि एक बार अनजाने ही बस दराज खींच देने पर ही बुरी तरह से झाड़ दिया था। :)
हाँ, अब ग़लती से भी 'वज्र बुजुर्ग' टाइप के प्रयोग नहीं करूँगा। भोजपूरी में एक प्रयोग है 'बजर ढीठ'। ढीठ व्यक्ति को बजर का टोप पहना कर और खतरनाक बना दिया जाता है. . .
ये दराजें बहुत परेशान करती हैं। वे मेज की हों, अलमारी की या उम्र की। कहीं का सामान कहीं घुस लेता है और फिर उन्हें तलाश करते रहें।
अच्छा आलेख।
sada kli bhanti shaandaar.......
जानकारी से भरी पोस्ट है ये
वाह!आपकी पोस्ट तो हमेशा अव्व्ल दर्ज़े की रहती है।भाऊ निकल रहा हूं थोड़ी देर मे लांग ड्राईव पर बरसात का मज़ा लेने।भांजा गर्मियों की छुट्टियों मे आया हुया था उसे छोड़ भी आऊंगा और मामा के घर भी हो आऊंगा।
दराज का राज़ खोलने का शुक्रिया।
दराज तो मेज़ में लगी बकसिया को भी कहते है. क्यों -पता नहीं .
लेकिन आप जैसे दीर्घदर्शी का साथ कुछ तो बदलेगा हमको भी
नमस्कार सर,
एक सवाल आया है के हम कई बार एक जैसे शब्दों को जोड़कर क्यों लिखे हैं .
जैसे दूर-दराज एक उद्धरण है ,
धन्यवाद,
मयूर
वाह! दीर्घ से दर्जी तक सटासट चले आये हम यह पोस्ट पढ़ कर!
बहुत बढ़िया ....
सही है ,अच्छी पोस्ट .
वाह ! छोटा सा दराज-ए-सफ़र पसंद आया.
तेरी जुल्फे दराज़ याद आई,
बढ़ गयी और शामे तन्हाई.
ये मशहूर शेर याद आ गया आपकी पोस्ट पर. इसी ग़ज़ल का ये शेर भी लिखने को मन कर रहा है:-
क्यों मुझे बज्म से उठाते हो,
है तुम्हारी भी इसमें रुसवाई.
ज्ञानवर्धक यात्रा पड़ाव....
दराज शब्द का प्रयोग
हम भी इसी खंड रूप में किया करते हैं....शब्द विवेचना बड़ी ही अच्छी लगी.आभार
मेज वाले दराज को आपने अरबी के दरजः (दर्जः) से बना बतलाया है, लेकिन मैं तो इसको अंग्रेजी के 'चेस्ट ऑफ़ डरार्ज' का बिगड़ा रूप समझता हूँ . प्लेट्स भी ऐसा ही कहता है :
H دراز darāz (corr. fr. the English), s.f. Drawers (of a chest, &c.).
शंका दूर करें .
@बलजीत बासी
शुक्रिया बलजीत भाई,
मैने कई संदर्भों को टटोलने के बाद ही ऐसा लिखा है जिसमें प्लैट्स महोदय भी हैं। कुछ अन्य कोश भी इसकी व्युत्पत्ति ड्राअर से बताते हैं। समयाभाव के चलते कई बार मैं संदर्भों का उल्लेख नहीं कर पाता हूं। पुरानी कई पोस्टों में ऐसा हुआ है और अभी भी होता है। इनका संदर्भ रह गया लगता है। अग्रेजी के ड्राअर से दराज शब्द का बनना तार्किक तो लगता है, पर खण्ड या खाना के अर्थ में फारसी में दरजः शब्द पहले से मौजूद है। ये ठीक है कि आगे खींच कर बाहर निकालने के लिए अंग्रेजी के ड्राअर शब्द से इसकी समानता कई लोगों को नजर आती है। पर मूलतः यह है तो खण्ड या आला ही। और मेज, आलमारी में भी इसकी कई मंजिलें यानी दरजे होते हैं। यह मान लेना कुछ मुश्किल लगता है कि यूरोपीयों के आने से पहले अरब, फारस या भारत के लोग टेबल या मेजनुमा किसी देशी व्यवस्था के बिना गुजारा करते थे। खास कर तब, जब प्रायः सभी सभ्यताओं-समाजों में काष्ठकला सर्वाधिक प्रारम्भिक कलाओं में रही है। बहरहाल, सारा मामला संभवतः शब्द न लगाने से उभरता है। मुझे पोस्ट का यह हिस्सा फिर सम्पादित करना होगा। इसी सोच के तहत जब मैने मुहम्मद मुस्तफा खां मद्दाह के कोश में संदर्भ टटोला तो वहां अपनी धारणा को पुष्ट करता हुआ उदाहरण मिला। इसी तरह सीरियक अरबी में भी सीधे सीधे इसका अर्थ मेज की दराज दिया हुआ है। मैं भी यही मानता हूं कि यह अंग्रजी से नहीं बल्कि फारसी-अरबी मूल का ही शब्द है। यूं ड्राअर भी इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से ही ताल्लुक रखता है। फिर भी आपको शंका हुई तो औरों को भी हो सकती है। कुछ सुधार करूंगा। अलबत्ता संभवतः शब्द का इस्तेमाल करना ज्यादा सुविधाजनक रहता।
अभी दफ्तर में हूं।
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