Wednesday, August 17, 2016

अथ “डिकरा-डिकरी” कथा


न्तति के प्रति स्नेह के सम्बोधन खूब लोकप्रिय होते हैं। इनमें अनेक भाषाओं के शब्द समाहित होते हैं। प्रसार माध्यमों के ज़रिये ऐसे अनेक शब्द हिन्दी और अन्य प्रादेशिक भाषाओं में भी प्रचलित हो जाते हैं। लाडेसर, बेटू, बिट्टू, बालू, बाला, बच्चन, गुंडा, गुंडुराव, मुन्ना, मुंडा, छोटू, नन्हा आदि। ऐसा ही एक शब्द है डीकरा जो मराठी में भी है पर अल्पप्रचलित है। खानदेश की तरफ़ अहिराणी बोली में डिकरा, डिकरी का अर्थ होता है पोता या पोती। गुजराती में इसे बेटा बेटी के अर्थ में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। कुछ सिन्धी क्षेत्रों में भी इसकी व्याप्ति है। हमने सबसे पहले इसका प्रयोग मुम्बइया फ़िल्मों में पारसी पात्रों के मुँह से सुना। अब हिन्दी में भी नाटकीय संवाद में इसे बरता जाने लगा है।

डिकरा यानी सेवक
‘डिकरा’ की अर्थवत्ता सेवक से ठीक उसी तरह जुड़ती है जैसे अरबी के गुलाम की, बाक़ी मतलब दोनों का बच्चा ही है। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि गुलाम में जहाँ सेवक का भाव रूढ़ हो गया वहीं ‘डिकरा’ में बच्चे का। कृपा कुलकर्णी के मराठी व्युत्पत्तिकोश में डिकरा संस्कृत के ‘डिङ्गर’ से विकसित हुआ है। अमरकोश में ‘डिङ्गर’ का अर्थ सेवक ही है। ‘डिङ्गर’ का एक रूप मराठी में ढिंगर भी होता है। इसका ही परवर्ती विकास डिकरा हुआ। इसी तरह गुजराती में ढिकरा भी बोला जाता है।

रामसेवक और गुलामनबी
गौर करें अरबी में ‘गुलाम’ शब्द सेमिटिक ग़ैन-लाम-मीम غ-ل-م से बना है जिसमें लड़का, ख़ूबसूरत युवती, वासना, लालसा, सीमोल्लघन जैसे भाव हैं। ध्यान रहे, दुनियाभर में पुराने दौर से ही बाल-मज़दूरी भी रही है। अरब देशों में इसका चलन अरब के कारोबारी अतीत के मद्देनज़र भी समझा जाना चाहिए। इसका एक रूप हाल के दिनों में बच्चों की ऊँट दौड़ तक में नज़र आता रहा है। जिस तरह हमारे यहाँ रामसेवक का अर्थ राम के आराधक से है उसी तरह गुलामनबी या गुलाम मोहम्मद का भी हुआ। किन्तु दूसरे अर्थों में गुलामनबी का अर्थ जिसे नबी ने पाला हो अर्थात नबी का पुत्र भी होता है। इस तरह हम रामसेवक या रामदास को नहीं देख सकते। पूर्वी बोली में इस अर्थ में रामबालक अलग व्यक्तिनाम है।

गुलाम जो बच्चा था
दासप्रथा के चलते अरब में बड़े पैमाने पर दासों का कारोबार होता था। ये लोग श्रमिकों से लेकर घरेलु सेवादार तक होते थे। प्रायः हर समाज में मालिक को सेवक का पिता कहा गया है क्योंकि वह उन्हें पालता है। मुमकिन है अरब समाज में गुलाम शब्द का प्रयोग क्रीतदासों के लिए इसी रूप में होने लगा हो और बाद में वह सेवक के अर्थ में ही इतना रूढ़ हो गया कि अब तो नौकर शब्द भी गुलाम से ज्यादा रसूख रखता है। नौकर तो सेवा की एवज में तनख्वाह पाता है मगर गुलाम तो सिर्फ हुक्म बजाता है। जहाँ तक डिङ्गर का प्रश्न है, यह मूलतः सेवक ही था। उपरोक्त गुलाम की व्याख्या के मुताबिक ही बाद में इसमें बच्चे का भाव समा गया होगा, ऐसा लगता है। अपने मराठी-गुजराती रूपों में डिकरा / डिक्रा का मूलार्थ बच्चा, सन्तान, पुत्र या शिशु ही होता है।

मोबेदजीना डिकरा-डिकरी
पारसियों का अल्पप्रचलित कुटुम्ब नाम मोबेदजीना भी है। इसकी कथा में डिकरा-डिकरी का दख़ल है। बताया जाता है इस कुटुम्ब के पूर्वपुरुष का नाम मोबेद था। जिसका अर्थ पुजारी/ पुरोहित (दस्तूर-मोबेद) होता है। मोबेद के वंशज पहले ईरान से चल कर गुजरात आए और फिर अपने कुटुम्ब के साथ मुम्बई आ बसे। उन्हें परम्परानुसार इलाके में ‘मोबेदजी’ कहा जाने लगा। उनकी अनेक सन्तानें थी जिन्हें मोहल्ले में मोबेदजीनां डिकरा-डिकरी, ऐसा कह कर परिचय दिया जाता था। समाज में भाषायी पद जब शब्द का रूप लेते हैं तब संक्षेपीकरण होता जाता है। ज़ाहिर है यहाँ भी वही हुआ। मोबेदजी के बाल-बच्चे" की अर्थवत्ता वाला यह वाक्य सिर्फ मोबेदजीना के अर्थ में पितृपुरुष मोबेद के कुटुम्ब की अभिव्यक्ति देने लगा।
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Saturday, August 6, 2016

कुछ ‘दन्द-फन्द’ कर लिया जाए


हि न्दी में दो दन्द चलते हैं। एक दंद (दन्द) है जो तद्भव रूप है और दूसरा फ़ारसी आप्रवासी। एक का अभिप्राय युद्ध, संघर्ष, रस्साकशी, हलचल आदि है। यह दंद संस्कृत के द्वन्द्व से आ रहा है। दूसरा दंद फ़ारसी का है जिसका अर्थ है दाँत, दाँतेदार, तीखा, नोकदार। हिन्दी में दंद का अकेला प्रयोग बहुत कम होता है। दंद-फंद मुहावरे के साथ ही यह देखने में आता है।

दन्द यानी जोड़ा या जद्दोजहद

संस्कृत क्रियामूल द्व / द्वि में दो का आशय है और द्वन्द्व इससे ही बना है जिसका का अर्थ है संग्राम, लड़ाई, झगड़ा, हाथापाई, संघर्ष वग़ैरह। इसमें दो का भाव साफ़ नज़र आ रहा है। हिन्दी का दो भी द्व से ही बना है। द्वक, द्वय, द्वन्द्व, जैसे शब्दों में दो और दो, सम्मुख, जोड़ा, युगल, जद्दोजहद, परस्पर, स्पर्धा, होड़, तकरार, अनबन, आज़माइश जैसे भाव हैं। यही नहीं, मूलतः द्वन्द्व में परस्पर विपरीत जोड़ी का आशय भी है इसलिए इसका अर्थ स्त्री-पुरुष युगल भी है। व्याकरण में द्वन्द्व समास होता है। समास युग्मपद है। परस्पर विलोम या विपरीतार्थी शब्द भी द्वन्द्व की मिसाल है मसलन सुख-दुख, रात-दिन वगैरह।

फन्द यानी गिरह
दंद की तर्ज़ फर फंद का इसमें जोड़ा जाना लोकअभिव्यक्ति की सफलता है। भाषा ऐसे पदों से ही समृद्ध होती है। यह जो फंद है, यह दन्द का अनुकरणात्मक पद न होते हुए स्वतन्त्र शब्द है जो ‘फंदा’ वाली शृंखला से आ रहा है। फन्द यानी बन्धन या पाश। देवनागरी में प > फ > ब > भ की शृंखला के शब्द स्थानीय प्रभाव के चलते विभिन्न बोलियों में एकदूसरे की जगह लेते हैं। बन्ध का लोकरूप फन्द हो जाता है। बन्ध में जहाँ किसी भी किस्म के अवरोध, रोक, गिरह या गाँठ का भाव है वहीं फन्दा सिर्फ़ गाँठ है। बान्धने की क्रिया सिर्फ़ गाँठ से ही व्यक्त नहीं होती। पानी को रोकने वाली व्यवस्था बान्ध इसलिए कहलाती है क्योंकि उसे बान्ध दिया गया है। फन्दा भी एक किस्म का बन्धन है पर हर बन्धन फन्दा नहीं। अलबत्ता फन्दा जहाँ गाँठ है वही इसी तर्ज़ पर बन्धा गाँठ न होकर डैम या बान्ध को कहते हैं।

जी-तोड़ प्रपंच
अब दंद-फंद की बात। मूल रूप से अपने मक़सद की कामयाबी के लिए हर मुमकिन और हर तरह के प्रयासों को अभिव्यक्त करने वाला पद है दंद-फंद पर अब इसका प्रयोग नकारात्मक अर्थ में ही ज़्यादा होता है। आज की हिन्दी में इस पद में चालबाजी, षड्यन्त्र, हथकण्डा, दाँव-पेच, खटराग, कूटनीति जैसी अभिव्यक्तियाँ समा गई हैं। द्वन्द्व से बने दन्द से यहाँ ज़ोर-आज़माइश प्रमुख है वहीं फन्द में फँसाने का भाव है। कुल मिला कर उचित-अनुचित का विचार किए बिना उद्धेश्यपूर्ति का प्रयत्न दरअल दंद-फंद की श्रेणी में आता है। हालाँकि सामान्य तौर पर जी-तोड़ मेहनत के अर्थ में भी इसका प्रयोग होता है जैसे- “सारे दन्द-फन्द कर लिए, तब कहीं काम मिला” या “वहाँ किराए के मकान के लिए बड़े दन्द-फन्द करने पड़ते हैं” वगैरा वगैरा।

दन्दाँ तुर्श करदन
जिस तरह संस्कृत में विसर्ग का उच्चार ‘ह’ होता है पर अक्सर वह ‘आ’ में परिवर्तित हो जाता है। फ़ारसी में शब्द के अन्त में ‘हे’ का प्रयोग इसी तरह होता है। संस्कृत के दन्त यानी दाँत का फ़ारसी समानार्थी दंदानह دندانه है जो दाल, नून, दाल,अलिफ़, नून, हे से मिलकर बना है। हिन्दी में इसका उच्चार दंदाना होता है जिसका अर्थ हुआ दाँता, दाँतेदार, नुकीला, नोकदार आदि। फ़ारसी में कहावत है “दन्दाँ तुर्श करदन” इसकी तर्ज़ पर हिन्दी में दाँत खट्टे करना कहावत बनाई गई। दन्द-फन्द वाले दन्द से दाँतेदार दन्द का कुछ लेना-देना नहीं।
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