Wednesday, June 17, 2009

केरल, नारियल और खोपड़ी…

kerala-good

क्षिण भारत का बेहद खूबसूरत राज्य है केरल। भारत के विदेशी सम्पर्कों में केरल की लम्बी समुद्रतटीय सीमा का भी योगदान रहा है। सर्वाधिक साक्षरता वाला राज्य होने के नाते भी पूरे देश में इस प्रांत का सम्मान है। किसी ज़माने में केरल तमिल प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था। यहां चेरवंशीय राजाओं का शासन था इसलिए इसका प्राचीन नाम चेरलम् था। प्राचीन तमिल प्रदेश के तीन प्रमुख हिस्से थे। चेर, चोल और पाण्ड्य जिन्हें क्रमशः चेरनाडु, चोळनाडु और पाण्डियनाडु कहते थे। ‘हमारी परम्परा’ पुस्तक के द्रविड़ और द्रविड़ भाषाएं अध्याय में र. शौरिराजन बताते हैं कि ये तीनों राज्य शिक्षा,संस्कृति, सभ्यता और वैभव में बेजोड़ थे जिनका उल्लेख वाल्मीकि ने भी किया है।
भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से चेरलम् का ही संस्कृत रूप है केरलचेर या चेरल शब्दों का अर्थ होता है जुड़ना या मिल जाना। एक अन्य व्युत्पत्ति के मुताबिक चेरलम् बना है चेर+अळम से। (मूलतः यह ष् है जिसकी ध्वनि ळ से मिलती जुलती है) चेर का मतलब होता है उच्च भूमि और अळम् यानी गहराई। मान्यता है कि तमिल राज्य के पश्चिमी क्षेत्र से समुद्र ने भूगर्भीय गतिविधियों के चलते मुख्य भूमि छोड़ दी जिसकी वजह से यह भूक्षेत्र उभर आया जिसे नाम चेरल+अकम् कहा गया अर्थात मिला हुआ प्रदेश, जुड़ा हुआ प्रदेश। भाव यही ही कि जो ज़मीन समुद्र में थी वह मुख्य भूमि से जुड़ गई इस तरह यह जुड़ा हुआ क्षेत्र कहलाया। इस क्षेत्र के वासी चेरर् या चेरलर् कहलाने लगे। चेरलकम् से चेरम् बना जिसे वहां के शासकों से जोड़ा गया जो आगे चल कर उनका वंश हो गया। चेरलम् के मूल में भी यही बात है। पानी अपना स्थान तभी छोड़ता है जब या तो मुख्य भूमि में उठाव हो या पानी का स्तर कम हो जाए। दोनों ही स्थितियों में भूमि का उठाव स्पष्ट होता है, सो चेरलम् में जुड़ना, उच्चभूमि दोनों ही अर्थ मूलतः एक ही भाव को इंगित कर रहे हैं। प्राचीनकाल में चेरनाडु, चोळनाडु और पाण्डियनाडु को मिलाकर ही तमिलनाडु प्रदेश कहलाता था। चेर शब्द का रिश्ता नागवंश से भी जोड़ा जाता है। चेरु यानी नाग। गौरतलब है कि भारतीय संस्कृति में नागों का बड़ा महत्व है। घालमेल यह है कि व्याख्याकार, पुराणकार नाग शब्द का अर्थ सचमुच सर्प से लगाते हैं और कहीं पर्वत से। मूलतः सर्प जाति जैसी कल्पना पर हमारा विश्वास नहीं है अलबत्ता नग यानी पर्वत के तौर पर पहाड़ी जनजाति का नामकरण ज़रूर है। उच्चभूमि का अर्थ पठार या तना भी होता है।
प्रसिद्ध भाषाशास्त्री पादरी काल्डवेल ने केरल के मूल में केर जैसा शब्द भी तलाशा जो मूल रूप से नारियल से जुड़ता है। संस्कृत में नारियल को नारिकेलः कहा जाता है। इसके लिए नारीकेरः, नारिकेर, नारिकेल और नाडिकेर जैसे शब्द भी हैं। नारि या नाडि का अर्थ होता है किसी पौधे का पोला तना या डंठल। कमलनाल में यह पोलापन स्पष्ट हो रहा है। नारियल का मोटा तना भीतर से पोला होता है। नाडि या नाली एक ही मूल यानी नड् से जन्मे हैं। नड् का मतलब होता है तटीय क्षेत्र में  पाई जाने वाली घास, नरकुल, सरकंडा। गौर करें वनस्पति के इन सभी प्रकारों में तने kerala-का पोलापन जाना-पहचाना है। नाडि का अर्थ बांसुरी भी होता है जो प्रसिद्ध सुषिर वाद्य है। बांस का पोलापन ही उसे सुरीलापन देता है जिससे बांसुरी नाम सार्थक होता है। धमनियों-शिराओं के लिए भी नाडि शब्द प्रचलित है। प्राचीन चिकत्साशास्त्र की एक प्रसिद्ध शाखा नाडी-चिकित्सा भी थी जिसके जरिये अधिकांशतः रनिवास0617-01coconut की स्त्रियों की जांच की जाती थी क्योंकि साधारण लोगों की तरह रोग निदान के लिए उनका शरीर परीक्षण संभव नहीं था। नाडी-परीक्षण को ही फारसी में नब्ज देखना कहते हैं। मालवी राजस्थानी में आज भी सिंचाई की नालियों को नाडि या नाड़ा कहते हैं।
मरबंद को भी नाड़ा ही कहा जाता है। मूलतः यह होता सूत्र है मगर जिस वस्त्र को कमर पर बांधा जाता है उसके ऊपरी हिस्से में सूत्र डालने के लिए कपड़े को दोहरा कर पोली नाली  बनाई जाती है। यह सूत्र इस नाली में से गुज़रता है इसलिए इसका नाम भी नाड़ा पड़ गया। स्पष्ट है कि नारिकेल शब्द ही नारिएल होते हुए हिन्दी में नारियल हो गया। नारिकेल की बहुतायत होने से इसका नाम संस्कृत में केरलम् प्रचलित हुआ हो, यह सोच तो दिलचस्प है मगर विश्वसनीय नहीं क्योंकि भारत की समूची तटरेखा वाले विभिन्न प्रदेशों में नारियल की पैदावार होती है। बस्तर में जहां समुद्र नहीं है, वहां भी नारियल होता है। ऐसे सभी प्रदेशों का नाम केरल होना चाहिए। नारिकेल से केरल नाम की व्युत्पत्ति दिलचस्प मगर अविश्वसनीय है। कुल मिलाकर यह स्थानवाची शब्द ही है।
प्रसंगवश नारियल के लिए हिन्दी में खोपरा शब्द भी प्रचलित है। इसकी व्युत्पत्ति बड़ी दिलचस्प है। इसकी व्युत्पत्ति हुई है खर्परः से जिसका अभिप्राय भी मस्तक, भाल आदि है। इसी का अपभ्रंश रूप है खोपड़ी, खप्पर, खुपड़िया, खोपड़ा आदि। दिलचस्प बात यह कि नारियल के लिए हिन्दी में खोपरा शब्द चलता है जिसे मराठी में खोबरं कह कर उच्चारित किया जाता है। खोपरा शब्द का जो लक्षणार्थ है वह स्पष्ट है। नारियल की बाहरी परत आकार और प्रकृति में मनुष्य के सिर की तरह ही होती है। अर्थात गोल और कठोर होती है। खर्परः का सीधा सा अभिप्राय मनुष्य से सिर से हैं और इससे मिलते जुलते लक्षणों वाली वस्तु के लिए समाज ने इसी शब्दमूल से एक नया शब्द बना लिया।

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22 कमेंट्स:

Himanshu Pandey said...

काफी शब्द सिमट आये इस आलेख में । आभार ।

डॉ. मनोज मिश्र said...

अच्छी जानकारी .

Udan Tashtari said...

ज्ञानवर्धन का आभार.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बढिया है जी.

रामराम.

!!अक्षय-मन!! said...

आज तो खूबसूरती बिखेर दी आपने बहुत खूब.

RDS said...

इस वर्ष यात्रा हेतु कईं पर्यटन स्थलों में से मैंने केरल को प्राथमिकता देते हुए मई के अंत में नारिकेल और लेगून के इस सुन्दरतम प्रांत में पडाव डाला कि चलो मानसून का स्वागत वहीं जा कर करें | केरल के बारे में केरल वासी कहते नहीं थकते कि यह देवताओं की प्रियतम भूमि हैं | ईसाई बहुल केरलवासी आयुर्वेद के मुफीद हैं | ज़गह ज़गह पञ्च कर्म की व्यवस्था है | सुडौल मध्यम कद काठी का तन उस पर सुन्दर बड़ी बड़ी आँखें वहाँ के वाशिंदों की सहज पहचान है | स्वभाव की सरलता निष्कपटता लुभाती है | आपका लेख मेरी यादों पर चिकनाई घोल गया !

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

मलयालम और तिमल में एक शब्द है आष़म, जिसका मतलब है गहराई। आपने जो आलम शब्द बताया है वह शायद यही है। उसका अर्थ क्षेत्र न होकर गहराई है। आष़म में जो ष़ ध्वनि आई है वह तमिल-मलायलम की विशिष्ट ध्वनि है, जो अन्य किसी भाषा में नहीं पाई जाती। इसका निकटतम हिंदी ध्वनि ल या ळ है, पर वह उससे भिन्न है। तमिल शब्द में जो ल है, वह भी यही ष़ ही है। तमिलों का मानना है कि इस ष़ ध्वनि के कारण ही तमिल इतनी मधुर भाषा है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

केरल का सफर सुहाना रहा।

मुनीश ( munish ) said...

बस्तर जैसे प्रान्तों में जहां समुद्र नहीं है, वहां भी नारियल होता है। amazing fact !

Vinay said...

केरल को यूँ थोड़े ही देवताओं का निवासस्थान कहा जाता है, यह धरती दूसरा स्वर्ग है

Anil Pusadkar said...

बहुत ही शानदार पोस्ट।ज्ञानवर्धन का आभार्।

Unknown said...

har bar ki tarah naayaab !
aur kya?

शोभना चौरे said...

बहुत ही रोचक और ज्ञान वर्धक पोस्ट |
पोली नाली नाडे के लिए कैसे उपयोगी हुई बहुत अच्छी प्रस्तुती |.केरल का भ्रमण भी खूब रहा | मैने पिछले साल ही केरल की अविस्मरनीय यात्रा की है आपके आलेख से यात्रा की यादे फिर से सजीव ही उठी |केरल में मुझे सबसे ज्यादा बैक वाटर के पास जो गाँव बसे है वो बहुत ही अछे लगे और बेक वाटर में नव से यात्रा का आनन्द बडा की खुबसूरत है |
बहरहाल पुनः एक अच्छी पोस्ट के लिए बधाई |
shobhana chourey

दिनेशराय द्विवेदी said...

केरल देश के सर्वोत्तम भूमियों में से एक है। उस का यह नाम भूमि के समुद्र में से उत्थान के फलस्वरूप ही हुआ है। पर नाड़ा तो इस लिए है कि वह एक नाड़ी में पिरोया जाता है। जोधपुर में रातानाड़ा एक स्थान का नाम है। उस का इतिहास देखेंगे तो वहाँ भी नाड़ी से ही ताल्लुक मिलेगा। नाला व नाली शब्द भी नाड़ी से ही उपजे प्रतीत होते हैं।

अजित वडनेरकर said...

@बालासुब्रह्मण्यम्
बहुत शुक्रिया बालाजी। आपने महत्वपूर्ण जानकारी दी। तमिल/मलयालम की ध्वनि संबंधी इस बारीकी से मैं परिचित तो था पर यह इस 'ल' में लागू हो रही है, यह तथ्य नहीं जानता था। कषगम, कड़गम या कळगम में भी यही मामला है। कणिमोझी या कणीमोई में भी यही बात है। असल उच्चारण क्या कणीमोळी होता है?

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

अजित जी आपने ठीक कहा कणिमोष़ी में भी यही ध्वनि है। वास्तव में मोष़ी शब्द का मतलब भाषा है। इस ष़ ध्वनि का ठीक उच्चारण हिंदी लिपि में व्यक्त करना कठिन है, पर यदि आप मोयी को जीभ के सिरे को ऊपरी दंतों के पिछले भाग को छुआते हुए बोलें तो यह ध्वनि ठीक से निकलेगी। कुछ हिंदी पुस्तकों में मैंने इस ध्वनि के लिए ष़ चिह्न का प्रयोग देखा है (ष + नुक्ता)। पर अधिकांश गैर-तमिलों के लिए इसका ठीक उच्चारण कर पाना जरा कठिन ही है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

वाह केरल राज्य मनोरम "
और कल्पवृक्ष नारीकेल से सुसज्जित ये आलेख
बडा प्रीतिकर लगा अजित भाई
- लावण्या

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

'ष़' और 'ळ' ध्वनियों के लिए एक 'ध्वनि फाइल' इस पोस्ट पर लगा दें न । हम हिन्दीभाषी अभ्यास कर सीख लेंगें कि कैसे उच्चारण करना है ।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

सिक्किम के बाद केरल का सम्पूर्ण परिचय कराने के लिए धन्यवाद . केरल की प्रक्रतिक चिकित्सा पद्यति कमाल है .

Alpana Verma said...

Kerala ke naam [cheralam]ke baremein nayi jaankari mili-dhnywaad.

nariyal / khopra-ko khopdi jaisa kaha jaata hai--agar dhyan se dekhen to us mein 'do aankhen' jaisee hoti hain aur ek munh jaisa hole --aur munh jaisa hole hi osft hota hai jis ko poke kar ke nariyal ka pani nikaaltey hain....
[hindi transliteration kaam nahin kar raha-]

Ashok Pandey said...

इस सुंदर प्रदेश के भाषाई संदर्भों के बारे में बहुत अच्‍छी जानकारी मिली। आभार।

Abhishek Ojha said...

इस टिपण्णी के बक्से का कुछ कीजिए भाई. कई जगहों पर काम नहीं करता :(
इसके साथ नीचे एक 'पोस्ट कमेन्ट' वाला लिंक भी दे दीजिये. फिर जहाँ ये बक्सा नहीं चल रहा है वहां से भी टिपण्णी हो जायेगी. ज्ञानजी के ब्लॉग पर ऐसे दो लिंक दीखते हैं शायद वो कुछ मदद कर सकें.

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