भूखे भजन न होई गोपाला।
ले ल आपन कंठी माला ।।
कहते हैं कि भजन करने से भक्ति बढ़ती है और भक्ति से ही ईश्वर प्राप्त होते हैं। इस तरह उपरोक्त कहावत का सीधा सा अर्थ निकाला जा सकता है कि भूखे रहकर भक्ति संभव नहीं। मगर अतीत बताता है कि ईश्वर प्राप्ति के लिए सभी महान लोगों को उपवास करना पड़ा चाहे वे महात्मा बुद्ध हों, हजरत मोहम्मद हों, ईसा मसीह हों या महावीर स्वामी हों। उपवास का मतलब होता है अन्नजल का पूर्ण त्याग मगर सामान्य तौर पर इसका मतलब होता है हलका भोजन करना। उपवास को अनाशक भी कहा जाता है। यह भी अनशन की कड़ी का ही शब्द है। अनाशक भी अश् से ही बना है- अन्+अश+क । यानी अनशन का पर्याय हुआ यह शब्द। प्राचीन ग्रंथों मे उपवास को तप में शामिल किया गया है। ये अलग बात है कि आजकल उपवास में शुद्ध घी में निर्मित इतनी किस्म के खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाता है कि उसे उपवास की बजाय दावत कहना ज्यादा सही होगा।
दरअसल उपवास को एक तप माना गया है जो आत्मशुद्धि या पापमुक्ति का साधन है । जाहिर है कि उपवास का संकल्प लेने वाला व्यक्ति अपने घर से दूर किसी वनग्राम में जाकर दिनचर्या व्यतीत करता था।
[उपवासरत बुद्ध-गांधार कला ,चित्र साभारःhttp://www.heritage.gov.pk/
उपवास का मराठी रूप उपास भी है। भूखे रहने को मराठी में उपाशी कहा जाता है। बिना वजह भूखे रह जाने के लिए उपवास का मुहावरे के रूप में हिन्दी में भी प्रयोग होता है। उपवास के लिए फलाहार शब्द भी चलता है। हिन्दी-मराठी-मालवी में वर्ण विपर्यय की वजह से इसके रूप फरियाल-फराळ-फरयाल होते हैं। फलाहार के अर्थ में ही सिर्फ फलों के सेवन की बात निहित है मगर इसमें भी लोग सामान्य उपवास वाले पदार्थों का डट कर सेवन करते हैं। उपवास के भोजन भट्टों के लिए अब तो दुकानों पर फरियाली नमकीन जैसे पदार्थ भी मिलते हैं। कहां फलाहार और कहां नमकीन !
उपवास शब्द बना है उप+वास से। उप संस्कृत- हिन्दी का प्रसिद्ध उपसर्ग है जिसका मतलब आगे, सानिध्य में , निकट आदि होता है। वास शब्द वस् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है रहना, ठहरना आदि। इस तरह उपवास का अर्थ हुआ निकट रहना , साथ रहना आदि। वस् धातु से निवास, आवास, बासा, बसना,बसाहट, बसेरा, बजाज, वसंत, बसंत आदि कई शब्द बने हैं । विस्तार से देखें यहां । उपवास के आध्यात्मिक उद्धेश्य आत्मशुद्धि पर गौर करें तो स्पष्ट है कि उपवास का अर्थ हुआ ईश्वर के निकट रहना। आत्मशुद्धि तभी संभव है जब मनुश्य विषय-वासनाओं से दूर रहे। इस भांति शुद्ध अंतःकरण के साथ ही ईश्वर को अनुभव किया जा सकता है। चूंकि घर पर रहते हुए इन चीज़ों से बचना मुश्किल है इसलिए उपवास में तप के निमित्त परिव्रज्या यानी घर का त्याग भी शामिल है। घर से दूर एक निर्धारित अवधि तक आहार नियमों के साथ वास करना ही उपवास हुआ।
संसार के लगभग सभी धर्मों में उपवास को जीवन शैली के अनिवार्य अंग की तरह शामिल किया गया है। इस्लाम धर्म में ईद से पूर्व रमजान में रोज़ा भी उपवास अवधि ही है और यही है और ईसाइयों के क्रिसमस पर्व से पहले भी उपवास का प्रावधान है। जैन धर्म में तो उपवास प्रमुख सिद्धांतों में एक है। उपवास का चरमोत्कर्ष जैन धर्म के संथारा में नज़र आता है जिसके तहत निराहार रहते हुए शरीर को क्षीण कर मोक्ष प्राप्ति की व्यवस्था बनाई गई है। इसी तरह बौद्ध धर्म में भी उपवास का महत्व है और इसे आत्म शुद्धि की राह में पहली सीढ़ी माना गया है। आठ दिन लगातार निराहार समाधि-चिंतन [उपवास] से ही सिद्धार्थ को बोधि प्राप्त हुई थी और वे बुद्ध कहलाए। बौद्धों में उपवास को यौगिक क्रियाओं का अंग भी माना जाता है। गौरतलब है कि हिन्दुओं में आए दिन जितने व्रत-उपवास रहते हैं उतने शायद ही दुनिया के किसी अन्य समाज में होंगे।
21 कमेंट्स:
वाकई सही लिखा है आपने
बात को जोड़ते हुए - शायद सभी धर्मों में अन्न-त्याग, मानव की आत्म निर्भरता की पुष्टि से कहीं जुड़ा है - कि शरीर आदी न हो कामनाओं ही का - तो नए सन्दर्भ में किसी भी आदत को छोड़ना उपास हो सकता है कि नहीं - अन्न ही क्यों [ !!] - दूसरा ईसाईयों में दरअसल ईस्टर के पहले के चालीस दिन भी उपासे के होते हैं - किंवदंती के अनुसार जिस समय ईसा ने शैतान के प्रलोभन से परे रखा था - मरुभूमि में रह कर - बाकी ख़बर मेल में मनीष
upwas ka arth shayad Ishwar ke nikat rahana bhi ho jisme aap khana peena bhi tyag dete hon jisse ishwar ki aradhana nirbadh ho sake. waise hamesha ki tarah badhiya post.
बहुत अच्छा लिखा है, आज कल मै भी सोमवार का उपवास रख रहा हूँ। रूऋ
आप ने उपवास की शाब्दिक व्याख्या कर दी है। पर शरीर-शोधक, विकार-मुक्ति, मन-नियंत्रण के इस पर्व को सामाजिक और आयुर्विज्ञानी व्याख्या की आवश्यकता भी है। कोई विद्वान साथी इस काम को कर सकता है।
उपवास शब्द के बारे में रोचक जानकारी दी है आपने ..शुक्रिया
उपवास पर ही नहीं लिंक संथरा पढ़ना भी अच्छा लगा..शुक्रिया
बड़ी उपयोगी जानकारी दी आपने.
अपने समीप आने से
आत्म शुद्धि की ललक
उत्पन्न हो जाने से
और अपने से, अपनी
पहचान हो जाने से
चरितार्थ हो जाता है उपवास
ऐसा विद्वानों ने कहा है.
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...अजित जी...सई बखत भी सई है !
आपका
चन्द्रकुमार
किसी विशेष लक्ष्य का , संकल्प का सतत अहसास कराता है उपवास . मन मनमौजी होता है ख़ास
अवसर पर नियंत्रण में मदद उपवास ही करता है .लक्ष्य विहीन उपवास आजकल ज्यादा चलन में है
आपने सही अर्थ रखा उपवास का. मानव इश्वर के करीब तब ही हो पायेगा जब वो अपने अन्दर समाहित अवगुणों से मुक्त न हो .अवगुण से दूर रहने में सहायता प्रदान करती है उपवास .भले ही हम इसकी सहायता ले या न ले .
उपवास का उपहास बनाया जा रहा है .
अजीत जी भारतीय भाषाओं में तो उपवास या उपास समझ में आया एक जैसे है लेकिन रमजान या रोजा अरबी में है क्या, और अग्रेजी में उपवास को फ़ास्ट क्युं बोला जाता है इस पर भी थोड़ा प्रकाश डालिए
उपवास शब्द के बारे में रोचक जानकारी दी है आपने
आपको बहुत बहुत धन्यवाद.
अजीत जी ,उपवास के बारे आप ने बहुत बिस्तार से समझाया, ओर साथ साथ आज के बारे मे भी बताया,एक बात ओर जब हम उपवास रखते हे उस दिन का खाना दान मे देना चाहिये, लेकिन उस आज के बारे भी आप ने अपने लेख मे लिख कर हम सब की आंखे खोली. धन्यवाद
हमारी कुमाऊंनी बोली में 'उपवास' का कम 'व्रत' शब्द का ज़्यादा प्रयोग होता है. और कोई आदमी बिना किसी धार्मिक आस्था वगैरह के लिए दूसरों को और अपने आसपास वालों को परेशान करने के लिए खाना खाना बन्द कर देता है तो उसे 'लंगण' रखना कहते हैं.
हम कुमाऊंनी पंत, पांडे, जोशियों का मूलस्थान महाराष्ट्र ही माना है कई विद्वानों ने. आपने एक और प्रमाण दिया - फलाहार के लिए मराठी वाला शब्द 'फराल' ही हमारे यहां चलता है.
अनीता जी ने फ़ास्ट का उद्गम पूछा है. अंग्रेज़ी शब्द 'Fast' एक एंग्लो-सैक्सन शब्द 'faest' से माना जाता है जिसका अर्थ हुआ 'सुदृढ़' अथवा 'बंधा हुआ'. ख़ास बंधे हुए समयान्तराल में भोजन न करने को 'faesten' कहा गया यानी 'to hold oneself from food'. बाइबिल में उपवास रखने के कई उद्धरण पाए जाते हैं और ईसाई धर्म में इसे प्रभु के पास पहुंचने का एक मार्ग भी बताया है. पिछले क़रीब १५० वर्षों से यूरोप में यह परम्परा लुप्त हो चुकी है.
बढ़िया पोस्ट अजित भाई!
पोस्ट दमदार है और गेट-अप के प्रयोग भी!
उपवास के अनेक फायदे है एक तो आपकी आंतो को ओर पूरे पाचन तंत्र को आराम मिल जाता है .दूसरा आपकी आत्मिक शुद्धी हो जाती है .......ये सिर्फ़ इंसान की सोच है...वैजानिक तौर पर भी जब आप कोई positive vibe सोचते है ,आपके शरीर की कुछ ग्रन्थिय उसी के अनुकूल हारमोन secrete करती है.
bahut khoob likha hai
हमेँ तो "फराळी " भोजन बहुत पसँद है :)
स - विस्तार,
अच्छा आलेख है अजित भाई !
- लावण्या
आदरणीय दादा उपवास का सही अर्थ जानकर बहुत अच्छा लगा,धन्यवाद . शब्दों का सफर का गेटअप अब पहले से काफी इम्प्रेसिव और अच्छा लग रहा हैं.
अजित भाई, बहुत दिनों से ब्लाग को पढ़ता रहा हूँ यहीं आकर संतोष पाता रहा हूँ। बाकियों से अलग कुछ ग्यान बांटता।शब्दों को जानना मानों स्वः को जाननें जैसा लगता है, मानो तूल से मूल की यात्र हो या फिर स्रष्टा से साक्षात्कार जैसा। धातुओं का जैसा अद्भुत संधान प्राचीन ऋषि वैञानिकों ने किया वैसा शायद ही किसी सभ्यता मॆं प्राप्त हो। वैदिक संस्कृत में एक शब्द है अशनाया जिसका अर्थ है भूँख, यह भूँख मात्र उदरपूर्ति के ही अर्थ में नही है ञान,लक्ष्यप्राप्ति, संतान, जीवित रहनें या फिर जैसी भी आशा आप रखते हों उन सभी में अशनाया शब्द व्याप्त है। आशा शब्द में भी वही धातु आधार में हैं। अशनाया मे अन उपसर्ग पूर्वक बना शब्द अन+अशनाया ही कालान्तर में अनशन का रुप ले बैठा,जिसका मन्तव्य भूँख प्यास रहित होकर गुरु के समीप उप+नि+षद=उपनिषद ,(गुरु के आसन से नीचे आसन पर जाननें की इच्छा की निष्ठा के साथ) पूर्वक उपवेषिनः (नीचे आसन पर अवस्थिति होना) होना ही हिन्दी का उपवास है।साधुवाद.
अजीत जी, ब्लॉगर.काम वालों की ब्लॉगरोल सुविधा के भरोसे रहने के कारण आपकी यह पोस्ट छूटी जा रही थी। थोड़ी गलती मेरी भी रही जो ‘रीलोड’ विकल्प चुनने में देर कर दी।
बहरहाल, आपकी यह पोस्ट भी हमेशा की तरह ज्ञानवर्द्धक, और मजेदार रही। साधुवाद।
शब्दों के साथ-साथ इसमें उपवास की महिमा भी हो गई... सोने पे सुहागा!
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