Thursday, July 21, 2016

मोरचा सम्भाले...


हि हिन्दी में दो तरह का मोरचा प्रचलित है। एक मोरचा वह है जो लोहे को ख़राब कर देता है। धार कुंद कर देता है। जिसे ज़ंग लगना कहते हैं। संयोग से दूसरा मोर्चा भी जंग से ही जुड़ा है, बस नुक़ते का फ़र्क़ है। उसे जंग का मोरचा कहते हैं। दोनो ही मोरचे फ़ारसी से आयातित हैं। ग़ौर करें कि हिन्दी में युद्धस्थल पर तैनाती की जगह वाला मोरचा ज़्यादा प्रचलित है। ज़ंग के अर्थ वाला मोरचा अब हिन्दी में कम प्रयोग होता है। हाँ आंचलिक बोलियों में बना हुआ है। मोरचा मूलतः مورچال है यानी मोरचाल जो मीम वाव रे चे अलिफ़ लाम से मिलकर बनता है। पर हिन्दी में मोरचा ही प्रचलित हुआ।


अनेक लोग इसकी वर्तनी ‘मोर्चा’ भी लिखते हैं। मूलतः मोरचा में "अंकन करना" जैसे भाव हैं जिनका आशय था सीमा या सरहद का निर्धारण। इसके साथ ही इसमें निशान लगाना, धार करना, कगार, किनारा जैसे आशय भी शामिल हुए। भारत और यूरोप की भाषाओं में इसी अर्थशृंखला से विकसित होकर अनेक शब्द बने हैं। वक़्त के साथ-साथ इसमें चौहद्दी बनाना, क़िला बनाना भी शामिल हो गया।

कोई भी चौहद्दी से घिरी जगह दरअसल अधिकार क्षेत्र का प्रतीक होती है। रक्षा प्रणालियों का जब विकास हुआ तो क़िला या गढ़ी के इर्दगिर्द खाई खोदना भी प्रमुख रणनीति बनी बाद में खाई क़िला निर्माण का अनिवार्य हिस्सा हो गई। खाई दरअसल सैनिको के छुपने के लिए भी खोदी जाती थी और दुश्मन के लिए रोक का काम भी करती थी। कभी इसमें पानी भरा जाता था तो कभी कांटे बिछाए जाते थे।

इसी तरह खुदाई कर खोहनुमा जगह बनाना जिसमें छुप कर एक या दो फौजी छुप कर वार कर सकें, खंदक कहलाती है। दरअसल इन्हीं सारी क्रियाओं को मोर्चाबंदी कहा जाता है अर्थात सुरक्षा के सारे उपाय करना। इस तरह देखें तो खंदक का अर्थ ही मोर्चा हुआ जहाँ पर स्थित फ़ौजी दुश्मन पर तक तक कर वार करता है। मोरचे पर जाना यानी कर्तव्य स्थल पर जाना। मोरचा सम्भालना यानी जिम्मेदारी सम्भालना। मोरचा मारना यानी लक्ष्य पर पहुँचना, जीत जाना आदि।

यूरोप की अनेक भाषाओं की रिश्तेदारी संस्कृत, अवेस्ता से रही है। इसे आर्यभाषा परिवार के नाम से भी समझा जाता है और भारत-यूरोपीय (भारोपीय) भाषा परिवार के नाम से भी। भाषा विज्ञानियों ने मोर्चा श्रृंखला के शब्दों का मूल जानने के लिए प्रोटो भारोपीय धातु मर्ग / मर्ज की कल्पना की है जिसमें सीमा, चिह्नांकन या मोर्चाबंदी करना जैसे भाव हैं।

अवेस्ता और वैदिक भाषा में काफी समानता रही है। वैदिकी के मर्ग, मर्क जैसे शब्दों में गति, गमन, निरीक्षण, आक्रमण जैसे भाव है। इन्ही क्रियाओं से मानव अपना अधिकार क्षेत्र बढ़ाता चलता था। फ़ारसी का मोरचा अवेस्ता के मारेज़ा से विकसित हुआ है जिसका अर्थ है सीमान्त या सरहद।

सीमा का निर्धारण निरन्तर चलते जाने की प्रक्रिया है। चलते हुए चिह्न बनाना इसमें प्रमुख है। अंग्रेजी का मार्जिन शब्द भी इसी मूल से आ रहा है जिसका अर्थ है सीमान्त, हाशिया, किनारा आदि। ये सब विकसित होती एक ही अर्थशृंखला की कड़ियाँ हैं। इसी तरह अंग्रेजी का मार्क शब्द है जिसका अर्थ भी निशान, चिह्न, ठप्पा, अंकन, मुहर, छाप, अंक आदि ही है।

अंग्रेजी के इसी मार्क से हिन्दी में ‘मार्का’ मुहावरा चल पड़ा था ठीक वैसे ही जैसे पिछले कुछ दशकों से ‘टाइप’ चल पड़ा हैं। जिसका आशय सादृश्यता सम्बन्धी है यानी “...किसी के जैसा”। सरकारी मार्का, फर्जी मार्का आदि। इसका अर्थ चिह्न से है पर भाव सादृष्यता का है। “यूपी टाइप,” “मूर्खटाइप” जैसे वाक्य प्रयोग भी यही कहते नज़र आते हैं।

हिन्दीमें रास्ते के अर्थ वाला मार्ग इसी कड़ी का शब्द है। कश्मीरी में मर्ग़ घास के विशाल चारागाह भी हैं। बाद में इनका अर्थ घाटी, रास्ता, मैदान भी हो गया। टंगमर्ग, गुलमर्ग, सोनमर्ग जैसे स्थान नामों में यही मर्ग है।
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5 कमेंट्स:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-07-2016) को "आतंक के कैंसर में जकड़ी दुनिया" (चर्चा अंक-2412) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कविता रावत said...

बहुत अच्छी जानकारी ....

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " २२ जुलाई - राष्ट्रीय झण्डा अंगीकरण दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Arvind Mishra said...

जानकारीपूर्ण

Asha Joglekar said...

मोरचा और मोर्चा भई वाह! पढ कर अच्छा लगा कि आपके शब्दों का सफर अब भी बरकरार है और मोर्चे को सम्हाले हुएं हैं आप उसमें मोरचा नही लगने दिया।

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

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