कच्चा दूध जब बासी हो जाता है तो गर्म करते हुए उसमें थक्का जम जाता है और पानी अलग हो जाता है। इसे दूध फटना कहते हैं। दूध फट सकता है तो क्या सिला भी जा सकता है ! जवाब है फटे दूध सिला तो नहीं जा सकता अलबत्ता गर्म ताज़ा दूध को ठण्डा कर जमाया जा सकता है। ये न समझ लें कि हम दही की बात कर रहे हैं। दूध से दही का बनना तो दरअसल दूध की सीरत का बदलना है जिसमें जमना लाज़िमी हो जाता है। दही को पिघलाया नहीं जा सकता जबकि जमा हुआ दूध पिघला कर फिर काम में लिया जा सकता है। दूध का जमना यानी कुल्फ़ी जमना। कुल्फ़ी दरअसल फ़ारस की देन है मगर कुल्फ़ी लफ़्ज़ सेमेटिक भाषा परिवार का है और अरबी से बरास्ता फ़ारसी होते हुए हिन्दी ज़बानों में दाखिल हुआ।
कुल्फ़ी में भी क़ुफ़्ल का खेल है। हिन्दी शब्दसागर में क़ुफ़्ल शब्द की प्रविष्टि है जबकि ज्ञानमंडल हिन्दी कोश में इसका कुलुफ रूप मिलता है जो मराठी के कुलुप का काफ़ी नज़दीक है। अल सईद एम बदावी के कुरान कोश के मुताबिक अरबी धातु क़ाफ़-लाम-मीम में बान्धने, जमाने, एकजुट करने, जोड़ने, बन्द करने, संयुक्त होने, लौटने, वापसी के साथ पुनरागमन जैसे भाव भी शामिल हैं। गौर करें दूध का जमना किस क्रिया की और इंगित कर रहा है ! दूध दरअसल वसामिश्रित पानी ही है जो सामान्य पानी की तुलना में थोड़ा धीरे जमता है। जमने की क्रिया घनीभूत होना है। इसे संघनन भी कह सकते हैं। यह एकजुट होना है। यहाँ प्रत्येक इकाई संगठित होती है। एक दूसरे से सटती है, संयुक्त होती है। यह जोड़ना-जुड़ना-सटना-लौटना-पास आना ही जमाव है। कहते हैं अरब के फ़ातमिद घराने के बादशाह अलमहदी ने आज से ग्यारह सौ साल पहले जब सिसली पर फ़तह पायी तभी अरबवासियों को कुल्फ़ी की नेमत भी मिली। अलमहदी के ऊँट सिसली के पहाड़ों से बर्फ़ लादकर अरब तक लाते थे। दोहरी परत वाले एक ख़ास बर्तन में इस बर्फ़ की तह जमाई जाती थी। इस बर्तन को नाम मिला क़ुफ़ली अर्थात वो जिसमें जमाया जाए। हिन्दुस्तान आते-आते कहाँ पर क़ुफ़ली के फ़ और ल में जगह की अदला-बदली हो गई, कहा नहीं जा सकता। सच यही है कि क़ुफ़ली से ही कुल्फ़ी की पैदाइश है।
यात्रादल, मंडली या कारवाँ मूलतः जन-जमाव होता है। हिन्दी में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाला काफिला / क़ाफ़िला शब्द के मूल में भी अरबी क्रिया कफ़ाला है। गौर करें की काफिला यात्रियों के समूह को कहते हैं। संयुक्त होने, जुड़ने का भाव यहा स्पष्ट हो रहा है। कोई भी यात्री दल या कारवाँ दरअसल लोगों का समूह होता है। आमतौर पर रास्तों पर लोग छितराकर कर चलते हैं। हर व्यक्ति का अपना अलग मुक़ाम होता है। अलग मक़सद। किसी ख़ास मक़सद से एकत्रित हो कर साथ-साथ कूच करने वाले लोगों का समूह ही काफ़िला है। क़ुफ़्ल में शामिल पुनरागमन के भाव पर गौर करें तो ताले यानी कुलुप में उसकी भी तार्किकता नजर आती है। दरअसल आश्रय की सुरक्षा इसीलिए की जाती है क्योंकि उसे निर्जन छोड़ने की
परिस्थिति बनती है। लौटने पर हर चीज़ सुरक्षित मिले इसी सोच के तहत ताला लगाया जाता है। अर्थात ताले के साथ लौटने या वापसी का भाव जुड़ा हुआ है।
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