न्याय की जिस देवी की आंखों पर हमेशा पट्टी बंधी होती है उस न्याय और नयनों का जन्म
नी धातु से ही हुआ है।
हि न्दी का बड़ा आम शब्द है कचहरी जिसका मतलब है न्यायालय, अदालत या कोर्ट। कानूनी झमेलों में पड़ने को आमतौर पर अदालतों के चक्कर काटना कहा जाता है। इसी तर्ज पर कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाना वाक्य भी प्रचलित है इसमें चाहे कोर्ट अंग्रेजी का और कचहरी हिन्दी का शब्द हो मगर दोनों के मेल से कोर्ट-कचहरी में मुहावरे का असर पैदा हो गया है।
मूल रूप से कचहरी शब्द बना है संस्कृत के कृत्यग्रह से जिसका मतलब होता है अदालत। यह बना है कृत्य+ग्रह की संधि से और फिर कृत्यग्रह > कच्चघर> कच्चहर > होते हुए कचहरी में ढल गया। संस्कृत शब्द कृत्य की धातु है कृ जो मूलतः कर्म क्रिया के अर्थ में प्रयोग होती है। मोटे तौर पर जिसके मायने हैं करना। यह प्रत्यय की तरह भी कई शब्दों में प्रयोग होती है जैसे अंगीकृ यानी अपनाना। इससे ही अंगीकार शब्द बना । अतिकृ यानी बढ़ जाना। इससे ही अतिक्रमण शब्द बना। कृ से ही बनता है कृत्य जिसके मायने हैं जो करना चाहिये अथवा उचित, उपयुक्त, युक्तियुक्त व्यवहार। जाहिर है यही न्याय है इसीलिए कृत्यग्रह को न्यायालय की अर्थवत्ता मिल गई। कहने की ज़रूरत नहीं कि कृत्य से बने कचहरी में सुकृत्य करने वालों की नही बल्कि दुष्कृत्य करने वालों की आमदरफ्त ज्यादा होती है।
हिन्दी मे अदालत के लिए
न्यायालय शब्द भी चलता है मगर ज्यादातर लिखत-पढ़त की भाषा में। इस्तेमाल के हिसाब इसका क्रम सबसे आखिर में है। मेरे विचार से बोलचाल में सबसे ज्यादा कोर्ट शब्द चलता है, फिर अदालत और उसके बाद कचहरी। बहरहाल न्याय शब्द का जन्म संस्कृत धातु
नी से हुआ है जिसका अर्थ ले जाना, मार्गदर्शन करना, संचालन करना आदि है। यह जानना दिलचस्प होगा कि न्याय की जिस देवी की आंखों पर हमेशा पट्टी बंधी होती है उस न्याय और नयनों का जन्म नी धातु से ही हुआ है। न्याय का मतलब नीति, नियम, कानून, इंसाफ आदि है। यही नहीं
जलसा का अर्थ हुआ महफिल, सत्र, सभा, आयोजन, संगठन, उत्सव आदि। इसमें म उपसर्ग लगने से बना मजलिस जिसका अर्थ होता है परिषद, सभा, गोष्ठी, संघ, समिति, कमेटी आदि।
राजनीति , शास्त्र, सुशासन , सच्चाई और ईमानदारी जैसी बातें भी इसके अंतर्गत आती हैं। इसी न्याय में निवास या आश्रय के भाव वाले
आलय की संधि से बनता है
न्यायालय शब्द जिसे अदालत के सरकारी तौर पर मान्य रूप में प्रयोग की परिपाटी है।
हिन्दी में ही कोर्ट कचहरी के अर्थ में अदालत और इजलास दोनों शब्द प्रचलित हैं मगर ये दोनों उर्दू से हिन्दी में चले आए हैं। यूं इनका मूल स्थान अरबी का है । इजलास का अरबी में सही रूप इज्लास है। यह बना है जलसा से। जलसा शब्द हिन्दी में अपनी स्वतंत्र अर्थवत्ता रखता है मगर यह बरास्ता फारसी-उर्दू मूल रूप से अरबी से ही हिन्दी मे दाखिल हुआ है जहां इसका शुद्ध रूप है जल्सः जो बना है सेमेटिक धातु ज-ल-स से। यह धातु समच्चयवाचक है जिसमें बैठक, गोष्ठी अथवा समूह का भाव है। जलसा का अर्थ हुआ महफिल, सत्र, सभा, आयोजन, संगठन, उत्सव आदि। इसमें म उपसर्ग लगने से बना मजलिस जिसका अर्थ होता है परिषद, सभा, गोष्ठी, संघ, समिति, कमेटी आदि। इसी कड़ी का शब्द है जुलूस जिसमें उत्सव यात्रा, शोभायात्रा का भाव शामिल है। अरबी का जुलूस हिन्दी में इस कदर घुल मिल गया है कि शोभा यात्रा के लिए इससे बेहतर कोई शब्द सूझता ही नहीं। जल्सः में इ उपसर्ग लगने से बना इज्लास जिसमें मान्य लोगों की सार्वजनिक बैठक का वही भाव है जो पंचायत में होता है। प्राचीनकाल में विवादों की सुनवाई सार्वजनिक स्थलों पर बैठक के जरिये ही होती थी। एक ही मूल से पैदा हुए इन सभी शब्दों के अर्थ एक समान होने पर भी इनके बर्ताव में अंतर है। आज ये तमाम लफ्ज हिन्दी में बडी़ सहूलियत से इस्तेमाल किये जा सकते हैं। किसी इज्लास के दौरान किसी जलसे या मजलिस पर पाबंदी लगाई जा सकती है।
अब कोर्ट की बात। अंग्रेजी में कोर्ट शब्द आया फ्रेंच के कोर्ट से जिसका मतलब है घिरा हुआ स्थान। न्यायिक गतिविधियों के लिए करीब तेरहवी सदी के आसपास कोर्ट शब्द का अंग्रेजी में प्रयोग शुरू हुआ और कोर्टशिप, कोर्टरूम और फिर हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट जैसे शब्द भी बन गए भारत में अंग्रेजी राज कायम होने के बाद जब फिरंगी इंसाफ भी करने लगे तब इस लफ्ज से हिन्दुस्तानी भी परिचित हुए। -सम्पूर्ण संशोधित पुनर्प्रस्तुति
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13 कमेंट्स:
पंडित बनने के लिए शब्दों के सफर के साथ सफर जरूरी है।
पत्रकारिता विश्वविद्यालय पर चढ़ता भगवा रंग
यह जरूर देखिएगा..
http://bolhalla.blogspot.com/
आप तो रोज़ रोज़ शब्दों की उत्पति के मूल तक ले जाते हो . हम कहाँ से रोज़ रोज़ तारीफ़ के लिए शब्द लाये .
ठीक कहा. इसीलिए आजकल कृत्य का मतलब दुष्कृत्य ही हो गया है.
केवल 'कोर्ट' ही नहीं, न्यायिक सन्दर्भ से जुडे अधिकांश (लगभग 90 प्रतिशत से अधिक)अंग्रेजी शब्द फ्रेंच भाषा से ही आए हैं।
इस समबन्ध में, 13 सितम्बर 2007 वाली मेरी 'पोस्ट इंगलैण्ड में असभ्यों की भाषा थी - अंग्रेजी' अवश्य देखें।
मुझे पर्मालिंक देना नहीं आता। सो असुविधा के लिए क्षमा कीजिएगा।
धीरू भाई से सहमत हूं,हमारे पास शब्दो का स्टाक नही है भाऊ।
अजित जी,
ये सफ़र तो एक जलसे की
मानिंद ही है हमारे लिए !
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
@धीरूसिंह/अनिल पुसदकर
हा हा हा
कई लोगों नें इसीलिए टिप्पणियां करनी बंद कर दी हैं।
आप भी जब इस भावभूमि पर पहुंचें तो
ऐसा ही करें।
हम तो सिर्फ धीरू सिंह का धैर्य देख रहे हैं....
@विष्णु बैरागी
शुक्रिया भैया। यह लेख मेरा पढा हुआ है। बरसों पहले मैने भी इसे पढ कर सहेज लिया था,शायद अब भी रखा है। दूसरा संपादकीय आलेख था। आपने याद दिलाया तो अब पुराने काग़जात टटोलता हूं।
साभार
अजित
बहुत बढिया जी.
रामराम.
बहुत अच्छी जानकारी, ऐसे ही सबका ज्ञानवर्धन करते रहें, धन्यवाद!
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चाँद, बादल और शाम
बहुत सही कहा आपने.......जहाँ कृत्य का परीक्षण हो,लेखा जोखा हो,वह कचहरी है.अतिसुन्दर सारगर्भित विवेचना.
न्याय की देवी के आंखों पर पत्ती मुझे लगता है अग्रेजों की देन है,जिस परम्परा को हम आज भी बिना सोचे ढोए जा रहे हैं.
"जुलूस" ~~ शब्द को
वाक्य मेँ
ऐसे भी प्रयुक्त होते सुना है
"अरे तुमने तो मेरा जुलूस निकाल दिया !"
( कबाडा कर दिया :)
" शब्दोँ का सफर "
~~
ज़िँदाबाद !
स स्नेह,
- लावण्या
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