पश्चिमी दुनिया में भारतीय मसालों के लिए जो ललक थी उसी ने यूरोप से भारत के लिए आसान समुद्री मार्ग की खोज करवाई। मसालों की दुनिया में अदरक की खास जगह है। अंग्रेजी में इसे जिंजर कहते हैं। खान-पान में अदरक के दो रूप प्रचलित हैं पहला ताजा यानी गीला और दूसरा सूखा। गीला रूप अदरक कहलाता है और सूखा रूप सौंठ। गौरतलब बात ये है कि अदरक और जिंजर दोनों ही शब्द भारतीय मूल के हैं।
पहले अदरक की बात। अदरक शब्द बना है संस्कृत के आर्द्रकम् से। हिन्दी में यह हुआ अदरक । उर्दू-फारसी में इसे अद्रख कहते हैं। बाकी भारतीय भाषाओं में भी इससे मिलते जुलते रूप मिलते हैं।
अब बात जिंजर की। अंग्रेजी का जिंजर मध्यकालीन लैटिन के जिंजीबेरी से बना। लैटिन में इसकी आमद हुई ग्रीक के जिंजीबेरिस से। ग्रीक भाषा का जिंजीबेरिस प्राकृत के सिंगीबेरा से बना जिसकी उत्पत्ति संस्कृत शब्द श्रृंगवेरम् से मानी जाती है जिसका अर्थ हुआ सींग जैसी आकृति का । मगर भाषाविज्ञानी उत्पत्ति के इस आधार को एक दिलचस्प मान्यता से ज्यादा तरजीह नहीं देते । उनके मुताबिक जिंजर की उत्पत्ति संस्कृत के
श्रृगवेरम् से नहीं बल्कि द्रविड़ भाषा परिवार से हुई है। प्राचीन द्रविड़ भाषा में इंची शब्द है जिसका अर्थ है जड़ या मूल इसी से बना तमिल में इंजीवेरी। तमिल के जरिये ही यह शब्द पूर्वी एशिया , पश्चिमी एशिया और फिर यूरोप पहुंचा। आज दुनियाभर में अलग-अलग रूपों में दक्षिण भारत से गया यही शब्द मौजूद है जैसे श्रीलंका की सिंहली में इंगुरू, रशियन में इंबिर, यूक्रेनियन में इंब्री, स्लोवेनियन में डुंबियर, फ्रैंच में जिंजेम्ब्रे, और हिब्रू में सेंगविल के रूप में ।
पुराने वक्त में दक्षिण भारत में अदरक से शराब भी बनाई जाती थी जिसे आर्द्रकमद्यम् कहा जाता था। दक्षिण के कुछ इलाकों मे देशी शराब को आज भी अरक ही कहते हैं जो संभवत: इससे ही बना है। यह परम्परा श्रीलंका में अब भी कायम है और वहां जिंजर बियर खूब मशहूर है। इसे आयुर्वेदिक औषधि के तौर पर भी विदेशी सैलानियों के आगे परोसा जाता है। यहां का एलिफेंट ब्रांड मशहूर है। यूं फारसी में अरक का मतलब दवाई, शराब और यहां तक की पसीना भी होता है। समझा जा सकता है कि इसमें किसी चीज़ से सार के निचोड़ या खींचने का भाव ही शामिल है।
Friday, July 20, 2007
अदरक में नशा है....
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 4:33 AM
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8 कमेंट्स:
चलता रहे सफ़र.. बढ़ता रहे ज्ञान.. यही है कामना..
सही है.. शुभकामनाएं..
धन्यवाद अभय जी, प्रमोद जी। आभारी हूं। आपकी टिप्पणी सुखकारी है।
Dada,
Wakai kabile taarif hai aapka blog aur us par uplabdh shabdon ka rochak safar. Kuch vyast hun is wajah se manch se gayab hun. Aapke blog ki link apne kuch mitron ko bhi bhej chuka hun aur unki pratikriya angreji main kuch aisi hai:
" Great Job Buddy"
Shabdon ka safar yunhi chalta rahe.....
अच्छी जानकारी । हमारे यहाँ पीसे हुये अदरक में गुड और तुलसी पत्ता मिलाकर एक प्रकार का पेय बनाया जाता है । स्वादिष्ट और सेहतकारी ।
अजीत जी, अब आएगा अदरक का सही स्वाद ,
आपका कोई सानी नही,
भगवान् करे ये सफ़र अनवरत जारी रहे
जब से जुड़ा, यकीन कीजिये साथ ही चल रहा हूँ, लाजवाब, बेमिसाल, अद्भुत, रोमांचक.............है यह सफ़र. निश्चित ही इसकी मंजिल शीर्ष में निहित है ...............आमीन
पढ़ते हुए नशा-सा छाने लगा...!
वैसे भी अपना यह शब्दों का सफ़र
शब्द-अर्थ-सन्दर्भ की 'मधुशाला' की तरह है....
हम तो यहाँ पहुँचकर झूम-झूम जाते हैं भाई !
यह नशा चिरायु हो यही कामना है......
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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