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प्रस्तुतकर्ता
अजित वडनेरकर
पर
3:38 AM
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
11 कमेंट्स:
बहुत बढ़िया जानकारी!!
बहुत ही रोचक रहा यह सफर...।आभार।
शल्य, छाल, सलाई - आज का लेख बहुत रुचिकर लगा।
दियासलाई के प्रकाश में शल्यक्रिया - क्या कह दिया आप ने!
सुरमा लगाने वाली सलाई भी तो हुआ करे थी (है) अजित ददा.
बहुत बढ़िया साहब . हिन्दी आकादेमी नामी गिरामी साहित्यकारों को 'शलाका सम्मान ' देती है. क्या देती होगी भला !
वाह !
बहुत उम्दा आलेख
उपयोगी जानकारी के लिए धन्यवाद.........
सुरमा के लिए सलाई का प्रयोग अब भी होता है . पहले सोने चाँदी की हुआ करती थी . अब शीशे की या अल्मोनिय्म की
शल्य, छाल, सलाई की तह में जाकर
उपयोगी जानकारी प्रदान की है।
आभार!
आत्तो छा गए अजित भाई!
अच्छा विश्लेषण। लाभान्वित हुआ। आभार।
सुंदर! मुझे तो सुरमे वाली सलाई याद आ रही है।
दिया जलाकर मिटाए खुद को भलाई कैसी सलाई मे है ,
दिखे है कोमल जो शल तो उसमे छुपी हुई एक कटारी भी है.
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