Monday, April 20, 2009

खीर पकाई जतन से…[खान पान-8]


खी र का नाम सुनते ही मुंह में पानी आने लगता है। खालिस दूध और चावल से बने इस मीठे भोज्य पदार्थों ने अत्यंत प्राचीनकाल से आज तक दावतों की शोभा बढ़ाई है।  दूध, चावल और चीनी हर घर की रसोई में हर वक्त मौजूद रहती है और इसे बनाना आसान है फिर भी कठिन काम के अर्थ में  टेढ़ी खीर जैसा मुहावरा चल पड़ा। हालांकि इस मुहावरे का खीर से कम और भाव-सम्प्रेषण की दुरूहता से अधिक रिश्ता है। भारतीय उपमहाद्वीप के खान पान मे प्रमुखता से शामिल दूध से बने इस मिष्ठान्न को इतने तरीकों से बनाया जाता है कि यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि किस पदार्थ का प्रयोग कर कौन इसमें अनोखा ज़ायका पैदा कर देगा। सो मुहावरा चल पड़ा-क्या खीर पक रही है!!  कहा भी गया है, खीर पकाई जतन से….यानी खीर पकाना बड़ा काम है।  खीर kheer शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के क्षीर से समझी जाती है और इसके पीछे वजह बताई जाती है कि संस्कृत में क्षीर का अर्थ दूध होता है।
…अक्सर एक मुहावरा बोला जाता है…क्या खीर पक रही है…? kheer_main kheer
हकीक़त यह है कि क्षीर के कई अर्थ हैं जिनमें एक अर्थ दूध भी है। संस्कृत में क्षीर से बना एक अन्य शब्द है क्षीरिका जिसका मतलब होता है दूध से बना व्यंजन। इसका ही अपभ्रंश रूप खीर है। संस्कृत का क्ष देशज रूपों में में तब्दील हो जाता है। क्षीर शब्द का मतलब होता है रस, जल, तरल, दुग्ध आदि। ये अलग बात है कि खीर में मिठास या चावल का गुण उसे क्षीर नाम प्रदान नहीं कर रहा है बल्कि दूध अर्थात क्षीर की अधिकता के चलते क्षीर से बने क्षीरिका का खीर नामकरण हुआ। क्षीर का अर्थ नीर भी होता है और इन दोनों के मेल से संस्कृत में नीर-क्षीर जैसा मुहावरा भी चल पड़ा जिसका हिन्दी अनुवाद होता है दूध का दूध, पानी का पानी अलग करना। तात्पर्य पेचीदा मामले को सुलझाने से है क्योंकि दूध में से पानी को अलग करना असंभव काम है।
क्षीर शब्द के तरल पदार्थ वाले भाव पर गौर करें। संस्कृत में एक धातु है क्षर् जिसका अर्थ होता है बहना, सरकना, रिसना, टपकना आदि। प्रायः कोई भी तरल अपने उद्गम से रिसता ही है। दूध के अर्थ में क्षीर स्तनों से रिसता है, रस के अर्थ में वृक्षों से जो तरल निकलता है वह रिसाव का ही नतीजा होता है। यह रस ही अलग अलग उत्पादों के तौर पर लेटेक्स कहलाता है जिससे रबर बनता है राल जो ओषधि के काम आती है। गोंद भी वृक्षों से रिसने वाला द्रव ही है जिसके विभिन्न उपयोग हैं। भारतीय मसालों में हींग सबसे ज़रूरी है। यह भी वृक्षरस ही है। यह अलग बात है कि हिन्दी में दूध के लिए क्षीर नाम प्रचलित नहीं हो पाया और इसकी मिठास कुछ और बढ़ कर खीर में स्थायी हो गई। धार्मिक पर्व में भी इस शब्द का महत्व है। वैषाख माह में आने वाली प्रतिपदा को क्षीरप्रतिपदा कहा जाता है। दुधारू गाय को क्षीरधेनुका कहते हैं। पुराणों में क्षीरसागर का उल्लेख आता है जो सदा दूध से आप्लावित रहता है। दरअसल क्षीरसागर वह समुद्र है जिसमें शेषनाग की की शय्या पर विष्णु विश्राम करते हैं और कमला अर्थात लक्ष्मी उनके चरण पखारती हैं।
फारसी में भी क्षीर की मिठास कायम है। इस नज़ाकत वाली ज़बान में अक्खड़ क्ष नर्म होकर में तब्दील हो गया और क्षीर वहां शीर sheer हो गया। फारसी में दूध को शीर कहते हैं। गाढ़े रस के लिए शीरा शब्द भी प्रचलित हुआ। गुड़ की राब को भी शीरा कहा जाता है और मराठी में हलुए को भी शीरा ही कहते हैं। मुस्लिम समाज में त्योहार के मौके पर शीरमाल sheermal बनता है जो दूध में आटा गूंथकर बनाई गई मोटी खस्ता मठरी जैसी रोटी होती है। शराबख़ाना के लिए शीरख़ानः शब्द भी उर्दू फारसी में है। संस्कृत के पेय या तरल वाले भाव का अर्थविस्तार हुआ है और फारसी का शीर मदिरा के रूप में सामने आया है। मिठास के अर्थ में फारसी का शीरीं या शीरीन शब्द इसी क्षीर से जन्मा है। मधुरभाषी को फारसी में शीरीं-जबान कहा जाता है यानी मीठा बोलनेवाला। संस्कृत का क्षीर फारसी में शीर बनकर भी दूध रहा जबकि हिन्दी में वह खीर बन गया। फारसवालों को खीर के लिए नया शब्द बनाना पड़ा शीरबिरंज। फारसी में चावल को बिरंज कहते हैं। खीर को उर्दू में फीरनी भी कहते हैं। संभवतः यह इसी मूल से उपजा है। मराठी में दूध से बनी खीर के एक प्रकार को बासुंदी basundi कहा जाता है। सेंवई और दूध से बने व्यंजन को भी खीर कहते हैं। स्पष्ट है कि खीर में चावल महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि दूध महत्वपूर्ण है। सिंधी भाषा में दूध को खीर ही कहते हैं। अपनी मधुरता के लिए प्रसिद्ध एक फल के नामकरण  भी क्षीर से हुआ है। समूचे भारत में यह वृक्ष पाया जाता है जिसे खिरनी का पेड khirni कहा जाता है। यह बना है क्षीरिणी से क्योंकि इससे सफेद मीठा रस झरता है। मराठी-कोंकणी में इसे कर्णी कहते हैं। खिरनी
  पेड़  पर खिरनी  IMG_4764mucenkaशीरमाल sheermal2
से इसकी सादृश्यता गौरतलब है। इसके अन्य नाम है राजादन, फलाध्यक्ष अथवा राजन्या। कन्नड़ में इसे बाकुला, मलयालम में पझामुंपाला, गुजराती में राजण कहा जाता है। इसमें बेर के आकार के गुच्छाकार पीले रसीले फल लगते हैं जिनसे सफेद मीठा द्रव झरता है। खिरनी का वृक्ष बहुत सघन छायादार होता है।
सा नहीं कि क्षर् धातु में मिठास का भाव है। इसमें नमकीन, तीखा का भाव भी है। क्षर् से ही बना है क्षार जिसका अर्थ तिक्त, चरपरा, कटु आदि। नमकीन के अर्थ में खारा शब्द हिन्दी में खूब इस्तेमाल होता है जो इसी क्षार का अपभ्रंश रूप है। सेव के लिए खारिया शब्द मालवी में चलता है। ईर्ष्या हमेशा ज्वलनशील होती है। किसी के प्रति द्वेष भाव रखने के लिए मालवी में खार खाना मुहावरा भी प्रचलित है जो इसी शब्द समूह से जनमा है।
क्षर् का अगला रूप झर बनता है जिसमें बहने-टपकने के भाव के साथ नष्ट होने या मिटने का अर्थ भी निहित है। मसलन पत्ते झर (या झड़) गए। जल प्रवाह के लिए झरना या निर्झर जैसे शब्दों में यही झांक रहा है। इसी तरह संस्कृत की एक अन्य क्रिया स्खल् है जो क्षर् पर आधारित है । इसका अर्थ भी गिरना,टपकना, फिसलना आदि है। मालवी में टपकने के लिए क्षर् का ही देशज रूप खिर ( खिरना ) प्रचलित है। हिन्दी के हिमस्खलन या भूस्खलन और पहाड़ी नाले के लिए मालवी-राजस्थानी में खाला,खल्ला जैसे शब्द इससे ही बने हैं। क्षर् धातु में रिसाव के साथ-साथ नष्ट होने का भी भाव है। क्योंकि जो वस्तु रिस रही है, स्रोत से बह रही है उसे अंततः नष्ट ही होना है। इसीलिए क्षर के साथ उपसर्ग लगने से बनता है अक्षर akshar । याद करें कि भारतीय मनीषा में अक्षर को ब्रह्म कहा जाता है अर्थात जो नष्ट न हो सके। इसीलिए क्षर से जन्मा होने के बावजूद भी अक्षर अजर अमर है।
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29 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

आज तो सुबह सुबह मुँह मीठा कर दिया। आप के मुँह में घी शक्कर!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पायस सरस दूध से निर्मित रोचक लगती है।
नीर-क्षीर का संगम है ये पाचक लगती है।।
शब्दों का ये सफर खीर का स्वाद चखाता है।
पकवानों का रस इससे दुगना हो जाता है।।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

याद करें कि भारतीय मनीषा में अक्षर को ब्रह्म कहा जाता है अर्थात जो नष्ट न हो सके। इसीलिए क्षर से जन्मा होने के बावजूद भी अक्षर अजर अमर है।

अनश्वर की आराधना का
अनुपम उदाहरण है अपना यह सफ़र.
=============================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Anil Pusadkar said...

सिंधी भाषी तो दूध को ही खीर कहते है भाऊ।मज़ा आ गया आपके मुंह मे खीर,बासुंदी।

Ashish Khandelwal said...

खीर के बारे में इतना कुछ जानकर तो अब इसकी मिठास और भी बढ़ गई है.. आभार

Unknown said...

वाह क्‍या मीठी पोस्‍ट है।
कल जब खीर खा रहा था तो ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि इस पसंदीदा व्‍यंजन के पीछे इजनी लम्‍बी कहानी भी है।

मोना परसाई said...

खीर शब्द की व्युत्पत्ति का सफ़र खीर की ही तरह सुस्वादु व रोचक लगा ,भाषा -विज्ञान पढा है ,पर उसमें ऐसी सरसता कहाँ?

Mansoor ali Hashmi said...

वडनेरकर जी , शब्दों की बानगी के तौर पर आप जो साहित्यिक पकवान परोस रहे है ; वह खारे-मीठे व् स्वादिष्ट तो है ही , साहित्य को भी समर्द्ध कर रहे है. रोचक शैली में भावः पूर्ण अभिव्यक्ति. वाक्यों की अदायगी की निम्न उदघृत अदा पसंद आयी:-

# हालांकि इस मुहावरे का खीर से कम और भाव-सम्प्रेषण की दुरूहता से अधिक रिश्ता है।
# फारसी की नज़ाकत वाली ज़बान में अक्खड़ क्ष नर्म होकर श में तब्दील हो गया और क्षीर वहां शीर sheer हो गया
# ईर्ष्या हमेशा ज्वलनशील होती है। किसी के प्रति द्वेष भाव रखने के लिए मालवी में खार खाना मुहावरा भी प्रचलित है जो इसी शब्द समूह से जनमा है।
# क्षर् धातु में रिसाव के साथ-साथ नष्ट होने का भी भाव है। क्योंकि जो वस्तु रिस रही है, स्रोत से बह रही है उसे अंततः नष्ट ही होना है। इसीलिए क्षर के साथ अ उपसर्ग लगने से बनता है अक्षर akshar । याद करें कि भारतीय मनीषा में अक्षर को ब्रह्म कहा जाता है अर्थात जो नष्ट न हो सके। इसीलिए क्षर से जन्मा होने के बावजूद भी अक्षर अजर अमर है।
-मंसूर अली हाशमी

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत खीरमयी पोस्ट है. पर हमको खीर मिलेगी इसमे जरा संदेह है.:) पर दिल दिमाग तो आपने मीठा कर ही दिया.

बुजुर्गों ने सही कहा है कि गुड भले मत दो पर गुड जैसी बात तो करो.:)

रामराम.

Abhishek Ojha said...

आप शब्दों के नीर-क्षीर विवेकी हैं !

Gaurav Misra said...

वाह मान गए आप को .... सच में पढ़ते पढ़ते मुह में पानी आ गया, इतनी मीठी पोस्ट के लिए धन्यवाद .... अगली बार गुलाब जामुन खिलानी की तैयारी है क्या????? अगली पोस्ट का इंतज़ार है |

Alpana Verma said...

Kheer -sheer ke bare mein itna padhne ke baad ab main chali kheer banane.

[aap ke blog par yah hindi baksa kaam nahin kar raha.]

मीनाक्षी said...

शीरबिरंज का नाम पढ़ते इससे जुड़े रोचक किस्से याद आ गए...आज की पोस्ट तो बहुत मीठी रही..

Sanjeet Tripathi said...

इब ऐसे मीठे चीजों के बारे में ऐसा मीठा-मीठा लिखोगे तो ये भोजन भट्ट ब्राह्मण बालक तो टपकेगा ही इधर।
शुक्रिया

Chandan Kumar Jha said...
This comment has been removed by the author.
Chandan Kumar Jha said...

भैया!आपने तो वातावरण को मधुमय कर दिया.....धन्यवाद.

Arvind Mishra said...

खीर को सात्विक भोजन माना गया है !
लाख एक कीट से स्रावित होता है !

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

खीर तो नहीं बनी लेकिन आज चावल मे दूध मिला कर ही खाऊँगा . खीर ,क्षीर ,शीर आज तो अंतिम अक्षर हिंदी , संस्कृत ,फारसी मे एक है

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

और एक बात बचपन मे कभी वाद विवाद प्रतियोगिता मे जाते तब शुरुआत करते थे " नीर क्षीर विवेकीय निर्णायक मंडल "

Ria Sharma said...

अजित जी
शब्दों का सुन्दर डिसेक्शन करते हैं आप..
स्पष्ट ,भाव व वर्णन ..
खीर का तो ज़रूर धन्यवाद :)
बहुत खूब !!!

RDS said...

बडनेरकर जी ,

जितना हम बाँच नहीं पाते उससे अधिक आप रच लेते हैं | आलेख भी इतना समृद्ध कि गागर में सागर | कसर हो तो आप के अलावा कोई न जांच सके |

खीर पर हम क्या टिप्पणी दें ? सदा स्वाद से ही सरोकार रहा | सोचा ही नहीं कि खीर कहाँ कहाँ बहती है | आपने बताया तो पाया कि शब्द-रस, क्षीर-रस से अधिक रस-वंत है |

अब उस तलब का क्या करें जो इस सफ़र के लिए जन्मी ! अगर कारोबारी सफ़र पर जाना पड़े तो शब्दों के सफ़र से वंचित रहने की टीस सालती रहती है | इस बीच आपके अनेक आलेख आ चुके और चर्चित हो चुके होते हैं |

खैर देर आयद .. देर सबेर बांच ही लेता हूँ एनसायक्लोपीडिया के पन्ने ...

सादर,

- RDS

कडुवासच said...

... खीर-ही-खीर .... मुँह मीठा ... मुँह में पानी ... आज तो खीर ....!!!!!

sanjay vyas said...

इस पोस्ट को खीरविकी कहना शायद सही होगा. खीर से सम्बंधित पूरा विश्व कोष यहाँ मिल गया है. वासुन्दी पुष्टिमार्गी हवेलियों के बालभोग का एक प्रसाद है,यहाँ शायद गुजरात से आया होगा ये शब्द.खीर के फोटो स्वाद कलिकाओं को उत्तेजित कर रहें है:)
सर, कश्मीरी पंडितों की इष्ट खीरभवानी को क्यों इस नाम से जानते है?

ab inconvinienti said...

खिरका शब्द बुंदेलखंड में प्रचलित है, एक मैदान जहाँ गाँव भर के ढोर डंगर सुबह एकत्रित किये जाते हैं, और वहां से खेतों की और चरने जाते हैं.

अजित वडनेरकर said...

@संजय व्यास
भाई, कश्मीरी पंडितों की खीर भवानी की अच्छी याद दिलाई। दरअसल यह भी इसी श्रंखला का शब्द है। शुद्ध रूप में ये क्षीर भवानी हैं। याद करें, भगवान विष्णु ने क्षीरसागर का मंथन किया था, जिससे चौदह रत्न निकले थे जिनमें एक कमला यानी लक्ष्मी भी थीं इसीलिए उन्हें क्षीरभवानी कहा जाता है। देवी के कई रूप हैं जिनमें शक्तिस्वरूपा दुर्गा हैं और समृद्धिरूपा लक्ष्मी हैं। क्षीरभवानी ही खीरभवानी हुईं। क्षीर के व्यापक अर्थों को देखें तो रस, जल जैसे अर्थ ही जीवन का आधार है। जो रसवती हैं, जीवन में रसों का संचार करें, जो नीरा हैं अर्थात जल की स्वामिनी हैं वही हैं खीर भवानी।

याद दिलाने का शुक्रिया। सफर की खीर कुछ और सुस्वादु व समृद्ध हो गई।
सस्नेह,
अजित

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत मीठी शब्दोँ की बानगी परोस दी आज तो आपने
- लावण्या

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ said...

अजित जी, क्षीर/खीर/शींरी आदि तो आपकी विवेचना के बाद और भी स्वादु हो गये किन्तु ब्रह्म तो अनादि,अनंत और अविनाशी कहा गया है,जो निराकर निर्गुण निर्विकल्प निर्विशेष और अनिर्वचनीय है। ब्रह्म यदि अक्षर (अ+क्षर) है तो वह क्षर से कैसे उत्पन्न हो सकता है? क्षर तो क्षरणशील और अन्ततः मरणधर्मा है। क्या क्षर धातु की व्युत्पत्तिपरक विवेचना से ब्रह्म का निर्वचन हो सकता है? क्या इस हेतु ब्रीह धातु बृंहण अर्थ में नियत नहीं है?

"ॠचो अक्षरे परमें व्योमन यस्मिन्देवा अधि विश्वे निषेदुः।
यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति य इत्तद्विदुस्त इमें समासते॥"---ऋ०वे० १-१६४-३९
और
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः।
यो लोकोत्रयमाविश्य विभर्त्यव्यय ईश्वरः॥ गीता-१५/१७
यस्मात क्षरमतीतो॓ऽहमऽक्षरादपि चोत्तमः।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः॥ गीता-१५/१८

अजित वडनेरकर said...

@सुमन्त मिश्र कात्यायन

धन्यवाद कात्यायनजी, बहुत दिनों बाद फेरा लगा है आपका। आप एकदम सही हैं। मैने प्रसंगवश अक्षर की चर्चा की है और इस बहाने अक्षर को ब्रह्म मानने वाली उक्ति का उल्लेख भर किया है। शब्द चर्चा के अन्तर्गत ब्रह्म का अक्षर से भाववाचक संबंध तो है मगर व्युत्पत्तिमूलक नहीं। निश्चित ही ब्रह्म बृंह् धातु से ही बना है।
विलोम अर्थ के लिए अक्षत जैसे कई उदाहरण मिल जाएगे। अमृत शब्द मृ धातु से ही बना है जिसमें मृत्यु का भाव है।
करामाती उपसर्गों से भाषा इसी तरह समृद्ध बनती है और यूं अक्षर ही नही शब्द भी अमर और अनश्वर बनते जाते हैं :)

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...
This comment has been removed by the author.
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