महाभारत के प्रसिद्ध पात्र अर्जुन और दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेंटीना में भला क्या संबंध हो सकता है ? कहां अर्जुन पांच हजार साल पहले के द्वापर युग का महान योद्धा और कहां अर्जेंटीना जिसकी खोज सिर्फ पांच सौ वर्ष पहले कोलंबस ने की। दोनो में कोई रिश्ता या समानता नजर नहीं आती। पर ऐसा नहीं है। दोनों में बड़ा गहरा रिश्ता है जिसमें रजत यानी चांदी की चमक नजर आती है। भारतीय यूरोपीय भाषा परिवार का रजत शब्द से गहरा नाता है। इस परिवार की सबसे महत्वपूर्ण भाषा संस्कृत में चांदी के लिए रजत शब्द है। प्राचीन ईरानी यानी अवेस्ता में इसे अर्जत कहा गया है।
गौरतलब है कि चांदी एक सफेद , धवल चमकदार धातु है। इस परिवार की यूरोपीय भाषाओं में जो शब्द हैं उनका मतलब भी सफेद और चमकीला ही है। यूरोपीय भाषाओं में इसके लिए जो मूल शब्द है वह है अर्ज। ग्रीक में इसके लिए अर्जोस , अर्जुरोस और अर्जुरोन जैसे शब्द हैं जिनका मतलब सफेद या चांदी होता है। संस्कृत में अर्जुन का अर्थ भी यही है -सफेद, चमकीला , उज्जवल। अर्जुन को महाभारत में यह नाम अपने पवित्र और उज्जवल कमों के लिए दिया गया। इसी तरह लैटिन में अर्जेन्टम लफ्ज है जिसका सीधा मतलब चांदी या रजत ही होता है। इसी से अंग्रेजी में बना अर्जेंट जिसका अर्थ होता है रजत। पंद्रहवी सदी के आसपास दक्षिण अमेरिका में जब चांदी की खोज शुरू हुई तो एक विशाल क्षेत्र को नए राष्ट्र के रूप में पहचान मिली। नामकरण हुआ अर्जेंटीना।
अब बात जरी की। हिन्दी-उर्द मे प्रचलित लफ्ज जरी के मायने होते हैं सोना अथवा सोने का मुलम्मा चढ़ा हुआ धागा या तार। इसीलिए पुराने जमाने में रईसों के लिए जरी से कपड़े बुने जाते थे। इससे सिले हुए वस्त्र उत्सवों-आयोजनों की पहचान थे क्योकि ये कीमती होते थे । जरी शब्द बना है फारसी के जर से जिसका अर्थ है धन-दौलत-सम्पत्ति अथवा स्वर्ण, कांचन या सोना। प्राचीन इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शब्द है अर्ज यानी चमक और सफेदी। इसी तरह संस्कृत में भी एक धातु है अर्ज् जिसका मतलब भी चमकीला, श्वेत आदि है। इसी से बना है अर्जुन। गौरतलब है कि श्वेत और चमकीलापन, पवित्रता का प्रतीक भी हैं इसीलिए अर्जुन को यह नाम मिला। इससे मिलते-जुलते मायनों वाले कई शब्द न सिर्फ हिन्दी समेत अन्य भारतीय भाषाओं में बल्कि यूरोपीय भाषाओं में भी प्रचलित हैं। ये सभी शब्द अर्ज् से ही बने हैं। संस्कृत हिन्दी में चांदी को रजत ही कहते हैं। अवेस्ता में यह अर्जता के रूप में है तो फारसी में जर बनकर विद्यमान है। ग्रीक में यह अर्जुरोस के रूप में प्रचलित है । चांदी के लिए रासायनिक नाम ag इसी से बना है।
जर यानी फारसी में धन-सम्पत्ति। खासबात ये कि अर्ज में निहित चमक और कांति वाले भावों ने इसे जहां संस्कृत में चांदी का अर्थ प्रदान किया वहीं फारसी में सोने के मायने दिए। बाद में इसे सर्वाधिक मूल्यवान धातु के तौर पर धन का पर्याय ही मान लिया गया। जर से बने कई शब्दो से हम बखूबी परिचित हैं मसलन जरीना यानी सुनहरी , जरखरीद यानी जिसे मूल्य देकर खरीदा गया हो, जरदोजी यानी जरी का काम। यही नहीं पीले रंग के लिए फारसी उर्दू में जर्द शब्द है जाहिर है यह भी सोने के पीले रंग की बदौलत ही बना है। इससे ही अंडे के भीतर के पीले पदार्थ के लिए जर्दी शब्द चला। मजेदार बात यह कि फारसी में चाहे अर्ज् से बने जर के मायने सोना है मगर चांदी के लिए वहा भी इसी का सहारा लेकर एक शब्द बनाया गया है जरे-सफेद यानी सफेद सोना। इसे श्वेत-सम्पदा के रूप में भी देखा जा सकता है। उर्दू-फारसी में गुलाम के लिए ज़रखरीद शब्द भी है जिसका मतलब होता है जिसे धन देकर खरीदा गया हो।
Wednesday, July 4, 2007
अर्जुन, अर्जेंटीना और जरीना
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 12:51 AM
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5 कमेंट्स:
अजित जी,
चिट्ठा-जगत में आपका स्वागत है। आपका ब्लॉग हिन्द-युग्म से जोड़ा जा रहा है।
शुभकामनाओं के साथ स्वागत!!
हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत. मैं ने अपके चिट्ठे को नाचिकेत में जोड दिया है. अधिक जानकारी के लिये देखें www.Sarathi.info
वाह! बहुत बढ़िया लेख है। हिन्दी ब्लॉग जगत में ऐसे ही लाजवाब चिट्ठों की दरकार है। अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा।
प्रतीक जी, संजीत जी, शास्त्रीजी और शैलेष भाई आप सभी का आभारी हूं कि आपने मेरे अनुरोध पर इस ब्लाग पर नज़र डाली, इसे अपनी साइट्स से जोड़ा, सराहना की। शुक्रिया-नवाजिश के लिए।
मेरी पूरी कोशिश होगी कि इसे सप्ताह में एक - दो बार अपडेट करूं। जो मैं लिख रहा हूं उसमें इससे ज्यादा संभव भी नहीं है। साभार...
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