तिजौरी दरअसल सामान्य से कुछ अधिक मज़बूत पेटी ही होती है। सामान्य दुकानदार तिजौरी के नाम पर पेटी ही रखते हैं।
जाहिर है कारोबार से कमाई रकम को रखने के लिए तिजौरी से बेहतर शब्द कोई और सूझ नहीं सकता था। व्यापार संबंधी के अर्थ में हिन्दी मे तिजारत से तिजारती जैसा शब्द बना लिया गया है। यह आश्चर्य की बात है कि जिस हिन्दी ने अरबी के तजारा से तिजौरी और तिजारती जैसे शब्द बेधड़क बना लिए उसने व्यापारी के लिए इसी कड़ी का ताजिर शब्द नहीं अपनाया। हिन्दी में व्यापारी के लिए अरबी-फारसी मूल का सौदागर शब्द प्रचलित है मगर ताजिर को लोग नहीं पहचानते। कारोबार से भी कारोबारी जैसा शब्द बना लिया गया जिसका अर्थ भी व्यापारी ही है। गुजरात में तिजौरी उपनाम भी होता है। व्यवसाय आधारित उपनामों की परंपरा गुजरात में कुछ अधिक है। खासतौर पर सदियों पहले वहां पहुंचे पारसी आप्रवासियों ने जो कारोबार अपनाए , उसे ही उन्होने अपना उपनाम बना लिया जैसे फारूख बाटलीवाला या रूसी स्क्रूवाला। जाहिर है तिजौरी उपनामधारी समूह के पुरखों का तिजौरियां बनाने का काम रहा होगा।
तिजौरी दरअसल सामान्य से कुछ अधिक मज़बूत पेटी ही होती है। सामान्य दुकानदार तिजौरी के नाम पर पेटी ही रखते हैं। जिस तरह ताजिर यानी व्यापारी का तिजौरी से रिश्ता है वैसे ही पेटी का भी आम भारतीय सेठ से रिश्ता है। बात थोड़ी घुमा कर समझनी पड़ेगी। सेठ की कल्पना उसके फूले पेट के बिना संभव नहीं है और पेट से ही पेटी का रिश्ता है। पेटी शब्द संस्कृत मूल का है और यह बना है पेटम् या पेटकम् से जिसका अर्थ होता है थैली, संदूक, बक्सा आदि। पेटम् शब्द बना है पिट् धातु से जिसमें भी थैली का ही भाव है। पेट उदर के अर्थ में सर्वाधिक जाना-पहचाना शब्द है। पेट अगर बाहर निकला हो तो तोंद कहलाता है। गले से नीचे की और जाती हुई शरीर के मध्यभाग की वह थैली जिसमें भोजन जमा होता है , पेट कहलाता है। किसी वस्तु का भीतरी-खोखला हिस्से को पेटा कहते हैं।
कृपया जेब श्रंखला की इन कड़ियों को भी ज़रूर देखें-.....
1 पाकेटमारी नहीं जेब गरम करवाना [जेब-1]
2 टेंट भी ढीली, खीसा भी खाली[जेब-2]
3 बटुए में हुआ बंटवारा [जेब-3]
4 अंटी में छुपाओ तो भी अंटी खाली[जेब-4]
5 आलमारी में खजाने की तलाश[जेब-5]
6 कैसी कैसी गांठें[जेब-6]
7 थैली न सही , थाली तो दे[जेब-7]
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मुंबइया बोलचाल में पेटी अपने आप में मुद्रा का पर्याय बन गई है। मुंबई के अंडरवर्ल्ड में पेटी शब्द का अर्थ दस लाख से पच्चीस लाख रूपए तक होता है। इसका मतलब हुआ इतनी रकम से भरी पेटी। भाई लोग एक पेटी , दो पेटी बोलते हैं और समझनेवाले समझ जाते हैं। इसी तरह एक और शब्द है खोखा। पेटी से अगर बात नहीं बनती है तो खोखा मांगा जाता है। खोखा यानी एक करोड़ रुपए। आमतौर पर सड़क किनारे बक्सानुमा निवास और दुकानें जो लकड़ी अथवा टीन की बनी होती हैं खोखा कहलाती हैं। । सामान भरने के छोटे डिब्बों को भी खोखा कहते हैं। खोल या खोली शब्द भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं। महाराष्ट्र में खोल कहते हैं गहराई को। गहरा करने की क्रिया भी खोल ही कहलाती है। खोली से अभिप्राय छोटे कमरे से है। इन तमाम शब्दों का रिश्ता खुड् धातु से है जिसमें गहरा करने या खोदने का भाव है। कुछ विद्वान शुष्क शब्द से खोखला शब्द की व्यत्पत्ति बताते हैं जैसे सूखने के बाद वृक्ष में कोटर हो जाती है। मगर कोटर से ही खोखल का जन्म हुआ होगा ऐसा लगता है।
करोड़ शब्द बना है कुट् धातु से जिसमें मोड़, घुमाव, वक्रता का भाव है। इससे ही बना है कोटि शब्द जिसका अर्थ होता है एक करोड़। श्रेणी के लिए भी कोटि शब्द का चलन है मसलन निम्नकोटि, उच्चकोटि । इसका अर्थ होता है चरम सीमा या धार । गौर करें कि किसी टहनी को जब मोड़ा जाता है तो वह चरमकोण पर वक्र होकर तीक्ष्ण और धारदार हो जाती है। कुट् धातु का वक्र भाव यहां साफ साफ नज़र आ रहा है। यही पराकाष्ठा का भाव संख्यावाची कोटि में नज़र आता है जिसे हिन्दी में करोड़ भी कहते हैं।
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10 कमेंट्स:
जबरदस्त और दिमाग की खुराक बढाने वाली जानकारी ! यहां आकर अनायास ही वो जानकारी मिल रही है जो कई बार दिमाग मे खट खट करती है !
राम राम !
रोचक एवं संग्रहणीय जानकारी,
पर जानकारी के स्रोतों की मेरी माँग अभी कायम है..
और भी, दीवाने हैं.. इस सफ़र के !
मन डोला रे डोला रे डोला रे, बढ़िया साझा जानकारी है!
अच्छा लिखा। पैसा किन किन अर्थों में सामने आता है! बड़ी संख्या/करोड़ यानी बड़ा पैसा!
कहाँ एक खोखा ! और कहाँ एक खोखला !
आज तो लम्बी लम्बी गलियों में घुमा दिया है। पर एक शब्द खटक रहा है, "ताज़ीरात-ए-हिन्द"। यह कहाँ से टपका? और इस का ताजिर से क्या लेना देना है जी?
भाई आप एक खोखे की जानकारी देते हैं. आपको पढ़ने के बाद अपने को बौद्धिक रूप से अधिक समृद्ध महसूस करता हूँ. शुक्रिया.
ये सफर भी पसंद आया जी
और ये पिटारा भी तो है न ?
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अजित जी,
आपका योगदान
सचमुच स्तुत्य और अनुकरणीय है.
शुभ भावों सहित
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
मुम्बैया, लाख को पेटी एवं करोड़ को खोखा कहने की प्रथा पहले पहल व्यापारियों ने प्रारम्भ की थी. अपने लेन देन को गुप्त रखने के उद्देश्य से यह सांकेतिक प्रयोग था. और अब भाईलोगों
ने अपना लिया.
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