Sunday, January 24, 2010

थमते रहे ग्राम, बसते रहे नगर [आश्रय-27]

jaipur_old_city_v ताजा कड़ियां- कसूर किसका, कसूरवार कौन? [आश्रय-26].सब ठाठ धरा रह जाएगा…[आश्रय-25] पिट्सबर्ग से रामू का पुरवा तक…[आश्रय-24] शहर का सपना और शहर में खेत रहना [आश्रय-23] क़स्बे का कसाई और क़स्साब [आश्रय-22] मोहल्ले में हल्ला [आश्रय-21] कारवां में वैन और सराय की तलाश[आश्रय-20] सराए-फ़ानी का मुकाम [आश्रय-19] जड़ता है मन्दिर में [आश्रय-18] मंडी, महिमामंडन और महामंडलेश्वर [आश्रय-17] गंज-नामा और गंजहे [आश्रय-16]
साहटों के लिए प्रचलित नामों में कस्बा, मोहल्ला, शहर के अलावा नगर, टोला का भी शुमार है। भारत के कई शहरों के नामों के साथ नगर शब्द जुड़ता रहा है। नगर अपने आप में शहरी बसाहट का पर्याय है। एक दिलचस्प बात यह कि ग्राम शब्द जहां समूहवाची है वहीं नगर की व्यंजना अलग है। नगर की व्युत्पत्ति और इसकी अर्थवत्ता समझने से पहले करते हैं ग्राम पर बात। आपटे कोश के अनुसार ग्राम की व्युत्पत्ति ग्रस्+मन् (प्रत्यय)  से है। मगर इसका रिश्ता ग्राम की समूहवाची अर्थवत्ता से खींचतान कर निकलता है । नई खोजों के मुताबिक यह उसी कर / गर जैसी क्रियाओं से बना है जिससे कृषि जैसे शब्द बने थे । डॉ. रामविलास शर्मा के मुताबिक कर्षण क्रिया में लेखन भी शामिल है । लेखन के मूल में खींचना, कुरेदना है । कृषि क्रिया भी हल को भूमि में चलाने से उभरती है । इस तरह ग्राम का मूल अर्थ हुआ जोती गई भूमि । फिर इसमें बसने, जुड़ने, रहने जैसे समूहवाची अर्थ स्थापित हुए । जिस ग्राम को हम जानते हैं वह मूलतः समुच्चय से ही जुड़ता है अर्थात् किसी वंश, जाति या गोत्र के लोग। प्राचीन भारतीय समाज पशुपालकों और कृषकों का था। जाहिर है जत्था या जाति-समूह के अर्थ में ही ग्राम शब्द का प्रयोग होता रहा। ग्राम शब्द के मूल में जातियों के समूह का ही भाव रहा। ये ग्राम समूह इधर से उधर विचरण भी करते थे। यही ग्राम अथवा जातीय समूह जब किसी स्थान पर बसने लगे तो उस स्थान को भी ग्राम कहा जाने लगा। ग्राम से ही बना है गांव। स्पष्ट है कि ग्राम मूलतः किसी ज़माने में जनसमूहों की गतिशील इकाइयां रही होंगी जैसे आज भी घुमंतू कबीले लगातार यायावरी करते हैं। किसी भी स्थान पर इनके डेरों का अस्थाई पड़ाव होता है तो वहां छोटी-मोटी बस्ती ही बस जाती है।
ब करते हैं नगर की बात। नगर शब्द बना है संस्कृत धातु नग से। नग का अर्थ होता है पहाड़, पर्वत आदि। पहाड़ का संदर्भ शहरी बसाहट के अर्थ में नगर से नहीं जुड़ रहा है। यहां पहाड़ की अवस्था पर ध्यान देना चाहिए। गौर करें पहाड़ स्थिर होते हैंIndia_Rural[7] इसीलिए उन्हें अचल कहा गया है अर्थात अ+चल् यानी जो चलते नहीं, बल्कि स्थिर रहते हैं। पृथ्वी को भी पुराने ज़माने में सौरमंडल का केंद्र माना जाता था इसीलिए उसका प्राचीन नाम अचला है अर्थात जो अपनी धुरी पर स्थिर है। सब ग्रह जिसकी परिक्रमा करते हैं। इसी तरह नग धातु में भी अचलता या स्थिरता का भाव है। न+ग से मिल कर बना है नग। देवनागरी के ग वर्ण में चलने, जाने गतिशील होने का भाव है। गम् धातु में यही भाव है। इस तरह न+ग से बने नग का अर्थ स्पष्ट रूप से स्थिर अवस्था से जुड़ता है। पहाड़ की ही तरह शहर भी नहीं चलते हैं, इसीलिए वे नगर हैं। 
ग्रामों ने जब एक जगह टिक कर बसना शुरू किया तब धीरे-धीरे उनमें से कुछ बसाहटों को प्रमुखता मिलने से वे नगर में तब्दील होते चले गए। गौर करें कि पर्वत, पहाड़ के आकार पर। उनकी विशालता या गुरुता की वजह से ही वे गमनीय नहीं हैं। एक विशाल आकार गतिशील नहीं रहता बल्कि उसकी गुरुता से दूसरी चीज़े गतिमान होती हैं। नगरों का आकार बड़ा है। वे ग्राम की तरह विशिष्ट जाति समूह नहीं बल्कि कई जनसमूहों का केन्द्र होते हैं। गतिशील ग्रामीण समाजों के स्थिर होकर विकसित होने की आकांक्षा का परिणाम हैं नगर जिसकी स्थिरता में ही वह आकर्षण (गुरुत्व) है जिसकी वजह से सबकी गति शहर की ओर होती है। नगर के ही कुछ अन्य रूप हैं जैसे नगरी, नेर, नेरा, नागल, नगरिया आदि। सांगानेर, चांपानेर, बीकानेर में यही नगर झांक रहा है। इसका एक अन्य रूप होता है नागल, नगला आदि। पश्चिमोत्तर भारत की भाषाओं में इस शब्द का प्रयोग ज्यादा होता है। बड़नगर का ही एक अन्य रूप हुआ बड़नेरा। महाराष्ट्र का वडनेर या वडनेरा भी इसके ही रूपांतर हैं। ये सभी स्थानवाची शब्द हैं और वटवृक्षों की बहुतायत के आधार पर इनका नामकरण हुआ है। वटवृक्ष का वट् मराठी में वड में बदला जबकि मालवी समेत अन्य भाषाओं में यह बड़ में तब्दील हो रहा है।
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15 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर व्याख्या।

Khushdeep Sehgal said...

बस्ती..बस्ती, नगरी-नगरी,
गाता जाए बंजारा,
दिल से दिल के मिले इक तारा...

जय हिंद...

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

नगर अचल है इसलिए नगर है . आज ही पता चला

sanjay vyas said...

ये चलन राजस्थान और गुजरात रहा है की व्यक्ति से पूछा जाता है की मूलतः कहाँ का है वो.ख़ास गाँव कौनसा है या मूल वतन कौनसा है.

बड़नगर गुजराती नागरों का घर रहने के कारण भी जाना जाता है, वडनेर वडनेरकरों से भी.

नेर से नगर का रिश्ता पहली बार जाना. शुक्रिया.

राकेश नारायण द्विवेदी said...

bhai wadnerkrji
gram ki vyutpatti gras dhatu se kahin padhi-suni nahin hai. han gram ka vyutpattigat arth samuh avashya bataya gaya hai. vedon men bhi gay dhundhne vale dal ke liye "gavyan gramah" kaha gaya hai.

अजित वडनेरकर said...

द्विवेदी जी,
टिप्पणी और जानकारी का बहुत शुक्रिया।
यह व्युत्पत्ति वामन शिवराम आपटे के शब्दकोश में दी गई है। गव्यान ग्रामः का संदर्भ बहुत ज्ञानवर्धक और महत्वपूर्ण है। आज प्रचलित कई शब्द मूलतः पूर्ववैदिक पशुपालक समाज से निकले शब्दों का ही रूपांतर हैं। गोष्ठ, गवेषणा, गोकुल आदि। यूरोपीय भाषाओं में भी ऐसा ही है। लार्ड और लेडी का रिश्ता लोफ़ से भी है। यहां अन्नदाता और अन्नपूर्णा वाला भाव ही है। ताकतवर, मुखिया, महान, भद्र, शिष्ट, सभ्य जैसे भाव तो बाद में विकसित हुए हैं।
आभार

निर्मला कपिला said...

नगरी नेरा नागल सब याद रहेगा क्यों कि मेरे शहर का नाम नंगल है। ये पोस्ट भी याद हो गयी धन्यवाद्

उम्मतें said...

दो दिन से सर्वर डाउन था आज मुश्किल से आपको पढ़ पाया हूँ फिलहाल इतना ही कहूंगा !
अच्छा आलेख !

Padm Singh said...

आपका ब्लॉग मुझे बेहद पसंद है और गूगल रीडर पर पढता हूँ ... मेरे नेट में समस्या है कि ब्लागस्पाट का कोई भी ब्लॉग नहीं खुलता है आज किसी और का नेट मांग कर लाया हूँ आपका ब्लॉग देखने के लिए
बहुत ही उपयोगी और पसंदीदा ब्लग़ है मेरा

abcd said...

शानदार पोस्ट अजित भैय्या ..

Baljit Basi said...

माप-तौल के भाव वाले 'तुल्' धातु से 'टोल' या 'टोली' समूह के अर्थ कैसे विक्स्त हुए होंगे, क्रप्या बताएं.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया!

नया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥

गणतन्त्र-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

समयचक्र said...

गणतंत्र-दिवस की मंगलमय शुभकामना...

संजय भास्‍कर said...

शानदार पोस्ट अजित भैय्या ..

manik said...

बहुत मेहनत करते है. बधाई और लिखते रहें .........हम पड़ते रहें
मानिक

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