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Thursday, February 12, 2009
अदरक में नशा है...[खानपान-5]
अदरक, आर्द्रकम्, सोंठ, जिंजर एक ही पदार्थ के कितने सारे नाम हैं जो भारतीय मूल से उठ कर पूरी दुनिया में छा गए। मसालों की दुनिया में आखिर भारत की धूम यूं ही नहीं है…
प श्चिमी दुनिया में भारतीय मसालों के लिए जो ललक थी उसी ने यूरोप से भारत के लिए आसान समुद्री मार्ग की खोज करवाई। मसालों की दुनिया में अदरक की खास जगह है। अंग्रेजी में इसे जिंजर कहते हैं। खान-पान में अदरक के दो रूप प्रचलित हैं पहला ताजा यानी गीला और दूसरा सूखा। गीला रूप अदरक कहलाता है और सूखा रूप सौंठ। गौरतलब बात ये है कि अदरक और जिंजर दोनों ही शब्द भारतीय मूल के हैं।
पहले अदरक की बात। अदरक शब्द बना है संस्कृत के आर्द्रकम् से। हिन्दी में यह हुआ अदरक । उर्दू-फारसी में इसे अद्रख कहते हैं। बाकी भारतीय भाषाओं में भी इससे मिलते जुलते रूप मिलते हैं। वाशि आप्टे कोश के मुताबिक संस्कृत में एक शब्द है अर्द् जिसका मतलब होता है दुख देना, व्यथित करना, कष्ट देना, प्रार्थना करना, निवदेन करना आदि। इससे बने आर्द्र शब्द में अर्द के विपरीत कोमल, दया, मृदु, करुणा जैसे शब्दों के साथ पिघलने, पसीजने जैसे भाव प्रकट होते हैं। यही आर्द्रता है जिसका अभिप्राय प्रचलित अर्थो में हम नमी, गीलापन, सीला, रसीला, हरा से लगाते हैं। ताज़गी में नमी का भाव ही प्रमुख है। अदरक का गुण है कि वह कई दिनों तक नम बना रहता है इसीलिए उसे आर्द्रकम् कहा गया।
अब बात जिंजर की। इसकी व्यत्पत्ति को लेक भाषाविज्ञानियों में मतभेद है। अंग्रेजी का जिंजर मध्यकालीन लैटिन के जिंजीबेरी से बना। लैटिन में इसकी आमद हुई ग्रीक के जिंजीबेरिस से। ग्रीक भाषा का जिंजीबेरिस प्राकृत के सिंगीबेरा से बना जिसकी उत्पत्ति संस्कृत शब्द शृङ्गवेर से मानी जाती है जिसका अर्थ हुआ सींग जैसी आकृति का। कुछ भाषाविज्ञानी उत्पत्ति के इस आधार को एक दिलचस्प मान्यता से कहते हैं। उनके मुताबिक जिंजर की उत्पत्ति संस्कृत के श्रृगवेरम् से नहीं बल्कि द्रविड़ भाषा परिवार से हुई है। प्राचीन द्रविड़ भाषा में इंची शब्द है जिसका अर्थ है जड़ या मूल इसी से बना तमिल में इंजीवेरी। तमिल के जरिये ही यह शब्द पूर्वी एशिया , पश्चिमी एशिया और फिर यूरोप पहुंचा। आज दुनियाभर में अलग-अलग रूपों में दक्षिण भारत से गया यही शब्द है जैसे लैटिन में ज़िजबेर, जर्मन में इंगवर, श्रीलंका की सिंहली में इंगुरू, रशियन में इंबिर, यूक्रेनियन में इंब्री, स्लोवेनियन में डुंबियर, फ्रैंच में जिंजेम्ब्रे, और हिब्रू में सेंगविल के रूप में। जो भी हो, संस्कृत में शृंगवेर का अर्थ अदरक होता है और इस मूल से व्युत्पत्ति ज्यादा तार्किक है।
अदरक का सूखा रूप सोंठ कहलाता है। संस्कृत में शुण्ठ् का मतलब होता है पवित्र करना या सुखाना। इससे बना है शुण्ठी, शुण्ठि या शुण्ठ्यम जिसका अर्थ है शुष्क अदरक या सूखा हुआ अदरक। हिन्दी का सोंठ इससे ही बना है। इसे कश्मीरी में शोंठ, गुजराती में सूंठ, मराठी में सुंठ, पंजाबी में सुंड, कन्नड़ में शुंथि, तेलुगू में शोंटी और तमिल में सुंथि कहते हैं। पुराने वक्त में दक्षिण भारत में अदरक से शराब भी बनाई जाती थी जिसे आर्द्रकमद्यम् कहा जाता था। यह परम्परा श्रीलंका में अब भी कायम है और वहां जिंजर बियर खूब मशहूर है। इसे आयुर्वेदिक औषधि के तौर पर भी विदेशी सैलानियों के आगे परोसा जाता है। यहां का एलिफेंट ब्रांड मशहूर है। -संशोधित पुनर्प्रस्तुति
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:51 AM लेबल: food drink
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16 कमेंट्स:
आनंद आ गया अदरक की गाथा सुनकर, बधाई!
rochak hai .
अति रोचक... आप भी जाने कहाँ से ऐसे विषय चुन के लाते हैं!
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चाँद, बादल और शाम
adrak mae नशा हो या न हो आपके lekh का नशा हम पर haavi हो गया hae . adikt हो गए hae हम . सुबह akhbaar से pahle shbdo का safr khojte hae
अदरक गाथा लाजवाब. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
वाह ! अदरख और जिंजर शब्द की
उत्पत्ति भारत में ही !
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कमाल ही भई !
चन्द्रकुमार
सदैव की तरह सुन्दर और ज्ञानवर्ध्दक जानकारियां।
ऐसे ही झन्नाट्दार मसाले खिलाते रहिये, बन्दर भी स्वाद का सवाब [पुण्य] हासिल करने लग जाएंगे !
रूखे लोगों में बे रुख़ी देखी,
गर्म-जोशी कहीँ नही देखी,
आर्द्रता का जो भाव रखते है,
रुख* पे शबनम की सी नमी देखी.
*रुख=चेहरा
-मंसूर अली हाशमी
अदरक से जुड़ी ज्ञानवर्धक और रोचक जानकारी देने का शुक्रिया..यही शुभकामना है कि शब्दों के सफ़र में नित नए शब्द जुड़ते रहें और आप उनका परिचय ऐसे ही देते रहें.
जिन्जर बेल.. जिन्जर बेल...
अच्छी लगी ये जिन्जर टेल
हां हमारे घर मे श्रावण माह मे खाने मे लह्सून और अदरक का इस्तेमाल बंद रहता है। हो सकता है पहले साल भर रहा हो बाद मे इसे श्रावन मास तक़ सीमित कर दिया गया हों। नशा तो होता ही होगा जभी तो अदरक वाली चाय और ज्यादा मज़ेदार हो जाती है।
अदरक वाकई शानदार चीज है। जहाँ पहुंच जाए उस का जायका बना देती है। हमें तो कॉफी में मिल जाए तो मजा आ जाता है। हाँ उस की नाम यात्रा भी बहुत रोमांचक लगी।
अदरक में नशा है तो हम भी नशेडी हुए :-)
वाह ! इस आद्रता के क्या कहने.....बहुत बहुत सुंदर विवरण.
aare waah adrak kahani badirochak rahi,bahut achhi lagi.
अदरक की कहानी और आपकी जुबानी क्या बात है ।
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