Friday, May 11, 2012

हुस्नो-एहसान की बातें

flower

फ़ा रसी के रास्ते हिन्दी में दाखिल हुए शब्दों में हुस्न का शुमार भी ऐसे शब्दों में होता है जिसका प्रयोग सुंदरता, रमणीक, खूबसूरत अथवा दर्शनीय जैसे भावों को व्यक्त करने में होता है । शेरो-शायरी की वजह से भी यह शब्द हिन्दी वालों की ज़बान पर चढ़ा हुआ है । हुस्न शब्द अरबी ज़बान से निकला है और इसके मूल में अरबी की हसूना क्रिया है जिसके मूल में भलाई, अच्छाई का भाव है । यह सेमिटिक धातु ह-स-न (h-s-n) से बना है जिसका अर्थ है सुंदर, सुंदर होना, परिष्कार, सँवारना, प्रशंसा करना आदि । हिन्दी में हुस्न शब्द का व्यापक इस्तेमाल न होते हुए इसे सिर्फ़ शारीरिक सौन्दर्य के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है । हाँ, उर्दू शायरी में हुस्न को सौन्दर्य अथवा खूबसूरती के व्यापक अर्थों में प्रयोग किया जाता है । प्राकृतिक सौन्दर्य के संदर्भ में हिन्दी में बिरले ही हुस्न का इस्तेमाल होता हो ।
हुस्न का प्रयोग महज़ रूप-आकार के सौन्दर्य को अभिव्यक्त करने तक सीमित नहीं है बल्कि अरबी में इसके दायरा व्यापक है । अल सईद एम. बदावी की अरेबिक-इंग्लिश डिक्शनरी ऑफ़ क़ुरानिक यूसेज़ के मुताबिक हुस्न में दयालुता, परोपकार, पुण्य, उदारता, करुणा, सुखदायी, आनंददायी और दान जैसे आशय भी समाहित हैं । दरअसल ये सारे गुण मिलकर ही मनुष्य को मानवीयता का आधार देते हैं । इन्सानियत का हुस्न दरअसल इन गुणों से ही उभरता है । सो हुस्न में भौतिक सौन्दर्य प्रमुख नहीं है बल्कि उन बातों का उभार है जिनसे किसी रूपाकार में विशेष आकर्षण पैदा होता है । यह खूबी ही हुस्न है । कहा जा सकता है कि सौन्दर्य वह है जो मन को सुहाए यानी सुहावनापन ही खूबसूरती का प्रमुख आशय है न कि किसी रूपाकार के भौतिक आयामों का शास्त्रीय मापदण्डों पर आकलन । इससे सम्बन्धित हुस्तोआशिकी या हुस्नोजमाल जैसे सामासिक पद भी हिन्दी में चलते हैं । 
सन  एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है । इसका इस्तेमाल द्वितीय पद की तरह भी होता है जैसे अलीहसन । हसन hasan सामान्य तौर पर पुरुषवाची संज्ञा है जिसका अर्थ सुंदर, मोहक, खूबसूरत (व्यक्ति) है । इसी तरह हसीन शब्द भी इसी मूल से जन्मा है जिसका अर्थ भी सुंदर, खूबसूरत, मनमोहक होता है । इसका स्त्रीवाची हसीना है । आमतौर पर सुंदरी, लावण्यमयी युवती को हसीना की संज्ञा दी जाती है । पैगम्बर मोहम्मद के नवासे अली के बेटों के नाम हसन और हुसैन थे । हसन बड़े थे और हुसैन छोटे । हुसैन का आशय भी सुंदर ही है । एक अन्य व्यक्तिवाचक संज्ञा है मुहसिन । हिन्दी में यह मोहसिन के रूप में प्रचलित है । मोहसिन का अर्थ होता है दयालु, कृपालु, मददगार, रहमदिल, मेहरबान या उपकारी । इसका स्त्रीवाची मोहसिना होता है जैसे मोहसिना क़िदवई । इसी कतार में खड़ा है तहसीन । यह भी व्यक्तिवाचक संज्ञा है जिसका अर्थ है प्रशंसा, तारीफ़, क़द्र, आशीर्वाद आदि ।
मुस्लिम समाज में एहसान व्यक्तिवाचक संज्ञा के तौर पर भी इस्तेमाल होता है जैसे एहसान मलिक, एहसान ज़ाफ़री । पकार के आशय वाला अहसान ahsan शब्द  हिन्दी में खूब प्रचलित है । अरबी में इसका एहसान ehsan रूप है और हिन्दी में भी यही रूप ज्यादा प्रचलित है । हिन्दी शब्दकोशों में अहसान शब्द को हिन्दी की प्रकृति के अनुकूल माना गया है । एहसान भी सेमिटिक धातु ह-स-न (h-s-n) से बना है । गौरतलब है कि उपकार, भलाई नेकी के अर्थ वाला अरबी का यह शब्द हिन्दी में अपनी मुहावरेदार अर्थवत्ता की वजह से इतना लोकप्रिय है कि आम बोलचाल में यह उपकार से भी ज्यादा सुनाई पड़ता है । एहसान मानना यानी कृतज्ञ होना, एहसान जताना भलाई का रौब जमाना या एहसान करना यानी उपकार करना, एहसान के क़ाबिल, एहसान का बदला जैसे मुहावरे हम रोज़ इस्तेमाल करते हैं । एहसान में मूलतः भलाई करन या अच्छाई करने जैसा भाव है । कृतज्ञ के अर्थ में एहसानमंद और कृतघ्न के अर्थ में एहसानफ़रामोश शब्द भी इसी कड़ी में आते हैं ।

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5 कमेंट्स:

अशोक सलूजा said...

इस खूबसूरत लेख के लिए मैं आप का एहसानमंद हूँ ......

प्रवीण पाण्डेय said...

हुस्न में दयालुता और परोपकार आ जायेगा तो गदर मच जायेगा, हर तरफ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

हुस्न सुंदरता के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होता है। सुंदरता यदि शारीरिक हो सकती है तो मानसिक और व्यवहारिक भी हो सकती है। यह लेखकों की ही कमी है कि वे मानसिक और व्यवहारिक सुंदरता के लिए इस शब्द का प्रयोग बिरले ही करते हैं।

Mansoor ali Hashmi said...

@दिनेशराय द्विवेदी
"हुस्न सुंदरता के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होता है। सुंदरता यदि शारीरिक हो सकती है तो मानसिक और व्यवहारिक भी हो सकती है। यह लेखकों की ही कमी है कि वे मानसिक और व्यवहारिक सुंदरता के लिए इस शब्द का प्रयोग बिरले ही करते हैं।"

'खुमार बाराबंकवी' का यह शेर था ज़ेहन में जब द्विवेदी जी की उपरोक्त टिप्पणी पढ़ी :
"हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए,
इश्क के मगफिरत की दुआ कीजिए."

लेकिन द्विवेदीजी की सलाह पर अमल करते हुए कुछ इस तरह लिख गया, उनसे मा'ज़रत के साथ पेश है:

हुस्न पर बा-अमल* होने के वास्ते, [*practical]
'लवली-लवली' क्रीम लेके आया हूँ मैं.

'आशीर्वाद' में, देता था 'गाली' कभी,
'कृपा-कृपा' ही अब दोहराता हूँ मैं.

'हुस्नो-अख़लाक़'* आदर्श जब से से बने, [*सद आचरण]
'मेम काली' थी फिर भी ले आया हूँ मैं.

'मानसिक-सौंदर्य' प्रदर्शन के लिए,
KBC* को एस एम् एस कर आया हूँ मैं. * [कौन बनेगा.....]

दोगलेपन के चोले से निकला तभी,
इक नए 'हाशमी' को ही पाया हूँ मैं.

http://aatm-manthan.com

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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