Thursday, January 10, 2008

यजमान तो डूबा है जश्न में .....[जश्न-1]


क ही मूल से उत्पन्न होते हुए भी कई बार दो शब्दों का अर्थ ठीक उसी तरह अलग अलग होता है जैसे दो जुड़वां इन्सानों का रूप रंग एक होते हुए भी स्वभाव एकदम अलग हो। हिन्दी उर्दूमें एक शब्द है जश्न या जशन। इसका अर्थ है उत्सव, समारोह या जलसा। अपने मूल रूपप में तो यह शब्द फारसी का है। पुरानी फारसी यानी अवेस्ता में यह यश्न रूप में मौजूद है। संस्कृत का यज्ञ ही फारसी का यश्न है। दरअसल भारतीय आर्यो और ईरानियों का उद्गम आर्यों के एक ही कुटुम्ब से हुआ जिसकी बाद में दो शाखाएं हो गई। गौरतलब है कि प्राचीन ईरानी या फारसवासी अग्निपूजक थे। पारसी आज भी अग्निपूजा करते है । पारसी शब्द भी अग्निपूजकों के एक समूह के फारस से पलायन कर भारत आ जाने के कारण चलन में आया। । यज्ञ की परंपरा भारतीय और ईरानी दोनों ही दोनों ही आर्य शाखाओं में थी। फारसी और हिन्दी भी एक ही भाषा परिवार से संबंधित हैं। फारसी का प्राचीन रूप अवेस्ता में जिसे यश्न कहा गया है और हिन्दी के प्राचीन रूप संस्कृत में जो यज्ञ के रूप में विद्यमान है। उत्तर पश्चिमी भारत में कई लोग इसे यजन भी कहते हैं। यह माना जा सकता है कि इरान में इस्लाम के आगमन के बाद यज्ञ ने अपने असली मायने खो दिए और यह केवल जलसे और उत्सव के अर्थ में प्रचलित हो गया । जबकि भारत में न सिर्फ यज्ञ की पवित्रता बरकरार रही बल्कि यज्ञ न करने वालों के लिए एक मौका जश्न का भी आ गया।

यज्ञ करे सो यजमान

संस्कृत और फारसी के यज्ञ/यश्न शब्द की मूल धातु है यज् जिसका मतलब होता है अनुष्ठान, पूजा अथवा आहुति देना। ये सभी शब्द कहीं न कहीं समूह की उपस्थिति, उत्सव-परंपरा के पालन अथवा सामूहिक कर्म का बोध भी कराते हैं । जाहिर है ये सारे भाव जश्न में शामिल हैं जो अंततः यज्ञ के फारसी अर्थ में रूढ़ हो गए। इससे ही बन गया यजमानः जिसके हिन्दी में जजमान, जिजमान, जजमानी वगैरह जैसे कई रूप प्रचलित हैं। यजमान के सही मायने हैं जो नियमित यज्ञ करे। वह व्यक्ति जो यज्ञ के निमित्त पुरोहितों को चुनता है और व्यव वहन करता है। दानकर्म आदि करता है। इसी तरह यज्ञकर्मी ब्राह्मण के शिष्य को भी यजमान कहा जाता है। समाज के धनी, कुलीन, आतिथेयी अथवा प्रमुख पुरूष को भी यजमान कहने का चलन उत्तर भारत में रहा है।चार वेदों में प्रमुख यजुर्वेद को यह नाम भी यज् धातु के चलते ही मिला है क्यों कि ज्ञान का यह भंडार यज्ञ संबंधी पवित्र पाठों का संग्रह है। इसकी दो प्रमुख शाखाएं है कृष्णयजुर्वेद और शुक्लयजुर्वेद

आपकी चिट्ठी

फर की पिछली पोस्ट इक बंगला बने न्यारा .... पर जिन हमराहियों की चिट्ठियां मिलीं उनमें हैं सृजनशिल्पी, प्रत्यक्षा, मीनाक्षी, राजेश रोशन और संजीत। आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया। प्रत्यक्षा और मीनाक्षी जी , आप दोनों को मेरी बहुत बहुत शुभकामनाएं कि जल्दी ही अपने अपने मनभावन बंगले में जाएं।

9 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अजित जी। जन्मदिन पर शुभ कामनाएं।

Sanjay Karere said...

तो क्‍या इरादा है भाई जी, आज जश्‍न मनेगा क्‍या? खास दिन है, तो होना ही चाहिए. चलिए मेरी ओर से दूसरी बार जन्‍मदिन की ढेरों शुभकामनाएं. कितने साल? :)

mamta said...

अजित जी जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक हो।

Unknown said...

जन्‍मदिन पर जश्‍न की बात ही होनी चाहिए।
दादा साहेब को बहुत बहुत बधाइयॉं ।।

Unknown said...

जन्मदिन की शुभ कामनाएं - यज्ञ और जश्न दोनों के साथ - [आपका ब्लॉग एकदम अलग, उज्जवल है / रहे और हम सब शब्दों के पीछे आपके साथ घूमें] - मनीष

Sanjeet Tripathi said...

दिन है जश्न का,बात भी जश्न की
सफर है शब्दों का,कर्म भी शब्द का
जारी रहे सफर, घिरे रहें शब्दों से सदा
कामना है यही क्योंकि जन्मदिन है आपका!!

जन्मदिन की बधाई व शुभकामनाएं

मीनाक्षी said...

शब्दो के सफर में जैसे आप बढ़ रहे है
वैसे ही जीवन के सफर में आगे बढ़ते रहें..
जन्मदिन पर ढेरों शुभकामनाएँ ....
शब्दों के सफर मे आप फारसी को भी साथ लेकर चलते है तो उस भाषा मे भी आपको जन्मदिन मुबारक " तवालोदेत मोबारक !
(Tavalodet Mobarak! )

Manish Kumar said...

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ और साथ ही पुरस्कार के लिए बधाई। ये सफ़र यूँ ही चलता रहे...

अजित वडनेरकर said...

आप सभी साथियों से जन्मदिन के मौके पर बधाई-स्नेह संदेश पाकर अभिभूत हूं, मगन हूं।
प्रभु आप सबके मनोरथ पूरे करें। ये स्नेह यूं ही बना रहे। जिस सफर के आप सहयात्री हैं उसे और बेहतर बना सकूं यहीं प्रयास रहेगा मेरा।
शुक्रिया एक बार फिर ...

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