संबंधित कड़िया- ढोल की पोल, नगाड़े की क्यों नहीं 2. तूती तो बोलेगी, नक्कारखाने में नहीं 3. आखिर ये नौबत तो आनी ही थी...
Monday, August 10, 2009
भोंपू, ढिंढोरची और ढोल
कोई शब्द तलाशें
किताब में सफर- दूसरा खण्ड
हमसफर हमारे
आमदरफ्त
चिप्पियां
सफर खुद की तलाश का
एक निवेदन- शब्द की तलाश दरअसल अपनी जड़ों की तलाश जैसी ही है।शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नज़रिया अलग-अलग होता है। मैं न भाषा विज्ञानी हूं और न ही इस विषय का आधिकारिक विद्वान। जिज्ञासावश स्वातःसुखाय जो कुछ खोज रहा हूं, पढ़ रहा हूं, समझ रहा हूं ...उसे आसान भाषा में छोटे-छोटे आलेखों में आप सबसे साझा करने की कोशिश है।अजित वडनेरकर
- अजित वडनेरकर
- वाराणसी /भोपाल, उत्तरप्रदेश /मध्यप्रदेश, India
- बीते 30 वर्षों से पत्रकारिता। प्रिंट व टीवी दोनों माध्यमों में कार्य।
आपका शुक्रिया
उदय प्रकाश
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अशोक पाण्डे
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अरविंदकुमार
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मैं ने पहली बार आप का ब्लाग पढ़ा-पशु और फ़ीस वाला। बधाई!अब इसे फ़ेवरिट की सूची में डाल लिया है। लगातार ज़ारी रखें..
अभय तिवारी
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शास्त्री जे सी फिलिप
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संजय पटेल
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हर्षदेव
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ऐसे समय में जब कुछ लोग भाषाओ और शब्दों को धर्म से जोड़ कर देखने लगे है, शब्दों के सफर में धर्म, समाज और देशो के दायरों को तोड़ते हुए, भाषाई रिश्तों की यह पड़ताल अमूल्य है।
शृद्धा जैन
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आप जाने कहाँ कहाँ से इतनी अनमोल जानकारी ढूँढ लाते हैं और आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हो जाता है।लिखते रहे आप बहुत अलग, बहुत प्रभावशाली है।
अनूप शुक्ल
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लोग पूछते है - ऐसा क्या है शब्दावली में? मेरा, कहना है अगर आप पढोगे, तो जानोगे। मेरा शब्दों के प्रति ज्ञान बढाने में आपके इस ब्लॉग का बहुत बड़ा हाथहै।
समीरलाल
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लावण्या शाह
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बिल्कुल अलग है आपका ब्लाग, सबसे अलग। इसकी हर पोस्ट अपने आप में विशिष्ट होती है. शुभकामनाएं.
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प्रभाकर पाण्डेय
पता नहीं भविष्य में चिट्ठों का अस्तित्व रहे या ना रहे पर "शब्दों का सफर" शोधार्थियों एवं हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रेरक बना रहेगा।
विष्णु बैरागी
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पंकज श्रीवास्तव
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ज्ञानदत्त पांडे
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रवि रतलामी
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विजय गौर
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बालेंदु दाधीच
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आपने सिद्ध किया है कि तकनीक का सार्थक प्रयोग कैसे होता है ... बिना स्पष्ट लाभ के मोटीवेशन कायम रखते हुए स्थायी महत्व का कार्य कैसे किया जा सकता है.
Dr.bhoopendra
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आशीर्वचन
अजित वडनेरकर अपने विश्लेषण में व्युत्पत्तिशास्त्र के समस्त संभव प्रतिमानों का उपयोग करते हैं। वे सावधानी के साथ लोकव्यवहार में प्रचलित उन शब्दों का
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[डॉ.सुरेश वर्मा ख्यात भाषाविद् हैं। मुझे इनके मार्गदर्शन में अध्ययन करने का अवसर मिला है।]
बकलमखुद-कुछ खास
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मेरी पसंद
पड़ाव दर पड़ाव
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2009
(304)
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August
(24)
- रसिक, रसोई और रसना [खानपान-14]
- खलीफा, खिलाफत, मुखालफत [विरोध-1]
- सरदार, सरदारनी और पसीना[बकलमखुद-99]
- बंदूक अरब की, कारतूस-पिस्तौल पुर्तगाल के
- एलान और घोषणा
- किस्से सरदार की शादी के [बकलमखुद-98]
- दियासलाई और शल्य चिकित्सा
- रबड़ी पर भारी है राबड़ी…
- कैलेन्डर, मुर्गा और कलदार
- खमीर, कीमियागरी और किमख़्वाब
- गद्देदार गद्दी और गदेला
- अंग्रेजी से मुक्ति वैद्यकी से नाता [बकलमखुद-97]
- सलामत रहे अदब-ऐ-सलाम…
- पुरातत्व के रोमांस की खोज में…
- एसपी साब बनाम शहर कोतवाल
- जोड़तोड़ में लगा जुगाड़ी
- अमीर कोतवाल, ग़रीब कोटवार
- हैलो! हाय!! प्रणाम!!! नमस्ते!!!!
- दो महिनों में सत्रह फिल्में!!![बकलमखुद-96]
- भोंपू, ढिंढोरची और ढोल
- कपूरथला राजघराने की प्रेमकथा-जुनून
- सुरंग में सुर और धमाका…
- रंगमहल के दस दरवाज़े...
- कॉलेज की रुमानियत [बकलमखुद-95]
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August
(24)
....यूं शुरू हुई शब्द यात्रा
चर्चा इधर भी
चर्चा हिन्दुस्तान में
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मुहावरों की गली में
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
9 कमेंट्स:
बहुत बढिया जानकारी मिली. धन्यवाद,
रामराम.
आज तो आपने पीटे जाने वाले वाद्यों को पंक्तिबद्ध कर दिया।
भोंपू की अच्छी पोल खोली है।
बहुत बढिया जानकारी दी है।
बधाई।
आज शब्द से ज्यादा इसकी प्रस्तावना अच्छी लगी
uttarakhan ke kuch vadya yantra bhi hain aasha hai aapki nazar unmein bhi padegi...
all in all a good documentry.
आपके नक्कारखाने में मेरी तो तूती सी आवाज़ है .
बहुत रोचक पोस्ट
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राम सेतु – मानव निर्मित या प्राकृतिक?
जानकारी अच्छी रोचक है।
बेहतर जानकारी । रोचक भी ।
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