Wednesday, February 11, 2009

कृपया ध्यान दीजिए…

bodhidharma
enso-719821
भारत से बाहर बौद्ध ध्यान का प्रचार करने वाले आचार्य बोधिधर्म का चित्र। ज़ेन का जापानी प्रतीक चिह्न वृत्त जिसके जरिये ध्यान केंन्द्रित किया जाता है

भी इस पर ध्यान दिया है कि दिन भर में हम ध्यान शब्द कितनी बार उच्चारते हैं ? ध्यान दीजिए, ध्यान लगाइये, ध्यान दें, ध्यान से देखें, ध्यान दिलाएं... ! ! ! क्या-क्या ध्यान रखें ! ध्यान रखने में ही सारा दिन चला जाता है और अगले दिन फिर उन्हीं सारी चीज़ों का ध्यान रखना पड़ता है।
क्या है ध्यान ? ध्यान शब्द बना है ध्यै धातु से जिसमें सोच-विचार, चिंतन-मनन जैसे भाव हैं। ध्यै से बने ध्यान में उपरोक्त तमाम भावों के अतिरिक्त खासतौर पर सूक्ष्म चिंतन शामिल है। किसी विशिष्ट का स्मरण, प्रभु के सुमिरन का ही अभिप्राय है। धार्मिक ग्रंथों में लिखा मिलता है-इति ध्यानम् जिसमें इसी स्मरण-चिन्तन का भाव है। ध्यान से बना है ध्यानस्थ, ध्याननिष्ठ वगैरह। एक और शब्द है ध्यानार्थ। यह हिन्दी का आविष्कृत शब्द है जिसका प्रयोग बोलने में कम, लिखने में अधिक होता है। असावधानी के अर्थ में अक्सर चालू हिन्दी में एक वाक्य बोला जाता है-बेध्यानी में .... इस बेध्यानी का आविष्कार भी हिन्दी वालों ने ध्यान के विलोम रूप में फारसी का बे उपसर्ग लगा कर किया है। यह चमत्कार भी बेध्यानी में ही हुआ है।
ध्यान के व्यापक अर्थो में ध्यान लगाना, सोचना, इच्छा करना, कल्पना, चिंतन, एकटक देखना, दृष्टि केन्द्रित करना आदि भी शामिल है। ध्यान शब्द को बौद्ध धर्म ने व्यापक स्वरूप प्रदान किया है। भगवान बुद्ध ने ध्यान के ञ्झान या झान रूप को ग्रहण किया। संभवतः ये पालि भाषा के रूप थे। गौरतलब है कि अधिकांश बौद्ध साहित्य पालि भाषा में ही है और उनमें ध्यान के लिए ञ्झान रूप ही मिलता है। राजेशचंद्रा लिखित बुद्ध का चक्रवर्ती साम्राज्य पुस्तक के अनुसार बुद्ध ने जिस ञ्झान का प्रयोग किया, कालांतर में पंडितो नें उसका परिष्कार कर उससे ध्यान बना लिया। बुद्ध के समय बोली के रूप में पालि का ही प्रचलन था। चीन, तिब्बत, कोरिया, वियेतनाम और जापान में इस ध्यान के विविध रूप मौजूद है।
Doc3 डॉ. भगवतशरण उपाध्याय वृहत्तर भारत पुस्तक में लिखते हैं कि भारत से पूर्व दिशा में सबसे पहले बौद्ध धर्म चीन पहुंचा जहां ञझान का रूप चियान, चान अथवा चा’आन हुआ जिसने एक पंथ का रूप लिया। पांचवीं सदी में आचार्य बोधिधर्म बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए चीन गए। उन्हें ही वहां ध्यान को नए पंथ चा’आन के रूप में प्रसारित करने और मार्शल आर्ट के रूप में जूडो, कराटे, कुंग-फू जैसी कलाओं को विकसित करने का श्रेय दिया जाता है। बोधिधर्म ने अपना वक्त शाओलिन गुफाओं में स्थित विहारों में गुजारा जो इन कलाओं की जन्मस्थली के तौर पर जानी जाती हैं। चीन में बोधिधर्म के चित्र और मूर्तियां बनाई जाती हैं। गौरतलब है, इन कलाओं को युद्धकला तकनीक कहा जाता है मगर बिना किसी हथियार के युद्ध होता नहीं। अहिंसक धर्म के आचार्य ने मूलतः ध्यान केन्द्रित करने की तकनीक के तौर पर इस कला को जन्म दिया जिसे बाद में आत्मरक्षा की कला के तौर पर मान्यता दे दी गई। चीन में ईसा की पहली सदी में ही बौद्धधर्म की महायान शाखा का प्रवेश होने के प्रमाण है। बौद्धधर्म से पहले चीन में ताओवाद का बोलबाला था।
झान के कोरियाई भाषा में भी सिओन, सोन अथवा सॉनजान जैसे रूप बने। सम्प्रदाय के रूप में यहां भी इसका फैलाव हुआ। वियतनामी में ञ्झान का रूप हुआ थियेन और जापानी में यह ज़ेन zen हो गया। बौद्ध धर्म के उपपंथ के रूप मे आज दुनियाभर में ज़ेन को ही सर्वाधिक जाना जाता है। जापान में बौद्ध धर्म 522 ईस्वी के आसपास पहुंचने का उल्लेख है। जापान में भी बौद्ध धर्म से पहले शिन्तोधर्म था। मगर वहां इन दोनों धर्मों में समझौता हो गया। शिन्तो मंदिरों में बुद्ध भी विराजे और बौद्ध मंदिरों में शिन्तो उपासना कक्ष भी बने। जापान में भी चीन की ही तरह बौद्ध धर्म की महायान शाखा का ही प्रवेश हुआ।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

16 कमेंट्स:

Vinay said...

बहुत बढ़िया जानकारी

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ग़ज़लों के खिलते गुलाब

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

ध्यान दिया . ध्यान के बारे मे ध्यान से आपका लेख पढ़ा . {पता नही क्यों आपके हिन्दी बक्से मे मेरे यहाँ हिन्दी टाइप नही हो प् रही है .}

दिनेशराय द्विवेदी said...

शब्दों का सफर इतिहास में भी घुमा लाता है।

प्रवीण त्रिवेदी said...

अच्छी जानकारी !!!

अब चला ध्यान लगाने !!!

Anil Kumar said...

अरे वाह! ध्यान कब जेन बन गया पता ही नहीं चला!

विष्णु बैरागी said...

'ध्‍यान' पर इस ताह कभी भी ध्‍यान नहीं दिया। अब ध्‍यान रखने के प्रयास करेंगे।
बहुत ही रोचक, उपयोगी और महत्‍वपूर्ण।

Unknown said...

really good stuff with lots of information. it is really important to know all these.

by the way i would like to know that,Typing Indian languages in present tools are bit difficult. Do you know any other tool in which one can type easily as well as one can do formatting too?

कुश said...

पूरा ध्यान लगाकर पढ़ी पोस्ट... और भविष्य के लिए लिंक भी सेव कर लिया है.. इसकी यक़ीनन ज़रूरत पड़ेगी मुझे..

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बहुत ध्यान से पढ़ लिया.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

के सी said...

आनंदित हुआ, शब्दों का सफर दीर्घजीवी हो.

Neha Dev said...

बहुत बढ़िया जानकारी

Abhishek Ojha said...

ध्यान चीन की तरफ़ निकल लिया ! 'त्राटक' भी ध्यान लगाने का एक तरीका है. इस पर एक किताब पढ़ी थी. एक-दो बार चाँदनी रात में चाँद पर त्राटक किया भी... (बस मजे के लिए... छोटे बच्चों के साथ शर्त की किसकी आँख में पहले पानी आता है !)

Abhishek Ojha said...

त्राटक शब्द कुछ यूँ ध्यान में आया की ये पुस्तक पढ़ते समय पूरी भूमिका पढ़ जाने के बाद भी ये पता ही नहीं चल पाया था की 'त्राटक' होता क्या है :-)

आलोक सिंह said...

ध्यान बहुत ही ध्यान देने योग्य जानकरी है .
धन्वाद

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन जानकारी भरा आलेख..... बधाई...

Anonymous said...

कृतार्थ हुए हम !

ध्यान में गहरे उतरना इतना आसान नहीं | न ही ध्यान शब्द की गहराई में | कोई बिरला ही इस तल तक पहुँच पाता हो | जो पहुंचे सो संत | आप पहुंचे, और आपकी सोहबत से हम निहाल हुए |

ध्यान और zen का ऐसा रिश्ता हमारी जड़ की महानता का प्रतीक है; हमारे संत पितामहों को वंदन | हमारे पतन का हाल तो देखो कि इधर युग बदला और हम जड़ शाख सब छोड़ पराई बेलों के भरोसे सुख की खोज में भटक पड़े | आप जैसों की जमात बने तो जड़ फिर से जमें | आपके गीत लुभावने | रसदार | हम तो 'संगत' के भी काबिल नहीं, महज़ पिछलग्गू |

आपके सफ़र में चल रहे हैं पीछे पीछे मगन मगन | नेह और संग बनाए रखियेगा |

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