आज कई एकड़ में फैला मक्का का काबा परिसर कभी बहुत संकुचित,संकरा था। 1880 के काबा की तस्वीर
वि भिन्न संस्कृतियों में पूजा-अर्चना की अलग-अलग प्रणालियां हैं और आराधना स्थलों के नाम भी अलग अलग हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग मस्जिद में जाकर ईश वंदना करते हैं। मुस्लिमों की आऱाधना को नमाज़ कहा जाता है। मस्जिद में सभी लोग एक साथ पश्चिम की ओर मुंह कर नमाज़ पढ़ते हैं क्योंकि इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र तीर्थ मक्का उसी दिशा में है।
मस्जिद का मतलब होता है जहां जाकर ईश्वर की आराधना की जा जाए। यह शब्द बना है अरबी ज़बान के शब्द
सज्दा (सज्दः) से जिसे हिन्दी में
सिजदा भी कहा जाता है। सिजदा का अर्थ होता है झुक कर अभ्यर्थना करना। भारतीय संस्कृति में जिसे दंडवत कहते हैं दरअसल सिजदा में वही भाव है। यह उपासना की वही पद्धति है जिसमें माथा, नाक, घुटना, कुहनियां और पैरों की अंगुलियां ज़मीन को छूती हैं। यह बना है अरबी भाषा की धातु स-ज-द ( s-j-d) से जिसमें प्रार्थना करने, घुटनों के बल झुकने, नमने या
दंडवत करने का भाव है। अरबी भाषा का एक प्रसिद्ध उपसर्ग है
म जिसमें सहित या शामिल का भाव होता है।
म लगने से सज्दा (सज्दः) बनता है
मसजिद जिसका मतलब है प्रार्थना स्थल या इबादतगाह। जहां
सज्दः या सिजदा होता है उसे ही मसजिद कहते हैं। भाषाविज्ञानियों के मुताबिक मूल रूप से यह धातु सेमिटिक परिवार की आरमेइक भाषा से आती है जिसमें पवित्र स्तम्भ (पूज्य लक्ष्य) और आराधना दोनो ही भाव हैं।
गौर करें कि इस्लाम से पहले से ही समूचे
अरब समुदाय के विभिन्न कबीलों में मक्का को पवित्र स्थान का दर्जा मिला हुआ था। प्रतिवर्ष यहां की धार्मिक यात्रा करने की परम्परा इस्लाम से भी पहले से रही है। अरबी कबीलो में बहुदेववाद और मूर्तिपूजा का बोलबाला था। लगभग सभी समुदायों में पूजित देवी-देवताओं का स्थान मक्का में काबा का पवित्र स्तम्भ या शिलाएं (मूर्तियां) ही थी। कहा जाता है कि इस्लाम की स्थापना के बाद इन प्रतिमाओं को खंडित किया गया। मगर जहां ये रखी हुई थीं, उसी स्थान पर आज भी वह स्तम्भ है और प्रतिवर्ष इसी स्थान की यात्रा के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। पैगम्बर की मर्जी से यह परम्परा चल रही है।
सिजदा से जुड़े कुछ अन्य शब्दों से भी हिन्दीभाषी परिचित हैं जैसे
सज्जादानशीं। सभी प्रसिद्ध दरगाहों के पदाधिकारियों के उल्लेख के संदर्भ में यह शब्द आता है। इसका मतलब होता है किसी पंथ के नेता का वारिस या
गद्दीनशीं।
…नस्ली घ्रणा के चलते भी कई भाषाई दुराग्रह पनपते हैं। पश्चिमी विश्व में मस्जिद की एक मज़ाकिया व्युत्पत्ति भी बताई जाती है कि इसका मूल स्पेनिश शब्द मोस्किटो है…
मुसलमानों में एक नाम होता है
सज्जाद जिसका रिश्ता भी इससे ही है। सज्जाद वह है जो बहुत अधिक सज्दे करता हो। जाहिर है सज्दा ईश्वर के लिए ही किया जाता है सो सज्जाद में धार्मिक होने का गहन भाव है। सज्दा करने की जगह को सज्दागाह भी कहते हैं।
मसजिद को इबादतगाह भी कहते हैं जो बना है अरबी के इबादा से। जिसका अर्थ होता है प्रार्थना स्थल, पूजा स्थल। इबादा बना है अरबी धातु अब्द से जिसका अर्थ होता है सेवक, चाकर, भक्त आदि। इससे ही बना है इबादा जो अब्द का बहुवचन भी है और क्रिया भी अर्थात इसमें सेवको, भक्तों के भाव के साथ साथ प्रार्थना, पूजा, सेवा और तपस्या आदि भाव भी शामिल है। फारसी में यह इबादत का रूप लेता है। मुसलमानों में आबिद और आबिदा नाम होते हैं जो इसी कड़ी से जुड़े हैं। आबिद यानी तपस्वी, आराधक और आबिदा यानी तपस्विनी, आराधिका। इबादतगाह को इबादतखाना भी कहते हैं जिसमें मंदिर, मसजिद, गिरजा आदि तमाम उपासनागृह आ जाते हैं। अलबत्ता मसजिद एक धर्म विशेष का प्रार्थनास्थल होती है।
अंग्रेजी का
मौस्क शब्द मसजिद का पर्याय है। पश्चिमी दुनिया में खासतौर पर
ईसाई जगत में
मौस्क की व्युत्पत्ति मस्किटो अर्थात मच्छर से बताई जाती है। इसके पीछे जो वजह है वह बडी दिलचस्प है। पंद्रहवी सदी में जब स्पेन पर मुस्लिमों ने धावा किया तब वहां के राजा फर्डिनेंड और रानी ईसाबेला ने शेखी बघारी थी कि उनकी फौजों ने मुस्लिम पूजा-स्थलों को मच्छरों mosquito की तरह कुचल डाला। यह सिर्फ नस्ली
घ्रणा से उपजा भाषायी परिहास है, इसमें कोई सच्चाई नहीं है। जिस दौर में स्पेन पर फर्डिनेंड का शासन था, ईस्लाम उससे भी पहले वहां पहुंच चुका था और मसजिदें भी बन चुकी थीं। अरबी मसजिद का स्पेनी रूपांतर
मेज़किता mezquita था जो पुरानी स्पेनी के
मेसकिटा mesquite से बना था। अंग्रेजी का mosque फ्रेंच शब्द mosquee का रूपांतर है जो उसने इतालवी के
मोस्चेटा moscheta से ग्रहण किया। विद्वानों का मानना है कि संभव है इतालवी ने इसे सीधे अरबी के मसजिद से लिया हो या फिर यह स्पेनी के मेसकिटा से आया हो।
गौरतलब है कि अरब के बहुत से भाषायी क्षेत्र
ज का उच्चारण
ग करते हैं खासतौर पर पश्चिमी अरबी क्षेत्र जिसमें मिस्र आता है। यह परिवर्तन बहुत स्वाभाविकता से हो जाता है। जैसे पश्चिमी अरबी में अरबी मूल का
जमाल हो जाएगा
गमाल। यूरोपीय भाषाओं में जितने भी अरबी मूल के शब्द गए हैं वे ज्यादातर बरास्ता इजिप्ट ही गए हैं। ऊंट को अरबी में
जमल कहते हैं। इजिप्शियन में यह बनता है
गमल और फिर जब ये फ्रैंच, स्पेनी या इतालवी में पहुंचता है तो
कैमल हो जाता है। इसी तरह मसजिद शब्द इजिप्शियन में अपने आप
मसगिद हो जाता है। जाहिर है कि पुरानी स्पैनिश में मसजिद के लिए जो
मेसकिटा शब्द बना वह मिस्री प्रभाव वाले
मसगिद से ही बना होगा।
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24 कमेंट्स:
आपको पढ़ना सुखद लगता है। अपने ब्लाग "शब्दों का सफर" के नाम को आपने हमेशा सार्थकता प्रदान किया है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मक्का का सफर अच्छा लगा।
हम भी सिजदा करते हैं।
मक्का का सफर अच्छा लगा।
हम भी सिजदा करते हैं।
बढ़िया रही यह यात्रा भी.
मसकीट और जमल शब्द कितने बदल गये -
यही है इन्सानी दीमाग -
जो अपनी मरजी से भाषा का प्रयोग करता है और शब्द सफर पे चल देते हैँ ;-)
- लावण्या
आज के आलेख ने खूब दिमागी कसरत करवा दी। यहाँ तो साजिद और आबिद में ही फर्क समाप्त हो गया।
आज भी अच्छी जानकारी .
कमाल के जानकारी दी आपने अजित जी ..हमेशा के तरह..अब तो हम भी इस सफ़र के पक्के साथी बन चुके हैं..
gyan-vardhak lekh, sachmuch aap bahut parishram karte hai,jaankriya jutane me,dhanyvaad.
please visit: http://miracleofkaaba.com
m.hashmi
बहुत उम्दा जानकारी.
रामराम.
बहुत अच्छा लिखा है.........
आपके लेख बहुत कुछ बोल जाते हैं...............
जो हर किसी के बस की बात नहीं....
अक्षय-मन
सज्दा सिजदा बना और म को मिलाकर उनका पूजास्थल मस्जिद हो गयी. जमाल का कमाल भी देखा. अद्भुत जानकारी.आभार.
cute one... thank you for your informative post. I never been to masjid nor I studied Kuraan. But I respect Islam and I wish to go there once atleast...
इस सफ़र के क्या कहने।
बहुत अच्छा लगा पढ़कर
हिंदी बॉक्स का असहयोग जारी है, आज भी उपयुक्त कमेन्ट न दे पाया, खैर , आपके आलेख बहुत कुछ कहने को प्रेरित करते है. काबा या सजदा: के मुतअलिक चचा ग़ालिब ने यूँ भी फरमाया है :
"है परे सरहदे इदराक से मेरा मस्जूद,
किबले को अहले नज़र किबला-नुमा कहते है."
बड़ी नायाब तस्वीरे उपलब्ध करवाई आपने, शुक्रिया.
ajitji..............gazab kar rahe hain...............nihal kar rahe hain...
har baar aap kuchh aisee jaankari dete hain ki man aur mstishk ki khidkiyan khul jaati hain ...............
BADHAAI !
bahut achha lekh. Lekin is main kuch sudhar ki jaroort hai.
1. Jo log kaba ke west direction main rahte hain wo east ke aor muh kar ke namaj padte hai.
2. Jo log kaba ke eest direction main rahte hain wo west ke aor muh kar ke namaj padte hai.
3. Aur kaba main log 4 direction main muh kar ke namaz padte hai.
@abhigupta2204
आपने सही कहा अभिभाई। यह बात मेरे ध्यान में थी, मगर एशियाई संदर्भ ही दिमाग़ में रहा। निश्चित ही यह संशोधन करना चाहिए था। शुक्रिया ध्यान दिलाने के लिए।
आपके शब्दों के हम भी हमसफ़र हुए...बधाई
भाऊ,'शीर्ष टिप्पणीकार' वाली जगह पर मेरा और दिनेशराय जी का दंगल चल रहा है (वैसे अभी तो चौथे पाँचवें का ही है,भारत ओलम्पिक में?) । ऐसा करो कि मुझे किसी पोस्ट पर आठ दस टिप्पणी कर नं एक हो जाने दो। उसके बाद यह प्रतिबन्ध लगा देना कि एक आदमी एक लेख पर एक ही टिप्पणी कर सकता है। इससे यह होगा कि मैं हमेशा नं.एक रहूँगा। कैसा आइडिया है?एडवांस में बता देना बस। :)
शब्दों के सफ़र का सजदा भी करना ही चाहिए . क्योकि तमाम शब्दों की उत्पति से भावार्थ तक का सफर रोचक और ज्ञान वर्धक है
यह टिप्पणीकार का दंगल भी बढ़िया चीज है। :-)
सिज़दा से ही मसज़िद बना है और मसज़िद से ही मसकीट तथा मॉस्क ।
आपके साथ शब्दों के सफर में हमेशा की तरह बहुत मज़ा आया ।
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