Thursday, February 19, 2009

धींगड़ी को जरा भी शऊर नहीं…

91241-09
ढ़ती उम्र के लड़के-लड़कियों को उनकी आयु का एहसास कराने के लिए अक्सर अभिभावक और बुजुर्ग तरह-तरह के उलाहने देते हैं जिसका अभिप्राय होता है वे अपनी आयु के अनुकूल व्यवहार करें और भविष्य की जिम्मेदारियों के प्रति गंभीर हो जाएं। इसी के तहत किशोरावस्था से ऊपर चढ़ते लड़के-लड़कियों को धींगड़ा या धींगड़ी कहा जाता है। वाक्य प्रयोग कुछ यूं होते हैं-धीगड़ा हो गया पर किसी काम का नहीं या धींगड़ी को जरा भी शऊर नहीं ? जानते हैं कहां से आए हैं ये शब्द और इनका सही मतलब क्या है।
हि न्दी का एक शब्द है दृढ़ जिसका मतलब होता है कठोर या मजबूत। मूल रूप से संस्कृत के इस शब्द में पक्का, टिकाऊ, ताकतवर, पकड़, कब्जा, जकडना, थामना, स्थायी, बलिष्ठ, डील-डौल, अडिग रहने के भाव हैं। दृढ़ शब्द बना है दृह धातु से जिसमें स्थिर होना, कसना, समृद्ध होना और विकसित होना-बढ़ाना जैसे भाव हैं। दृढ+अंग से मिलकर बना है दृढ़ांग जो ध्रिड़ांग > धिडंगआ > धिंगड़आ; होते हुए
...धींगड़ा/धींगड़ी शब्द में कई सारे भाव शामिल हैं मसलन बलवान, हट्टाकट्टा, साहसी, छैला,सजीला,अकड़ू आदि ...
वर्ण विपर्यय के जरिये धींगड़ा बना होगा। दृढ़ और अंग के मेल से बने धींगड़ा का शब्दार्थ होता है मज़ूबत कद काठी का। हृष्ट-पुष्ट बढ़ती उम्र में शरीर परिपुष्ट होता है इसीलिए किशोर बच्चों के लिए धींगड़ा शब्द रूढ हो गया। मगर धींगड़ा शब्द में कई सारे भाव शामिल हैं मसलन छैला, रंगीला, साहसी, बलवान, मोटा, हट्टा-कट्टा, कद्दावर, बलिष्ठ आदि। शरारती और नटखट के अर्थ में भी इसके स्त्रीवाची और पुरुषवाची रूपों का चलन है।
गौरतलब है कि मनमानी करनेवाले लोगों को अपने शारीरिक बल का ही घमंड होता है। यह घमंड ही उन्हें नियम-तोड़ने को उकसाता है और वे अपराध तक करने लगते हैं, इसीलिए नकारात्मक भाव के साथ धींगड़ा शब्द बाहुबलियों, गुंड़ो, मवालियों के लिए भी प्रयुक्त होता है। सामान्य तौर पर भी बेशर्म, नालायक, बेशऊर और लम्पट के अर्थ में धींगड़ा या धींगड़ी शब्दों का इस्तेमाल समाज में होता है।
धींगड़ा या धींगड़ी शब्द के मायने धींगामस्ती की छाया में समझने में आसानी होगी। धींगामस्ती के साथ लगा मस्ती शब्द अपने-आप इसका संकेत देता है कि यहां मस्ती से कहीं आगे की बात कही जा रही है। धींगामस्ती से भाव हुड़दंग, उठापटक या हाथापायी या उत्पात मचाने से है। असल में इसका सही रूप धींगा-मुश्ती है जो उर्दू का है और बरास्ता फारसी हिन्दी में दाखिल हुआ। धींगामुश्ती के मुश्ती को हिन्दी में कई लोग मस्ती भी उच्चारने लगे और धींगामस्ती शब्द भी चल पड़ा। धींग या धींगा भी धींगड़ा से ही जन्मे हैं। इसका धिंग रूप भी प्रचलित है। धिंगाधिंगी शब्द का मतलब भी उधम या मस्ती ही होता है। मुश्त का मतलब होता है मुट्ठी और यह मुश्त से ही बना है। जाहिर है जोर आज़माइश मुट्ठी यानी पकड़ से ही की जाती है। अब धींगामुश्ती का हाथापायी अर्थ एकदम साफ है। स्पष्ट है कि धींगा या धिंगा संस्कृत-प्राकृत मूल से ही पश्चिमोत्तर क्षेत्र की भाषाओं में दाखिल हुआ।
पंजाबी में साहसी, मजबूत व्यक्ति को धिंगा या डिंगा कहा जाता है। पाकिस्तान में कस्बे का नाम है डिंगा जो गुजरांवाला जिले में है। इसे किसी डिंगासिंह नाम के महाबली व्यक्ति की वजह से यह नाम मिला। पंजाब में भी डिंगासिंह नाम मिलते हैं। डिंगा शब्द अफगानी, ईरानी की कई बोलियों में इन्हीं अर्थो में इस्तेमाल होता है।  इन्हीं भाषाओं के

dengue डिंगा शब्द से जुड़े कई अर्थों का मिलाजुला सा  प्रयोग स्वाहिली में एक विशिष्ट बुखार के संदर्भों में हुआ जो मच्छरों द्वारा फैलाया जाता है।

जरिये डिंगा शब्द स्वाहिली भाषा में भी दाखिल हुआ। गौरतलब है कि अफ्रीका की स्वाहिली में स्थानीय बोली के शब्दों के साथ-साथ अरबी के शब्दों की भरमार है। इसके अलावा फारसी और भारतीय मूल के शब्द भी इसमें हैं।
डेंगू बुखार कुछ समय पहले बड़ा चर्चित हुआ था। इस डेंगू का मूल भी डिंगा ही समझा जाता है। डिंगा शब्द से जुड़े कई अर्थों का मिलाजुला से प्रयोग एक विशिष्ट बुखार के संदर्भों में हुआ जो मच्छरों द्वारा फैलाया जाता है। इस बुखार में समूचे शरीर का पोर-पोर, जोड़-जोड़ दर्द करता है। डिंगा का यहां अर्थ हुआ बुरी आत्माओं द्वारा फैलाया गया उत्पात। स्वाहिली से डिंगा dinga स्पैनिश में गया और इसका डेंगू रूप प्रचारित हुआ Dengue के तौर पर। दिलचस्प यह कि स्पैनिश में इस डेंगू ने फिर वहीं भाव ग्रहण कर लिए जो इसके एशियाई मूल स्वरूप के साथ जुड़े थे अर्थात बनठन कर रहनेवाला, कड़ियल जवान, छैलाबाबू आदि। करीब दो सदियों पूर्व वेस्टइंडीज़ के स्पेनीभाषी क्षेत्रों में इस बुखार ने अपने पैर पसारे और दुनिया को इसकी जानकारी मिली। वहां इसे डेंडी फीवर dandy fever कहा गया जो  स्पेनिश के Dengue से ही बना था। डेगूं बुखार में जोड़ों के दर्द की वजह से मनुष्य अकड़ कर चलता है और यही लक्षण इसके डेंगू नामकरण की वजह बना।

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17 कमेंट्स:

अनिल कान्त said...

बहुत अच्छी जानकारी दी आपने ...बहुत अच्छा लगा

Udan Tashtari said...

धींगड़ा बचपन से सुनते आये..आज जाकर सही मायने में जाना. आपका बहुत आभार.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

गुजरात मेँ लडाई को अक्सर "धीँगाणूँ " भी कहते हैँ ..
ये शब्द भी धीँगडा से मेल खाता है ..
हम लोग कुछ कम अक्ल के ऐसे ही नौजवानोँ के लिये 1 और शब्द कोलेज के दिनोँ मेँ इस्तेमाल करते थे "पेँपलूज़्" :)
अब वो शब्द कहाँ से आया .
ये खोजना आपका काम है अजित भाई ..
स स्नेह,
- लावण्या

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

ध अक्षर की महिमा आपने बताई थी उसमे एक शब्द जुडा धींगडा . कुछ के सरनेम भी होते है धींगडा

Anil Pusadkar said...

हां भाऊ हम तो बचपन से सुनते आए हैं धींगाने नको करू,यानी धमाल मत कर्।मस्त पोस्ट एकदम धींग-चक्।

Smart Indian said...

बहुत खूब!

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बुखार में अकड़...यानी डेंगू !
कमाल है भाई.
पर जिन लोगों को अक्सर
अकड़ का बुखार चढ़ा रहता है
उसे क्या कहते हैं अजित जी ?
==========================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

विष्णु बैरागी said...

अच्‍छी जानकारियां हैं। उपयोग तो सब करते हैं किन्‍तु अर्थ मालूम नहीं होता।

ताऊ रामपुरिया said...

अब समझ मे आ्या कि हमको धिंगडा क्युं कहा जाता था.:)

रामराम.

दिनेशराय द्विवेदी said...

धींगड़ा शब्द का उपयोग नकारात्मक तरीके से अधिक किया जाता है। जैसे किसी को उलाहना देने के लिए।

Arun Arora said...

वैसे धींगडॆ एक उपजाती यानी गोत्र भी होता है . पंजाब मे आपको ढेरो धींगडे मिल जायेगे . इसलिये धींगडो के बारे मे लिखते हुये ध्यान रखे कही पंगा ना हो जाये वैसे हमारे भी मामा धींगडे है नोट करे कर्म से नही गोत्र से :)

ghughutibasuti said...

बहुत जबर्दस्त जानकारी ! धन्यवाद।
घुघूती बासूती

अजित वडनेरकर said...

@अरुण अरोरा/धीरूसिंह
पंगेबज बंधु धींगरा में कोई पंगा नहीं है। अलबत्ता पंजाबी खत्रियों का जो उपनाम धींगरा/ढींगरा/धींगड़ा है वह इसी मूल से उपजा है। खत्रियों के इतिहास से पता चलता है कि इनके ज्यादातर उपनाम शौर्य, तेज, ऊर्जा, बल, शीतलता-जैसे भावों का उद्घाटन करनेवाली शब्दावली से बने हैं। जहां तक धींगड़ा का प्रश्न है उसमें शक्ति, शूरवीरता का भाव स्पष्ट है। इसीलिए दृढ़+अंग से बने धींगड़ा में नकारात्मक कुछ भी नहीं है। भाषा का प्रवाह विभिन्न समाजों में एक सा नहीं रहता। जाहिर है शब्द नया चोला पहनकर, नए तेवर, नई शक्ल में सामने आते हैं। वाल्मिकी ने राम को "मरा" उच्चारा तब भी कोई पंगा नहीं हुआ था :)

Gyan Dutt Pandey said...

देशभक्त मदनलाल धींगरा की याद हो आई।

डॉ .अनुराग said...

हमें अपनी गुजराती टीचर याद आ गई आज ....

कुश said...

हम तो खुद बड़े धींगडे टाइप आदमी है..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

देसज शब्दों की व्याख्या, रोचक ढंग से की है।
गहराई में डूब-डूब कर, बड़ी उमंग से की है।।

पहली बार पढ़ा है तुमको, आगे भी ऐसी ही इच्छा है।
दबी-ढकी शब्दावलियों को, किया उजागर अच्छा है।।

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