पिछली कड़ी- “ भाईजी, आपसे अच्छा तो आपका ब्लाग है...”
ब्ला गजगत में
अफ़लातून उन वरिष्ठ ब्लागरों में हैं जिन्होने 2004 के आसपास हिन्दी ब्लागिंग शुरू की थी और तब से अब तक इस माध्यम की विकास यात्रा के गवाह रहे है बल्कि लगातार उसे बढ़ावा देने के लिए सार्थक प्रयास भी करते रहे हैं। वे सक्रिय सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता हैं और बीते चार दशकों के दौरान देश-दुनिया में आए बदलावों को उन्होने गहराई से देखा-परखा है। अपने बारे में विस्तार से
बकलमखुद में लिख चुके हैं।
अफ़्लू भाई का विगत एक माह में दो बार भोपाल आना हुआ। उनका पहला फेरा पंद्रह जनवरी को लगा, जब वे अपनी पार्टी (समाजवादी जन परिषद) के काम से दक्षिण भारत जा रहे थे। तीन-चार दिन पहले उन्होने हमे इसकी सूचना दे दी थी। उन्हें यूं तो इटारसी से होकर गुज़रना था। देश के बड़े रेलवे जंक्शनों में इटारसी है और इसे दक्षिण का दरवाज़ा कहा जा सकता है। भोपाल से इटारसी की दूरी करीब पिच्चासी किमी है। भोपाल में रहनेवाले ब्लागर मित्रों व अन्य दोस्तों से मिलने की ललक के चलते उन्होने तय किया कि दक्षिण के लिए इटारसी से ट्रेन पकड़ने से पहले ऐसा प्रबंध किया जाए कि भोपाल के मित्रों से मिलना भी हो जाए और फिर इटारसी जाकर ट्रेन पकड़ ली जाए।
अफ्लू भाई के एक मित्र यहां रेलवे के डीआरएम कार्यालय में अधिकारी हैं सो उन्होंने रेलवे गेस्ट हाऊस में उनके रुकने का प्रबंध करा दिया, वर्ना हमने अपने यहां उनका प्रबंध कर रखा था। हालांकि इस यात्रा में अफ्लूभाई हमारे पल्ले कम ही पड़े क्योंकि पत्रकारिता के छात्रों के साथ उनकी एक गोष्ठी तय हो चुकी थी। बहरहाल, हम उसी गोष्ठी में उनसे मिलने पहुंचे। वहां रविरतलामी भी थे। पत्रकारिता के छात्रो को अफ्लूभाई ने ब्लागिंग के शुरुआती दौर की बातें बताईं। वर्डप्रेस और ब्लागस्पाट की विशेषताओं की जानकारी दी। वे तीन-चार ब्लाग चलाते हैं, उनके बारे में विस्तार से बताया और ब्लाग की सामाजिक भूमिका, उसकी शक्ति और सार्थक प्रयोग के बारे में संक्षिप्त सी जानकारी दी। हमें जल्दी थी सो उन्हें पत्रकारिता के भावी कर्णधारों के बीच छोड़कर हम निकल लिए। वे भी शाम को वाया इटारसी अपने गंतव्य के लिए रवाना हो गए।
तीन दिन पहले यानी गुरुवार बीस फरवरी को अफ्लूभाई का फिर भोपाल आना हुआ। उनकी पार्टी मध्यप्रदेश के आदिवासियों-वनवासियों के बीच कई वर्षों से सक्रिय भूमिका निभा रही है। हरदा क्षेत्र में चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता
शमीम मोदी की गिरफ्तारी के विरोध में आयोजित प्रदर्शन में हिस्सा लेने वे बनारस से सुबह भोपाल पहुंचे। हमने उन्हें पहले ही बता दिया था कि वे सीधे घर आ जाएं क्योंकि इस बार भी वक्त कम था। साठे आठ बजे अफ्लूभाई कंधे पर थैला लटकाए हमारे घर पहुंच गए। चाय के साथ बातचीत शुरू हुई। अफ्लूभाई के घर में कई संस्कृतियों का मेल है। गुजराती, बांग्ला, उड़िया, मराठी और तमिल भाषा-भाषियों से उनका कुठुम्ब पूरा होता है। पार्टी के विस्तृत दायरे और उनके सामाजिक क्षेत्र को भी मिला लिया जाए तो अनुमान लगाया जा सकता है कि उनुभवों की कितनी विशाल पूंजी वे साथ लिये चलते हैं। उन्हें बोलना अच्छा लगता है (जाहिर है, सामाजिक कार्यकर्ता चुप रह कर जिंदा नहीं रह सकता), मगर दो बार की मुलाकातों में वे मुझे बहुत विनम्र, स्नेही लगे।
गांधीवादी पृष्ठभूमि से जुड़े होने के चलते वहीं संस्कार उनके व्यक्तित्व में भी दिखते हैं। उनके पितामह महादेवभाई देसाई, महात्मा गांधी के
अफ़लातून और रवि रतलामी
निजी सचिव थे। अफ़लातून जी बनारस में रहते हैं। उनका एक पुत्र है जो जर्मनी में है और एक बिटिया है प्योली जिसने हाल ही मे दिल्ली में वकालत शुरू की है। अफलातून जी की जीवनसंगिनी डॉ.स्वाति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में विज्ञान की प्राध्यापक हैं। बेटी ने वकालत के लिए दिल्ली ही क्यों चुना, इस पर अफलातून जी ने बताया उसकी पढ़ाई भी दिल्ली में ही हुई है। ग्रेज्यूएशन के बाद एलएलबी वहीं से किया है। वो पढाई में तेज हैं। अफ़लातून जी बताते हैं कि उसकी मां नहीं चाहती थी कि अपनी मेहनत के दम पर पढ़ाई में अच्छे नतीजे लाने वाली उनकी बेटी की कामयाबी को लोग यह कह कर हल्का तौलें कि जब मां प्रोफेसर है तो बेटी अव्वल क्यों नहीं आएगी !! इसी लिए इंटर के बाद इस मध्यवित्त परिवार ने यही तय किया कि वह बीएचयू में न पढ़े। हमें यह बात बहुत अच्छी लगी। अफ्लूभाई भी पहले विश्वविद्यालय में ही थे मगर उनकी सामाजिक गतिविधियों को विश्वविद्यालय ने असामाजिक माना। तब से वे पूर्णकालिक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। यूं वे मानते हैं कि अगर वे अध्यापक होते तो यकीनन सांख्यिकी ही पढ़ाना पसंद करते। यह सुनकर अपन ने तो विषय बदल दिया क्योंकि अपन को गणित की किसी भी किस्म से नफरत हैं।
बातें करते हुए याद आया कि उन्हें बारह बजे धरना स्थल पर पहुंचना है और करीब पौन घंटा वहां पहुंचने में लग जाएगा लिहाजा वे स्नान-ध्यान से निवृत हो जाएं तब तक नाश्ता तैयार हो जाएगा और हम उन्हें सविधाजनक दूरी तक छोड़ देंगे। नाश्ते के साथ बातचीत का दौर फिर शुरू हुआ। ब्लागिंग पर कुछ खास बात नहीं हुई। अलबत्ता बीच बीच में इसका जिक्र आता रहा। हम अभी तक मानते थे कि हिन्दी ब्लागर टिप्पणी प्रेमी हैं और इसीलिए हिन्दी ब्लागों पर टिप्पणियां खूब देखने को मिलती हैं मगर अफ्लूभाई ने बताया कि ऐसा नहीं है। विदेशी भाषाओं के ब्लागों पर भी खूब टिप्पणियां लिखी जाती हैं। उन्होने बताया कि उनका पुत्र जर्मनी में है और उसका भी ब्लाग है जिस पर काफी प्रतिक्रियाएं मिलती हैं। फर्क यही है कि हिन्दी ब्लागिंग में अभी आरएसएस फीड या गूगल रीडर के जरिये ब्लागपठन का चलन आम नहीं है। ज्यादातर लोग एग्रीगेटर पर ही जाना पसंद करते हैं इसलिए ब्लाग पर टिप्पणी मिलती है।
एक बात यह भी सामने आई कि तेजी से बढ़ती हिन्दी ब्लागों की तादाद देखते हुए ब्लागएग्रीगेटर के जरिये अपनी पसंद के ब्लाग के अपडेट होने की सूचना पाना आसान नहीं रह जाएगा क्योंकि मिनट दर मिनट प्रविष्टियों के प्रकाशन की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में कोई भी प्रविष्टि बहुत थोड़े समय के लिए अग्रिम पृष्ठो पर नजर आएगी और देखते ही देखते प्रविष्टियों के अंबार में गुम हो जाएगी। उन्होने कहा कि
मैथिली जी (ब्लागवाणी के संचालक) से भी उनकी इस बारे में चर्चा होती रहती है। अफ्लूभाई की पिछली यात्रा के दौरान रवि रतलामी जी ने भी यही बात कही थी। हमारा मानना है कि इसके बावजूद लोग एग्रीगेटर पर इसलिए जाएंगे क्योंकि उन्हे अधिक पढ़े हुए चिट्ठे, अधिक टिप्पणी प्राप्त चिट्ठे और अधिक पसंद की गई पोस्ट की जानकारी वहीं पर मिलेगी जिसके जरिये पाठक को इन तीन फीचर्स के जरिये ही उस दिन की प्रमुख ब्लागीय हलचल की जानकारी तो अवश्य हो जाएगी। हमारी बात से अफ्लूभाई भी सहमत थे। इस चर्चा को विराम देना पड़ा, क्योंकि घड़ी साढ़े ग्यारह बजा रही थी और अफ्लूजी को प्रदर्शन स्थल के लिए निकलने का इशारा मिल चुका था। जो भी हो, दो मुलाकातों में हमारे हिस्से आए थोड़े-थोड़े ही सही, पर अफ्लूभाई भले लगे।
[अगली कड़ी में फिर एक मेहमान ]
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21 कमेंट्स:
अफलातून भाई,ब्लागिंग के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिली हैं इस आलेख से। बहुत ही जानदार आलेख!
आपके माध्यम से अफलातून भाई को जानना अच्छा लगा. बहुत आभार.
अफ़लातून (क्या आधुनिक प्लूटो ? ) से मुलाकात कराने के लिए शुक्रिया ! शायद कभी बनारस में मुलाक़ात हो !
इतना कुछ पढने के बाद भी तृप्ति नहीं हुई। अफलातूनजी को लेकर कुछ और पढने की चाह बनी हुई है। यह 'कुछ और' क्या है - व्यक्त कर पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं हो पा रहा है।
इसका आशय यह कदापि न निकालें कि आपकी पोस्ट अधूरी और अपर्याप्त है। वस्तुत: मेरी प्यास अधिक है।
अफलातूनजी से सुबह-सुबह भेंट करा दी आपने। इसके लिए बहुत-बहुत आभार।
अफ़्लातून साहब से परिचय करवाने के लिये आपका आभार.
रामराम.
आप अफ़्लातून भाई को भला कह रहे है तो निश्चित रूप से भले ही होंगे क्योंकी आपका एक-एक शब्द जांचा परखा रहता है। अच्छा लगा भाऊ अफ़्लातून जी के बारे मे जानकर्।
भेंट विवरण अच्छा लगा। फोटो भी अच्छी लगी! शानदार!
शुक्रिया इस विवरण के लिए, विष्णु बैरागी से सहमत होने का मन हो रहा है।
आशा करता हूं अफलातून जी से कभी मुलाकात होगी।
अफलातून जी से जितना भी व्यक्तिगत संवाद हो सका है उसमे हमने पाया है कि वो सबको महत्व और स्नेह देते फिरने वालों में से हैं . दूसरों को महत्वपूर्ण होने का अहसास दिलाने व्वाले ऐसे लोग कम ही होते हैं उनके स्नेह की बौछार हम पर भी हुई है.
देखते हैं मुलाक़ात कब हो पाती है
अफलातून जी निसंदेह आदर के पात्र है ओर एक वरिष्ठ ब्लोगर होने के नाते उनके अनुभव विचारणीय है ,हिन्दी ब्लोगिंग में एग्रीगेटर के अलावा दूसरा रास्ता किसी को मालूम नही है ..दूसरी बात कुछ लोग गूगल पर नाम डाल कर सर्च करते है तब उन्हें किसी ब्लॉग का पता चलता है .५० प्रतिशत से भी ज्यादा हिन्दी लेखन में दिलचस्पी रखने वाले ब्लॉग जगत से अनजान है...विभिन् अख़बार पत्रिकायो में भी एग्रीगेटर का जिक्र कम अथवा न के बराबर ही होता है ...निसंदेह इस विषय में गंभीरता से सोचना चाहिए की हिन्दी ब्लोगिंग का सही दिशा में विस्तार ओर विकास कैसे हो
अफलातून भाई से परिचय करवाने और हिन्दी ब्लॉग्गिंग के संदर्भों की जान कारी अच्छी लगी मैं उनके विचारों से सहमत भी हूँ ...आप भोपाल मैं कहाँ हैं ..फ़ोन नं दें...
सच जीवन दर्शन और शैली
दोनों का प्रभाव साफ़ दृष्टिगोचर
होता है अफलातून जी में. उनकी
अनकही को भी आपने यादगार
अंदाज़ में पेश किया था.
इस मुलाक़ात से
हमें भी रूबरू कराने हेतु आभार
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
शमीम के विषय में बी बी सी की इस सुन्दर खबर को नहीं देखा था। आपने यह कड़ी देकर ब्लॉग महात्म्य जताया ।
हृदय से आभार ।
सप्रेम.
भले लोग जनमानस में,
सच्चाई ढूँढा करते हैं।
तालाबों के मैले जल में,
अच्छाई ढूँढा करते हैं।।
इसी तरह चहुं ओर अच्छाई ढूंढते रहें। धन्यवाद।
ब्लागिंग पर यह अच्छी चर्चा है। पढकर अच्छा लगा।
अफ़लातून भाई से , यहाँ मिलना बहुत अच्छा लगा
हार्दिक धन्यवाद अजित भाई, अफलू जी मेरे लिए एक अबूझ मिथ सरीखे रहे.. आज उनके विषय में कापी कुक जान सका |
एग्रीगेटर की बात पर डा. अनुराग का आकलन बहुत ही सटीक है |
अफलातून जी के बारे में तो पढ़ ही चुके थे... पर आपके थ्रू इस तरह मिलना बड़ा अच्छा लगा.
दो वर्ष पहले अफलातून जी के साथ हमने सपरिवार एक पूरा खुशनुमा दिन गुज़ारा था ,यादे ताज़ा हो गयी
हालांकि स्वाती जी से न मिल पाने का अफ़सोस आज भी है
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