डिकरा यानी सेवक
‘डिकरा’ की अर्थवत्ता सेवक से ठीक उसी तरह जुड़ती है जैसे अरबी के गुलाम की, बाक़ी मतलब दोनों का बच्चा ही है। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि गुलाम में जहाँ सेवक का भाव रूढ़ हो गया वहीं ‘डिकरा’ में बच्चे का। कृपा कुलकर्णी के मराठी व्युत्पत्तिकोश में डिकरा संस्कृत के ‘डिङ्गर’ से विकसित हुआ है। अमरकोश में ‘डिङ्गर’ का अर्थ सेवक ही है। ‘डिङ्गर’ का एक रूप मराठी में ढिंगर भी होता है। इसका ही परवर्ती विकास डिकरा हुआ। इसी तरह गुजराती में ढिकरा भी बोला जाता है।
रामसेवक और गुलामनबी
गौर करें अरबी में ‘गुलाम’ शब्द सेमिटिक ग़ैन-लाम-मीम غ-ل-م से बना है जिसमें लड़का, ख़ूबसूरत युवती, वासना, लालसा, सीमोल्लघन जैसे भाव हैं। ध्यान रहे, दुनियाभर में पुराने दौर से ही बाल-मज़दूरी भी रही है। अरब देशों में इसका चलन अरब के कारोबारी अतीत के मद्देनज़र भी समझा जाना चाहिए। इसका एक रूप हाल के दिनों में बच्चों की ऊँट दौड़ तक में नज़र आता रहा है। जिस तरह हमारे यहाँ रामसेवक का अर्थ राम के आराधक से है उसी तरह गुलामनबी या गुलाम मोहम्मद का भी हुआ। किन्तु दूसरे अर्थों में गुलामनबी का अर्थ जिसे नबी ने पाला हो अर्थात नबी का पुत्र भी होता है। इस तरह हम रामसेवक या रामदास को नहीं देख सकते। पूर्वी बोली में इस अर्थ में रामबालक अलग व्यक्तिनाम है।
गुलाम जो बच्चा था
दासप्रथा के चलते अरब में बड़े पैमाने पर दासों का कारोबार होता था। ये लोग श्रमिकों से लेकर घरेलु सेवादार तक होते थे। प्रायः हर समाज में मालिक को सेवक का पिता कहा गया है क्योंकि वह उन्हें पालता है। मुमकिन है अरब समाज में गुलाम शब्द का प्रयोग क्रीतदासों के लिए इसी रूप में होने लगा हो और बाद में वह सेवक के अर्थ में ही इतना रूढ़ हो गया कि अब तो नौकर शब्द भी गुलाम से ज्यादा रसूख रखता है। नौकर तो सेवा की एवज में तनख्वाह पाता है मगर गुलाम तो सिर्फ हुक्म बजाता है। जहाँ तक डिङ्गर का प्रश्न है, यह मूलतः सेवक ही था। उपरोक्त गुलाम की व्याख्या के मुताबिक ही बाद में इसमें बच्चे का भाव समा गया होगा, ऐसा लगता है। अपने मराठी-गुजराती रूपों में डिकरा / डिक्रा का मूलार्थ बच्चा, सन्तान, पुत्र या शिशु ही होता है।
मोबेदजीना डिकरा-डिकरी
पारसियों का अल्पप्रचलित कुटुम्ब नाम मोबेदजीना भी है। इसकी कथा में डिकरा-डिकरी का दख़ल है। बताया जाता है इस कुटुम्ब के पूर्वपुरुष का नाम मोबेद था। जिसका अर्थ पुजारी/ पुरोहित (दस्तूर-मोबेद) होता है। मोबेद के वंशज पहले ईरान से चल कर गुजरात आए और फिर अपने कुटुम्ब के साथ मुम्बई आ बसे। उन्हें परम्परानुसार इलाके में ‘मोबेदजी’ कहा जाने लगा। उनकी अनेक सन्तानें थी जिन्हें मोहल्ले में मोबेदजीनां डिकरा-डिकरी, ऐसा कह कर परिचय दिया जाता था। समाज में भाषायी पद जब शब्द का रूप लेते हैं तब संक्षेपीकरण होता जाता है। ज़ाहिर है यहाँ भी वही हुआ। मोबेदजी के बाल-बच्चे" की अर्थवत्ता वाला यह वाक्य सिर्फ मोबेदजीना के अर्थ में पितृपुरुष मोबेद के कुटुम्ब की अभिव्यक्ति देने लगा।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें
|
2 कमेंट्स:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-08-2016) को "शब्द उद्दण्ड हो गए" (चर्चा अंक-2439) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "साक्षी ने दिया रक्षाबंधन का उपहार “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Post a Comment