फारसी का एक शब्द है बुत जो अब अरबी, तुर्की ,उर्दू समेत हिन्दी में भी आम हो गया है। बुत के मायने होते है प्रतिमा या मूर्ति। बुत शब्द जन्मा जरूर फारस में मगर रिश्ता इसका भारत से ही है। दरअसल बुद्ध से ही बुत निकला है। बुद्ध के मायने होते है सब कुछ जानने वाला। मगर यह अर्थ बुत के मायने से मेल नहीं खाता। दरअसल बुद्ध के निर्वाण की एक सदी के भीतर बौद्ध धर्म एशिया में फैलने लगा था। अफगानिस्तान के रास्ते जब बौद्ध धर्म फारस पहुंचा तो वहां भी भिक्षुओं ने पठन पाठन के लिए विहारों की स्थापना की और बड़ी संख्या में भव्य और विशाल मूर्तियों का निर्माण हुआ। फारसवासी उस समय भी मूर्तिपूजक नही थे । वे अग्निपूजक थे। महात्मा बुद्ध से उनका परिचय प्रतिमाओं के माध्यम से ही हुआ जिसका उच्चारण उन्होने बुत के रूप मे किया। इन्हे देखकर वे कहते - ये तो बुत है अर्थात ये बुद्ध हैं। बाद के सालों में यही बुत प्रतिमा के अर्थ में फारसी में प्रचलित हुआ। कई सदियों बाद जब इस्लाम का उदय हुआ तो बुत शब्द को और विस्तार मिला तथा बुतपरस्त, बुतशिकन, बुतकदा जैसे कई शब्दों का जन्म हुआ। एक और बात गौरतलब है। बौद्धधर्म मे भी मूर्तिपूजा का निषेध है और स्वयं बुद्ध ने अपने जीवन काल में शिष्यों को पाबंद किया था कि निर्वाण के बाद उनकी प्रतिमाएं न बनाई जाएं। विडंबना देखिए कि बुद्ध के इतने बुत बनें कि यह नाम ही मूर्ति का पर्याय हो गया। अफगानिस्तान, चीन और जापान में तो बौद्ध मूर्तियों ने विशालता के प्रतिमान स्थापित किए।
अगली कड़ी में बुद्ध की बुद्धू से रिश्तेदारी।
1 कमेंट्स:
अच्छी जानकारी।
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