Tuesday, February 10, 2009

करामातियों की करामातें…[संत-5]

sufi meditation fusion with shaykh nazim
yoga1b1 
सदाचार को महापुरुषों की जीवन शैली मान लेने के बाद समाज उनसे कुछ ज्यादा की उम्मीद करता है। इसी मुकाम पर चमत्कार है.
सू फी-संतों-योगियों के साथ चमत्कारों का गहरा रिश्ता रहा है। सूफी मत में चमत्कार की व्याख्या सचमुच अतिन्द्रीय कर्मों की ही है। सूफियों का विश्वास रहा है कि आध्यात्मिक सिद्धि के बाद लोकमंगल के लिए उनके पास चमत्कारिक शक्तियां आ जाती हैं जिनके जरिये वे मानवता की भलाई कर सकते हैं। हालांकि इसका प्रमुख उद्देश्य लोगों में ईश्वर की परम शक्तियों में भरोसा पैदा करना होता था। सूफी पंथ में इसे करामात कहा जाता है।
रीब नवीं सदी में बग़दाद के पास कूफ़ा नामक शहर के हमदान करामत बिन अशेश को सूफियों के करामतिया पंथ का संस्थापक माना जाता है। यह इस्माइली मुसलमानों का रहस्यवादी तबका था जिसके क्रियाकलाप काफी ढके-छुपे थे। कुल मिलाकर करामात या चमत्कार जहां भी होगा वहां की हर चीज़ पर रहस्य का पर्दा होना लाजिमी है। घोर इस्लामी सोच पैग़म्बर के अलावा किसी अन्य के करामात दिखाने की बात नहीं स्वीकारती है। करामात karamat शब्द बना है अरबी धातु क़ा रु माह (क़ाफ़ रा मीम) से जिसने करम ( करूमा ) शब्द बनाया। इसका अर्थ होता है पवित्र भावना, भद्रता, सौजन्य, नवाजिश, कृपा, मेहरबानी आदि। गौर करें कि प्रेम के दो वचन, सौजन्यपूर्ण व्यवहार, दयालुता का बर्ताव सामान्य लोगों पर जादुई असर करते हैं। कुशल प्रबंधन सिखाने वाले गुरू भी इन्हीं गुणों को आज़माने की सलाह देते हैं। यही जादुई मंत्र हैं दुनिया को जीतने के। सो करम अगर करामात है तो इसमें ताज्जुब क्या? करम से बना है करामा (ह) जिसका मतलब होता है चमत्कार, कृपा आदि। इसी से करामत शब्द बना जिसका बहुवचन हुआ करामात। हिन्दी, उर्दू, फारसी में यही करामत की जगह करामात रूप ही प्रचलित है। ईश्वर के कई नामों में एक नाम करीम भी है क्योंकि वह अपने भक्तों पर हमेशा कृपालु रहता है। करीम का स्त्रीवाची करीमा(ह) karimah होता है जिसमें मौन है।
क्त ईश्वरीय कृपा को हमेशा चमत्कार के रूप में ही देखता है चाहे इसके पीछे उसका आस्थाजनित कर्म ही क्यों न हो मगर इसे वह खुदाई करामात के तौर पर ही देखता है। सूफी-संतों-दरवेशों की परंपरा में अक्सर सिद्धि को छुपाने के जतन किए जाते थे। मगर लोगों की आस्था उनसे हमेशा चमत्कारों की ही उम्मीद करती थी। सूफियों से जुड़ी कुछ प्रचलित मान्यताएं करामात के अंतर्गत रखी जाती हैं मसलन वे अदृष्य हो सकते हैं, परामानवीय शक्तियों से वार्ता कर सकते हैं, पारलौकिक आवाज़ें उन्हें सुनाई पड़ती हैं, वे उड़ सकते हैं, वांछित वस्तु को सुदूर कोने से ला सकते हैं या पहुंचा सकते हैं आदि। इन शक्तियों को ग़ैबी ताकत कहा जाता है। ग़ैब ghaib / gaib का मतलब होता है अदृष्य, पारलौकिक पृष्ठभूमि का, परोक्ष आदि। हिन्दी  का प्रचलित ग़ायब शब्द इसी ग़ैब का ही फारसी रूप है। उर्दू में इसे ग़ाइब कहा जाता है। चमत्कार

coverzc0 करामात का मूल अर्थ था इन्द्रियों पर नियंत्रण पाना जिसे नफ्स-कशी कहा जाता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद आदि पर नियंत्रण।

दिखानेवाले संतों को पीर ए ग़ैब कहा जाता है। इन चमत्कारों का जिक्र तो कई जगह पर है मगर इन्हें प्रामाणिक मानने का कोई रास्ता नहीं है। पुराने ज़माने में भी तर्क और प्रमाण की बात लोग करते थे। सूफियों-कलंदरों के मुरीदों ने ही बीच का रास्ता निकाला। अब अभिमंत्रित ताबीज, टोटके, भस्म आदि भी इनके चमत्कारों में जुड़ गए।
रामात का वास्तविक अर्थ भी सूफियों ने बताया है। सह इब्न अब्दुल्ला कहते है कि सबसे बड़ा चमत्कार दुर्गुणों के स्थान पर सद्गुणों की प्राप्ति है। करामात का मूल अर्थ था इन्द्रियों पर नियंत्रण पाना जिसे नफ्स-कशी कहा जाता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद आदि पर नियंत्रण। “दस साल से सिर्फ दूध पर जिंदा है महिला” आत्मनियंत्रण के ऐसे नितांत निजी प्रयास जिस समाज में खबर बनते हैं और सार्वजनिक कौतुहल का विषय हों, आज से सदियों पहले के समाज में सूफी-संतों द्वारा आत्मनियंत्रण के ऐसे ही प्रयास चमत्कार कहलाते हों तो आश्चर्य नहीं। सदाचार का उपदेश आसान है पर सदाचार के रास्ते पर चल पड़ना सचमुच चमत्कार से कम नहीं है। ऐसा करके ही सामान्य मनुष्य संत-महापुरुष बनते हैं। अलबत्ता सदाचार को महापुरुषों की जीवन शैली मान लेने के बाद समाज उनसे कुछ ज्यादा की उम्मीद करता है। ईसाई धर्म में तो संत का दर्जा तभी दिया जाता है जब तक उसके चमत्कारों का प्रमाण न मिल जाए। चमत्कार को यूं नमस्कार करने वाले समाज में धर्म के नाम पर पाखंड बढ़ रहा है तो इसमें दोष किसका है ?
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12 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छा आलेख। शब्दों का यह सफर अब सामाजिक वैज्ञानिक सवाल भी छोड़ने लगा है।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर जानकारी से ओतप्रोत आलेख.

रामराम.

PD said...

आज कल एक बार फिर से संस्कृति के चार अध्याय पढ़ रहा हूँ और उसे पढने के बाद आपके आजकल के पोस्ट पढने में कुछ ज्यादा ही मजा आ रहा है.. आपके लेख पढ़कर ऐसा लगता है जैसे जो बातें दिनकर जी लिखना भूल गए थे उन्हें आप लिख दे रहे हैं.. :)

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अरे साहब ! करामात का
ऐसा अर्थ तो हम आज ही जान पाये.
==============================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

निर्मला कपिला said...

apne shabdon ke safar me hame safar karvaane ke liye bahut bahut dhanyvaad bahut bdiyaa jaankari hai

दिगम्बर नासवा said...

करामत के ऊपर आपका करामाती लेख वाकई करामात कर गया...............
दुबई के भी एक जगह है जो करामा के नम से जानी जाती है

mamta said...

करामात का मतलब ये होता है ये तो सपने मे भी नही सोचा ।

वरना कई बार तो मजाक उड़ाने के लहजे मे भी करामती शब्द का उपयोग होते सुना है ।

कुश said...

करामात का मूल अर्थ था इन्द्रियों पर विजय पाना था.. ये तो नई ख़बर है अपुन के लिए...

विष्णु बैरागी said...

आपने मेरी एक त्रुटि सुधार दी। मैं 'करामात' को एक वचन के रूप में प्रयुक्‍त करता रहा हूं। आज आपने ज्ञान दिया कि इसका एक वचन तो 'करामत' है।
धन्‍यवाद।

Abhishek Ojha said...

बचपन में एक किशोर उपन्यास पढ़ा था 'कैदी की करामात' और 'कुदरत की करामात' तो सुनते ही रहते हैं. पर इतना कहाँ जानते थे !

Gyan Dutt Pandey said...

चमत्कार तो होते हैं। आस्था उनका उद्गम है।

RDS said...

बडनेरकर जी,

भली कही !

इधर दैविक चमत्कारों की लालसा में सदाचार का स्थान बाजीगरी ने ले लिया है | अगर मुड कर इस सफ़र के पदचिन्ह देखे तो आपके कथित (असली) 'करामाती व्यक्तित्व' विलुप्त ही मिलेंगे डायानासौर की तरह ! आपकी यह बात अधिक मौजूं लगती है कि प्रेम के दो वचन, सौजन्यतापूर्ण व्यवहार, दयालुता का बर्ताव सामान्य लोगों पर जादुई असर करते हैं। यही असली करामाती मंत्र है |

आपकी यह बात सौलह आने सच है कि सदाचार का उपदेश आसान है पर सदाचार के रास्ते पर चल पड़ना सचमुच चमत्कार से कम नहीं है।

यद्यपि बंगाल के बाउल लोग करामाती तो नहीं परन्तु सूफी फक्कड़पन के समीप होने से भाते हैं | बाउल शब्द उत्पत्ति पर कभी कुछ ज्ञानवर्धन कीजियेगा |

बिगत सप्ताह भर का खजाना आज ही बांचा | संत सिक्के और ससुराल से भरपूर सप्ताह आपने खूब संवारा !!

नमन !

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