Sunday, January 13, 2008

जनेऊ में जश्न का आनंद-उल्लास [जश्न -2]

नेऊ एक संस्कार है जो हिन्दुओं में होता है। आमतौर पर माना जाता रहा है कि सिर्फ ब्राह्मण ही जनेऊ के अधिकारी हैं। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि वर्णव्यवस्था के तहत प्रथम तीन वर्ण जनेऊ धारण कर सकते हैं । आर्यसमाज ने इसके खिलाफ आंदोलन चलायाथा। उनका मानना था कि चारों वर्ण इस संस्कार के अधिकारी हैं।
जनेऊ शब्द बना है यज्ञोपवीत से। एक मान्यता के मुताबिक इस शब्द के मायने हुए यज्ञ के दौरान शरीर पर धारण किया हुआ वस्त्र। यह वस्त्र मृगचर्म अथवा कपास का हो सकता था। माना जाना चाहिए कि यज्ञ की अग्नि के ताप से बचने के लिए यह व्यवस्था रही होगी मगर बाद में इस वस्त्र का रिश्ता यज्ञ करने के अधिकार और रुतबे से जुड़ गया।
यज्ञोपवीत की व्युत्पत्ति को अगर देखें तो इसके उपरोक्त भाव में आंशिक फर्क नज़र आता है। यह बना है यज्ञ + उपवीत से। इसका प्राकृत रूप हुआ जण्मोवअं जिसने हिन्दी मे जनेऊ रूप धारण किया। संस्कृत के उपवीत का शब्दार्थ है उपनयन संस्कार जो हिन्दुओं के प्रथम तीन वर्णों के लिए मान्य है। यह शब्द बना है वे धातु से जिसमें बुनना, गूंथना, बनाना जैसे भाव शामिल है। जाहिर है कि ये सीधे-सीधे वस्त्र से न जुड़ते हुए सूत्र यानी धागे से ज्यादा जुड़ते हैं और जनेऊ इसे ही कहते हैं। हिन्दू धर्मकोष के मुताबिक ब्राह्मण के लिए कपास, क्षत्रिय के लिए अलसी और वैश्य के लिए ऊन का जनेऊ होना चाहिए।
यज्ञ के अर्थ में देखें तो प्रायः हिन्दुओं के सभी धार्मिक संस्कारों में अग्निपूजा जुड़ी हुई है जिसमें हवन अनिवार्य है। इस रूप में गौर करें की यज्ञोपवीत जब अपने प्राचीन रूप से आगे बढ़कर द्विजों के प्रमुख उपनयन संस्कार का पर्याय बन गया तो इसकी महत्ता लगातार बढ़ती चली गई। कालांतर में अन्य वर्णों में भी यह होने लगा। मूलतः जनेऊ भी सामूहिक उपस्थिति वाला प्रमुख हिन्दू संस्कार बन गया । आज के दौर में चाहे जनेऊ पहनना कोई पसंद न करे मगर इसके जरिये होने वाले उत्सवी आनंद यानी जश्न से कोई वंचित नहीं रहना चाहता इसलिए ज्यादातर हिन्दू परिवारों मे विवाह योग्य पुरुषों का इस रस्म से गुज़रना अनिवार्य माना जाता है। ब्राह्मणों में तो खासतौर पर ।

आपकी चिट्ठी

सफर के पिछले पड़ाव यजमान तो डूबा है जश्न में ( जश्न-1) पर कई सहयात्रियों ने चिट्ठी लिखी। सर्वप्रथम दिनेशराय द्विवेदी, संजय , ममता, पल्लव, जोशिम, मीनाक्षी, संजीत और मनीष। आप सबने हमारी यजमानी भी देख ली । जश्न में हम डूबे रहे और आपको शुक्रिया तक न कह सके। क्षमा चाहते हैं। कुछ विवादी सुरों से विचलित होते लग रहे थे खुद को। मगर आप सब का ख्याल आया और फिर जुट गए।

8 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

लोग तो कहेंगे, लोगों का काम है कहना। छोड़ो बेकार की बातें। आप तो लगे रहिए अजित जी। चिट्ठाकारी में सभी तरह के स्पेसिमेन हैं। आप तो अपना काम किए जाएं। आप ने आज जनेऊ का उल्लेख किया है, मेरे लिए इस का अत्यन्त व्यक्तिगत महत्व है। हो सकता है इस का किस्सा कभी आप को अनवरत पर परोसूं।

Sanjay Karere said...

जो वंचित रह गए उन्‍होंने विवाद खडा़ करने का प्रयास किया. आप निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्‍ठ चयन हैं भाई जी; सफर जारी रखें. ऐसे जश्‍न अभी कई और मनेंगे.

मीनाक्षी said...

जनेऊ पर मेरी जानकारी बहुत कम थी आज विस्तार से जाना... फिर से जुट गए..इसके लिए धन्यवाद...

36solutions said...

कपडा हो सूत्र हो, चाहे कपास का हो या जूट का, हमें जो सिखाया गया है और मन व सनातन परम्‍परा नें उस तथ्‍य को स्‍वीकार भी किया है कि यज्ञोपवीतं परम् पवीतं ।

आपके ब्‍लाग का आज पहली बार अवलोकन किया, सृजन सम्‍मान के लिए शुभकामनाएं ।

Aarambha

दिलीप मंडल said...

सम्मान के लिए बधाई। शब्दों का कारवां चलता रहे।

Batangad said...

अजीत जी
आप जो काम कर रहे हैं उसे जारी रखिए। मैं अवधी शब्दों को संजोने की बहुत दिन से सोच रहा हूं। काम शुरू ही नहीं हो पा रहा है।

Unknown said...

काफी दिलचस्प जानकारी मिली , शुक्रिया..........

Anonymous said...

kya janeu pahnane ke bad kisi other cast vyakti ke sath khana kha sakte hei kya (example-: Rajput ke sath)

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