करीब तीन माह पहले (11 मार्च को) अनूप सुकुलजी अचानक हमारी चैट खिड़की में नमूदार हुए और सवाल दागा कि श्रीमति सही है या श्रीमती और इसका मतलब क्या है। उस बहाने करीब दो ढ़ाई मीटर लंबी चैट हो गई थी जिसे उन्होने लेख की शक्ल देने की बात कही थी। आज लिखने का मूड नहीं था सो उसी चैट से सवाल जवाब हटा कर, थोड़ा तराश कर लेख की शक्ल में यहां पेश कर रहे हैं। इसे निठल्ल चिंतन कह सकते हैं.- अजित |
भा रत में श्री, श्रीमान और श्रीमती शब्दों का सामाजिक शिष्टाचार में बड़ा महत्व है। आमतौर श्री, श्रीमान शब्द पुरुषों के साथ लगाया जाता है और श्रीमती महिलाओं के साथ। इसमें पेच यह है कि श्री और श्रीमान जैसे विशेषण तो वयस्क किन्तु अविवाहित पुरुषों के साथ भी प्रयोग कर लिए जाते हैं, किंतु श्रीमती शब्द सिर्फ विवाहिता स्त्रियों के साथ ही इस्तेमाल करने की परम्परा है। अविवाहिता के साथ सुश्री शब्द लगाने का प्रचलन है।
समस्त संसार को आश्रय प्रदान करनेवाली “श्री” के साथ रहने के कारण भगवान विष्णु को श्रीमान कहा गया है। इसलिए वे श्रीपति हुए। इसीलिए श्रीमत् हुए। यहां परम्परा शब्द का इस्तेमाल हमने इसलिए किया है क्योंकि श्रीमती शब्द में कहीं से भी यह संकेत नहीं है कि विवाहिता ही श्रीमती है। संस्कृत के “श्री” शब्द की विराटता में सबकुछ समाया हुआ है मगर पुरुषवादी समाज ने श्रीमती का न सिर्फ आविष्कार किया बल्कि विवाहिता स्त्रियों पर लाद कर उन्हें “श्रीहीन”कर दिया। संस्कृत के “श्री” शब्द का अर्थ होता है लक्ष्मी, समृद्धि, सम्पत्ति, धन, ऐश्वर्य आदि। सत्ता, राज्य, सम्मान, गौरव, महिमा, सद्गुण, श्रेष्ठता, बुद्धि आदि भाव भी इसमें समाहित हैं। धर्म, अर्थ, काम भी इसमें शामिल हैं। वनस्पति जगत, जीव जगत इसमें वास करते हैं। अर्थात समूचा परिवेश श्रीमय है। भगवान विष्णु को श्रीमान या श्रीमत् की सज्ञा भी दी जाती है। गौरतलब है कि “श्री” स्त्रीवाची शब्द है। उपरोक्त जितने भी गुणों की महिमा “श्री” में है, उससे जाहिर है कि सारा संसार “श्री” में ही आश्रय लेता है। अर्थात समस्त संसार को आश्रय प्रदान करनेवाली “श्री” के साथ रहने के कारण भगवान विष्णु को श्रीमान कहा गया है। इसलिए वे श्रीपति हुए। इसीलिए श्रीमत् हुए। भावार्थ यही है कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त हैं।
प्रश्न यह है कि जब “श्री” के होने से भगवान विष्णु
श्रीमान या
श्रीमत हुए तो फिर
श्रीमती की क्या ज़रूरत है? “श्री” से बने श्रीमत् का अर्थ हुआ ऐश्वर्यवान, धनवान, प्रतिष्ठित, सुंदर, विष्णु, कुबेर, शिव आदि। यह सब इनके पास पत्नी के होने से है। पुरुषवादी समाज ने श्रीमत् का स्त्रीवाची भी बना डाला और श्रीमान प्रथम स्थान पर विराजमान हो गए और श्रीमती पिछड़ गईं। समाज यह भूल गया कि “श्री” की वजह से ही विष्णु
श्रीमत हुए। संस्कृत में एक प्रत्यय है
वत् जिसमें स्वामित्व का भाव है। इसमें अक्सर अनुस्वार लगाय जाता
...क्या किसी वयस्क के नाम के साथ श्रीमान, श्री, श्रीमंत या श्रीयुत लगाने से यह साफ हो जाता है कि उसकी वैवाहिक स्थिति क्या है...
है जैसे
बलवंत। इसी तरह श्रीमत् भी
श्रीमंत हो जाता है। हिन्दी में यह
वंत स्वामित्व के भाव में
वान बनकर सामने आता है जैसे
बलवान, शीलवान आदि। स्पष्ट है कि विष्णु
श्रीवान हैं इसलिए
श्रीमान हैं।
हमारी आदि संस्कृति मातृसत्तात्मक थी। उसमें सृष्टि को स्त्रीवाची माना गया है, उसे ही समृद्धि का स्रोत माना गया है। वह वसुधा है, वह पृथ्वी है। वह हिरण्यगर्भा है। लक्ष्मी के योग के बिना विष्णु श्रीमान हो नहीं सकते, श्रीपति कहला नहीं सकते। स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। “श्री” और श्रीमान शब्द अत्यंत प्राचीन हैं। इनमें मातृसत्तात्मक समाज का स्पष्ट संकेत है। विष्णु सहस्रनाम के विद्वान टीकाकार पाण्डुरंग राव के अनुसार समस्त सृष्टि में स्त्री और पुरुष का योग है। श्रीमान नाम में परा प्रकृति और परमपुरुष का योग है। मगर इससे “श्री” की महत्ता कम नहीं हो जाती। आज विवाहिता स्त्री की पहचान श्रीमती से जोड़ी जाती है उसके पीछे संकुचित दृष्टि है। विद्वान लोग तर्क देते हैं कि श्रीमान की अर्धांगिनी श्रीमती ही तो कहलाएंगी। विडम्बना है कि श्रीमानजी यह भूल रहे हैं कि वे खुद श्रीयुत होने पर ही श्रीमान कहलाने के अधिकारी हुए हैं।
श्री तो स्वयंभू है। “श्री” का जन्म संस्कृत की
श्रि धातु से हुआ है जिसमें धारण करना और शरण लेना जैसे भाव हैं। जाहिर है समूची सृष्टि के मूल में स्त्री शक्ति ही है जो सबकुछ धारण करती है। इसीलिए उसे “श्री” कहा गया अर्थात जिसमें सब आश्रय पाए,
... किसी भी स्त्री को सिर्फ श्रीमान नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा “श्री” और “सुश्री” में कोई गड़बड़ी नहीं है। मांग के सिंदूर की तरह किसी स्त्री के नामोल्लेख में उसकी वैवाहिक स्थिति जानना इतना ज़रूरी क्यों है?...
जिसके गर्भ से सब जन्मे हों। सर्वस्व जिसका हो। अब ऐसी “श्री” के सहचर श्रीमान कहलाएं तो समझ में आता है मगर जिस “श्री” की वजह से वे
श्रीमान हैं, वह स्वयं
श्रीमती बन जाए, यह बात समझ नहीं आती। तुर्रा यह की बाद में पुरुष ने “श्री” विशेषण पर भी अधिकार जमा लिया। अक्लमंद सफाई देते हैं कि यह तो श्रीमान का संक्षिप्त रूप है। तब श्रीमती का संक्षिप्त रूप भी “श्री” ही हुआ। ऐसे में स्त्रियों को भी अपने नाम के साथ “श्री” लगाना शुरु करना चाहिए, क्योंकि वे ही इसकी अधिकारिणी हैं क्योंकि श्री ही स्त्री है और इसलिए उसे लक्ष्मी कहा जाता है। पत्नी या भार्या के रूप में तो वह गृहलक्ष्मी बाद में बनती है, पहले कन्यारूप में भी वह लक्ष्मी ही है।
इधर कुछ दशकों से कुमारिकाओं या अविवाहिता स्त्रियों के नाम के साथ सुश्री शब्द का प्रयोग शुरू हुआ है। अखबारों में गलती से भी कोई साथी किसी महिला की वैवाहिक स्थिति ज्ञात न होने पर उसके नाम के साथ सुश्री शब्द लगाना चाहता है तो वरिष्ठ साथी तत्काल रौब दिखाते हैं- मरवाएगा क्या? शादीशुदा निकली तो? हालांकि भारत में श्रीमती और सुश्री जैसे संबोधनो-विशेषणों से वैवाहिक स्थिति का पता आसानी से चलता है और इस रूप में ये सुविधाजनक भी हैं किन्तु इनके पीछे की सच्चाई जानना भी ज़रूरी है। किसी भी स्त्री को सिर्फ श्रीमान नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा “श्री” और “सुश्री” में कोई गड़बड़ी नहीं है। मांग के सिंदूर की तरह किसी स्त्री के नामोल्लेख में उसकी वैवाहिक स्थिति जानना इतना ज़रूरी क्यों है? जब कि किसी प्रौढ़ या वयस्क पुरुष के नामोल्लेख में श्रीमान, श्रीयुत, श्रीमंत या श्री आदि कुछ भी लगाइये तब भी यह पता लगाना असंभव है कि मान्यवर की वैवाहिक स्थिति क्या है। किसे धोखा दे चुके हैं, किसे जला चुके हैं, किसे भगा चुके हैं, किससे बलात्कार कर चुके हैं....कुछ भी तो पता नहीं चलता। फिर श्रीमती के लिए आग्रह क्यों ?
करीब बीस वर्ष पहले गायत्री परिवार की तत्कालीन प्रमुख आचार्य श्रीराम शर्मा की पत्नी भगवतीदेवी शर्मा जयपुर आईं थीं। मुझे उनसे मिलने का अवसर मिला। अपनी अखबारी रिपोर्ट में मैनें हर बार उनका उल्लेख श्री माताजी के तौर पर ही किया। इसे मैने बहुत साधारण समझा मगर बाद में मुझे ज्ञात हुआ कि मेरे ऐसा लिखने से वे प्रसन्न थीं जबकि अन्य समाचार पत्रों में श्रीमती शब्द का प्रयोग भी बहुधा हुआ।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
38 कमेंट्स:
अजित भाई, आपको पढ़ना हमेशा सुखद लगता है, कम से कम मुझे नयी जानकारियाँ भी मिलतीं हैं। आभार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
अब समझे श्री राधा, श्री दुर्गा, श्री सरस्वती आदि का अर्थ । सब कुछ किसी न किसी मंतव्य से होता रहा है इस पुरुष प्रधान समाज में । श्री-श्रीमती की ओर तो ध्यान ही नहीं गया था ।
बहतु सुंदर आलेख, सुबहु सुबह आनंद की सृष्टि कर गया।
बढियां विवेचन !
अद्भुत । पुरुष वर्चस्ववादी समाज की तो आप ने बखिया उधेड़ दी।
सुंदर विश्लेषण .
अदभुत जानकारी. धन्यवाद.
रामराम.
आपकी बात 100 प्रतिशत् सत्य है।
श्री तो स्वयं ही स्त्रीवाचक है।
इसलिए महिलांओं के नाम से पूर्व श्री
और पुरुषों के नाम से पूर्व श्रीमान् शब्द
का प्रयोग करना श्रेयस्कर है।
गुरुदेव पूरा आलेख पढ़ लिया..सिर्फ एक बात जो अब तक नहीं आयी किसी भी टिप्प्न्नी में ..आपके लेख के अनुसार जब पुरुष के साथ श्रीमान लगा कार उसकी वैवाहिक स्थिति की सभी जिज्ञासा या संभाना की समाप्ति कार दी जाती है तो फिर महिलाओं में उनके कुंवारे या शादी शुदा होने की शंका निवारण हेतु श्रीमती और सुश्री के संबोधन पर जोर क्यूँ...अजी जोर कौन डालता है..हम..बिलकुल भी नहीं किसी अविवाहित को श्रीमती बोल कार देखिये ...वो सुश्री कैसे सुर बदल कार आपसे बात करेंगी...जानकारी कमाल थी ..अच्छा लगा ..
लो जी, हम तो यह मान रहे थे कि श्री (फलां फलां) की मति होती है श्रीमति/ श्रीमती तभी बढ़ता है श्री का मान !!
:-)
आपका बहुत धन्यवाद ...और अनूप जी का भी आखिर इस लेख में उनकी भी भागीदारी है :-)
एक बात थी, मैंने कहीं कहीं राधा के लिए श्रीमती शब्द का प्रयोग देखा है ..इसका क्या कारण होगा ?
waah Waah !
atyant upyogi aalekh !
haardik badhaai !
:-)
ये सही कहा आपने
सुश्री लता मँगेशकर दीदी कहलाती हैँ और श्रीमती जया बच्चन ही कहा जाता है -
- लावण्या
ये है एक असली और ठोस विमर्श, सोने जैसा खरा न कि तथाकथित विमर्शी ब्लोगों की लफ्फाजी ! कभी श्री नगर पर भी नज़रे-इनायत हो साहब . ...! आपका समकालीन ब्लोगर होना चित्त -दाह को शमित करता है ... और उसपे ये हिंदी टाइप का बक्सा निस्संदेह आपकी सहृदयता का द्योतक है .
वैसे आप हैं खतरनाक. चैट भी सहेज कर रखते हैं.
@ लवली कुमारी / Lovely kumari
राधा को कुछ बल्लभी सम्प्रदाय जग मान्यता के विपरीत परकीया न मान कर स्वकीया मानते हैं. स्वकीया माने 'अपनी पत्नी'. इसी पर जोर देने के लिए श्रीमती शब्द का प्रयोग उनके नाम के साथ करते हैं.
रोज़ तारीफ़ करना अच्छा नही लगता भाऊ इसलिये आज तारीफ़ नही कर रहा हूं। नव-भारत के संपादक श्री श्याम वेताल जी से भेंट हुई थी आपकी बात भी निकाली उन्होनें।मैने उन्हे बताया कि मै आपका नियमित पाठक हूं।वैसे पोस्ट बहुत अच्छी है।
@अजय कुमार झा
कहना यही है कि श्रीमती तो व्यर्थ का शब्द है। इसे विवाहिता होने का प्रमाण पुरुषवादी समाज ने बनाया सो वैसा कहने पर किसी कुमारिका का एतराज स्वाभाविक है। किसी अविवाहित पुरुष के नाम के साथ श्री और श्रीमान लगाने पर क्या कभी किसी को आपत्ति प्रकट करते सुना गया है? मेरा सुझाव सिर्फ इतना है कि सुश्री का प्रयोग वैवाहिक स्थिति से हटकर किसी भी कन्या-महिला के साथ करने में हमें संकोच नहीं करना चाहिए और लोगों की भान्ति दूर करनी चाहिए।
हम तो महिलाओं के साथ सुश्री ही लगाते हैं ताकि वह जो भी हो खुश रहे। वैसे मैने महसूस किया है कि श्रीमती की जगह सुश्री लगाने पर महिलाएं गौरवान्िवत महसूस करती हैं।
शानदार सफर की इस कड़ी के लिए आपका शुक्रिया। साथ में गिरिजेश राव जी का भी।
वाह वाह वाह... अजीत भाई,आनंद आ गया.....क्या अद्भुत विवेचना प्रस्तुत की है आपने....लाजवाब.....बहुत ही लाजवाब....
यह कड़ी तो ज्ञानवर्धक ही नहीं बल्कि कई भ्रांतियों का खंडन कारक भी रहा..
ऐसे आलेखों की बड़ी आवश्यकता है आज समाज को..
आपका बहुत बहुत आभार.
जय हो। आप धन्य हैं। इतना ज्ञान वर्धन कर दिया। शुक्रिया।
@अनिल पुसदकर
शुक्रिया अनिलभाई,
तारीफ तो एक भी दिन नहीं चाहिए, प्रतिक्रिया भी हर दिन ज़रूरी नहीं।
ये ब्लाग आपका हमसफर, मददगार बना रहे यही प्रयास है।
श्यामजी बढ़िया व्यक्ति हैं।
साभार
@गिरिजेश राव जी जवाब का बहुत धन्यवाद
'Sushri' is synonymous with English 'Ms.' ! I use it for married as well as unmarried women and none objects to it .
आज के बाद संबोधन में श्री मान का ही प्रयोग करना चाहिए पुरुषों के लिए
*मति राम जी श्री लगाने पर श्रीमति राम हो जायेंगे.
*पुरानी फिल्मों में कुंवारी हीरोइनों के नाम के आगे श्रीमति लगाते थे.
*हमारे यहाँ एक पुरुष संत हैं जिनका नाम श्री माताजी है.
*कुंवारी लड्कियों के नाम के आगे सिर्फ शादी होने की उम्र तक कुमारी लगाते है शादी की उम्र निकल जाने के बाद (हाँलाकि यह कौन तय करेगा) ही सुश्री लगाते हैं
* किसी को महत्व देने के लिये दो बार श्री श्री लगाते
बडनेरकर जी ,
आपके सभी तर्क सारी मीमांसा शास्त्र सम्मत है परन्तु अब परम्परा की घुसपैठ इतनी अधिक हो चुकी है कि इसे अस्वीकृत कर देना असम्भवप्राय सा है |
दूसरी बात जो मेरी अल्प बुद्धि में कौंधती है यह कि श्रीमती की खोज के लिए हमारा पुरुषवादी समाज ही एकमात्र उत्तरदायी नहीं | अंग्रेजी परम्परा का योगदान भी होगा जहां मिस्टर और मिस्ट्रेस ( मिसेस ) के हिन्दी अनुवाद के तौर पर श्रीमान और श्रीमती का उदय हुआ हो |
तीसरी बात यह कि संबोधन में पुरुष और स्त्री की पहचान बतौर कई संस्कृतियों / भाषाओं में भी कुछ न कुछ भिन्न शब्द तो है ही | उदाहरण : पंजाबी में : सिंह और कौर | बेशक संबोधन के लिए महोदय और महोदया / सर या मेडम उर्दू में ज़नाब और मोहतरमा ( बी ) भी हैं ही | शायद इसी तरह के भेद को ज़ाहिर करने की नीयत से श्री / श्रीमती का प्रादुर्भाव हुआ हो |
वैसे हम तो महज़ साधारण शिक्षार्थी है | आप जैसे शोधार्थी के निष्कर्ष से सहमत हुए बिना नहीं रहा जा सकता |
अभी अभी इस आलेख को पढ़कर मेरी भार्याश्री ( पत्नी ) ने रोचक प्रसंग सुनाया कि उनके पितृ नगर में एक शिक्षिका 'श्रीमती भेनजी' के नाम से ख्यात थी | अविवाहित थी सो पूरा नाम लिखा जाता था ' कुमारी श्रीमती शर्मा " | वे आजीवन कुवांरी रही और आजीवन ही श्रीमती भी कहलाती रहीं |
पुरुष प्रधान समाज ने ही ये प्रथा शुरू की होगी जिससे ये पता चल सके की कौन स्त्री विवाहित हो चुकी है जिससे सिन्दूर बिछुआ से देख कर पता चलता है की स्त्री विवाहित है उसी प्रकार श्री मती कहने से पता चल सके
खुद के लिए हमारे पूर्वजों ने ऐसी कोई जरूरत नहीं समझी होगी
जिससे पता चलता है की प्राचीन काल में स्त्रियों की क्या दशा थी भारत में ...
वीनस केसरी
@RDS
शुक्रिया हुजूर,
ये तो महज़ निठल्ल चिंतन था और इसीलिए आपको पढ़वाया भी।
श्री का मामला रोचक था इसलिए सबसे साझा करने की इच्छा हुई।
यह आलेख की किसी परिवर्तन की इच्छा से नहीं बल्कि सिर्फ जानकारी के
लिए ही लिखा। विमर्श का प्रचलित अर्थ यानी बहस इसमें नहीं है, बल्कि वास्तविक अर्थ यानी विचार ही प्रमुख है।
सुश्री शब्द सहज स्वीकार्य होना चाहिए।
साभार
पुनश्चः अभी अभी आपकी दूसरी टिप्पणी भी पढ़ी। दिलचस्प है। पुरुषों का नाम श्रीपति हो सकता है तो महिलाओं का श्रीमती भी हो सकता है। संभवतः उन मोहतरमा का नाम ही श्रीमती रहा होगा, ऐसा लग रहा है।
अजित भाई, सदा की भांति इस बार भी आपने बहुत सटीक विश्लेषण किया है. बधाई और आभार. इस बार आपने चीज़ों को सही परिप्रेक्ष्य भी दिया है, इस बात का मैं विशेष रूप से उल्लेख करना चाहता हूं. आखिर भाषा हमारे सोच को तो ज़ाहिर करती ही है.
आज बहुत देर तक पढ़ने का मौका मिला ... इस रोचक पोस्ट के लिए अनूपजी का भी शुक्रिया... कोशिश करेंगे कि कल भी पढ़ने के तार जुड़े रहे...अनंत ज्ञान की रोचकता भी अनंत है जिसे बनाए रखने की कला आप बेखूबी जानते हैं...
काम का.. हमें यह पता नहीं था... शुक्रिया
आप का लेख अति सराहनीय है.....
आप का लेख अति सराहनीय है.....
क्या विधवा महिला के नाम के आगे श्रीमती शब्द का प्रयोग किया जा सकता हैं?
Post a Comment