माँ के जीवनदायी अर्थों पर गौर करें तो उसमें भी अम्, अम्ब, मम् की छाया नज़र आती है। सृष्टि में जीवन की उत्पत्ति पानी में ही हुई है इसी लिए जीवन-प्राण जैसे लक्षणों के लिए ज धातु की कल्पना की गई।इसी लिए जीवन में, जल में जन्म वाचक यह ज नज़र आता है। कहने की ज़रूरत नहीं कि माता का एक पर्याय जननि भी है जिसका अर्थ जन्म देने वाली इसी ज धातु से है।
( इस पर विस्तार से सफर के किसी और पड़ाव पर चर्चा होगी। )
जल के लिए संस्कृत में एक शब्द है अम्बु । इसका जन्म हुआ है अम्ब् नामक धातु से । इसके दो ही अर्थ हैं। एक तो शब्द करना (अम्, मम्, हुम् ) दूसरा है जाना। इस जाना में अम्बु अर्थात जल का प्रवाही भाव भी छुपा है। अम्ब् से ही बने हैं अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका जैसे शब्द जिसमें माता, दुर्गा, भवानी, देवी जैसे अर्थ समाये हैं। समझा जा सकता है कि जल और अम्बु में क्या रिश्ता है, पानी का , प्राण का जन्मदायी जननि का।
स्त्री की सृजनकारी, जन्मदात्री क्षमताओं के कारण ही उसके लिए भाषा मे आदरसूचक शब्दों का निर्माण हुआ । संस्कृत धातु प्र एवं पृ के विस्तार सूचक भावों से पृथ्वी शब्द जन्मा । पृथ्वी जो सुविस्तृत है, विशाल है। बढ़ाने वाली है। बीज को, धन को , तन को। कहने की ज़रूरत नहीं कि पृथ्वी को वैदिक युग से ही दैवी रूप मिला है, माता का दर्जा दिया गया है। भूलोक के अलावा पृथ्वी का अर्थ हुआ ऐश्वर्य को फैलाने वाली, कीर्ति को फैलाने वाली ।
पृथ्वी अर्थात् दैवी के दो रूप प्रमुख हैं एक उदार दूसरा विकराल। उदार रूप में ही दैवी पृथ्वी सबकी माता है जो सबको धन धान्य देती है ,पालन पोषण करती है। इस रूप में इसके कई नाम हैं जैसे वसुधा, वसुमति, वसुंधरा, धरती माता, अम्बुवाची(वर्षा सूचक लक्षणों से युक्त भूमि) और ठकुरानी इत्यादि। वसु का अर्थ होता है धन दौलत अथवा समृद्धि। पृथ्वी के गर्भ में जितनी दौलत समायी है इसीलिए उसे वसुमति अथवा वसुधा कहा गया है। गर्भस्थ शिशु भी स्त्री के लिए दौलत होता है इसीलिए वसु शब्द का अर्थ शिशु भी होता है। जन्म देने के बाद संतान ही माँ के लिए ऐश्वर्य समान होता है। काली, देवी, दुर्गा, भवानी, कपालिनी, चामुण्डा आदि भी माँ के ही रूप हैं मगर ये सभी रूप माँ को शक्तिरूपिणी दिखाते हैं अर्थात उसके विकराल रूप को दिखाते हैं जिसे अपनी सृष्टि पर आए संकट से रक्षा की खातिर धारण करना पड़ता है। ।
माँ के निर्माणसूचक रूप को दर्शाने वाला शब्द है धात्री जिसका अर्थ हुआ जो वसुधारण करे , पालन करे, निर्माण करे। स्त्री अपने गर्भ में शिशु को धारण करती है , उसका निर्माण करती है। बाद में रूढ़ अर्थों में धात्री से बने धाय शब्द के मायने थोड़े बदल गए औ र इसका अर्थ जन्मदेने वाली नहीं बल्कि पालने पोसने वाली माता अर्थात उपमाता से जुड़ गया। धायमाँ शब्द यही तो कहता है। पर मूलतः धाय में माँ का ही आशय रहा होगा, इसकी गवाही अनेक इलाकों में माँ के लिए धी, धीय, धीया जैसे पदों से भी मिलती है। ये सब रूप धात्री से ही बने हैं। पृथ्वी का एक अन्य पर्याय धारयित्री भी है।
आपकी चिट्ठियां
सफर की पिछली कड़ी सकल जग माँ ही पर सर्वश्री विजयशंकर जी, बोधिसत्व, संजय और विनयजी की प्रतिक्रियाएं मिलीं। आप सबका शुक्रिया।
विजयजी, अच्छा लगा कि आपने प्रियवर के चलन पर
बताया । शील जी के प्रियवर के बारे में और जानने को उत्सुक हूं। जल्दी ही अपने ब्लाग पर कुछ लिखिएगा। सबका स्नेह सिर माथे पर रखता हूँ भाई।
संजयजी, नुक्ताचीनी तो दुनिया में चलती रहेगी। नुक्ता प्रसंग भी दशकों पुराना है। हिन्दी उर्दू फारसी के घालमेल के बाद से ही यह चल रहा है। तब भी नुक्तों पर उंगली उठती थी इसीलिए नुक्ताचीं जैसा शब्द जन्मा। मस्त रहिए। हमें हर किस्म की अति से बचना है, बचाना है। भाषा तो निर्मल दरिया है। जितना समाए उतनी ही समृद्धि आएगी। मराठी में जितने फारसी लफ्ज है उतने देश की किसी भाषा में नहीं होंगे , ऐसा लगता है मुझे। मगर मराठी में फारसी का उच्चारण और लिखने का अंदाज़ है फार्शी । अब कर लीजिए शुद्धता की बात !
बोधिभाई, आभारी आपका हूं कि आपने एक पुण्यकर्म करा लिया मुझसे। अब आपके हवाले है यह आलेख । जैसा चाहें दुरुस्त करें, आपका हक है।
विनय जी, बहुत अच्छी बात पूछी है। मकार के लोप का व्याकरणिक स्पष्टिकरण तो नहीं दे पाऊंगा मगर यह आया अम्ब् से ही है जिसका मतलब माँ और पिता दोनों होता है। म का लोप हो गया। कुछ जान पाऊंगा तो ज़रूर बताऊंगा।
11 कमेंट्स:
अति उत्तम. आपकी मस्त रहने वाली सलाह तो पहले ही गांठ से बांधे बैठा हूं. हां अमल करना इतना भी आसान नहीं. अति आपके रहते कैसे हो्गी बड़े भैया... मां के जीवनदायी अर्थों पर प्रकाश डालने के लिए धन्यवाद. यह एक और बेहतरीन पड़ाव साबित हो रहा है.
आज तो आप ने शब्दों की बौछार कर दी है। हाँ ऊपर के दोनों चित्र मोहक हैं।
वरुण कैसा है?
jaan kar ..padhkar...achha lagaa...dhanyavaad
माँ के विभिन्न शब्दों और उनके अर्थों को पढ़कर अच्छा लगा।
इस लेख श्रृंखला के मूल हेडिंग "अम्मा में समायी दुनिया" के बाद और कुछ कहने के लिए बचता ही नही है मेरी नज़र मे तो। और इस हेडिंग को ही मेरी प्रतिक्रिया मानी जाए क्योंकि इतना बड़ा तो कभी हो हीं नही सकता मैं कि मां को पारिभाषित कर सकूं।
शब्दों के संसार से इसी तरह परिचय कराते रहिये।
शब्दों के संसार से इसी तरह परिचय कराते रहिये।
बहुत बढिया , माँ के विभिन्न शब्द-स्वरुपों को सुन्दरता से उकेरा है। "अम्मा में समायी दुनिया" शीर्षक सार्थक है।
अजीत जी - अरबी में भी जल / पानी को मा, माउ, माइ कहते है - मनीष
या देवि सर्व भूतेषु, मातृ रुपेण सँस्थिता --
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