Friday, April 24, 2009

पूरी में समायी कचौरी [खान पान-9]

…सुबह के नाश्ते में गर्मागर्म आलू की सब्जी और पूरी मिले तो क्या बात है…33
दा वतों में गर्मागर्म पूरियां न हों तो आनंद नहीं आता। भारतीय पूरियों की धूम पूरी दुनिया में है। रोज़ के खानपान में जो भूमिका रोटी दाल की हुआ करती है वही भूमिका पर्व त्योहारों पर बनने वाले विशिष्ट भोजन में पूरी सब्जी की होती है। आम दिनों भी में चपाती-रोटी के शौकीन बदलाव के लिए पूरी खाना पसंद करते हैं। पूरी शब्द बना है पूरिका से।
पूरी के मूल में है संस्कृत धातु पूर् जिसमें समाने, भरने, का भाव है। इससे ही बना है पूर्ण शब्द जिसका अर्थ होता है भरना, संतुष्ट होना। समझा जा सकता है कि सम्पूर्णता में ही संतोष और संतुष्टि है। व्यंजन के रूप में पूरी नाम के पीछे उसका पूर्ण आकार नहीं बल्कि उसकी स्टफिंग से हैं। गौरतलब है की आमतौर पर बनाई जाने वाली पूरी के अंदर कोई भरावन नहीं होती है जबकि पूरी या पूरिका से अभिप्राय ऐसे खाद्य पदार्थ से ही है जो भरावन से बनाया गया है। पूरी बनाने के लिए आटे या मैदे की लोई में गढ़ा बनाया जाता है और फिर उसे मसाले से पूरा जाता है। यही है पूरना। इस तरह पूरने की क्रिया से बनती है

कचौरियां1213तैयार कचौरीMASALA KACHORI (DRY)प्याज कचौरीf 098

पूरी। रोटी और पूरी में एक फर्क और है वह यह कि रोटी को तवे पर सेंका जाता है जबकि पूरी को पकाने की क्रिया तेल में सम्पन्न होती है अर्थात उसे तला जाता है। सामान्य तौर पर जो पूरियां बनाई जाती हैं उन्हें सादी पूरी कहना ज्यादा सही होगा। पूरियां कई प्रकार की होती हैं मगर उन सभी में आमतौर पर उड़द की दाल का ही भरावन होता है।  आटे में पालक, बथुआ या मेथी गूंथकर भी पूरियां बनाई जाती है।
नाश्ते में कचौरी भी लोकप्रिय हैं। बेहद लोकप्रिय और लज़ीज़ कचौरियां भी कई प्रकार की होती हैं और इसकी रिश्तेदारी भी पूरी से ही है। कचौरी शब्द बना है कच+पूरिका से। क्रम कुछ यूं रहा- कचपूरिका > कचपूरिआ > कचउरिआ > कचौरी जिसे कई लोग कचौड़ी भी कहते हैं। संस्कृत में कच का अर्थ होता है बंधन, या बांधना। दरअसल प्राचीनकाल में कचौरी पूरी की आकृति की न बन कर मोदक के आकार की बनती थी जिसमें खूब सारा मसाला भर कर उपर से लोई को उमेठ कर बांध दिया जाता था। इसीलिए इसे कचपूरिका कहा गया। मध्यप्रदेश के मालवान्तर्गत आने वाले सीहोर में आज भी मोदक के आकार की ही लौंग के स्वाद वाली कचौरियां बनती हैं जो इसके कचपूरिका नाम को सार्थक करती हैं। एक अन्य व्युत्पत्ति के अनुसार तमिल भाषा में दाल को कच कहते हैं इस तरह कच+पूरिका से बनी कचौरी। वैसे देखा जाए तो तमिल में दाल के लिए अगर कच शब्द है तो दक्षिण भारत में भी कचौरी बहुत लोकप्रिय होनी चाहिए, मगर इसे हम उत्तर भारतीय पदार्थ के रूप में ही जानते हैं। दूसरी बात यह कि पूरिका शब्द में स्वयं ही भरावन का भाव आ रहा है और सामान्यतः उत्तर भारत में घरों में बननेवाली पूरियां भी दाल के बहुत हल्के भरावन से ही बनती है जिन्हें कचौरी भी कहते हैं।
चौरी मूलतः उड़द की दाल की भरावन से ही बनती है मगर छिलका मूंग और धुली मूंगदाल से भी ज़ायकेदार कचौरियां बनती हैं। सावन के मौसम में मालवा में हींग की सुवास वाली भुट्टे की कचौरियां लाजवाब होती हैं। कचौरी और पूरी में एक फर्क यह भी है कि पूरी को बेला जाता है जबकि कचोरी को बेला नहीं जाता बल्कि लोई में मसाला भर कर उसे हाथ से आकार दिया जाता है। कचौरी के आकार को अगर देखें तो यह पूरी की ही तरह से फूली हुई होती है अलबत्ता इनका आकार अलग अलग होता है तथा कचोरी के मैदे में खूब मोहन डाला जाता है ताकि यह खस्ता बन सके। कचौरियां जितनी खस्ता होंगी उतनी ही ज़ायकेदार होती हैं। उत्तर भारत में जोधपुर की प्याज की कचौरी, कोटा की हींग वाली कचौरी और समूचे अवध क्षेत्र की उड़द दाल की कचोरियां मशहूर हैं।

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23 कमेंट्स:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भाई वडनेकर जी!
पूरियाँ तो अक्सर बन ही जाती हैं। परन्तु यह आज ही पता लगा कि पूरी तभी पूर्ण होती है, जबकि उसमें भरावन हो। पूरी का पूरा भेद खोलने के लिए धन्यवाद। मुझे तो हींग की गन्ध भी आने लगी है। बस कल ही पूरियाँ बनवाऊँगा।

नितिन | Nitin Vyas said...

वाह, ये सफर तो बहुत ही जायकेदार था।

दिनेशराय द्विवेदी said...

पूरी से कचौरी तक की यात्रा अक्सर होती रहती है। आज शब्द यात्रा भी कर ली। आम तौर पर यहाँ दावतों में ये दोनों ही उपलब्ध रहती हैं।

RADHIKA said...

वाह दादा सुबह सुबह पूरी कचौरी की कहानी पढ़ कर मन खुश हो गया ,आपका ब्लॉग कमाल का हैं जिन शब्दों पर मेरा साधारणतया ध्यान भी नहीं जाता की ये कैसे बने होंगे ?आप उन शब्दों का इतिहास बता कर ,उनकी उत्पत्ति बता कर आश्चर्यचकित कर देते हैं बहुत ज्ञानवर्धक हैं आपका ब्लॉग

मुनीश ( munish ) said...

वाह जी वाह ! पुरानी दिल्ली की कचौरी खानी हैं तो आ जाइए अभी और ये हिंदी टाइप का बक्सा भी खूब लगाया है आपने !

Dr. Amar Jyoti said...

लेख तो बहुत अच्छा है ही. कुछ नमूने भी मिल जाते तो चखने को तो सोने में सुहागा हो जाता. :)

ताऊ रामपुरिया said...

भाई सुबह सुबह मुंह में पानी आरहा है.

रामराम.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

अभी नाश्ते मे पूरी और केले के सूखी सब्जी खाई और शब्दों के सफ़र मे उसका ही जिक्र क्या बात है . और हां महीन प्याज भी था कटा हुआ बिलकुल जैसा फोटू मे है

L.Goswami said...

बंगाल वाली पूरी में हरे मटर को भरा जाता है.जानकारी अच्छी है और चित्र भी.

अनिल कान्त said...

humare munh mein to paani aa gaya ...aur ghar ki yaad bhi aa gayi

Abhishek Ojha said...

बड़ी टेस्टी पोस्ट :-) आज तो कचपूरिका ही खाया जायेगा !

Anonymous said...

Priyankar Paliwal at 2:08pm April 24सर्दी की सुबह हो . नाश्ते में गुब्बारे की तरह फूली गरमागरम पूड़ियां हों और साथ में आलू (मेथी) की सब्जी . हुज़ूर ! दोपहर के खाने को कौन भकुआ पूछता है .

किरण राजपुरोहित नितिला said...

Ajit sa
bahut sawaadist post.
Jodhpur ki pyaaj ,mogar,methi ke sath maave ki kachori bhi duniya bhar me famous hai. isme maave ko bhoonkar chini or anay bahut saare masale dale jate hai.ye sari kachoriya choti or badi sab aakar me banti hai.
kach se hi striyon ka upari vastra kanchuki ya kanchali bana hai shayad?

राजेश उत्‍साही said...

अजित जी आज पहली बार आपके ब्‍लाग पर गया और जाते ही पूरी-कचौरी से स्‍वागत हुआ। धन्‍यवाद। इन दिनों बंगलौर में हूं। 20-22 साल भोपाल में गुजारने के बाद। यहां तो समोसा-कचौरी देखने को भी नहीं मिलता। संयोग से आज सुबह मुझे कुछ दवा लेनी थी। पर कुछ खाकर। सो एक दुकान के शो केस में कचोरीनुमा चीज देखकर मैंने खदीद ली। संभवत: वह यहां की कचौरी ही थी। पर अंदर से एकदम ठोस। ऐसे ही एक दुकान में समोसा भी खाने को मिला था,पर वह भी ठोस। लगे हाथ आपको यह भी बता दूं कि यहां भोपाल की तरह इडली हर मोड़ पर नहीं मिलती। खैर ;;;;

Vinay said...

मुँह में पानी आ रहा है दावत पर कब बुला रहे हैं।

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तकनीक दृष्टा

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आज पहली बार
'पूरी' की पूरी जानकारी मिली.
....और कचौरी का कच + पूरिया
जैसा विन्यास !....कमाल है भाई.
===========================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

मीनाक्षी said...

पहले क्षीर-बिरंज और अब पूरी कचौरी...इतने स्वादु पकवान के बारे मे पढ़कर 56 भोग और भी याद आ जाते हैं..

Anonymous said...

Beautiful as well as tasty post this time bandhu,mooh mey oani bhar aya .Poori sabji ka itna realistik photo jutakar maja hi laga diya aapne .Kalam toda di hai aapne ,likhte to waise bhi computer par hi honge.Anand ki jai aur apne priya Ajit bhaiya ki bhi jai.
sadar
Dr.bhoopendra
Rewa M.P

Udan Tashtari said...

वाह जी वाह!! सबसे स्वादिष्ट पोस्ट!!! मजा आ गया.

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

स्वाद मात्र भोजन मेँ ही नहीं होता बल्कि हर उस कार्य में स्वाद होता है जो आप लगन और तन्मयता के साथ करते हैं.

यह प्रस्तुति पढ़ कर यह पता चला कि आप कितने चटोरे हैं... भोजन के बारे में तो मुझे नहीं पता लेकिन शब्दों के विषय में निश्चित रूप से.

शब्दों का रसास्वादन कोई आप से सीखे.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बम्बई मेँ बहुत खायीँ थीँ - साँताक्रुज पस्चिम रेल्वे स्टेशन के पास "मोर्डन स्वीट मार्ट" मेँ
ये उपलब्ध थीँ -
ना जाने अब वो दुकान है भी या नहीँ !
अच्छी स्वादिष्ट पोस्ट बनी है अजित भाई :)
- लावण्या

Rajeev (राजीव) said...

वाह अजित जी, पूरी की जानकारी अब हुई पूरी!

Unknown said...

भाई किसी को पता हो तो
कचौड़ी सर्वप्रथम कहाँ बनी थी

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