Friday, January 25, 2008

लोक क्या है ?


लोककला, लोक संस्कृति , लोकाचार जैसे तमाम प्रचलित शब्दों में शामिल लोक शब्द वस्तुतः क्या है। इसकी अर्थवत्ता व्यापक है । विभिन्न समूदायों के संदर्भ में जब संस्कृति शब्द का प्रयोग होता है तो उसके साथ काल का उल्लेख महत्वपूर्ण हो जाता है। संस्कृति के साथ पुरातनता अनिवार्य तत्व नहीं है। यह प्राचीन भी हो सकती है आधुनिक भी हो सकती है। संस्कृति निरंतर परिवर्तनशील है। मगर इसके साथ जब लोक शब्द जुड़ता है तो स्वतः ही परंपरा का स्मरण होता है। लोक संस्कृति में पुरातनता और परंपरा दोनों का होना ज़रूरी है।
लोक शब्द सस्कृत धातु लोक् से जन्मा है जिसका मतलब होता है नज़र डालना, देखना अथवा प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना । इससे बने संस्कृत के लोकः का अर्थ हुआ दुनिया , संसार। मूल धातु लोक् में समाहित अर्थों पर गौर करें तो साफ है कि नज़र डालने ,देखने अथवा प्रत्यक्ष ज्ञान करने पर क्या हासिल होता है ? जाहिर है सामने दुनिया ही नज़र आती है। यही है लोक् का मूल भाव। लोक् से जुड़े भावों का अर्थविस्तार लोकः में अद्भुत रहा । पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी प्राणियों मे सिर्फ मनुष्यों के समूह को ही लोग कहा गया जिसकी व्युत्पत्ति लोकः से ही हुई है। लोकः का अर्थ मानव समूह, मनुष्य जाति, समुदाय, समूह, समिति, प्रजा, राष्ट्र के व्यक्ति आदि है।

तीन नहीं चौदह लोक

संसार के अर्थ में लोक ने स्थूल भाव ग्रहण किया । लेकिन जब इसके प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करने वाले अर्थ पर मानव ने अमल किया तो कई परिकल्पनाएं भी होने लगीं। तीन लोकों की कल्पना हुई स्वर्ग लोक, पृथ्वीलोक और पाताल लोक । धर्मग्रंथ इससे भी आगे की बातें कहते हैं। विस्तृत वर्गीकरण के मुताबिक तो चौदह लोक हैं। सात तो पृथ्वी से शुरू करते हुए ऊपर और सात नीचे। ये हैं भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक , तपोलोक और ब्रह्मलोक। इसी तरह नीचे वाले लोक हैं-अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल , महातल और पाताल।
भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से गौर करें तो लोक् का रिश्ता अंग्रेजी के लुक से भी जुड़ता है। लोक् धातु का मूलार्थ ही देखना है और अंग्रेजी के लुक का मतलब भी देखना है। अंग्रेजी का लुक प्राचीन जर्मन से आया है। यही बात लोचन में भी है। लोच् शब्द से बना है लोचन जिसमें भी देखने जिसका मतलब होता है आंखें जो देखने का काम करती हैं। लोकः से बने कई शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं। जैसे लोकतंत्र, लोककथा, लोकगाथा, लोकानुराग, लोकोदय, लोकपाल, लोकमत, लोकप्रिय, लोकनाथ आदि। यह सूची काफी लंबी हो सकती है।

श्रम संस्कृति में लोक

अब अगर लोक् मे समाहित देखने , ज्ञानार्जन जैसे अर्थों पर गौर करें तो सबसे पहले मनुष्यके सामने प्रकृति के जो रूप आए वह थे अग्नि, वायु, पृथ्वी, वर्षा, सूर्य, पानी , प्रकाश, आकाश , मेघ, बिजली, वनस्पति, पशु आदि। इसके अतिरिक्त मनुष्य के प्रत्यक्ष ज्ञान के दायरे में जो कुछ आया मसलन श्रम की विवशता, श्रम से जुडे़ उत्पादन का महत्व और उत्पाद की प्राप्ति, श्रम से जुड़े कला तत्व का ज्ञान, कला का कुशलता से मेल , कला का उत्पादन से मेल, कला से उत्पन्न रंजकता। इन तत्वों का मेल जब मनुष्य के जीवन में रच-बस गया तो जो जीवन शैली थी उसने संस्कृति का रूप लिया । दैनंदिन की कार्यप्रणाली अलग संस्कृति बनी और किन्हीं विशिष्ट अवसरों पर अपनाई जाने वाली शैली और तौर तरीके अलग संस्कृति बनीं। ये विशिष्ट अवसर ही पर्व कहलाए और शैली लोकाचार में ढल गई। लोक संस्कृति के मूल में यही सारी चीज़ें समायी हैं।

आपकी चिट्ठी

सफर के पिछले पड़ाव मैं पीता नहीं हूं, पिलाई गई है पर ज्ञानदत्त पाण्डेय, संजय, दिनेशराय द्विवेदी, ममता, संजीत त्रिपाठी और शिवकुमार मिश्र की चिट्ठियां मिलीं। आपने सबने इसका मज़ा लिया सो हमें भी आनंद आ गया। आभारी हूं।

11 कमेंट्स:

Anonymous said...

बेहतरीन पोस्ट. आप जो कह रहे हैं उसका मतलब है कि आलोक भी लोक से ही बना है, फिर उसी से बना है अवलोकन आदि. अँगरेज़ी का लुक तो आपने बता दिया, भोजपुरी में दिखने को लौकना कहते हैं, वाक्य प्रयोग--लौक नहीं रहा है क्या, यानी दिख नहीं रहा है क्या. लोक और लौक में ज्यादा अंतर नहीं है, भाषाशास्त्रीय दृष्टिकोण तो आप ही बताएंगे. अब ये बताइए कि लोक अगर स्थान,संसार के संदर्भ में इस्तेमाल हो रहा है तो अँगरेज़ी लोकल (स्थानीय) शब्द कहीं जुड़ा तो नहीं, थोड़ा आलोकित करिए, मतलब रोशनी डालिए.

अनामदास

Tarun said...

अजित जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपने मेरा एक काम बहुत आसान कर दिया। मैं अपनी उत्तरांचल की साईट में लोकगीत का मतलब बताने के लिये लिखना चाहता था। आपके इस लेख से मेरा काम आसान हो जायेगा, आपसे अनुमति चाहता हूँ कि जब भी मैं वो लिखूँ आपके इस लेख का कुछ अंश लेने की ईजाजत चाहूँगा।

दिनेशराय द्विवेदी said...

समझा। अलौकिक का अर्थ काल्पनिक या चिन्मूर्त है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

और अजित जी ,
आपका लिखा भी " लोकमान्य" होता जा रहा है :)
आलेख का , पहला पेरा, बहोत पसंद आया -- यूँ ही लिखते रहें ..

Unknown said...

लेख बहुत पसंद आया ,वैसे भास्कर में पढ़ लिया था लेकिन ब्लाग पर पढ़ने का मजा ही कुछ और है। मेरा काफी ज्ञानवर्द्धन हुआ, खासकर १४ लोकों के नाम जानकर । चित्र भी मनभावन हैं।

mamta said...

लोकों की अच्छी और सम्पूर्ण जानकारी मिल गयी।

पंकज सुबीर said...

भास्‍कर में भी देख्‍ लिया था आपका लेख और वहां से ही सारी जानकारी मिल गई थी ।

Sanjeet Tripathi said...

वाकई एक बेहतरीन पोस्ट!!

anuradha srivastav said...

ज्ञानवर्द्धक लेख.........

Unknown said...

अजीत जी - लोक के लोक वृतांत [ :-)] के अलावा, उससे अधिक उसके चेतन होने की याद दिलाने का भी बहुत शुक्रिया. [भास्कर के माध्यम से उम्मीद है पाठक भी संस्कृति को जड़ न बनायेंगे]. वैसे 'लोक' का कभी-कभी यश/ कीर्ति के सन्दर्भ में और कभी-कभी दिशा (दिक् ) के अर्थ से भी प्रयोग में देखा है. भोजपुरी में जो अनामदास "लौक" की बात कर रहे उसका दृष्टान्त शायद "लौकिक / पारलौकिक" से हिन्दी में जिंदा है - सादर - मनीष [ पुनश्च : लोकाना आपका काम, लोकना हमारा ]

Munna Khalid said...

लोक शब्द की बहतरीन जानकारी देने के लिए धन्यवाद,,,,,अजित सर,,,,,

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

Post a Comment


Blog Widget by LinkWithin