| | | पुरानी दिल्ली में एक मस्जिद है जिसका नाम कलां मस्जिद है और इसे काली मस्जिद भी कहा जाता है मगर इसका नामकरण करनेवालों का मंतव्य इसकी भव्यता और महानता से ही रहा होगा। | |
सदियों पहले से नगरीय ग्रामीण बसाहट का राजस्व अर्थात सरकारी उगाही से गहरा रिश्ता रहा है। कोई भी आबादी जिस भूमि पर बसती थी वह राज्य का हिस्सा होती थी और वहां बसने और विभिन्न व्यापार-व्यवसाय की एवज में उसे राज्य को करों की अदायगी करनी होती थी। यही व्यवस्था आज भी जारी है। राजस्व का किसी भी बसाहट के आकार से गहरा रिश्ता है।
आमतौर पर बड़ी बसाहटों से सरकार को अधिक करों की प्राप्ति होती है क्योंकि वहां विभिन्न प्रकार के क्रिया कलाप होते हैं जिससे व्यापारिक गतिविधियां तेज होती हैं। भारत में मुस्लिम शासनकाल में ग्रामीण बसाहटों को राजस्व व्यवस्था के तहत मज़बूत किया गया। मुग़लों ने लगभग पूरे देश में कर वसूली की प्रक्रिया को अपने हिसाब से सुव्यवस्थित किया । एक जैसे नामों वाली ग्रामीण बसाहटों में छोटी और बड़ी आबादी के हिसाब से नामों में संशोधन किया गया। छोटी आबादी वाले गांवों-कस्बों के पीछे खुर्द शब्द लगाया गया । फ़ारसी के इस शब्द का अर्थ होता है छोटा। यह खुर्द संस्कृत के क्षुद्र से ही बना है जिसमें लघु, छोटा या सूक्ष्मता का भाव है। देश भर में खुर्द धारी गांवों की तादाद हजारों में है।
इसी तरह कई गांवों के साथ कलां शब्द जुड़ा मिलता है जैसे कोसी कलां , बामनियां कलां । जिस तरह खुर्द शब्द छोटे या लघु का पर्याय बना उसी तरह कलां शब्द बड़े या विशाल का पर्याय बना। कलां का प्रयोग लगभग उसी अर्थ में होता था जैसे भारत के लिए प्राचीनकाल में बृहत्तर भारत शब्द का प्रयोग होता था जिसमें बर्मा से लेकर ईरान तक का समूचा भूक्षेत्र आता था। हालांकि किसी यात्रावृत्त में हिन्दुस्तान कलां जैसा शब्द नहीं मिलता। ग्रेटर ब्रिटेन की बात चलती थी तो उसके उपनिवेशों का संदर्भ निहित होता था। इसी तरह कलां शब्द की अर्थवत्ता भी ग्रामीण आबादियों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।
कलां मूलतः फ़ारसी का शब्द है जिसका मतलब होता है वरिष्ठ, बड़ा, दीर्घ या विशाल। वैसे इसकी व्युत्पत्ति अज्ञात है। कुछ संदर्भों में इसे सेमेटिक भाषा परिवार का बताया जाता है और इसे ईश्वर की महानता से जोड़ा जाता है। कलां की अर्थवत्ता के आधार पर यह ठीक है मगर इसकी पुष्टि किसी सेमेटिक धातु से नहीं होती। कलां शब्द का प्रयोग सिर्फ स्थानों का रुतबा बताने के लिए ही नहीं होता था बल्कि व्यक्तियों के नाम भी होते थे जैसे मिर्जा कलां या अमीर कलां अल बुखारी जिसका मतलब बुखारा का महान अमीर होता है। जाहिर है यहां कलां शब्द का अर्थ महान है।
मुस्लिम शासनकाल में बसाहटों के नामकरण की महिमा यहीं खत्म नहीं होती। कई गांवों के नामों के साथ बुजुर्ग शब्द लगा मिलता है जैसे सोनपिपरी बुजुर्ग । जाहिर है हमनाम गांव से फर्क करने के लिए एक बसाहट को वरिष्ठ मानते हुए उसके आगे बुजुर्ग लगा दिया गया और दूसरा हुआ सोनपिपरी खुर्द । ऐसी कई ग्रामीण बस्तियां हजारों की संख्या में हैं। इसी तरह किसी गांव के विशिष्ट दर्जे को देखते हुए उसके साथ जागीर शब्द लगा दिया जाता था । इसका अर्थ यह हुआ कि सालाना राजस्व वसूली से उस गांव का हिस्सा सरकारी ख़जाने में नहीं जाएगा अथवा उसे आंशिक छूट मिलेगी। मुग़लों के दौर में प्रभावी व्यक्तियों को अथवा पुरस्कार स्वरूप सामान्य वर्ग के लोगो को भी गांव जागीर में दिये जाते थे। मगर उसी नाम के अन्य गांवों से फ़र्क करने के लिए नए बने जागीरदार उसके आगे जागीर जोड़ देते थे जैसे हिनौतिया और हिनौतिया जागीर ।
दुनिया की छतः बड़े पामीर यानी पामीर कलां का वह हिस्सा जो पामीर अलाइ कहलाता है और ताजिकिस्तान और किर्गिजिस्तान में पड़ता है। चित्र सौजन्यःupdate.unu.edu/
एक और दिलचस्प बात । खुर्द और कलां की मौजूदगी बृहत्तर भारत की तरह ही अंतराष्ट्रीय संदर्भो में भी है। जगत्प्रसिद्ध
पामीर क्षेत्र दरअसल चीन, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, किर्गिजिस्तान, ताजिकिस्तान के दर्म्यान फैली
हिन्दुकुश, कुनलुन, तिआनलान और
काराकोरम पर्वतश्रंखलाओं के समूह को कहते हैं जिसे अंग्रेज
दुनिया की छत कहते थे।
पामीर का सुरम्य हिस्सा जो अफ़गानिस्तान में पड़ता है
छोटा पामीर कहलाता है। इसे
पामीर खुर्द भी कहते हैं। समूचे पाकिस्तान, ईरान, अफ़गानिस्तान में इसी नाम से जाना जाता है। शेष पामीर को
पामीर कलां कहते हैं अर्थात बड़ा पामीर। इसी तरह अरेबियन नाइट्स के प्रसिद्ध अरबी सौदागर सिंदबाद जहाज़ी के यात्रा वर्णनों में
चिनकलां,
चीनकला या सिनकलां शब्द आया है जिसका मतलब वृहत्तर चीन के संदर्भ में दक्षिणी चीन के उस हिस्से से था जहां आज गुआंगझू – कैंटन प्रांत है। ऐतिहासिक संदर्भो मे भी सदियों पहले इस क्षेत्र का यही नाम प्रचलित था। इससे यह तो जाहिर होता है कि फ़ारसी के साथ साथ यह अरबी भाषा में भी खूब प्रचलित था।
खुर्द की तरह से छोटा के अर्थ में एक अन्य शब्द है कोचक। एशिया माइनर के लिए हिन्दी, उर्दू में एशिया कोचक शब्द का प्रयोग होता है। कोचक तुर्क-मंगोल मूल का शब्द है जिसका अर्थ होता है लघु या छोटा। कोचक शब्द की व्याप्ति हिन्दी में कम रही मगर चंगेज़ खान और उसकी संतानों ने सुदूर यूरोप तक खासतौर पर हंगरी में जो धावे बोले उसकी वजह से तुर्किक ज़बान का प्रभाव इस पूर्वी यूरोपीय देश पर पड़ा और यह किशुक, किसुक जैसे रूपों में हंगारी भाषा में प्रचलित है। समाप्त
15 कमेंट्स:
पामीर के बारे मेँ अच्छी जानकारी दी आपने ..
देखिये ये बडी बडी पर्वत शृँखलाओँ को
पार करती हुई भाषाएँ,
शब्दोँ के साथ
कितनी दूर दूर पहुँची हैँ
- लावण्या
मुझे लग रहा है कि बम्बई कई खुर्द और कलांओं का समग्र है!
अच्छी जानकारी दी आपने। खुर्द, बुर्द, कलां, जागीर! सब समझ गये।
दद्दा, कितने -कितने सालों से 'खुर्द' और 'कलां' ने परेशान कर रखा था.कुछ विद्वानों से पूछा भी परंतु कायदे का जवाब न मिला.हाँ,उल्टे यह नसीहत कि कहां शब्दों के फेर में पड़े रहते हो ,कुछ 'अर्थ' की जुगत किया करो.आज आपने'खुर्द' और 'कलां' के बाबत मेरे मूढ़पने को खुर्द-बुर्द कर गजब कर दिया.बहुत-बहुत शुक्रिया. एक आत और. मेरे आसपास के इलाके में 'भूड़' नाम की कई बस्तियां हैं. अनुरोध है कि इस 'भूड़'का भी कुछ करें.
जब अपने आसपास रोज सुने जाने वाले शब्दों के बारे में जानकारी मिलती है। तो लगता है, मनुष्य की यात्रा कितनी विस्तृत रही है।
बहुत अच्छी अनुपम जानकारी, आपका आभार!!
बहुत शुक्रिया खासकर 'पामीर' के लिए।
कलां ,आज समझ मे आया। जानकारी बढाने का शुक्रिया।दीवाली की शुभकामनाएँ ।
प्रिय पल्लव की प्रसन्नता में मुझे भी सम्मिलित मानें - 'पामीर' के लिए ।
कमाल की रही ये श्रृंखला, पहाडों से याद आया जर्मन में छोटे के लिए klein शब्द का उपयोग होता है और कई पहाडों के लिए उनके नाम के आगे klein जोड़ दिया जाता है जैसे klein matterhorn.
सुंदर और प्रासंगिक चित्रों के साथ
अनोखी और अभिनव जानकारी.
हम हैं आपके आभारी !
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
प्यारे अजीत भाई,
आपकी मेहनत को कैसे सराहूं। बस, लोगों के बीच आपके ब्लाग की चर्चा करता रहता हूं। आपका ढिंढोरची बन गया हूं। कभी-कभी लगता है कि ये सारा काम आप नहीं खुद मैं कर रहा हूं। व्यक्तिगत रूप से तो मैं रोजाना ऋणी होता ही हूं।
आपकी इस पोस्ट का मेरी निजी जिंदगी में खास मतलब है। अचानक वह गुत्थी इतने सालों बाद खुल पायी जो बचपन में बहुत हैरान किया करती थी। उप्र के गाजीपुर जिले के सादात ब्लाक में मेरे ननिहाल का गांव है परसनी (खुर्द) और इसी से सटा हुआ परसनी (कलां) है। यह जिज्ञासा कब की मर चुकी थी आज उसे मोक्ष मिल गया, अजित भाई। उसकी तीन दशक लंबी भटकन जितना धन्यवाद।
पुनश्च- यह परसनी पता नहीं प्रसन्न है, स्पर्श है, परोसना है, परोक्ष है या फिर दो हिस्सों में बंटा हुआ अब विलुप्त हो चुका परास (पलाश) का कोई वन है?
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