हिन्दुस्तानी उड़नतश्तरी जो बीते करीब नौ बरसों से कनाडा में पाई जाती थी और वहीं से शुभ संकेत ब्लागजगत पर भेज रही थी , अब लगातार हिन्दुस्तान में भी नज़र आती रहेगी। हाज़रीन समझ ही गए होंगे की हम समीर लाल की बात कर रहे हैं। उड़नतश्तरी का डेरा सोमवार को भोपाल में था।
समीर भाई रविवार को सीहोर आए थे। पंकज सुबीर जी ने वहां काव्य सन्ध्या का आयोजन किया और समीर जी ने इस मंगल अवसर को ऐसे थाम लिया जैसे स्पीलबर्ग की फिल्मों के एलियन अक्सर थामा करते हैं। भोपाल से सीहोर करीब चालीस किमी है और हमने भी वहां जाने का मंसूबा बांधा था, मगर तय नही किया था पर सुबीर भाई ने इस समाचार को बेसब्र रिपोर्टर वाले अंदाज़ में प्रसारित कर दिया। रविवार शाम सुबीर जी का फोन आया और उन्होने समीर जी से बात कराई । तय हुआ कि चूंकि समीर भाई को भोपाल होते हुए ही जबलपुर लौटना है इसलिए सोमवार को झीलों की नगरी में ही मुलाकात ठहरी। समीर जी ने फोन पर ही बता दिया कि वे अलसुबह ही हमें फोन कर देंगे। अब हम लगातार इंतजार करते रहे कि फोन आएगा , मगर नहीं आया। हारकर हमने ही जब फोन लगाया तो पता चला की सुबीर जी ने काव्यसंन्ध्या के बाद इस क़दर दाल बाफले खिलाए कि श्रीमानजी की नींद बारह बजे खुली।
खैर, समीर जी से उनके मुकाम मोटेल शीराज़ में मुख्तसर सी मुलाकात हुई। बड़े भले से और समृद्ध सेहत के प्राणी है समीर जी। कनाडा में नौ बरसों से है। उनसे जब पूछा कि आपका वर्तमान भूगोल कनाडा की देन है ? एक अच्छे भारतीय की तरह उन्होंने इसका आधा श्रेय अपनी जन्मभूमि को भी दिया। समीरजी अपने उड़नतश्तरी रूप में इस क़दर लोकप्रिय हैं कि सीहोर जैसी छोटे कस्बे में भी लोग उन्हें जानते है। कालेज की एक लड़की ने उन्हें बताया कि उन्होने आज तक उड़नतश्तरी नहीं देखी थी, मगर अब वो अपने घर और कालेज में सबको ज़रूर बताएगी कि उसने उड़नतश्तरी न सिर्फ देखी है बल्कि उसकी कविताएं भी सुनी हैं। समीर जी, ईर्ष्या हो रही है आपसे ।
समीरजी से बातचीत में कुछ ब्लागिंग से जुड़ी कोई गंभीर चर्चा नहीं हुई हमने जब पूछा कि ब्लागजगत में वे साधुवाद के जनक है मगर अब यह साधुवाद संस्कृति जबर्दस्त विवाद में आ गई है तो वे मुस्करा कर रह गए। अलबत्ता उन्होने इतना ज़रूर कहा कि वे ब्लागजगत में विवाद पसंद नहीं करते । उन्होंने बताया कि एक बार किसी पोस्ट पर विवाद होने की शुरूआत के चंद लम्हों के भीतर ही उन्होने वह पोस्ट हटा ली थी। उनका ऐसा ही रुख साधुवादी उपकरण के प्रति भी रहेगा या नहीं , इस पर बात नहीं हो पाई। अब वे मुंबई आ रहे हैं।
समीर जी ने एक अच्छा संकेत यह दिया कि वे भारत में बने रहने के बारे में गंभीरता से सोच रहे हैं और फिलहाल मार्च तक इधर ही डेरा है। उनके दोनो युवा पुत्र बहुत अच्छे तरीके से अमेरिका , कनाडा में सैटल हो गए हैं। अब समीर भाई को ससुर बनने की जल्दी है सो साथियों , तैयार हो जाइये एक बेहतरीन न्योते के लिए । छह महिने से साल भर के भीतर बैंडबाजे बज सकते हैं समीर जी के धाम जबलपुर में। समीर जी से बातें करते हुए वक्त तेजी से बीता और हमारे दफ्तर जाने का वक्त आ गया। चलने से पहले उन्होने हमारे साथ एक तस्वीर ली जो उनक साथ आए एक मित्र ने खींची। हमारे पास सिर्फ मोबाइल था सो यह तस्वीर जो यहां छापी जा रही है हमने एक हाथ समीर जी के कंधे पर रख, दूसरे से झट खींच ली। कुछ इफैक्ट्स वगैरह डाल कर इसे छापने लायक बना लिया है।
समीर भाई, आपसे मिलकर अच्छा लगा। कुछ बातें सार्वजनिक कर दी हैं, बुरा न मानियेगा। आप जिस आत्मीयता, स्नेह से मिले उसके लिए साधुवाद-साधुवाद...सम्पर्क-संवाद होता रहेगा।
Tuesday, January 8, 2008
साधुवाद-साधुवाद समीर जी.....
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:55 AM
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4 कमेंट्स:
तो आपने सीहोर से उड़ी उड़न तश्तरी को भोपाल में देख ही लिया । अच्छा आयोजन रहा अजीत जी सीहोर में । आप और होते तो आनंद ही आ जाता । खैर अब तो सूत्र खुल ही गए हैं आपसे भेंट होती ही रहेगी । शीघ्र ही आपको आपकी जन्म भूमि पर आमंत्रण दूंगा आशा है आप और आदरणीय भाभी साहिब अब वाइरल से मुक्त हो गये होंगें ।
सुबीर साहब की टिप्पणी से मालूम हुआ कि आपका स्वास्थ्य ठीक नही। जल्द ही स्वस्थ्य हो जाएं!!
चलिए यह अच्छा हुआ कि आपने उड़नतश्तरी से भेंट कर ली।
यदि हिंदी साहित्य की तरह ही आगे चलकर जब भी हिंदी चिट्ठाकारिता का इतिहास लिखा जाएगा वर्तमान समय उड़नतश्तरी के कारण ही साधुवाद काल कहलाएगा
और हां साधुवाद युग की समाप्ति तो असंभव ही है। यह तो सर्वकालिक है।
अभी अभी सुबीर जी के ब्लोग पर सीहोर के सम्मेलन का हाल चाल पढा और फिर तुरंत ही आपसे भी खबर मिली आपकी और समीर जी की मुलाक़ात की.
कुछ जानकारियां सार्वजंनिक करने हेतु साधुवाद.
सोच रहा हूं कि अब पछताए होत क्या जब उड़नतश्तरी उड़ गई..... चलिए आप ही मिल लिए यही बढि़या रहा.
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