( संदर्भ के लिए कृपया पिछली पोस्ट ज़रूर पढ़ें। )
छैल छबीला, छैला, छैल बिहारी जैसे शब्दों की कड़ी में ही आता है एक और शब्द छमक छल्लो। छबीली, नखराली और नाजों-अंदाज वाली महिला के लिए छमक छल्लो शब्द की उत्पत्ति भी इसी
छवि > छइल्ल > छल्लो वाले क्रम से हुई है। बस, इसमें घुँघरू की छम-छम और जुड़ गई है। इस छम-छम से जो नाज़ो-अंदाज पैदा हो रहा है उसे किसी व्याख्या की ज़रूरत नहीं है।
चिकना, चॉकलेटी, प्लेबॉय
बदलते वक्त में छबीला या छैल छबीला जैसे शब्दों के साथ कुछ नकारात्मक भाव भी जुड़े और पुरुषों में कमनीयता, स्त्रैणता जैसे अर्थ भी इसमें समाहित हो गए। दरअसल यह हुआ एक अन्य शब्द के जन्म से। पूरबी हिन्दी में छैल-छबीला जैसा ही एक और शब्द प्रचलित है -छैल चिकनिया। इस शब्द का अर्थ भी सजीला, बना-ठना रहने वाला बांका जवान ही होता है। बस, चिकनिया शब्द उसमे इसलिए जुड़ गया क्यों कि सजीला दिखने के लिए क्लीन शेव्ड दिखना ज़रूरी है। अब दाढ़ी -मूंछ में मर्दानगी तलाशने वाले समाज में क्लीन-शेव्ड लोगों को हिकारत से तो देखा जाना ही था। कुलीनों की बात अलग थी, मगर आम समाज में उन्हें चिकनिया कहा जाने लगा। चिकनिया या चिकना शब्द बना है संस्कृत के चिक्कण से जिसका मतलब चमक, स्निग्ध, चर्बीला है। आज भी हिन्दी में चाकलेटी हीरो के लिए मुंबईया ज़बान में चिकना शब्द खूब सुनने को मिलता है। । आमतौर पर अंग्रेजी में जिस पुरूष को चाकलेट या चाकलेटी या प्लेबॉय कहा जाता है छैल-छबीला कुछ इन्हीं अर्थों में प्रचलन में आया था। हिन्दी के यशस्वी साहित्यकार पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र ने एक उपन्यास लिखा था चाकलेट। इसे अश्लील माना गया था । बताया जाता है कि गांधीजी ने भी इसे पढ़ा और उन्हें कहना पड़ा कि इसमें कुछ भी अश्लील नहीं है।
आपकी चिट्ठिया
नए साल के शुभारंभ पर लिखी पोस्ट बारिश के मौसम में आया नया साल पर कई साथियों की शुभकामनाएं मिलीं। सर्वश्री विजयशंकर, नीरज गोस्वामी, महर्षि, रजनी भार्गव, ज्ञानदत्त पाण्डेय , डिवाइन इंडिया , अफलातून, संजय, दर्द हिन्दुस्तानी, महावीर , लावण्या , प्रत्यक्षा , संजीत, मीनाक्षी और विमल वर्मा का हम शुक्रिया अदा करते हैं हौसला अफजाई और नए साल की बधाई के लिए ।
Wednesday, January 2, 2008
छमक छल्लो और छैल चिकनिया [ छवि-2]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:52 AM
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2 कमेंट्स:
अजित सर मुझे नहीं मालूम की हिन्दी पर आपकी इतनी अच्छी पकड़ कैसे हैं । अधिक आप मुझे मेरी हिन्दी को मजबूत करने में योगदान दें तो मैं आपका तहेदिल से आभारी रहूंगा ।
आपका
आशीष महर्षि
सभी बड़े नामो के ब्लॉग पर आपके कमेंट्स पढता हूँ.. भई हमारा न तो कोई बड़ा नाम है न कोई पहचान फ़िर भी ब्लॉग का दुनिया में एक छोटा सा अपना भी घोसला बना लिया है ..एक सवाल जेहन में कई बार उठता है की क्या नाम/पहचान/ और सब कुछ एक खास वर्ग के लिए है
और आपके कमेंट्स भी....
कुछ लिखा है कुछ लिखना है बाकि....
आपका स्नेह चाहूँगा...
अपना पता है-
www.shesh-fir.blogspot.com
डॉ. अजीत
शेष फ़िर.......
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