पिछली कड़ी- बन रहा ब्लॉग कुटुम्ब…
ज नवरी के पहले हफ्ते की किसी रात हमारे फोन की घंटी बजी। उधर से आवाज आई- देबाशीष बोल रहा हूं। आपको बता दें, देबाशीष बहुत मीठा बोलते हैं। उन्होंने कहा कि भापाल में ही है .. बस, अगले ही दिन मुलाकात पक्की हो गई। यह भी तय हुआ कि रविरतलामी उनके सारथी बनेंगे क्योंकि रविजी पहले उनके घर पहुंचेंगे जहां से वे उन्हें हमारे घर तक लाएंगे। हम प्रसन्न। ब्लागिंग के दो दिग्गजों के साथ कुछ पल बिताने का मौका जो मिल रहा था। हालांकि दोनों से हम एकाधिक बार मिलते रहे हैं मगर अक्सर नहीं मिल पाते। देबाशीष जब भी भोपाल आते हैं, हमें याद कर लेते हैं । ये उनका स्नेह है।
निश्चित वक्त पर दोनों मेहमानो को अपने घर की बालकनी में खडेहोकर हम सेलफोन के जरिये दिशानिर्देश देते रहे। देबाशीष और रविजी दोनों ही हंसमुख है मगर मितभाषी हैं। चाय कॉफी और हल्के फुल्के नाश्ते के साथ ज्यादातर चर्चा ब्लागजगत के बारे में ही हुई। मोहल्ला वाले अविनाश भी
-----छोटी सी ब्लागर मीट----- दाएं से- देबाशीष, रवि रतलामी और अजित
भोपाल में ही है सो उनके बारे में देबाशीष ने हमसे पूछा। फिर शुरू हुई बढ़ते-फैलते हिन्दी ब्लागजगत की चर्चा। विभिन्न हिन्दी-अंग्रजी अखबारों द्वारा जन समस्याओं के संदर्भ में सीधे आम लोगों से रपट मंगवाने का सिलसिला शुरू हुआ है और उसे सिटीजन जर्नलिज्म कहा जा रहा है। प्रिंट में भी इसकी शुरुआत पश्चिमी जगत में शुरू हुई और आखिरकार यह पत्र-संपादक के नाम जैसे कालम तक सिमट गई क्योंकि लोग समाचार पत्र दुनिया को जानने के लिए खरीदते हैं न कि खुद को खबरनवीस की भूमिका में देखने के लिए। देबाशीष का कहना था कि सिटीजन जर्नलिज्म की बात लंबे समय से कही जा रही थी मगर यह कभी आकार नहीं ले पाई। ब्लाग के जरिये सिटीजन जर्नलिज्म का विचार सफल हो सकता है, ऐसा उनका शुरू से मानना रहा है। शुरुआती ब्लागिंग में लोगों ने इस औजार का इस्तेमाल कम किया मगर अब नागरिक पत्रकारिता अपना आकार ले रही है। ब्लाग की इस ताकत को देखकर ही प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने सिटीजन जर्नलिज्म की पहल शुरू की है।
ब्लागिंग के विभिन्न आयामों पर बात करते हुए उन्होने कहा कि हिन्दी ब्लागिंग में तेजी से विविधता बढ़ी है। विषयों का दायरा बढ़ा है साथ ही साझेदारी में भी इजाफा हुआ है। भाषायी ब्लागिंग में पहले जहां लगता था कि हिन्दी पिछड़ी हुई है,अब हिन्दी आगे निकल चुकी है। देबाशीष सही कह रहे थे। पहले हमारा मानना भी यही था कि तमिल, कन्नड़ मराठी जैसी भाषाओं के ब्लाग हिन्दी की तुलना में ज्यादा सक्रिय और स्तरीय हैं। मगर अब ऐसा नहीं है। मराठी में आज भी नेट-पटु लोग अंतर्जाल पर मौजूद साहित्यिक-सामाजिक फोरम में दिलचस्पी लेते हैं और सक्रिय शिरकत करते है जो ब्लागिंग में नज़र नहीं आती। मराठी के कई ब्लाग मैने देखे हैं, वे बहुत स्तरीय और सुंदर हैं मगर उतने नियमित नहीं हैं जितने हिन्दी ब्लागर हैं।
कुछ मजेदार बातें भी हुईं। ब्लागिंग से परिचय के बाद आभासी मित्रों से मिलने का उत्साह रहता है। देबाशीष ने बताया कि किस तरह से उनके कई आभासी सम्पर्क बने हैं देश-विदेश में। कई लोगो से मुलाकात हो चुकी है और कई लगातार फोन पर सम्पर्क में रहते हैं। अब तो बायोडाटा की तरह अपना ब्लाग रखना भी हर पढ़े-लिखे व्यक्ति के लिए आवश्यक हो जाएगा। परिचय होने पर यह पूछा जाएगा कि आपका ब्लाग है कि नहीं ? हमने मजाक में कहा , आभासी दुनिया में जबर्दस्ती गले पड़ने वाले लोगों का खतरा नहीं है। वास्तविक जीवन में कई
‘अब नागरिक पत्रकारिता आकार ले रही है। ब्लाग की इस ताकत को देखकर ही प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने सिटीजन जर्नलिज्म की पहल शुरू की’
लोगों की बातें अच्छी लगती हैं मगर उनसे अन्यान्य कारणों से रूबरू होने की इच्छा नहीं होती। वजह उनकी शैली या अन्य आदतें। मसलन ज्यादा बोलना, धौल बाजी करना, ताली बजाना और बात बात पर हाथ मिलाना। और तमाम बातें। ये तमाम “खतरे” वर्च्युअल वर्ल्ड में नहीं है। आप कही भी किसी से जुड़ने के लिए विवश नहीं हैं। अपनी टिप्पणियों में और अपने ब्लाग के जरिये भावी मित्रों की छवि काफी हद तक आपके सामने होती है। जिसे चाहे दोस्त बनाएं। रूबरू होने का मौका आने तक यह आभास ही नहीं रह जाता कि वर्च्युअल वर्ल्ड के मुलाकाती हैं।
रविजी ने बड़ी जोरदार बात कहीं। बोले, शादी के लिए वधुपक्ष द्वारा गिनाई जाने वाली सिलाई, बुनाई, कढ़ाई जैसी खूबियां गौण होती जा रही हैं। अब जल्दी ही यह सुनने को मिलेगा कि बिटिया के तीन-तीन ब्लाग भी हैं। एड भी मिलते हैं। या वर पक्ष वाले चौंक कर कहेंगे-अच्छा ! आपकी बिटिया ब्लागिंग भी करती है। शादी के विज्ञापनों में लोग इंजीनियर, डाक्टर जैसे जोड़ीदार के लिए अपनी पसंदगी ज़रूर लिखते हैं। अब लडके या लड़की की इच्छा पर मां-बाप को यह भी लिखना पड़ सकता है कि जोड़ीदार ब्लागर भी हो। हमने कहा, संभव है किसी आभासी परिचित से मिल चुकने के बाद मेरे जैसे मुंहफट को यह सुनने की भी नौबत आ जाए कि “ भाई साहब, आपसे अच्छा तो आपका ब्लाग है...” हमने देबाशीष से डोमेन नेम के बारे में जानकारी चाही। कई शुभचिंतक इसके लिए सलाह दे चुके हैं। देबाशीष ने भी उत्साहित किया और तसल्ली से समझाना शुरू किया। हम जैसा अज्ञानी सिर्फ गर्दन हिलाने और सब कुछ समझने का नाटक करने के अलावा और क्या कर सकता था। इस भ्रम में हम लोगों को अक्सर डाल देते हैं कि हम काफी समझदार है। इस बीच हमारे चिरंजीव अबीर फोटो खींचते रहे। इसके बाद संक्षिप्त ब्लागर मीट का पारंपरिक उपसंहार ...फिर मिलते हैं...के साथ हो गया।
अगली कड़ी में फिर एक मेहमान
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33 कमेंट्स:
इस छोटी से ब्लॉगर मीट के बहाने आपने काफी अच्छी जानकारी दी.
हिन्दी ब्लोगिंग का भविष्य निसंदेह उज्जवल है.
मेरे ब्लॉगस पर भी पधारें
साहित्य की चौपाल - http://lti1.wordpress.com/
जेएनयू - http://www.jnuindia.blogspot.com/
हिन्दी माध्यम से कोरियन सीखें - http://www.koreanacademy.blogspot.com/
चलिए, तीन तीन दिग्गज एक जगह इक्कठे हो गये. रिपोर्ट पढ़कर अच्छा लगा.
वरिष्ठ ब्लॉगरों •ा साथ •ाश हमें भी मिल पाता है।
जब तक मुलाक़ात न हो तब तक तो यही कहना पड़ेगा आप से अच्छा आप का ब्लॉग है . लेकिन ब्लॉग अच्छा है तो हो सकता है आप भी अच्छे होंगे
बहुत सुंदर आरंभ! वह भी हिन्दी ब्लागिंग के दो अग्रदूतों के साथ। आगाज ही बहुत अच्छा है।
इस रिपोर्ट को पढ़कर मन खुश हुआ. रविजी की यह बात सही होने वाली है कि "शादी के लिए वधुपक्ष द्वारा गिनाई जाने वाली सिलाई, बुनाई, कढ़ाई जैसी खूबियां गौण होती जा रही हैं। अब जल्दी ही यह सुनने को मिलेगा कि बिटिया के तीन-तीन ब्लाग भी हैं।
ब्लागिंग की क्वाआलिफिकेशन कहीं विवाह के रिश्तों में रोडे न अटकाए !
आज कुछ हट के लिखा आपने ! अच्छा लगा, शुभकामनायें !
ब्नाग विश्व के तीन महारथियों को एक साथ देखना सुखद रहा। अपने गुरु रविजी को देखना तो और अधिक आह्लादकारी।
ब्लाग के भावी स्वरूप पर ऐसी चर्चाओं का प्रकटीकरण मुझ जैसे नौसिखिए चिट्ठाकारों को रास्ता दिखाएगा और समझ भी विकसित करेगा।
इस महत्वपूर्ण और उपयोगी प्रस्तुति के निए अतिरिक्त आभार।
इस को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ..अब लगा की हिन्दी ब्लागिंग निश्चित रूप से सही दिशा में जा रही है और आने वाला वक्त हिन्दी ब्लागिंग के लिए बहुत अच्छा होगा ...आभार।
आपकी हर प्रस्तुति के पीछे
ध्येय होता है और दृष्टिकोण भी.
ब्लागर मुलाक़ात में भी वही तेवर
बरक़रार है.
बहरहाल सबसे मिलकर अच्छा लगा
पर यह भी की भाई रवि तो मेरे सहपाठी
रहे हैं राजनांदगांव में....लिहाजा ज्यादा खुशी हुई.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
ब्लॉग तो है ही दोस्ती का अड्डा!
वाह! आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है। अब मिले नहीं तो कैसे कहें कि आप से अच्छा है!
ब्लॉग तो अच्छा है यह निर्विवाद है ।
वाह..... संकेत अच्छे हैं कारवां के लिये...
आपसे मुलाकात तो नही हुई है भाऊ मगर फ़ोन पर बात ज़रुर हुई है,उसी आधार पर कह सकता हूं,आपका ब्लोग जितना अच्छा है उतने ही अच्छे आप भी हैं।
बातें तो सारी गजनुमा हैं
पर दिग्गज कोई लगा नहीं
बातें गजनुमा सारी लगीं
उनका स्थाई होना जमता है
जिन तक पहुंच न पाए
आदमी वो जो है आम
वही कहलाता है सही में
दिग्गज रूतबे वाला नाम।
ब्लॉगर तो मिलते ही रहते हैं
इस ब्लॉग कभी तो उस ब्लॉग
पढ़ते हैं टिप्पणी बिना ब्लॉग
ब्लॉगवाणी पर है सुविधा जनाब।
ह्म्म चर्चा वाकई काफी अच्छी हुई आप लोगों की।
आप अपने डोमेन पर जाने की सोच रहे हैं यह अच्छी बात है।
अनिल पुसदकर से सहमत हैं भाऊ अपन भी… वाकई ब्लॉग का परिवार तेजी से बढ़ रहा है, और रवि रतलामी जी द्वारा छोड़ी गई हास्य पिचकारी भी मजेदार रही…
ब्लॉगर मीट का अपना ही आनन्द है। जिसके सामने पहली बार आना होता है... उससे भी रिश्ता पुराना होता है। :)
आदरणीय भैया,
बहुत दिनों से एक सुझाव देने का साहस जुटा रहा था. क्या ही अच्छा हो अगर "शब्दों का सफर" एक पुस्तक का आकार ले. ज़्यादा से ज़्यादा लोग इसका मज़ा ले पाएंगे और ये एक अनोखा संकलन होगा.
अच्छी बात है
आभार
पढ़कर अच्छा लगा.
बहुत बढिया.
ब्लॉगर मीट के बहाने आपने काफी अच्छी जानकारी दी!!!!
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है। मिले नहीं तो कैसे कहें कि ..... अच्छा है!
अरे आपका ब्लॉग अच्छा है क्योंकि आप अच्छे हैं ! नहीं तो सबका अच्छा नहीं हो जाता? बाकी, बड़े लोगों की मीटिंग थी ये तो :-)
इस छोटी सी ब्लॉगर मीट के बहाने बढिया जानकारी मिली..
यदि ईमानदार टिप्पणी दूँ,
तो कुछ अटपटा लग सकता है..
तो..., मुझे आपके सौभाग्य से ईर्ष्या ही हो रही है ।
अन्यथा न लें, एक कुटुम्बी की पहचान में यह भी है ।
पर.. एक अच्छी पहल के वाहक बन कर आप उठ खड़े हुये हैं,
तो यह भी सफल ही रहेगा ।
सुप्रिय कल्प,
सफर पर तुम्हारा आना अच्छा लगा। तुम सही सोच रहे हो। कई अन्य साथी भी इस बारे में कहते रहे हैं। तुम्हारा सुझाव इस साल साकार रूप ले सके, ऐसे प्रयास जारी हैं। पांडुलिपि पर काम चल रहा है। बस, वक्त की कमी है। मैं इसे सिर्फ लेखों के संकलन के तौर पर नहीं देखता बल्कि एक कोश की तरह उपयोगी बनाना चाहता हूं। अब तक जिन शब्दों के जन्मसूत्रों की चर्चा हम शब्दों का सफर में कर चुके हैं, पुस्तक के अंत में मैं उस सब शब्दों की अकारादि क्रम से सूची देना चाहता हूं। ये शब्द अब तक करीब ढाई हजार हो चुके हैं, मगर यही काम थोड़ा मुश्किल और वक्तखपाऊ लग रहा है। इसी सूची से इस प्रयास को कोश की शक्ल मिलेगी और हमारा यह प्रयास स्थायी महत्व पा सकेगा। उम्मीद है घर में सब मंगल-मगन होंगे।
शुभकामनाओं सहित
अजित
कल्पकार्तिक लिखते हैं-
आदरणीय भैया,
मेरी यही कामना है कि "शब्दों का सफर" जिस भी फार्मेट में प्रकाशित हो उसका "फ्लेवर" बरकरार रहे जो कि उसकी ताकत भी है. आम पाठक बगैर पुस्तकालय जाये उसका आनन्द ले पाए, खरीद पाये (बेस्ट- सेलर बने). इसमे दोनों सम्भावनाएं हैं: शब्दकोशात्मक और आलेख- संकलन, क्योंकि ये एक साहित्यिक काम है और एक नई विधा भी. जैसे ब्लाग में आपका व्यक्तित्व मुखर है वैसे ही पुस्तक में भी रहे. काम की प्रगति पूछता रहूंगा. शुभकामनाएं.
अच्छा लगा ये ब्लॉगर मीट रिपोर्ट पढ़ कर....! और रही बात बायोडाटा में ब्लॉग जानकारी को ले कर हँसी मजाक की, ये मेरे घर दिनभर चलता है....!
बहुत सुंदर .
बधाई
इस ब्लॉग पर एक नजर डालें "दादी माँ की कहानियाँ "
http://dadimaakikahaniya.blogspot.com/
बढिया लगा ये ब्लोगर मीट
अजित भाई
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