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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 21 कमेंट्स पर 3:55 AM
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 12 कमेंट्स पर 3:38 AM
संबंधित कड़ियां-1. अम्मा में समाई दुनिया2.ज्ञ की महिमा-ज्ञान, जानकारी और नॉलेज
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 28 कमेंट्स पर 2:59 AM
पिछली कड़ी-काश लीलावती पहले मिल जाती…से आगे>
दिनेशराय द्विवेदी सुपरिचित ब्लागर हैं। इनके दो ब्लाग है तीसरा खम्भा जिसके जरिये ये अपनी व्यस्तता के बीच हमें कानून की जानकारियां सरल तरीके से देते हैं और अनवरत जिसमें समसामयिक घटनाक्रम, आप-बीती, जग-रीति के दायरे में आने वाली सब बातें बताते चलते हैं। शब्दों का सफर के लिए हमने उन्हें कोई साल भर पहले न्योता दिया था जिसे उन्होंने सहर्ष कबूल कर लिया था। लगातार व्यस्ततावश यह अब सामने आ रहा है। तो जानते हैं वकील साब की अब तक अनकही बकलमखुद के सोलहवें पड़ाव और तिरानवे सोपान पर... शब्दों का सफर में अनिताकुमार, विमल वर्मा, लावण्या शाह, काकेश, मीनाक्षी धन्वन्तरि, शिवकुमार मिश्र, अफ़लातून, बेजी, अरुण अरोरा, हर्षवर्धन त्रिपाठी, प्रभाकर पाण्डेय, अभिषेक ओझा, रंजना भाटिया, और पल्लवी त्रिवेदी अब तक बकलमखुद लिख चुके हैं।
अपने बकलखुद की आखिरी कड़ी में बेजी... यह स्तंभ अपने आप में निराला है....यहाँ महान लोगों की कहानी तो नहीं ही लिखी जा रही....पर आम लोगों के जीवन, जीवनी ,संघर्ष और हर्ष के पलों को लफ्ज़ों में समेटा जा रहा है। सफर रोचक है और जारी रहना चाहिये...ना जाने कितनी पहचान -दोस्ती और स्नेह के रिश्तों में बदल जायेगी...यह वो पुल हो सकता है जिसके छोर पर मनचाहा दोस्त मिले...बेजी का बकलमखुद पढ़ने के लिए साईडबार के लिंक पर जाइये।
बाल्टी से खींच-खींच कर पानी निकालने के लिए लगाया। एक आदमी कितना पानी उस कुएँ से निकाल सकता था, जिस पर सुबह चार बजे से रात सात बजे तक पानी भरने वालों को स्थान न मिलता हो। जब कि एक साथ आठ लोगों के पानी खींचने के लिए घिरनियाँ वहाँ लगी थीं। ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
अध्ययन, विद्वत्ता के पुश्तैनी होने की दुहाई देनेवाले अगड़ों या सवर्णों के पांडित्य प्रदर्शन से जुड़ा गवेषणा शब्द कहां से आ रहा है यह गौरतलब है। |
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 16 कमेंट्स पर 1:21 AM
इस बार की पुस्तक-चर्चा कुछ खास है। प्रसिद्ध लेखक महमूद ममदानी की चर्चित कृति– Good Muslim, Bad Muslim का हिन्दी अनुवाद मुसलमां कैसे कैसे हम बीते कई महिनों से पढ़ रहे थे और अक्सर इसकी चर्चा अपने मित्र, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार विजय मनोहर तिवारी से करते थे। नतीजा यह निकला कि इसे पूरा कर पाने से पहले ही हमें इसे उन्हें पढने को सौपना पड़ा, मगर इस शर्त के साथ कि इसकी समीक्षा उन्हें ही लिखनी है। विजय ने भी क़रीब पांच महिने इसे पढ़ने में लगाए। दो-दो चुनाव जो इस बीच निपटाए। विजय प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और वृहत्तर भारत की साझी विरासत पर गर्व करनेवाले गंभीर विचारशील पत्रकार हैं। उनकी पुस्तक- एक साध्वी की सत्ता कथा पर इसी स्तम्भ में हम चर्चा कर चुके हैं। चर्चित पुस्तक पर उनकी समीक्षा दरअसल एक स्वतंत्र आलेख है। सामान्य ब्लाग-पोस्ट से इसका आकार कुछ बड़ा है। मगर इसे पढ़ने का मज़ा एक साथ ही है सो हमने इसे किस्तों में तोड़ना ठीक नहीं समझा। हम चाहेंगे कि प्रस्तुत आलेख पर ज़रूर चर्चा हो। पुस्तक पेंगुंइन इंडिया से प्रकाशित हुई है। पृष्ठ संख्या 300 और मूल्य 225 रु है। ...
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 24 कमेंट्स पर 3:54 AM
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 13 कमेंट्स पर 2:54 AM
पिछली पोस्ट-पूनम का परांठा और पूरनपोली
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 20 कमेंट्स पर 4:05 AM
संबंधित कड़ियां-कैसे कैसे वंशज...कानून का डण्डा या डण्डे का कानून
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 20 कमेंट्स पर 2:13 AM
पिछली कड़ी-मेवाड़ के पंडित, बारां आ बसे से आगे>
दिनेशराय द्विवेदी सुपरिचित ब्लागर हैं। इनके दो ब्लाग है तीसरा खम्भा जिसके जरिये ये अपनी व्यस्तता के बीच हमें कानून की जानकारियां सरल तरीके से देते हैं और अनवरत जिसमें समसामयिक घटनाक्रम, आप-बीती, जग-रीति के दायरे में आने वाली सब बातें बताते चलते हैं। शब्दों का सफर के लिए हमने उन्हें कोई साल भर पहले न्योता दिया था जिसे उन्होंने सहर्ष कबूल कर लिया था। लगातार व्यस्ततावश यह अब सामने आ रहा है। तो जानते हैं वकील साब की अब तक अनकही बकलमखुद के सोलहवें पड़ाव और बानवे सोपान पर... शब्दों का सफर में अनिताकुमार, विमल वर्मा, लावण्या शाह, काकेश, मीनाक्षी धन्वन्तरि, शिवकुमार मिश्र, अफ़लातून, बेजी, अरुण अरोरा, हर्षवर्धन त्रिपाठी, प्रभाकर पाण्डेय, अभिषेक ओझा, रंजना भाटिया, और पल्लवी त्रिवेदी अब तक बकलमखुद लिख चुके हैं।
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 20 कमेंट्स पर 1:28 AM लेबल: बकलमखुद
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16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।