आर्य-द्रविड़ संस्कृतियों के बीच निरन्तर भाषायी सम्पर्क रहा है। शाब्दिक घुसपैठ इतनी ज्यादा है कि कभी कभी यह लगने लगता है कि कहीं संस्कृत और द्रविड़ दोनों भाषाओं का मूलस्रोत एक ही तो नहीं! बहरहाल हिन्दी के टंटा शब्द का रिश्ता कन्नड़ के तंटे से है। कन्नड़ का तंटे तमिल के ताण्टु से विकसित हुआ जिसमें नाचने का भाव है। एमेनो-बरो के द्रविड़ व्युत्पत्ति कोश में तण् क्रिया का उल्लेख है जो गतिवाचक है। इससे तण्टु, ताण्टि जैसे शब्द बनते हैं जिनमें उछल-कूद, फलांग, लांघ, छलांग और कूद-फांद का आशय है। इसी कड़ी में आता है ताण्टवम् जिसका अर्थ है रौद्र एवं उन्मत्त मुद्राओं वाली नृत्यशैली। बरो भारोपीय मूल की जर्मन भाषा के टान्त्स (नाच), टान्त्सन (नाचना) और अंग्रेजी के डान्स शब्द को द्रविड़ मूल तण्टु से रूपान्तरित ही मानते हैं। हालाँकि जॉन प्लैट्स टंटा शब्द की व्युत्पत्ति स्तनित से बताते हैं जिसका अर्थ मोनियर विलियम्स के कोश में कानफाड़ू शोर दिया हुआ है। टंटा में निहित कलह या उपद्रव का भाव कहीं नहीं है जबकि प्लैट्स स्तनित का सीधा सीधा अर्थ झगड़ा या लड़ाई बताते हैं जो ध्वनिसाम्य के आधार पर खींच-खांच कर व्युत्पत्ति सिद्ध करने का प्रयास लगता है।
तमिल ताण्टवम के सादृष्य पर संस्कृत का ताण्डव है। शिव की प्रसिद्ध नटराज शैली की नृत्यमुद्रा। इसे संहार से भी जोड़ा जाता है। इस शैली में नृत्य की चिर-परिचित चेष्टाओं का उल्लंघन है| सीमाओं को तोड़ कर, दायरे से बाहर निकलते हुए विलक्षण अंग-विक्षेपों और हाव-भाव-मुद्राओं की वजह से इसे ताण्डव कहा जाता है। तण्टु, तण्टि जैसे शब्दों में निहित उछल-कूद और फिर के शिव के रौद्ररूप को प्रदर्शित करने वाले ताण्टवम वाले परवर्ती विकास से कन्नड़ में तण्टे, तंटे जैसे शब्दरूप सामने आए और हलचल, उपद्रव जैसी अर्थछटाएँ विकसित हुईं। तण्टु में सीमोल्लंघन के साथ अंगविक्षेप का भाव महत्वपूर्ण है। टंटा में निहित झगड़ा, बखेड़ा, फ़साद, कोहराम, कलह, प्रपंच, तकरार या खटराग जैसे अर्थ इसी वजह से सहज विकसित होते चले गए।
प्रसंगवश यह भी चर्चा कर लेना ठीक होगा कि शिव को द्रविड़ मूल का देवता मानने जैसी धारणा को अब अधिकांश विद्वान सही नहीं मानते हैं। भाषा विज्ञान से प्रमाणित भी होता है। तमिल के चॅ, चॅम् जैसे शब्दों में लालिमा का भाव है। चिव क्रिया में लाल होने का अभिप्राय है। डॉ रामविलास शर्मा कहते हैं कि इसे ही शिव के द्रविड़ देवता होने का प्रमाण मान लिया गया। देखा जाए तो तमिल में श् ध्वनि नहीं है। संस्कृत में शिव, शंभु और शंकर तीनों नाम श् से आरम्भ होते हैं। संस्कृत में च् ध्वनि है। शिव का चिव रूप आत्मसात करने में संस्कृतभाषियों को समस्या नहीं थी। वैदिक शिव ही तमिल में चिव हो जाते हैं। वैदिक वाङ्मय में रुद्र का उल्लेख है। रुद्र के साथ शिव का एकाकार बाद में हुआ। इसी रुद्र से रौद्र शब्द बनता है। यही रौद्र रूप द्रविड़ संस्कृति वाले शिव में अभिव्यक्त होता है। इसीलिए शिव की रौद्र-मुद्रा वाली अभिव्यक्ति को वहाँ ताण्टवम कहा गया। संस्कृत ने इसे ताण्डव के रूप में ग्रहण किया।
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4 कमेंट्स:
मैं तो सोचता था टण्टा "तंत्र" से जुड़ा है।
आपके ब्लॉग में मैलवेयर है वडनेकर जी।
कृपया इसे दूर कीजिए।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (05-12-2014) को "ज़रा-सी रौशनी" (चर्चा मंच 1818) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नृत्य क्यों संहार करके कर रहे हैं तालिबान?
क्यों प्रलय से पूर्व ही शिव हो गये है विघमान!
झगड़ा, टंटा और उपद्रव हे गये अब क्यों है आम,
नृत्य में उल्लास कम, 'सीमोल्लंघन' के है प्रमाण.
('संस्कृत' जननी कईं भाषाओं की स्पष्ट है,
धर्म भी है, कर्म भी, साहित्य भी, इसमें विझान.)
http://mansooralihashmi.blogspot.in
अजित जी मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ की गूगल एडसेंस अब हिंदी ब्लॉग को सपोर्ट करने लगा है, आप भी इस सेवा का लाभ उठा कर अपनी ब्लॉग्गिंग से कुछ आमदनी कर सकते है, धन्यवाद....
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