यज्ञ अर्थात् अग्निपूजा संस्कार से उद्भूत यज्ञोपवीत और उपनयन संस्कारों के बारे में सफर की पिछली कड़ियों में चर्चा हुई । इस कड़ी में जानते हैं इसी संस्कार के एक अन्य नाम मुंज और नवजोत के बारे में ।हिन्दू संस्कारों में उपनयन, मुंज या यज्ञोपवीत विद्यारंभ संस्कार से जुड़ा है। इसके तहत पुराने ज़माने से ही बटुक को गायत्री उपदेश दिया जाता है। मराठीभाषी समाज में उपनयन या यज्ञोपवीत संस्कार इन नामों से भी जाना जाता है मगर इसका सर्वाधिक प्रचलित नाम है मुंज । मुंज यानी एक खास तरह की घास की करधनी जिसे मेखला की तरह बटुक की कमर में बांधा जाता है। मुंज बना है संस्कृत के मौंज से जिससे ही हिन्दी में बना मूंज शब्द जिससे रस्सी बुनी जाती है। जनेऊ, उपनयन या यज्ञोपवीत के वक्त इसे पहनना सबके लिए अनिवार्य कहा गया है चाहे वह ब्राह्मण हो या वैश्य। मुंज के अलावा मूर्वा नामक एक वृक्षलता का भी उल्लेख है जिससे मेखला बनाई जाती थी । गौरतलब है इस लता का सर्वाधिक व्यावहारिक उपयोग प्राचीनकाल में धनुष की प्रत्यंचा बनाने में किया जाता था। धनुष की प्रत्यंचा से से तान कर छोड़ा गया तीर जिस तरह सीधे लक्ष्य के वेधता है वैसे ही गुरू की दीक्षा रूपी कमान से निकल कर शिष्य भी जीवन लक्ष्यों को प्राप्त कर ही लेता है। शायद यही प्रतीक रहा होगा मूंज या मुर्वा की मेखला या करधनी बनाने के पीछे।
दिलचस्प बात यह कि अग्निपूजा से जुड़े इस प्रमुख संस्कार का संबंध प्राचीन ईरानियों अर्थात् जोरास्ट्रियन (जरथुस्त्रवादियो) से भी है। उनके यहां भी ऐसी ही क्रिया होती थी जिसे अब
नवजोत कहा जाता है। नवजोत पारसियों अथवा जरथुस्त्रवादियों की एक परम पवित्र रस्म होती है जिसे अग्नि की उपस्थिति में किया जाता है। दरअसल यह जनेऊ क्रिया ही है। इस रस्म के बिना पारसी कुल में जन्मा कोई भी व्यक्ति पारसी नहीं कहला सकता । नवजोत का मतलब भी यही है नव यानी नया और जोत यानी पूजा , भक्ति । इस तरह नवजोत का अर्थ हुआ नया भक्त । अर्थात पंथ का नया सेवक । इसके बिना पारसी धर्म में प्रवेश नहीं माना जाता। इसके अंतर्गत सदरः नाम का एक विशेष अंग वस्त्रम और कश्ती नाम का एक धागा जो जनेऊ जैसा ही होता है , आजीवन धारण करना अनिवार्य होता है । ब्राह्मणों में भी जब तक बच्चे का जनेऊ नहीं हो जाता उसे ब्राह्मण नहीं समझा जाता है। भारतीय पारसियों के अलावा नवजोत रस्म नौजूद के नाम से आज भी ईरानी जरथुस्त्रवादियों में प्रचलित है। नौजूद और नवजोत की समानता गौरतलब है। इनका मूल अवेस्ता ही है जो संस्कृत की बहन है।
आपकी चिट्ठी
सफर के पिछले पड़ाव गुरू के पास जाना ही उपनयन पर कई साथियों की चिट्ठियां मिलीं। इनमें सर्वश्री संजय, दर्द हिन्दुस्तानी, संजीव तिवारी , मीनाक्षी , इष्टदेव सांकृत्यायन, नारायणप्रसाद, जाकिर अली रजनीश, दिनेशराय द्विवेदी और संजीत त्रिपाठी हैं। आपका आभार। नारायणप्रसाद जी ने इस पोस्ट में जा रही एक चूक की तरफ ध्यान दिलाया । उनका आभारी हूं। और सावधानी बरतने का प्रयास करूंगा। भूल सुधार ली गई है। दर्द हिन्दुस्तानी जी भी सफर के हमराही बन गए हैं। उनका स्वागत है और उन्हें सफर से जोड़े रखने का प्रयास रहेगा। जाकिर अली रजनीश का भी स्वागत है।
Wednesday, January 16, 2008
प्रत्यंचा से छूटे तीर सा हो लक्ष्यवेध [जश्न-4]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:19 AM
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3 कमेंट्स:
नौजूद से मिलता जुलता एक शब्द नौशीर कहीं पढ़ा था. क्या आप बता सकते हैं कि यह पश्तो से संबंधित है और इसका अर्थ नव हिम ही है? जानना चाहता हूं. जरथ्रुस्त्र और बटुक. ये दोनों शब्द काफी समय बाद पढ़े.
ये पतंग का मांजा भी मुंज या मूंज का भाई-बन्द है क्या?
चलिय वनस्पति का जिक्र तो हुआ। मुंज का वैज्ञानिक नाम Saccharum munja है और यह गन्ने का दूर का वैज्ञानिक रिश्तेदार है। आप की-वर्ड मे इस अंग्रेजी नाम को डाल सकते है जिससे यह पोस्ट वैज्ञानिको तक भी पहुँच सके। मूर्वा के विषय मे कुछ और जानकारी भी देवे, यदि सम्भव हो तो।
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