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Wednesday, February 18, 2009
आटा-दाल का भाव…[खान पान-6]
संस्कृत में एक धातु है अर्द् जिसमें भी तोड़ने, मारने, कुचलने, दबाने, चोट पहुंचाने, प्रहार करने जैसे भाव है। अर्द का प्राकृत रूप अट्ट था। जिससे हिन्दी में आटा शब्द बना।
इस श्रंखला की पिछली कड़ी-अदरक में नशा है...[खानपान-5] सां सारिक बातों के व्यावहारिक ज्ञान अथवा दुनियावी मुश्किलात से अवगत होने को मुहावरे में आटा-दाल का भाव पता चलना भी भी कहा जाता है। रोटी, कपड़ा और मकान का संघर्ष आटा-दाल के मुहावरे से जुड़ा है। अब रोटी तो तभी बनेगी जब आटा होगा। अक्सर ग़रीबी में आटा गीला होता है। रोटी बनाने के लिए जितना गीला आटा होना चाहिए, टपकता छप्पर जब उससे भी ज्यादा गीला कर देता है तो गरीबी और अभिशाप बन जाती है। इस मुहावरे में मुश्किल वक्त की दुश्वारी की ओर इशारा है। बहरहाल इन कहावतों में आटे की महत्ता ही सामने आ रही है।
आखिर क्यों न हो। रोटी अगर जीवन का आधार है तो रोटी का आधार ही आटा aata है। आटा कहां से आया। आटा का संबंध फारसी से बताया जाता है क्योंकि फारसी में अनाज से बने आटे को आर्द या अरद arad कहा जाता है। अरद का मतलब होता है तोड़ना, पीसना, कुचलना आदि। दरअसल यह इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है। संस्कृत में एक धातु है अर्द् जिसमें भी तोड़ने, मारने, कुचलने, दबाने, चोट पहुंचाने, प्रहार करने जैसे भाव है। अर्द का प्राकृत रूप अट्ट था। जिसने हिन्दी में आटा का रूप ग्रहण किया जिसका मतलब हुआ पिसा हुआ बारीक अनाज। हिन्दी की विभिन्न बोलियों और देश की ज्यादातर भाषाओं में इससे मिलते जुलते शब्द ही हैं। सिंधी में इसे आटी, गुजराती में आटी, कश्मीरी में ओटु, मराठी में आटवल आदि कहा जाता है।
आटे से मिलता जुलता ही एक और शब्द है जिसे इसके विकल्प के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है वह है पीठी । यह पीठी pithi किसी भी चीज़ की हो सकती है। दाल, धान, मेवे, मसाले किसी भी चीज़ की मगर इसका प्रयोग बतौर आटे के विकल्प अर्थात अनाज की पीठी के रूप में होता है। यह बना है संस्कृत के पिष्ट से जिसका अर्थ है बारीक किया हुआ, चूर्ण किया हुआ, कूटना, आदि। पीठी में बदलने का इसका क्रम कुछ यूं रहा। पिष्टि > पिट्ठी > पीठी। संस्कृत के पिष्ट की मूल धातु है पिष् जिसमें कूटना, दबाना, रगड़ना, दोहराना, चोट पहुंचाना जैसे भाव हैं। दालों के चूर्ण, खासतौर पर चने की दाल के आटे अथवा पीठी को बेसन besan कहा जाता है, जो इसी पिष् से बना है और इसके बेसन में ढलने का क्रम कुछ यूं रहा- पिषन > पेषन > वेषन > बेसन। एक मान्यता यह भी है कि बेसन का निर्माण वेस् से हुआ है। मगर आप्टे कोश के मुताबिक वेस् का अर्थ चूर्ण तो होता है पर इसका अर्थ आटा या पीठी न होकर पिसे हुए मसाले से है मसलन जीरा, कालीमिर्च, राई, सोंठ आदि के योग से तैयार चूर्ण। इसलिए पिष् से ही बेसन का निर्माण तार्किक लगता है। कहने की ज़रूरत नहीं की बारीक बनाने, चूरा करने या चूर्ण बनाने की क्रिया के हिन्दी की पीसना-पिसाना या पिसाई जैसी क्रियाओं के पीछे यही पिष् धातु है। यूं भी प व्यंजन की ध्वनि ब में ही बदलती है।
संस्कृत में एक मुहावरा है –पिष्टपेषण जो साहित्यिक हिन्दी में खूब इस्तेमाल होता है।इसका अर्थ होता है एक ही बात को बार-बार दोहराना, जिसका कोई अर्थ नहीं। गौर करें कि पिष्ट और पेषण ये दोनों शब्द एक ही मूल से जन्मे हैं और इनका अर्थ भी एक ही है। अतः पिष्टपेषण का मतलब हुआ पिसेपिसाए को पीसना। इसे नए रूप में चलाना चाहें तो कह सकते है-बेसन पीसना। वैसे कई लोग इस संदर्भ में आटा पिसाना जैसे वाक्यों को याद कर सकते हैं। गेहूं की पिसाई होती है, आटे की नहीं लिहाज़ा आटा पिसाना भी पिष्टपेषण ही हुआ। गौर करें कि कूटना, रगड़ना ऐसी क्रियाएं हैं जिनमें लगातार आवृत्ति या दोहराव की ही क्रिया सम्पूर्ण हो रही है। चक्की के दो पाटों के बीच में जब अनाज पड़ता है तो रगड़ने, घिसने की यही क्रिया उसे आटे का रूप देती है। पुराने ज़माने में अनाज कूटा ही जाता था। पहले उसका छिलका उतारने के लिए खलिहान में कूटा जाता था, उसके बाद ओखली में इसलिए कुटाई होती थी ताकी आटा मिल सके।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:23 AM लेबल: food drink
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12 कमेंट्स:
आटा का maazra smajh mae आया ,
हिन्दी wala bksa कुछ pareshaan कर रहा hae , samjh mae नही आया faalt हमारी traf से hae या आपकी traf से
आटा गाथा भी सही रही, बहुत आभार.
पिष्ट पेषण को अच्छा व्याखायित किया आपने !
'पिष्टपेषण'का अर्थ समझाने के लिए धन्यवाद। मेरे एक मित्र को सुधारने के मेरे सारे प्रयत्न आपकी इस पोस्ट से शायद सफल हो जाएं। वे इसका मतलब 'परिश्रमपूर्वक पीसना' बताते हैं और तदनुसार ही इसे प्रयुक्त भी करते हैं। उनसे प्रतिदिन का मिलने के कारण वे मेरी बात को हवा में उडाते हैं। आपकी पोस्ट उन्हें सुधारने में सहायक होगी।
क्या बात है !
साहित्य के अध्यापन के दौरान
महाविद्यालय में हमने कई बार
पिष्टपेषण शब्द का प्रयोग किया है,
पर अब हमें
यह विकल्प भी मिल गया है कि
हम कह सकते हैं...
पिसे हुए को क्यों बार-बार पीसते हो भाई !
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अनूठी जानकारी के लिए आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
शब्दों की चक्की चलाते रहिये , हम आटा बटौर रहे है, धन्यवाद .
कुट-कुटाके पिष्ट पेषण हो गया,
पिषण पेषण, वेस बेसन हो गया.
[बिजली गुल थी पाट चक्की के रुके,
आज तो घाटे में भोजन हो गया.]
बढिया रही आटे की और बेसन की जानकारी ...
अब रसोई आरँभ करेँ ? :)
- लावण्या
अभी तक आटा खाया.. ये तो कह सकते थे सबसे.. पर अब आटा आया कहा से.. ये भी कह सकते है..
बहुत सुंदर जानकारी दी आपने.
रामराम.
वाह आपकी वजह से आटे बेसन का भाव पता चल गया । दोनों का रिश्ता भी जोडा गया ।।
बच्पन में एक हास्य कविता पढ़ी थी... 'क्या आते को ही पिसवाओगे?' आज बेसन भी पिस दिया गया :-)
संस्कृत में एक मुहावरा है –पिष्टपेषण जो साहित्यिक हिन्दी में खूब इस्तेमाल होता है।इसका अर्थ होता है एक ही बात को बार-बार दोहराना, जिसका कोई अर्थ नहीं। गौर करें कि पिष्ट और पेषण ये दोनों शब्द एक ही मूल से जन्मे हैं और इनका अर्थ भी एक ही है। अतः पिष्टपेषण का मतलब हुआ पिसेपिसाए को पीसना.....Bhot si jankari mili aapke blog se ...shukriya !!
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