हिन्दी में आमतौर पर प्रचलित सब्जी और तरकारी लफ्ज फारसी के हैं और बरास्ता उर्दू ये हिन्दी में प्रचलित हो गए। मोटे तौर पर देखा जाए तो तरकारी और सब्जी के मायने एक ही समझे जाते हैं यानी सागभाजी। मगर अर्थ एक होने के बावजूद भाव दोनों का अलग-अलग है। हालांकि तरकारी शब्द संस्कृत मूल से निकला है। मगर पहले बात सब्जी की।
फारसी का एक शब्द है
सब्ज: यानी
सब्जा जिसका मतलब है हरी घास, हरियाली, हरे रंग का या सांवला। इसी से बना सब्जी लफ्ज जिसका मतलब है साग भाजी, तरकारी, हरे पत्ते, हरियालापन या भांग आदि। जाहिर है कि सब्ज यानी हरे रंग से संबंधित होने की वजह से सब्जी का मूल अर्थ हरे पत्तों से ही था यानी पालक, बथुआ, मेथी, चौलाई जैसी तरकारी जिनका सब्जी के अर्थ में प्रयोग एकदम सटीक है । मगर अब तो सब्जी का मतलब सिर्फ तरकारी भर रह गया है। हालत
सब्ज: यानी
सब्जा जिसका मतलब है हरी घास, हरियाली, हरे रंग का या सांवला
ये है कि अब आलू गोभी समेत पीले रंग का कद्दू, लाल रंग का टमाटर बैंगनी बैंगन, या सफेद मूली सब कुछ सामान्य सब्जी है और पालक मेथी ,बथुआ और पत्तों वाली सब्ज़ियां हरी सब्जी कहलाती हैं। गौरतलब है कि हरा रंग सुख समृद्धि का प्रतीक है जिसमें खुशहाली, सौभाग्य के साफ संकेत हैं। साधारण जीवनस्तर का संकेत अक्सर खान पान के जरिये भी दिया जाता है मसलन
दाल रोटी खाकर गुजारा करना। इसका साफ मतलब है कि सब्जी खाना समृद्धि की निशानी है और यह आम आदमी को आसानी से मयस्सर नहीं है।
प्रकृति विभिन्न रंगों में अपने भाव प्रकट करती है। जीव जगत के लिए जो रंग सर्वाधिक अनुकूल है वह है हरा रंग क्योंकि सभी प्रकार के जीवों का मुख्य आहार है वनस्पतियां जो हरे रंग की ही होती हैं। इसीलिए मनुष्य ने हरे रंग को सौभाग्य और मंगलकारी माना है। सब्जः से बने कुछ और भी शब्द हैं जो उर्दू में ज्यादा प्रचलित हैं जैसे सब्जरू यानी जिसकी दाढ़ी-मूछें उग रही हों, सब्जकार यानी जो कुशलता से काम करे। सब्जबख्त यानी सौभाग्य शाली। खुशहाली और अच्छे दिनों के लिए कहा जाता है हराभरा होना। मोटे तौर पर सब्जीखोर शब्द के मायने होंगे वह शख्स जो तरकारी यानी सब्जी ज्यादा खाता हो। मगर फारसी में इसका सही मतलब होता है शाकाहारी। हरितिमा, हराभरा या हरियाली से भरपूर माहौल को सब्जख़ेज कहा जाता है।
अब बात तरकारी की। यह शब्द बना है फ़ारसी के तर: से जिसका मतलब है सागभाजी। इसी तरह फ़ारसी का ही एक शब्द है तर जिसका मतलब है नया, आर्द्र यानी गीला, एकदम ताजा, लथपथ , संतुष्ट वगैरह। जाहिर है पानी से भीगा होना और एकदम ताजा होना ही साग सब्जी की खासियत है। यह तर बना है संस्कृत की तृप् धातु से जिससे बने तृप्त-परितृप्त शब्द का अर्थ भी यही है यानी प्रसन्न, संतुष्ट। इससे बने तर से हिन्दी उर्दू में कई शब्द आम हैं जैसे तरबतर और तरमाल आदि।
अब बात साग-भाजी की। साग शब्द संस्कृत के शाक: या शाकम् से बना है जिसका अर्थ है भोजन के लिए उपयोग में आने वाले हरे पत्ते या कंद, मूल, फल आदि। इस साग-भाजी को कहीं-कहीं साक या शाक भी कहते हैं। रूखे-सूखे भोजन के किये साग-पात शब्द भी चलता है। शाक में जहाँ वेजिटेबल यानी सब्ज़ी का भाव है वहीं भाजी में तरकारी यानी रोटी या चावल के साथ खाए जाने वाले पदार्थ से आशय है जिसे ज़मीन से उपजाया हो। भाजी संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है कोई भी पाक-व्यंजन विशेष। इसका एक अर्थ है चावल का मांड़ जो किसी ज़माने में मुख्य आहार था। धीरे धीरे इसमें सालन या साग का भाव रूढ़ हो गया। भाजी उसी भज् शृंखला का शब्द है जिससे भोजन भी बनता है और भजन भी। जिसका मूलार्थ है भाग, अंश या हिस्सा। अनेक लोग भाजी का अर्थ भी पत्तों के सालन से लगाते हैं जो ठीक नहीं। इस रूप में मराठी में हमेशा पाला-भाजी कहा जाता है। पाला अर्थात पत्ता जिसका मूल है पल्लव।
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19 कमेंट्स:
सब्जी पुराण में शब्दों का सफ़र और असर दोनों अछे लगे
तरबूज का तर
और बदतर का तर
भी वाकई तरावट
देता है अपने अलग
आयामों में।
भाई वडनेकर जी।
अब मुहावरे उलट गये हैं।
सब्जी सस्ती और दाल मँहगी हो गयी है।
गरमी और लू का मौसम हो तो तरबूज वाकई तर कर देता है।
परन्तु वह भी तो छः रुपये किलो बिक रहा है।
लेकिन खाना तो पड़ेगा ही। सफर जो तय करना है।
गरमी भले ही हो लेकिन आपका सहयात्री तो हूँ ही।
अजित जी को भी तरबूज की तरावट का आभास तो हो ही जायेगा।
mujhe to har roz naya gyan milta hai yahaan aakar
अजित जी
कितना अंतर है मगर हम कितनी सरलता से एक ही बात के लिए उपयोग कर देतें हें
शुक्रिया !!!
आप जिस शब्द की व्याख्या करते है वह सम्पूर्ण होती है . दिमाग दौड़ने के बाद भी सब्जी के लिए कोई शब्द नहीं खोज पाया . सब तो आपने लिख दिए . वैसे मैं तो सब्जीखोर हूँ
अच्छी व्याख्या की है।
Ajit ji bahut dino bad Aapke blog par aaee par sabjbag dekh kar man prasann ho gaya. Sabji shak tarkari itane shabd aur unki wutpatti jankar achcha laga
एक ही शब्द संस्कृत से निकलकर अरबी-फ़ारसी तक कैसे पहुँच जाता है यह सोचकर हैरत होती है।
आपकी व्याख्या हमेशा की तरह ज्ञानवर्द्धक और रोचक लगी। शुक्रिया...!
भाई वडनेकर जी।
शाक, पात, तरकारी खाकर उच्चारण पर दंगल सजाया है।
शब्दों के सफर के साथ आप भी जोर आजमाइश कर लें।
वाह सुन्दर जानकारी ! अजित जी ये टाईप का बक्सा हिंदी वाला बढ़िया है आपका!
हमेशा की तरह ज्ञानवर्द्धक और जायकेदार
सब्जी वाले पेराग्राफ में एक बात और रह गई ""सब्ज़ बाग़ दिखलाना ""
तक़दीर से शाक खा कर खुश रहने वाली बात याद आ गयी. यक्ष युद्धिष्ठिर संवाद से :
दिवसस्याष्टमे भागे शाकं पचति गेहिनी ।
अनृणी चाप्रवासी च स वारिचर मोदते ॥
अजित जी,
....और वो 'सब्ज़ बाग़'
भी तो है न ?
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चन्द्रकुमार
धन्यवाद भाई! आपने मेरा एक भ्रम दूर किया. अभी तक तो मैं सोचता था कि सब्जी हरी वाली तरकारियों को कहा जाता है और तरकारी उसे जो मैं खाता हूं - यानी आलू.
यह तो एक सरसब्ज पोस्ट है।
खाने पीने वाले शब्दों की श्रंखला के सभी लेख पसंद आये.क्योंकि वो बहुत जल्दी समझ आ कर दिमाग में छप गए .
bahut badhiya jankari .aap ki post sabjdimag karne wali hoti hai.
sag ka jodidar bhaji ka numbar aanewala hai.
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