संगीत मे आरोह-अवरोह बेहद आम और सामान्य शब्द हैं बल्कि यूं कहा जाए कि संगीत इन्हीं दो शब्दों पर टिका है तो गलत न होगा। सुरों के चढ़ाव-उतार से ही संगीत की रचना होती है। आरोह यानी चढ़ाव और अवरोह यानी उतार। आरोह-अवरोह बने हैं संस्कृत के रुह् से जिसका अर्थ है उपजना, चढ़ना, ऊपर उठना, विकसित होना, पकना आदि। इसी से बना है रोह: जिसका अर्थ है चढ़ना, वृद्धि-विकास और गहराई। चढ़ाई के लिए आरोहण शब्द भी इसी से बना है। राज्यारोहण, सिंहासनारोहण जैसे शब्दों से यह जाहिर है।
आरोही-रोहः में आ उपसर्ग लगने से एक और शब्द की रचना होती है-आरोही। शाब्दिक अर्थ हुआ ऊपर की ओर जाने वाला (या वाली) मगर भावार्थ हुआ प्रगतिगामी। जो उत्तरोत्तर तरक्की करे। ऊंचे स्थान को हासिल करे, प्रतिष्ठित हो। आरोही से बननेवाले कुछ शब्द हैं अश्वारोही, पर्वतारोही आदि। गौरतलब है कि पहाड़ो पर चढ़नेवालों को हिन्दी में पर्वतारोही कहते हैं मगर नेपाली भाषा में पर्वतारोही को सिर्फ आरोही ही कहा जाता है।
श्रीलंका के एक पहाड़ का नाम है रोहण: । जाहिर है रुह् में निहित चढ़ाई और गहराई जैसे अर्थ को ही यह साकार करता है।
रूहेलखंड-आज के उत्तरप्रदेश के एक हिस्से को रूहेलखंड कहा जाता है। इसका यह नाम पड़ा रुहेलों की वजह से। मुस्लिम आक्रमणकारियों के साथ पश्चिम से जो जातियां भारत आकर बस गईं उनमें अफगानिस्तान के रुहेले पठान भी शामिल थे। इसकी उत्पत्ति भी संस्कृत के रूह् से ही हुई है जो पश्तो ज़बान में बतौर रोह प्रचलित है। पश्तो में रोह का अर्थ पहाड़ होता है। सिन्धी जबान में भी पहाड़ के लिए रोह शब्द ही है। साफ है कि पहाड़ी इलाके में निवास करने वाले लोग रुहेले पठान कहलाए। रोहिल्ला शब्द भी इससे ही बना। भारत में आने के बाद ये अवध के पश्चिमोत्तर इलाके में फैल गए और इस तरह रुहेलों ने बसाया रुहेलखंड। दिल्ली के नजदीक सराय रोहिल्ला कस्बे के पीछे भी यही इतिहास है।
रूखा या रूक्ष- हिन्दी मे रूखा शब्द का अर्थ है खुरदुरा, कठोर , नीरस के अलावा इसका एक अर्थ उदासीन भी होता है। इस शब्द का उद्गम हुआ है संस्कृत के रूक्ष शब्द से जिसका मतलब है ऊबड़-खाबड़, असम और कठिन । रूक्ष की उत्पत्ति भी रूह् धातु से हुई है जिसका अर्थ है ऊपर उठना, चढ़ना आदि। गौरतलब है कि हिन्दी का ही एक और शब्द है रूढ़ जिसका जन्म भी रूह् धातु से हुआ है। इसके मायने भी स्थूलकाय, बड़ा या उपजना, उगना आदि हैं। कुल मिलाकर रूह् से जहां संगीत की सुरीली दुनिया के शब्द बने वहीं पथरीली-पहड़ी और ऊबड़-खाबड़ दुनिया के लिए भी रूक्ष और ऱूढ़ जैसे शब्द बने । गौर करें रूह् के ऊपर चढ़ने और उतरने जैसे भावों पर। ज़ाहिर है चढ़ने-उतरने के लिए धरातल का असम होना ज़रूरी है। अर्थात पहाड़ी या ऊबड़-खाबड़ ज़मीन। इसीलिए रूह् से बने रूक्ष शब्द में ये सारे भाव विद्यमान हैं और इससे रुखाई जैसे लफ्ज भी बन गए। इसी तरह रूह् के चढ़ने के अर्थ मे उगने-उपजने और बढ़ने का भाव भी छुपा है। गौर करें कि प्रथा के लिए रूढ़ि शब्द भी इससे ही बना है। इसमें भी बढ़ने और उपजने का भाव छुपा है।
Saturday, July 7, 2007
आरोही से रूहेलखंड तक
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 11:50 AM
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2 कमेंट्स:
आनन्दम.. आनन्दम..
बहुत खुब!!!
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