ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला की पंद्रह कड़ियों में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह और काकेश को पढ़ चुके हैं। इस बार मिलते हैं दुबई में निवासी मीनाक्षी धन्वन्तरि से । मीनाक्षी जी प्रेम ही सत्य है नाम का ब्लाग चलाती हैं और चिट्ठाजगत का एक जाना पहचाना नाम है। हिन्दी के परिवेश से दूर रहते हुए भी वे कविताएं लिखती हैं खासतौर पर उनके हाइकू बहुत सुंदर होते हैं जिन्हें उन्होने त्रिपदम् जैसा मौलिक नाम दिया है। तो शुरू करतें बकलमखुद का पांचवां चरण और उन्नीसवीं कड़ी जिसमें मीनाक्षी जी ने ब्लागजगत की आभासी दुनिया को मधुशाला बताया है और इसमें धकेलने के लिए अर्बुदा को जिम्मेदार माना है-
ब्लॉग जगत की मधुशाला
सन 1999 जुलाई अगस्त में पहली बार याहू और हॉट मेल की आइडी बनाई. हमने ही नहीं बल्कि पूरे परिवार ने निश्चय किया कि अब से फोन करने की बजाय एक दूसरे को मेल करेंगें. यह आईडिया डैडी का था जो फोन पर पैसा खर्च करने के बजाय मेल से और फिर चैट और वैबकैम के ज़रिए विदेश में बैठे अपने बच्चों से बात करना चाहते थे और देखना भी चाहते. फैमिली से चैट करते करते हम पूरी दुनिया से चैट करने के आदी हो गए. कीबोर्ड पर जब तक उंगलियाँ कुछ देर थिरक न लें , हमें चैन न आता. कुछ समय बाद अंर्तजाल पर अभिव्यक्ति और अनुभूति जाल पत्रिकाएँ मिलीं. पहली बार अनुभूति में अपनी कविताएँ भेजीं. पूर्णिमा जी की मदद से सुषा में हिन्दी लिखना सीखा. उसी जाल पत्रिका में किशोरों के लिए किशोर कोना बनाया लेकिन दुख है कि अब तक बच्चों को उस कोने से जोड़ न पाए. कोशिश अब भी कर रहें हैं. [ऊपर की तस्वीर में हमारे साथ दाएँ से बाईं ओर पूर्णिमा जी, बेजी, अर्बुदा और स्वाति हैं और नीचे की तस्वीर में अनिता जी और आशीष महर्षि हैं]
उसने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी!
सच कहें तो अगस्त 2007 से पहले तक बिल्कुल पता नहीं था कि हिन्दी में भी ब्लॉगिंग होती है. एक दिन बातों ही बातों में, अर्बुदा जो ब्लॉग़र ही नहीं मेरी प्यारी दोस्त भी है, ने इस बारे में चर्चा की और अपना ब्लॉग मेरे हैं सिर्फ पंख दिखाया और समझाया कि कैसे हम भी अपना एक ब्लॉग बनाएँ. फिर क्या था हमें ब्लॉग जगत की मधुशाला में ढकेल दिया. खुद तो फुर्र से उड़ गईं और हमें उन गलियों में छोड़ दिया. हम ऐसे बहके कि फिर बाहर आने का रास्ता ही भूल गए. पुराने दिनों को याद करके अर्बुदा को लगता है कि उसने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है. पहले हम पूरे होशोहवास में मस्ती करते थे और अब हम वहाँ अर्बुदा के साथ हैं तो ध्यान हमारा यहाँ है.
संजीत मिले सबसे पहले...
आभासी दुनिया के मित्रों में सबसे पहले संजीत जी से मुलाकात हुई जीटॉक पर, मशीन के इस पार से उस पार के अपनेपन ने ब्लॉग जगत से अच्छा परिचय करवा दिया. अर्बुदा ने चिट्ठाजगत(मयखाने) में पहुँचाया तो संजीत जी ने ब्लॉगवाणी में. आज हम इन्हीं दो मित्रों की बदौलत यहाँ दिखाई दे रहे हैं. फिर बेजी मिलीं जिनसे दुबई में एक मुलाकात हुई तो फिर सिलसिला ही बन गया. हरी मिर्च के जोशी जी जाने माने ब्लॉगर हैं लेकिन उनकी पत्नी मोना हमारी अच्छी फोन-दोस्त बन गई हैं. अपने देश में मिले हमें ब्लॉग जगत के दो धुरन्धर ब्लॉगर. अनिता दी और आशीष महर्षि. दोनो से मिलकर ऐसा लगा कि जैसे बरसों से जानते हैं. मुम्बई के बाकि धुरन्दर ब्लॉगर्ज़ से मिलने की तमन्ना दिल में रह गई. हर ब्लॉग अपने आप में अपनी ही खासियत लिए हुए दिखता है. एक ब्लॉग से दूसरे ब्लॉग पर जाने का ऐसा नशा हुआ कि जहाँ न जाने की ताकीद होती है, वहाँ भी चुपके से चले जाते हैं. कुछ चिट्ठों पर हम रोज़ ही ताँक-झाँक करते हैं. ज्ञान जी की मानसिक हलचल मन में उठते कई प्रश्नों को शांत करती है. पंकज अवधिया जी की कविता हो या जड़ी बूटी से जुड़ा लेख... पढ़ना नहीं भूलते... अनिल रघुराज हिन्दुस्तानी की डायरी के नए नए पन्ने हमारे सामने खोल देते हैं. समीर जी की उड़न तश्तरी कहाँ कहाँ की सैर नहीं कराती. अभय जी की एक पोस्ट 'रसोई और रिश्तों का रस' ने हमें बहुत प्रभावित किया था.
और ये है आभासी दुनिया के साथी...
शब्दों का सफर मे अजित जी शब्दवीर से लगते हैं जिनके पीछे पीछे हम इस सफर में चलते हुए ज्ञान और आनन्द दोनो पाते हैं. अध्यापन के दिनों में हिन्दी पढ़ाते हुए शब्द विचार पढ़ाते थे, नए नए शब्दों की उत्पत्ति और रचना की व्याख्या की जाती थी. प्रकृति से प्यार करते हुए अपने पर्यावरण को किस तरह बचाया जाए, इस बात को समझाने के लिए बच्चों को क्लास-रूम से बाहर खुले आकाश के नीचे मैदान में ले जाकर पढ़ाती तो बच्चे हरी घास पर अपने आप ही जूते उतार देते. पर्यावरण दिवस पर आयोजित प्रतियोगिता में हमारी कक्षा हमेशा प्रथम स्थान लेती. पर्यानाद हमें पुरानी यादों से जोड़े रखता था लेकिन आजकल वहाँ खामोशी सी है.
छत्तीसगढ़ का गौरव संजीव तिवारी आरम्भ करते हैं तो आवारा बंजारा बन संजीत जी हमें भी वहीं ले जाते हैं. जोगलिखी के संजय पटेल के कई लेख व्यवहार कुशलता की याद दिलाते हैं. उन्मुक्त जी की बेटी की पाती जब भी पढ़ते हैं तो बेटी पाने की लालसा जाग जाती है. बोधि जी की विनय पत्रिका में आठ दिन से जलते दिए की पोस्ट याद आए तो भानी बिटिया की याद आना भी स्वाभाविक हो जाता है. लावण्या जी का भोला अंतर्मन और रंजू की भावुक कलम से लिखा पढ़ना अच्छा लगता है, खासकर अमृता प्रीतम पर लिखा हुआ. घुघुती बासुती जी की 'तिनकानामा' और अनिता जी की 'खुली वसीयत' बहुत अच्छी कविता लगी.
जब अज़दक की दुनिया में जाते हैं या उनके बनाए कार्टून देखते हैं या आलोक जी की अगड़म बगड़म समझने की कोशिश करते हैं तो अपने लिए बस एक ही कहावत याद आती है, बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद और बस मुँह लटकाए लौट आते हैं. इसी स्वाद को पाने के लिए बेजी और प्रत्यक्षा के ब्लॉग पर जाते हैं.
जब कुछ समझ नहीं आता तो राजेन्द्र त्यागी जी का ओशो चिंतन और दीपक भारतदीप जी के ब्लॉग पढ़ते हैं और मन को शांत करते हैं. काकेश जी की परुली और आशीष की परुनिसा उनके ब्लॉग पर खींच ले जाती है. रवीन्द्र प्रभात जी और नीरज जी की गज़लें भी बड़ी गहरी होती हैं, गज़ल सीखने का मन हो तो पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर चले जाते हैं.
अनुराधा जी का अंर्तमन में संस्मरण कहने की शैली प्रभावित करती है. अपने घर की आभा और कंचन का ह्रदय गवाक्ष भी मन को मोह लेता है. सुनिता के ब्लॉग मन पखेरु उड़ चला में 'है कौन जिसे प्यास नहीं' कविता पसन्द आई. संगीत का नशा चाहिए तो इरफ़ान की टूटी बिखरी, रेडियोनामा , सुखनसाज़ , गीतों की महफिल , मनीष , मीत और पारुल के ब्लॉग पर पहुँच जाते हैं. .. तकनीकी ज्ञान के लिए हम रवि रतलामी जी, देवाशीष जी और जीतू जी का पन्ना खोलते हैं. सागर जी के ब्लॉग पर दस्तक देते हैं. कानून की जानकारी के लिए द्विवेदी जी का ब्लॉग तीसरा खम्बा देख आते हैं. शास्त्री जी सारथी के रूप में राह दिखाते ही रहते हैं.
फुरसतिया में माँ जी के मधुर गीत ने मोहित कर लिया था. हमें तो एक भी लोक गीत ज़ुबानी याद नहीं. पूर्णिमा जी का ब्लॉग चोंच में आकाश पढ़ते हुए अनुभूति और अभिव्यक्ति पर न जाओ, यह सम्भव नहीं. महेश परिमल के लेख तो संवेदनाओं को पंख लगा देते हैं. हर्ष जी का बतंगड़, रंगकर्मी, स्वप्नदर्शी, स्वप्नरंजिता और जोशिम जी की हरी मिर्च की अपनी ही खासियत है. हिन्दयुग्म एक ऐसा महल है जिसे सुन्दर और मज़बूत बनाने में कई नींव की ईंट की तरह काम कर रहे हैं.
ब्लॉग जगत की विशेषता यह है कि बेरोक टोक हम बिना इजाज़त किसी भी ब्लॉग पर जा सकते हैं. चाहे वह रचना का ब्लॉग हो , सुजाता का नोटपैड हो, नीलिमा का लिंकित मन हो या मनीषा की बेदखल की डायरी हो. चोखेरबाली का तेजस्वी रूप देख कर खुश होते हैं तो नारी ब्लॉग भी वैसा ही दिखाई देता है.
एक बात तो निश्चित रूप से कही जा सकती है कि ब्लॉग जगत अपना घर परिवार सा ही लगता है. सबके नज़रिए अलग अलग हो सकते हैं लेकिन दिशा सबकी एक ही ओर जाती है, विकास का भागीदार बनना.
अजित जी, शब्दों के सफर में हमारे नाम का पड़ाव डालने का पूरा श्रेय आपको जाता है. कुछ वक्त के लिए कुछ हमसफ़र इस पड़ाव पर रुके, सबका तहे दिल से शुक्रिया. [समाप्त]
[साथियों, मीनाक्षी जी का ब्लागयायावरी का दायरा बहुत व्यापक है। हम चाहते हुए भी उनकी पसंद के ब्लागों के हाईपरलिंक नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि ये बहुत वक्तखपाऊ काम है। इसे अन्यथा न लें ]
Tuesday, April 22, 2008
अर्बुदा ने धकेला इस मायालोक में... [बकलमखुद-19]
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22 कमेंट्स:
बहुत ख़ूब! सिलसिला बनाए रखिये. अच्छा लग रहा है ब्लॉग लेखकों के बारे में थोड़ा तफ़सील से जानकर. आपकी यह पहल रंग ला रही है.
इस लेख में 'ब्लॉगजगत की मधुशाला' शीर्षक का कलर बैकग्राउंड में मर्ज हो गया है. कंट्रास्ट रखेंगे तो पढ़ने में सुविधा होगी. धन्यवाद अजितजी!
ब्लॉगिंग में सबसे बढ़िया तरीका है - ढ़ेर सारे लोगों को लिंक करना। मीनाक्षी जी को यह बखूबी आता है। और यह मंजे ब्लॉगर की निशानी है।
mMinaxi ji,
Aapka safar bahut pasand aaya -
mera naam bhee link kerneke liye Shukriya !
Jaisa Gyan bhai sahab ne kaha,
" aap ek nihayat khoobsoorat dilwalee , manjee huee Blogger to hain sath sath ek utkrusht Insaan, stree, Mata aur Humsafar bhee hain.
Badhaai kubool kariyega. Aur sneh banaye rakhiyega.
Bahut sneh ke sath,
Lavanya
अजित जी लिंक देने की समस्या अच्छे से समझ आती है ,वाकई बड़ा पकाऊ और बोझिल काम है !
मीनाक्षी जी ,
पढकर बहुत अच्छा लगा पढकर आपके ब्लॉगिंग के सफर के बारे मे ,और कड़ियाँ कब आ रही हैं ।
इंतज़ार है !
सार्थक प्रस्तुति, सहज विवरण .
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किशोरों के लिए कुछ करने की राह आसान नहीं है .
यह मिशन जैसा काम है.
हवा को बाँधने जैसी चुनौती है.
संसार के सारे अपरिचित पथ जिन्हें लुभाते हों
उनका पथ-प्रदर्शन सचमुच कठिन है.
आपकी कोशिश सराहनीय है
लेकिन कैशोर्य का भटकाव
आज के दौर की बहुत बड़ी समस्या है.
मुझे लगता है उन्हें भरपूर प्रोत्साहन
और सकारात्मक स्नेह की ज़रूरत है .
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शब्दों का सफ़र स्वयं मधुशाला है
जहाँ शब्द की जीवन-यात्रा तो है ही
जीवन -यात्रा का शब्दबद्ध यह रूप भी है
इसमें कितना नशा है ....!
बकलमखुद कहना नामुमकिन है !!
शुभकामनाएँ...मीनाक्षी जी !
अभिनंदन अजित जी !!
वाह!!
मीनाक्षी जी ने तकरीबन सब को समेट लिया कम अज़ कम जाने माने सभी बलॉग्स को!!
हां इन सब का लिंक देना तो वाकई एक वक्तखपाऊ ही नही बल्कि भेजाखपाऊ काम भी होगा!!
बड़ा अच्छा रहा मीनाक्षी जी की लेखनी देखकर...बड़ी डीटेलिंग कर दी है, बहुत बढ़िया.
बड़ा अच्छा रहा मीनाक्षी जी की लेखनी देखकर...बड़ी डीटेलिंग कर दी है, बहुत बढ़िया.
मीनाक्षी जी के बारे में बहुत कुछ जानने का मौका मिला...उनकी शैली मुझे अच्छी लगती है...बहुत खूब अजित जी अब किससे मिला रहे है?इंतज़ार रहेगा...
मीनाक्षी जी का ये सफर बहुत पसंद आया।
खूब पढ़े चिट्ठे
मछली आँखों ने
सिमट गए सब
मीनाक्षी जी,
आपकी भी आस पूरी होगी। आपको भी बेटी मिल जायगी।
हमारा एक ही मुन्ना है। उसकी पत्नी है - परी। हमने उसे ही बेटी मान लिया है। बस उसी से बात करते हैं उसको समझने की कोशिश करते हैं और उसे अपने मूल्य समझाते हैं।
बहुत अच्छा.
meenakshii di,aapko yahan tak laaney ke liye arbuda ji ko thxxxxxxx.....
जब तक साँस है तब तक बकलमखुद भी है.. शब्दों के सफ़र में कुछ पड़ाव यादगार हो गए. इसके लिए अजितजी का बहुत बहुत धन्यवाद.
साथ चलने वाले सभी साथियों का आभार.
@ज्ञानजी,लावन्याजी आप मज़ाक तो नहीं कर रहे!!
@डॉ.जैन, हमारा अधिकतर समय किशोरो के साथ ही बीतता है. आपने सही कहा कि उन्हें सकारात्मक स्नेह चाहिए.
@उन्मुक्तजी,मुन्ने की परी के बारे में जानकर तो बहुत अच्छा लगा.
अपने ही लिखे लेख को पढ़कर अब हम समझ रहे हैं कि हमारा लिखना इतना कम क्यों हो गया है. जितना वक्त हम नेट पर होते हैं सब पढ़ने में ही निकल जाता है, न टिप्पणी देने की सुध और कुछ लिखने का होश :)
अब इंतज़ार है कि नए बकलखुद जल्दी पढ़ने को मिले.
हाइकू तो बहुत से लोग लिखते है पर मीनाक्षी जी विश्व की पहली महिला है जिन्होने इसे हिन्दी मे त्रिपदम कहा। यह हमारे हिन्दी ब्लाग जगत का सौभाग्य है कि हमे एक ऐसा परिवारिक सदस्य मिला है।
अजीत जी आप मुझसे लिखने कहेंगे इसलिये टिप्पणी करने से बचता हूँ। पर आज त्रिपदम के विषय मे बताने आना ही पडा। :)
संजीत का अहम योगदान हम सब को पता चलता जा रहा है। यह बंजारा अवारा भले हो पर इसे भूलना हमे गवारा नही है। धन्यवाद संजीत।
पंकजजी, हम भी ज्ञानजी की तरह हाइपोथायरेड के मरीज़ हैं. आपकी तारीफ़ पाकर और फूल गए, दुआ कीजिए कि बने रहें और आपकी तारीफ़ पाते रहें.
मीनाक्षी जी !
नौनिहालों का मार्गदर्शन आप कर रही हैं.
यह अनुकरणीय है.
आपको बधाई.
शुभकामनाओं सहित
डा.चंद्रकुमार जैन.
आपकी और अर्बुदा जी की ब्लॉगिंग दास्तान पर तो यही कहने को मन कर रहा है गुरु गुड़ रह गया चेला चीनी हो गया। :)
itane sare logo ko roz dekhpadh leti hai.n di......? waaah
ये नशा ही कुछ ऐसा है - अर्बुदा का योगदान महत्त्वपूर्ण है और ये भी कि आप बच्चों को भाषा ही नहीं, बड़ों को भी त्रिपदम सिखा रही हैं - मनीष
[p.s.- मोना को भी दिखा दिया ]
एक अच्छी कहानी .
एक अनुरोध है:
यह जो हिन्दी बक्सा लगाया गया है टिप्पणी बक्से के ऊपर,
इसकी विधि मुझे मेल कर दें .
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