Wednesday, October 1, 2008
दुष्ट-दुश्मन-दुःशासन
बुरे कर्म को हिन्दी में दुष्टता और बुरे कर्म करनेवालों कों दुष्ट कहा जाता है। नीच, अधम, पापी, पातकी व्यक्ति ही दुष्ट कहलाता है। जिसके बुरे कर्म हों और दोषी व अपराधी चरित्र भी हो। यही सारे कर्म दुष्टता कहलाते हैं।
दुष्ट शब्द दुष् धातु से जिसमें बुरा होना, भ्रष्ट होना , खराब होना, पाप होना, गलती होना , नष्ट होना जैसे तमाम नकारात्मक भाव हैं। दुष् धातु में शामिल इन्हीं भावों का असर नज़र आता है दूषण या दूषणम् पर जिसका अर्थ विषाक्त करना , बर्बाद करना, मिटाना, नष्ट करना आदि है। पर्यावरण के संदर्भ में अक्सर प्रदूषण शब्द का आमतौर पर प्रयोग होता है। प्रदूषण शब्द का इस्तेमाल यूं तो आबोहवा के बिगड़ने के लिए होता है मगर अब कला, साहित्य, से लेकर राजनीति यानी समाज के हर क्षेत्र में जो भी गिरावट आ रही है उसके लिए प्रदूषण शब्द का बेखटके इस्तेमाल होता है। दुष् धातु से बना है दुष्ट शब्द जिसका अर्थ बदमाश, नीच, पापी, कपटी , छली , प्रपंची आदि होता है।
संस्कृत से होती हुई दुष्ट की छाया फारसी पर भी बरास्ता अवेस्ता पड़ी। फारसी में दुष्ट की तरह दुश्त शब्द है जिसका मतलब भी नीच ,निकृष्ट और खराब से ही है। दुष् उपसर्ग की महिमा कुछ अन्य फारसी शब्दों में भी नज़र आती है जैसे दुश्मन यानी शत्रु या विरोधी अथवा दुश्नाम यानी गालियां, अपशब्द आदि। परेशानी , मुश्किल, संकट , कठिनाई आदि के अर्थ में दुश्वार या दुश्वारी जैसे उर्दू-फारसी के शब्द भी हिन्दी में प्रचलित है जो इसी मूल के हैं। दरअसल दुश्वार मूलतः दुशयार है जिसका मतलब होता है बुरा साल या बुरा वर्ष । कठिन समय, मुश्किल घड़ी के अर्थ में यह दुश्वार बन कर उर्दू-हिन्दी में प्रचलित हो गया।
...बद् उपसर्ग से बने कई शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं जैसे बदनाम, बदतमीज़, बदसूरतऔर बदहवास ...
दुष् की तरह ही दुस् धातु भी है जो आमतौर पर उपसर्ग की तरह प्रयुक्त होती है। इससे और भी कई शब्द बनें है जो हिन्दी में प्रचलित हैं जैसे दुश्चरित्र अर्थात बुरे चाल-चलन वाला। दुष्काल यानी बुरा समय, दुष्टात्मा, दुष्प्रवृत्ति। महाभारत के खलनायक और धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक दुःशासन के कुकर्मों की याद दिलाने के लिए द्रौपदी के चीरहरण का प्रसंग काफी है। दुःशासन यानी जिसका शासन बुरा हो।
फारसी का बदमाश शब्द भी बड़ा दिलचस्प है। यह बना है फारसी के बद और अरबी के मआश से। फारसी की बद् धातु एक बहुप्रयुक्त उपसर्ग भी है जिससे हिन्दी उर्दू के कई प्रचलित शब्द जन्में हैं। फारसी के इस बद् यानी bad शब्द का अंग्रेजी के bad बैड से अर्थसाम्य का रिश्ता तो है मगर दोनों का जन्म से रिश्ता नहीं है। बद् यानी बुरा, निकृष्ट, अशुभ, खराब, अपवित्र, अमंगल, गिरा हुआ , बिगड़ा हुआ आदि। अरबी के मआश का मतलब होता है आजीविका । इस तरह बदमाश का शुद्ध रूप हुआ बदमआश जिसका मतलब है गलत रास्ते पर चलनेवाला, बुरे काम करनेवाला। बद् उपसर्ग से बने कई शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित हैं जैसे बदनाम, बदतमीज़, बददिमाग, बदतर, बदकार, बदहवास, बदहाल, बदसूरत और बदी आदि। भाषा विज्ञानियों के मुताबिक बद् शब्द पुरानी फारसी के वत से बना है । यह भी संभव है कि इसकी व्यत्पत्ति का आधार संस्कृत की पत् धातु हो जिसमें नैतिक रूप से गिरना, अधःपतन, नरक में जाना जैसे भाव शामिल हैं। पतित, पातकी, पतन जैसे शब्द भी इससे ही बने हैं। बहुत संभव है कि फारसी के बद् की रिश्तेदारी पत् से हो।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:07 AM
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12 कमेंट्स:
वाह जी, बहुत ज्ञानवर्धक रहा!!
बहुत आभार हमेशा की तरह!
दुष्कर में भी दुष् ही है
पर यह तो बुश नहीं है.
मुश्किल जरूर है पर
बुरा नहीं है कार्य यह.
जानकारी सारी सच्ची है
विज्ञ हैं आप
यह बात तो अच्छी है.
मान गए आपको
जान गए आपको.
दूषण निपटा, अब भूषण की बारी है।
वैसे आपकी पोस्ट में कोई भी शब्द हो - साथ पा कर भूषित ही हो जाता है।
बद शब्द के मायने सही पता चले शुक्रिया
दुःशासन का सन्दर्भ आज के
पड़ाव को अधिक अर्थ गर्भ
बना रहा है....आभार.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
शब्दों का तो ये सफर है ही लेकिन लगातार बदलती ग्राफिक्स सज्जा भी कथा में बहुत सुंदर रंग भरती है. कई सारे बदलाव नोट कर रहा हूँ. दुष्टों की जानकारी बढ़िया रही.
अपने बारे में इतने पर्यायवाची जानना बहुत अच्छा लगा अजित भाई! और क्या तो जबरजस्त फ़ोटू लगाई. वाह! ज्ञानवर्धक और मज़ेदार भी.
बहुत दिन से ढूंढ रहा था आज पकडे गए
@अशोक जी, ज्ञानजी, अविनाशजी और समीर भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया...सफर में बने रहें। सफर की रौनक हैं आप सभी।
@घोस्ट बस्टरजी और अन्योनास्ति जी, मान गए आपकी निगाहों को भी। तेज़ नज़र , पक्का काम है आपका। आपको भी शुक्रिया कहते हैं हम...
अजित भाई,
शुभकामनाएँ!-
नवरत्र मेँ दुर्गा जैसे शब्द पर भी कुछ लिखिये -
सुशाशन हो :) दु:शाशन का अँत हो !
जय माता दी !
धर्म शब्द (धृ धातु ,:धारण ) की शब्द यात्रा पर अवश्य प्रकाश डालने की कृपा करें ;ऋतू भी धर्म मयहै |
धन्यवाद
धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धारण करके कर्म करना एवं इनकी स्थापना करना ।
व्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके, उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है ।
असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है ।
सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी यही कार्य करती है ।
धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म पालन में धैर्य, संयम, विवेक जैसे गुण आवश्यक है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
व्यक्ति विशेष के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर की उपासना, दान, पुण्य, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjri
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