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सेमिटिक मूल का ‘सनम’ صنم बनता है साद-नून-मीम ص ن م से मिलकर। इस्लाम से पहले सामी संस्कृति मूर्तिपूजक थी। अगर यूँ कहे कि मनुष्य का धार्मिक रुझान बुतपरस्ती के ज़रिये ही उजागर होता आया है तो भी ग़लत न होगा। प्रतीक, प्रतिमा, सनम या बुत तब तक निर्गुण-निराकारवादियों को नहीं खटकते जब तक वे धर्म के सर्वोच्च प्रतीक के तौर पर पूजित न हों। सनम का सन्दर्भ भी प्रतिमा के ऐसे ही रूप का है। कुरान की टीकाओं व अरबी कोशों भी सनम को “ईश्वर के अलावा पूजित वस्तु” के तौर पर ही व्याख्यायित करते हैं। हालाँकि अरबी सन्दर्भ सनम को किसी विदेशी भाषा से आयातित शब्द बताते हैं पर उस ज़बान का हवाला नहीं देते।
अनेक सन्दर्भों से पता चलता है कि सनम का व्युत्पत्तिक आधार हिब्रू भाषा का है और वहाँ से अरबी में दाखिल हुआ। हिब्रू में यह स-ल-म अर्थात salem है जिसमें बिम्ब, छाया अथवा प्रतिमा का आशय है। इस्लाम से पहले काबा में पूजी जाने वाली प्रतिमाओं के लिए भी सनम शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है। चूँकि “ईश्वर के अलावा पूजित वस्तु” इस्लाम की मूल भावना के विरुद्ध है इसलिए सनम, सनमक़दा और सनमपरस्ती का उल्लेख इस्लामी के परवर्ती सन्दर्भों में तिरस्कार के नज़रिये से ही आता रहा है।
प्राचीन सेमिटिक भाषाओं में अक्कद प्रमुख है जिसकी रिश्तेदारी हिब्रू और अरबी से रही है। उत्तर पश्चिमी अक्कद और उत्तरी अरबी के शिलालेखों में भी सनम का ‘स-ल-म’ रूप मिलता है। दरअसल न और ल में बदलाव भारतीय आर्यभाषाओं में भी होता रहा है। मिसाल के तौर पर पश्चिमी बोलियों में लूण ऊत्तर-पूर्वी बोलियों में नून, नोन हो जाता है। इसी तरह नील, नीला जैसे उत्तर-पूर्वी उच्चार पश्चिम की राजस्थानी या मराठी में जाकर लील, लीलो हो जाते हैं। नीलाम का मराठी रूप लिलाँव है। यही बात सलम के सनम रूपान्तर में सामने आ रही है।
इस सन्दर्भ में s-l-m से यह भ्रम हो सकता है कि इस्लाम की मूल क्रिया धातु s-l-m और सनम वाला s-l-m भी एक है। दरअसल इस्लाम वाले स-ल-म में सीन-लाम-मीम س ل م है जिसमें सर्वव्यापी, सुरक्षित और अखंड जैसे भाव हैं। जाहिर है ये वही तत्व हैं जिनसे शांति उपजती है। जबकि प्रतिमा के अर्थ वाले स-ल-म का मूल साद-लाम-मीम है। ख़ास बात यह कि प्राचीन सामी सभ्यता में देवी पूजा का बोलबाला था। लात, मनात, उज्जा जैसी देवियों की प्रतिमाओं की पूजा प्रचलित थी। इसलिए बतौर सनम अनेक बार इन देवियों की प्रतिमाओं का आशय रहा। बाद के दौर में सनम प्रतिमा के अर्थ में रूढ़ हो गया।
इस सिलसिले की दिलचस्प बात ये है कि जहाँ बुत, मूर्ति या प्रतिमा जैसे शब्दों का प्रयोग ‘प्रियतम’ के अर्थ में नहीं होता मगर प्रतिमा के अर्थाधार से उठे शब्द में किस तरह प्रियतम का भाव भी समा गया। यहाँ समझने की बात यह है कि भारतीय संस्कृति में ईश्वर आराधना की प्रमुख दो शैलियाँ रही हैं- पहली है सगुण साकार और दूसरी है निर्गुण निराकार। सगुण साकार पन्थ में ईश्वर की उपासना करने वाले समूह में भी प्रतिमा, परमशक्ति का रूप नहीं है। जिस प्रतीक को परमशक्ति माना गया, उसकी प्रतिमा को ईश्वर की तरह पूजा जाता है। सनम में प्रियतम की अर्थस्थापना का सम्बन्ध दरअसल इस्लाम की प्रेममार्गी रहस्यवादी विचारधारा के विकास से है। इस धारा के प्रवर्तक सूफी थे। खासबात है कि सूफ़ीमत का जन्म सामी ज़मीन पर नहीं हुआ बल्कि गैरइस्लामी और बुतपरस्त इलाक़ों में हुआ। सूफ़ियों की इबादत के दो प्रमुख सोपान थे इश्क़ मजाज़ी और इश्क़ हक़ीक़ी।
लौकिक प्रेम को ही आध्यात्मिक प्रेम की सीढ़ी मानने वाले सूफ़ियों के भीतर ईश्वरप्राप्ति की अन्तर्धारा तो सनमपरस्ती की ही बह रही थी। इस्लाम के पैग़ाम को आमजन तक पहुँचाने में सूफ़ियों ने गीत-संगीत का मार्ग चुना और इस्लाम को स्वीकारने की राह खुल गई। अरब में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के लिए प्रचलित सनम शब्द तो उनके ख़ज़ाने में पहले से था। इश्क के ‘मजाज़ी’ पड़ाव पर जो सनम प्रियतम की तरह दिलो-दिमाग़ पर असर करता था, ‘हकीक़ी’ पड़ाव पर वही सनम रुहानी बन जाता। फ़ारसी और हिन्दुस्तानी में इस तरह सनम शब्द का प्रवेश हुआ। कहना न होगा कि बॉलीवुड के लोकप्रिय गीतकारों में पंजाब के शायरों का बड़ा योगदान रहा है जिनकी रूह में सूफ़ियाना शायरी थी। ‘सनम’ का हासिल मुकाम ‘प्रियतम’ ही था।
जासूस की जासूसी हैलो हाय प्रणाम नमस्ते सलामत रहे अदब ऐ सलाम जासूस की जासूसी
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5 कमेंट्स:
सुन्दर .......
वाह वाह! काफी समय बाद बैक टू बैक दो पोस्ट।
पत्थर के सनम में सनम का मतलब प्रियतम लगाने पर कुछ समझ में नहीं आता था। अब सब साफ़ हो गया है।
वैसे आप शब्द की उत्पत्ति खोजने का काम बहुत अच्छा कर लेते हैं।
अजित जी एक शब्द को लेकर मेरे मन में प्रश्न उठता है कि मील (कारखाना) शब्द कौन सी भाषा से आया है और इसमें छोटी इ मात्रा लगेगी या बड़ी इ की?
वाह...आपने तो खोजपरक जानकारी उपलब्ध करवाई....बहुत बहुत बधाई......ब्लॉग की जगह कोई नहीं ले सकता......
बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति।
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