Thursday, July 12, 2007

दिशाओं के हाथी - दिग्गज


बोलचाल की हिन्दी का एक शब्द है दिग्गज जो कि आमतौर पर किसी बड़े और प्रभावशाली व्यक्ति के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है। इस शब्द के महत्व को जताने वाले कुछ मुहावरे भी हिन्दी में चलते हैं जैसे दिग्गजों की लड़ाई या दिग्गजों का अखाड़ा। दरअसल दिग्गज संस्कृत का शब्द है और ज्यों का त्यों हिन्दी में भी प्रयोग किया जाता है। यह संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है दिक्+गज्=दिग्गज। इसके शाब्दिक मायने हुए दिशाओं के हाथी। पुराणों के मुताबिक समूचे ब्रह्माण्ड को आठ हाथियों ने थाम रखा है। हलाय़ुध कोश में इसकी व्युत्पत्ति बताते हुए कहा गया है दिशोगजः अर्थात दिशाओं के हाथी। एक श्लोक है-"ऐरावतः पुण्डरीको वामनःकुमुदोsञ्जनः। पुष्पदन्तः सार्वभौमः सुप्रतीकश्च दिग्गजाः।" अर्थात इनके नाम हैं-(१) ऐरावत, (२) (पुंडरीक,) (३) वामन, (४) कुमुद, (५) अंजन, (६) पुष्पदंत, (७) सार्वभौम व (८) सुप्रतीक। दिशा के लिए मूलरूप से संस्कृत शब्द दिश् है जिससे दिक् और दिग् दो अन्य शब्द बने हैं जिनका अर्थ भी यही है। इससे हिन्दी में कुछ अन्य शब्द भी बने हैं जैसे दिग्दिगंत ( दिशाओं का छोर ), दिग्विजय( चारों दिशाओं में दिखाया पराक्रम ) और दिगंबर ( एक संप्रदाय-जिसके लिए दिशाएं ही वस्त्र हों )। इसी तरह एक अन्य शब्द है दिक्पाल जिसका अर्थ है दिशाओं के रक्षक। गौरतलब है कि भारतीय ज्ञानसंहिताऔं में चार की जगह कहीं दस और कहीं आठ दिशाएं मानी जाती हैं। ये रक्षक स्वयं देवगण हैं जिन्हें स्वयं ब्रह्मा ने ये जिम्मेदारी दी-(१) इन्द्र पूर्व के, (२)अग्नि दक्षिण-पूर्व के ,(३) यम दक्षिण के (४)सूर्य दक्षिण-पश्चिम के (५)वरूण पश्चिम के (६)वायु पश्चिमोत्तर के (७) कुबेर उत्तर के और(८) सोम उत्तर-पूर्व के। इसके अलावा पाताल को देखने की जिम्मदारी शेषनाग ने संभाली और आकाश स्वयं ब्रह्मा ने संभाला।

4 कमेंट्स:

अनूप शुक्ल said...

दिगदिगंत में आपकी जानकारी का प्रसार हो। :)

अभय तिवारी said...

ये शब्द सुने जाते रहे हैं..पूरी जानकारी के अभाव में सोचा भी जाता रहा कि कभी खोज लूंगा कि कौन दिक्पाल कौन दिशा सम्हालता है.. आप ने आज वो जिज्ञासा शांत कर दी..

और ये वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दे.. आप को इसकी क्या ज़रूरत..आपके पाठको के टिपियाने में एक बाधा है..

बोधिसत्व said...

अजित भाई
मौका अच्छा था,लगे हाथ सभी दिशाओं के नामों को भी निपटा देते। सफर अच्छा है । बधाई ।

अजित वडनेरकर said...

सच कहते हैं । मौका था। क्या करें, समय की कमी पता नहीं क्या क्या गलतियां कराएगी जीवन में । आपका आभारी हूं।

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