![tp3548[18] tp3548[18]](http://lh4.ggpht.com/_RZzdL9so394/S3sdoAbgWnI/AAAAAAAAOzI/fuWCh7CxCcY/tp3548%5B18%5D_thumb%5B5%5D.jpg?imgmax=800)

ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
12 कमेंट्स:
चित्र का लीजेंड दें -क्या आप पूरी आश्वस्तता के साथ कह सकते है इस पोस्ट के साथ दिए चित्र का पुराण सभी को पता है -अतः क्या आप नीचे कोई शीर्षक देना उचित नहीं समझते ?
आप ने बाखल, बखरी या बाखर की व्युत्पति नहीं सुझाई. बाखल एक ऐसा घरों का समूह है जिसमें कई छोटी इकायों वाले घर होते हैं इनका पितर एक होता है. जब परिवार बड़ने लगता है तो अलग अलग घर बनने लगते हैं, लेकिन यह सबी एक ही द्वार के अंतर्गत रहने लगते हैं, भीतर अलग अलग परिवारों के अलग अलग कमरे बन जाते हैं . ऐसा सुरक्षा की दृष्टि से भी होता है. आम तौर पर यह बाखल एक पितर के नाम से ही जाने जाते थे/हैं. इस तरह हो सकता है 'जूनीबाखल' किसी जूनी नाम के पुरखे से जाना जाता हो.
ओल्ड इज़ गोल्ड...
जय हिंद...
हमारे शहर के राजा ...या शहर सेठ कह लें..सेठ गोविन्द दास..राजा गोकुल दास...उनके महल को भी बाबू की बखरी कहते हैं..तो कच्चा मकान वाली बात कुछ फिट नहीं बैठती दिखती इस तथ्य से.
पुरा से जरा तक अच्छा सफर।
अजित भाई
मुझे लगा था कि विष्णु पुराण को...'पुराना' के बजाये 'पूर्ण' ( ईश्वर / दैवत्व / धर्म की पूर्णता ) से जोड़ना शायद उचित हो ! जिसमें समस्त काल , सर्वगुण, समस्त कलायें , सर्व अवतार,सर्व साहित्य ,सर्व सृजन , सारे लोक शामिल हैं , फिर मैंने इसे विष्णु के पुर से जोड़ा ....और पुर की आन /अणु से जोड़ा ...लेकिन ये सब मेरी कल्पना के घोड़े थे जो लम्बी दूरी तक दौड़े नहीं ! उसपे तुर्रा ये कि द्विवेदी जी नें सुबह सुबह सुन्दर सी टिप्पणी देकर इन घोड़ो की नालबंदी कर दी ...इसलिए अब मुझे वो स्वीकार्य है जो मानक ग्रंथों में है ...जो आपने कहा है : )
सभी पुरानी चीज़ें कहाँ अजित भाई कहते हैं शराब जितनी पुरानी उतनी ही अच्छी[मगर मुझे तज़ुर्बा नही मज़ाक मे कह रही हूँ} बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद्
बढ़िया जानकारी.
बाखल की तरह ही राजस्थान के गावो में और शहरो के पुराने हिस्सों में भी पोळ होती है .जिसमे एक बहुत बड़े द्वार और परकोटे के भीतर एक ही वंश के कई परिवार या एक जाति के परिवार रहते है. पोळ के भीतर के खुले हिस्से को गुआरा या गवाडी भी कहते है.ऐसा सुरक्षा के लिहाज से होता होगा. रात में पोळ के द्वार बंद हो जाते थे और प्रहरी सुरक्षा करता था. अलग अलग नाम से यह देश के हर कोने में होता ही होगा.
बढ़िया जानकारी.
जित्ते भी पुर हैं - जोधपुर, पालन पुर --- सब में पुरानापन हैं! नयापुरा में भी!
हो भी सकता है।
बहुत ही मूल्यवान प्रविष्टि ! कुछेक सन्दर्भों के लिये जरूरी ! आभार ।
Post a Comment